कुछ साल पहले तक तमाम स्मार्टफोन और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में धड़ल्ले से नज़र आने वाली चीनी सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी और ऐप्लिकेशंस को अब प्रतिबंधों और रुकावटों का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि चीन से अप्रत्यक्ष संपर्कों वाली तकनीक अब भी नीतिगत हस्तक्षेपों को धता बता रही हैं. इस कड़ी में ख़ासतौर से इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और SMART उत्पाद से जुड़ी टेक्नोलॉजी शामिल हैं, जो ख़तरनाक सुरक्षा जोख़िम पैदा करते हैं.
2020 में भारत सरकार ने चीनी मोबाइल एप्लिकेशंस और सॉफ़्टवेयर के उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया. इस रोक के दायरे में अब लगभग 250 एप्लिकेशंस आ गए हैं.
पिछले कुछ वर्षों में कई देशो ने चीनी ऐप्लिकेशंस और टेक्नोलॉजी पर अलग-अलग क्षमताओं वाले प्रतिबंध आयद किए हैं. इन देशों में यूनाइटेड किंगडम (UK), अमेरिका, न्यूज़ीलैंड और भारत प्रमुख हैं. डेटा लीक से जुड़े ख़तरों, तमाम तरह की असुरक्षाओं और इन ऐप्लिकेशंस और टेक्नोलॉजी द्वारा पेश राष्ट्रीय सुरक्षा जोख़िमों के चलते ऐसी पाबंदियां लगाई गई हैं. ज़्यादातर मामलों में इन देशों में सरकारों की गई कार्रवाइयों के ज़रिए सरकारी अधिकारियों को अपने मोबाइल फोन पर टिकटॉक जैसे चीनी ऐप्लिकेशंस का संचालन करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है.
2020 में भारत सरकार ने चीनी मोबाइल एप्लिकेशंस और सॉफ़्टवेयर के उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया. इस रोक के दायरे में अब लगभग 250 एप्लिकेशंस आ गए हैं. इस फ़ैसले से पहले ही भारतीय सेना ने 89 चीनी एप्लिकेशंस की एक सूची तैयार कर अपने जवानों और अधिकारियों से इन्हें फोन से डिलीट करने को कह दिया था.
भले ही भारत में कार्रवाई की तलवार चीनी सॉफ्टवेयर और ऐप्लिकेशंस पर चली हो, लेकिन रोज़मर्रा की टेक्नोलॉजियों से पेश ख़तरों को लेकर अब भी एक दुविधा दिखाई देती है. इनमें ख़ासतौर से चीनी डेटा सेंसर्स, घटकों और मॉड्यूल वाले स्मार्ट उत्पाद आते हैं. इस तरह की ख़ामी का भारत के सैन्य जगत पर भारी प्रभाव पड़ सकता है.
SMART टेक्नोलॉजी और सुरक्षा जोख़िम
स्मार्ट उत्पादों में रोज़मर्रा की टेक्नोलॉजी के दायरे में आने वाले उत्पाद शामिल रहते हैं. इसमें अनिवार्य रूप से भारत के घर-घर में और दफ़्तरों में संचालित होने वाली टेक्नोलॉजी शामिल है. इनमें स्मार्ट सीसीटीवी, एयर कंडीशनर्स, रेफ्रिजरेटर्स, कॉफी मशीन्स, प्रिंटर्स और बल्ब समेत कई अन्य उत्पाद शामिल हैं. इन्हें दूर बैठकर भी संचालित किया जा सकता है. ये उपयोगकर्ताओं के हिसाब से सबसे सटीक कार्यकारी सेटिंग्स को समझते हैं और यहां तक कि बिजली के उतार-चढ़ावों के हिसाब ढल भी जाते हैं.
स्मार्ट उत्पाद, दरअसल इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) का उप-समूह होते हैं. भारत में इन तकनीकों को अपनाने का चलन तेज़ी से बढ़ रहा है. आंकड़ों के ज़रिए अनुमान लगाया गया है कि 2023 में देश में IoT सेक्टर का टर्नओवर 1.1 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगा. इतना ही नहीं, 2022 की दूसरी तिमाही में IoT उत्पादों का बाज़ार 264 प्रतिशत बढ़ गया.
भारत में इन तकनीकों को अपनाने का चलन तेज़ी से बढ़ रहा है. आंकड़ों के ज़रिए अनुमान लगाया गया है कि 2023 में देश में IoT सेक्टर का टर्नओवर 1.1 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगा.
इन वास्तविकताओं को देखते हुए ये तय है कि स्मार्ट तकनीकों का चलन घरेलू और कारोबारी दायरों से आगे निकल जाएगा. माना जा रहा है कि अपने कुशल कामकाज के साथ ये तकनीक, सैन्य दायरों में भी प्रवेश कर लेगी. सेना के दफ़्तरों यानी आधिकारिक परिवेशों के साथ-साथ घरेलू क्षेत्रों में भी इनकी पैठ बन जाएगी. यही वो दायरे हैं जहां डेटा लीक और चोरी से जुड़े जोख़िम चिंता का सबब बन सकते हैं.
ज़्यादातर स्मार्ट तकनीकें वाईफ़ाई नेटवर्कों से जुड़ने और दूर से कार्य करने के लिए डेटा सेंसर्स, मॉड्यूल्स और ट्रांसमीटर्स पर टिके होते हैं. भले ही इन स्मार्ट उत्पादों का निर्माण पश्चिमी दुनिया में होता हो, लेकिन डेटा सेंसर्स, मॉड्यूल्स और ट्रांसमीटर्स के लिए वो आमतौर पर चीन पर निर्भर रहते हैं. इन घटकों के बिना ये उत्पाद “स्मार्ट” नहीं रह जाते हैं. इतना ही नहीं, डेटा भंडारण के लिए भी स्मार्ट तकनीकों को चीनी सर्वर्स ही बैकएंड सहायता मुहैया कराते हैं.
