Author : Hari Seshasayee

Published on Jan 29, 2024 Updated 0 Hours ago
लैटिन अमेरिका: ‘ग़ैर सियासी’ लोगों के दबदबे वाला साल

दुनिया के किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में लैटिन अमेरिका का सियासी मंज़र शायद सबसे ज़्यादा विविधता भरा है. इस समय लैटिन अमेरिका में सबसे कम उम्र के चुने हुए शासनाध्य राज कर रहे हैं- इक्वेडोर के 36 साल के राष्ट्रपति डेनियल नोबोआ. वहीं, इस इलाक़े के तीन और राष्ट्रपति भी मिलेनियल हैं, यानी वो 1980 के दशक में पैदा हुए थे. अर्जेंटीना, चिली, कोस्टारिका, इक्वेडोर, अल साल्वाडोर, ग्वाटेमाला और पेरू में देश के सर्वोच्च पदों पर ऐसे लोग चुने गए हैं, जिनका पहले सियासत से कोई नाता नहीं रहा है. [1] खांटी राजनीतिक दलों को नियमित रूप से सत्ता से बाहर किया जाता रहा है और उनकी जगह मतदाता, उम्मीदें जगाने वाले नए और नाज़ुक दलों को सत्ता की कुर्सी पर बिठाती रही हैं, जिनके नेता अक्सर ताक़तवर शख़्सियतों के मालिक होते हैं. जहां लैटिन अमेरिका के कुछ देशों में ऐसा लगता है कि लोकतंत्र को मज़बूती मिली है. जैसे कि अर्जेंटीना, ब्राज़ील और चिली. वहीं, इस इलाक़े के कई अन्य देशों जैसे कि अल साल्वाडोर, ग्वाटेमाला और पेरू में लोकतंत्र ढहने के कगार पर है, तो क्यूबा, निकारागुआ और वेनेज़ुएला में तो लोकतंत्र पूरी तरह से नदारद है.

खांटी राजनीतिक दलों को नियमित रूप से सत्ता से बाहर किया जाता रहा है और उनकी जगह मतदाता, उम्मीदें जगाने वाले नए और नाज़ुक दलों को सत्ता की कुर्सी पर बिठाती रही हैं, जिनके नेता अक्सर ताक़तवर शख़्सियतों के मालिक होते हैं.

लैटिन अमेरिका का सामाजिक आर्थिक परिदृश्य भी लगातार बदलता रहा है. दक्षिणी अमेरिका में दुनिया की सबसे तेज़ी से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्था वाला देश भी आबाद है और वो मुल्क भी है, जहां महंगाई दर पूरे विश्व में सबसे अधिक है. तेल के दाम में उछाल की वजह से गुयाना, दुनिया की सबसे तेज़ी से विकास कर रही अर्थव्यवस्था बन गया है, जिसकी GDP विकास दर 2023 में 62 प्रतिशत दर्ज की गई थी.[2] वहीं गुयाना के ठीक बगल में बसे वेनेज़ुएला में 2022 में महंगाई की दर 360 फ़ीसद थी, जोर दुनिया में सबसे अधिक थी.[3] लैटिन अमेरिका दुनिया में विरोध प्रदर्शनों का गढ़ भी बना हुआ है और 2023 में इस इलाक़े के लगभग हर देश में किसी किसी समय विशाल विरोध प्रदर्शन होते देखे गए थे. इस इलाक़े की ज़्यादातर अर्थव्यवस्थाएं अभी भी कोविड-19 महामारी के असर से उबरने की कोशिश कर रही हैं.

लैटिन अमेरिका जैसे विशाल और विविधता भरे इलाक़े में शायद किसी एक देश का चलन, दूसरे देश पर लागू हो; हालांकि, हमारी ये कोशिश लैटिन अमेरिका के कुछ उन चलनों को रेखांकित करने की है, जो 2023 में साफ़ तौर पर उभरते देखे गए.