इन सभी डेटा घटकों के सर्वर्स और सॉफ़्टवेयर अपग्रेड तंत्र भी चीन से ही संचालित होते हैं. ज़ाहिर तौर पर इन उत्पादों के लिए चीन पर गहरी निर्भरता बनी हुई है, जो ख़तरे से खाली नहीं है. इन घटकों के भीतर जुड़े बैकडोर्स और लिसनिंग चैनल्स के ज़रिए इन स्मार्ट उपकरणों से इकट्ठा किया गया सारा डेटा आसानी से चीन तक पहुंच सकता है.
इस तरह सैन्य दायरे से जुड़ी अहम जानकारी, उपयोगकर्ता की आदतें, परिचालन से जुड़ी सूचनाएं और खुफिया जानकारियां चीन में मौजूद सर्वर के ज़रिए भंडारित और रिकॉर्ड की जा सकती है. इससे देश के लिए गंभीर सुरक्षा जोख़िम पैदा हो सकते हैं.
यूनाइटेड किंगडम में एक पूर्व राजनयिक द्वारा सरकार को भेजी गई रिपोर्ट में बताया गया है कि इन चीनी घटकों का प्रयोग ख़ुफ़िया अधिकारियों और मंत्रियों की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए किया जा सकता है. यहां तक कि औद्योगिक क्रियाकलापों में रोड़े अटकाने के लिए भी इनका इस्तेमाल हो सकता है. और तो और हथियारों के भंडारों, कल पुर्ज़ों और हथियारों की आपूर्ति श्रृंखलाओं से जुड़ी अहम सूचनाओं को भी स्मार्ट उत्पादों में मौजूद इन डेटा मॉड्यूल्स और ट्रासमीटर्स के ज़रिए हासिल किया जा सकता है. ग़ौरतलब है कि चीन की सरकार अपने देश के किसी भी संगठन से कोई भी जानकारी मांग सकती है, लिहाज़ा स्मार्ट उत्पादों से जुड़ी ऐसी वास्तविकताएं किसी भी देश की सुरक्षा के लिए शुभ संकेत नहीं हैं.
2020 के बाद से पूर्वी लद्दाख की वास्तविकताओं को देखते हुए चीन की ओर महत्वपूर्ण और संवेदनशील सैन्य जानकारी की चोरी रोकना और भी ज़्यादा अहम हो जाता है.
भारतीय सेना को औपचारिक योजनाओं की दरकार
वैसे तो सशस्त्र सेनाएं तकनीकी और परिचालन दायरों में चीन पर निर्भर स्मार्ट टेक्नोलॉजी के उपयोग पर रोक लगा चुकी हैं, लेकिन घरेलू और ग़ैर-तकनीकी के साथ-साथ ग़ैर-परिचालन क्षेत्रों के संबंध में अब भी असमंजस का माहौल है. सेना को उन सैन्य क्षेत्रों में इन उत्पादों से पैदा होने वाले तमाम जोख़िमों और डेटा लीक का मुक़ाबला करने के लिए औपचारिक नियम और प्रक्रियाएं तय करनी चाहिए, जहां ये उत्पाद अब तक प्रतिबंधित नहीं हैं.
इस सिलसिले में पहला क़दम उन क्षेत्रों में सैन्य कर्मियों द्वारा उपयोग किए जा रहे स्मार्ट उत्पादों के संपूर्ण विश्लेषण का हो सकता है जहां वो प्रतिबंधित नहीं हैं. इस क़वायद से इन उत्पादों से जुड़े जोख़िमों की साफ़ तस्वीर मिल सकती है. साथ ही उन उत्पादों के प्रकारों को भी वर्गीकृत किया जा सकता है जो सूचना भंडारित कर उन्हें चीन तक प्रसारित करते हैं. ऐसे जोख़िम पैदा करने वाली स्मार्ट तकनीकों को घरेलू के साथ-साथ ग़ैर-तकनीकी और ग़ैर-परिचालन सैन्य क्षेत्रों में भी प्रतिबंधित किया जा सकता है.
सेना को उन सैन्य क्षेत्रों में इन उत्पादों से पैदा होने वाले तमाम जोख़िमों और डेटा लीक का मुक़ाबला करने के लिए औपचारिक नियम और प्रक्रियाएं तय करनी चाहिए, जहां ये उत्पाद अब तक प्रतिबंधित नहीं हैं.
दूसरे, अमल में लाए जाने वाले नए सॉफ़्टवेयर और तकनीकों के इंस्टॉलेशन से पहले उनकी पूरी तरह से जांच-परख की जानी चाहिए. इस कड़ी में उनके घटकों का विश्लेषण ख़ासतौर से ज़रूरी है. इस क़वायद से चीन के साथ उनके संपर्कों का आकलन हो सकेगा. पश्चिमी दुनिया में तैयार उत्पादों पर भी इन नियमों को कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए.
भारतीय सेना को चीन से जुड़े स्मार्ट तकनीकों और IoT के ज़रिए डेटा लीक और अतिक्रमणों को रोकने की क़वायद में आगे रहना होगा. एक सुसंगत और संस्थागत दृष्टिकोण ये सुनिश्चित कर सकता है. इस हक़ीक़त से नज़र फेर लेने से देश की सेना के लिए भारी असुरक्षाएं पैदा हो सकती हैं.
सुचेत वीर सिंह ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में एसोसिएट फेलो हैं
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