लैटिन अमेरिका में सियासी तौर पर बाहरी लोगों का दबदबा

अर्जेंटीना में हेवियर मिलेई जैसे ग़ैर सियासी शख़्सियत के चुनाव जीतने की ख़बर ने पूरी दुनिया में सुर्ख़ियां बटोरी थीं, क्योंकि वो ख़ुद कोअराजक पूंजीवादीकहा करते हैं. ब्रिटेन के एक अख़बार ने तो मिलेई कोएल्विस प्रेसले और सख़्त धातु वाले पंजों से लैस भेड़िए[4] का दक्षिण अमेरिकी मेल क़रार दिया था. वैसे तो कभी कभार लैटिन अमेरिका पर नज़र रखने वाले पर्यवेक्षकों को अर्जेंटीना जैसे विशाल देश के मतदाताओं द्वारा सियासी मैदान से बाहर के किसी शख़्स को देश के सर्वोच्च पद के लिए चुनने से हैरानी हुई. मगर, लैटिन अमेरिका के लिए ये कोई नई बात नहीं है. हेवियर मिलेई, लैटिन अमेरिका में शीर्ष पद पर पहुंचने वाले सातवें ऐसे शख़्स हैं, जो सियासी तौर पर बाहरी हैं और अब वो सियासी तौर पर बाहरी उन 30 प्रमुख लोगों में शामिल हो गए हैं, जो पिछले तीन दशकों के दौरान इस क्षेत्र में राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनकर सियासत में उतरे हैं.

लैटिन अमेरिका के मतदाताओं का संदेश बिल्कुल साफ़ है और वो पूरी दुनिया के लोकतंत्रों में गूंज रहा है: काम करो वरना हटा देंगे.

ये सियासी बाहरी लोग एक और चलन से बहुत लाभ उठाते हैं: एंटी इनकंबेंसी. अच्छा प्रदर्शन नहीं करने पर लैटिन अमेरिका ने नियमित रूप से सत्ताधारी दलों को बाहर का रास्ता दिखाया है. इस चलन का अपवाद पराग्वे रहा है. इसके अलावा, लैटिन अमेरिका में पिछले 24 निष्पक्ष चुनावों में सत्ताधारी दलों को हार का सामना करना पड़ा है. मेक्सिको, कोलंबिया, पेरू और अर्जेंटीना में लंबे समय से सियासत कर रही पार्टियों को सियासी बियाबान में धकेल दिया गया और अब वो प्रासंगिक बने रहने के लिए संघर्ष कर रही हैं. लैटिन अमेरिका के मतदाताओं का संदेश बिल्कुल साफ़ है और वो पूरी दुनिया के लोकतंत्रों में गूंज रहा है: काम करो वरना हटा देंगे.

भू-राजनीति पर हावी घरेलू और क्षेत्रीय चिंताएं

2023 में भू-राजनीतिक बहस यूक्रेन पर रूस के हमले से हटकर इज़राइल और फ़िलिस्तीन की जंग पर केंद्रित हो गई. क्यूबा, निकारागुआ और वेनेज़ुएला को छोड़ दें तो ज़्यादातर लैटिन अमेरिकी देशों ने 7 अक्टूबर को हमास द्वारा किए गए हमले की कड़ी निंदा की थी, जबकि मेक्सिको ने निरपेक्ष रहने का विकल्प चुना. फ़िलिस्तीन पर इज़राइल के पलटवार को लेकर भी लैटिन अमेरिका से तीखी प्रतिक्रियाएं आईं. चिली, कोलंबिया और होंडुरास ने इज़राइल से अपने राजदूत वापस बुला लिए, तो बोलीविया ने एक क़दम और आगे बढ़ते हुए इज़राइल के साथ अपने राजनयिक संबंध पूरी तरह ख़त्म कर दिए.[5] अर्जेंटीना, इक्वेडोर, ग्वाटेमाला, पनामा और पराग्वे जैसे अन्य देश इज़राइल का समर्थन कर रहे हैं. फिर भी, भले ही इस इलाक़े के नेताओं की इस संघर्ष को लेकर मज़बूत राय हो, मगर उनका इसमें कुछ ख़ास दांव पर नहीं लगा है.

शीत युद्ध के बाद से लैटिन अमेरिका दुनिया के सुरक्षा संबंधी टकराव के केंद्रों से भौगोलिक तौर पर बहुत अलग थलग रहा है. इसमें मध्य पूर्व के युद्ध, यूक्रेन पर रूस का हमला और हिंद प्रशांत एवं दक्षिणी चीन सागर में चल रही भू-राजनीतिक खींच-तान शामिल है. इसके बजाय लैटिन अमेरिकी देश अपने घरेलू और क्षेत्रीय मसलों जैसे कि इलाक़े की कनेक्टिविटी, व्यापार समझौते और अभी हाल ही में ऊर्जा परिवर्तन को लेकर ज़्यादा चिंतित रहे.

लैटिन अमेरिका की ज़्यादातर अर्थव्यवस्थाएं, वैश्विक व्यापार पर बहुत अधिक निर्भर हैं. ऐसे में उनका भविष्य, वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास और कमोडिटी की क़ीमतों में उतार-चढ़ाव से बहुत नज़दीकी से जुड़ा है.

लैटिन अमेरिका की आर्थिक समृद्धि में मामूली सुधार

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का आकलन है कि लैटिन अमेरिका की GDP विकास दर में कमी रही है. 2022 में ये दर 4.1 प्रतिशत थी, जो 2023 में घटकर 2.3 फ़ीसद ही रह गई. [6] इसकी बड़ी वजह वैश्विक आर्थिक सुस्ती को कहा जा सकता है, और दुनिया की GDP विकास की दर, 2020 के अपवाद को छोड़कर वित्तीय संकट के बाद सेसबसे कम सालाना दररहने का अंदाज़ा लगाया गया है.[7] लैटिन अमेरिका की अर्थव्यवस्थाएं चीन से बहुत नज़दीकी से जुड़ी हैं. चीन, पिछले लगभग एक दशक से दक्षिणी अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार बना हुआ है. [8]  इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाएं, महामारी के सबसे बुरे असर से आंशिक रूप से उबर चुकी हैं. लेकिन अभी भी बहुत देश लड़खड़ा रहे हैं. कुछ देश, ख़ास तौर से मेक्सिको और मध्य अमेरिकी देशों को अमेरिका की उस नई नीति से फ़ायदा मिला है, जिसेफ्रेंडशोरिंग[9] कहा जा रहा है. चूंकि, लैटिन अमेरिका की ज़्यादातर अर्थव्यवस्थाएं, वैश्विक व्यापार पर बहुत अधिक निर्भर हैं. ऐसे में उनका भविष्य, वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास और कमोडिटी की क़ीमतों में उतार-चढ़ाव से बहुत नज़दीकी से जुड़ा है.


[1] Hari Seshasayee, “At the ballot box, anger beats fear,” Indian Express, December 1, 2023

[2] Ailsa Rosales and Nicolas Suarez, “The world’s fastest growing economy,” S&P Global, November 22, 2023

 

[3]  Anna Fleck, “The Countries With the Highest Inflation Rates,” Statista, November 22, 2023

 

[4]  Tom Phillips, “‘He acts like Wolverine’: who is Javier Milei, Argentina’s presidential frontrunner?,” The Guardian,

October 14, 2023

[5]  Oliver Stuenkel, “The Israel-Hamas War Is Inflaming Polarization in Latin America,” Americas Quarterly, November

16, 2023

 

 

[6]  Press Release No. 23/349, “Western Hemisphere Regional Economic Outlook: Securing Low Inflation and

Nurturing Potential Growth,” International Monetary Fund, October 13, 2023

 

[7]  Organisation for Economic Co-operation and Development, “A long unwinding road OECD Economic Outlook June

2023”

 

[8]  International Trade Centre, “Trade Map,” https://www.trademap.org/

 

[9]  Sebastián Osorio Idárraga, “What Is ‘Friendshoring’, and How Well Is Latin America Positioned to Harness It?,”

Bloomberg Linea, March 30, 2023

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