Author : Kashish Parpiani

Published on Sep 01, 2021 Updated 0 Hours ago

ओआरएफ़ के विदेश नीति सर्वे का निष्कर्ष ज़बरदस्त चीन विरोधी भावना के अलावा अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ भारत के बहुआयामी संबंधों की सफलता को भी बताता है

अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ भारत के संबंधों को देश के युवाओं का भरपूर समर्थन

इस महीने ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन ने ‘ओआरएफ विदेश नीति सर्वे 2021: युवा भारत और विश्व’ को जारी किया. इसका उद्देश्य भारत के सामने सबसे बड़ी विदेश नीति की चुनौतियों पर भारतीय युवाओं की नब्ज़ टटोलकर विदेश नीति का लोकतांत्रिकरण करना है. इस सर्वे में 14 शहरों के 18-35 वर्ष के 2,037 भारतीयों को शामिल किया गया जिनसे आठ क्षेत्रीय भाषाओं और अंग्रेज़ी में सवाल पूछे गए. सर्वे से पता चला कि भारतीय विदेश नीति की दशा और दिशा को लेकर युवाओं की सकारात्मक राय है. 72 प्रतिशत नौजवानों ने विदेश नीति को ‘बहुत अच्छा’ या ‘अच्छा’ बताया.

इस सर्वे के ज़रिए दुनिया की बड़ी शक्तियों के बारे में भारतीय युवाओं की सोच का भी पता लगाया गया. इसमें अमेरिका सबसे भरोसेमंद देश के रूप में उभरकर सामने आया. 77 प्रतिशत युवाओं ने अमेरिका को लेकर सकारात्मक जवाब दिया- 32 प्रतिशत युवा पूरी तरह विश्वास करते हैं जबकि 45 प्रतिशत कुछ हद तक विश्वास करते हैं.

अमेरिका को लेकर अच्छी राय के पीछे ये तथ्य भी हो सकता है कि भारत के विकास के लक्ष्यों में अमेरिका ने भी निवेश किया हुआ है. इससे भारत-अमेरिका साझेदारी भारत के अलग-अलग वर्गों के लोगों की ज़िंदगी पर सकारात्मक असर डालने की संभावना को पैना करती है. 

अमेरिका पर जताया गया ये भरोसा भारत और अमेरिका के बीच ‘व्यापक वैश्विक सामरिक साझेदारी’ की बहुआयामी स्थिति में अच्छी तरह झलकता है. ये साझेदारी सहयोग के अलग-अलग क्षेत्रों में 50 द्विपक्षीय अंतर सरकारी संवादों में फैली हुई है. इसके अलावा अमेरिका को लेकर अच्छी राय के पीछे ये तथ्य भी हो सकता है कि भारत के विकास के लक्ष्यों में अमेरिका ने भी निवेश किया हुआ है. इससे भारत-अमेरिका साझेदारी भारत के अलग-अलग वर्गों के लोगों की ज़िंदगी पर सकारात्मक असर डालने की संभावना को पैना करती है. उदाहरण के लिए, भारत के स्वच्छ ऊर्जा सेक्टर में अमेरिका की कई विकास वित्त परियोजनाएं सक्रिय हैं. भारत का स्वच्छ ऊर्जा सेक्टर हरित ऊर्जा को लेकर भारत की प्रतिबद्धता की कोशिशों में सबसे आगे है. सिर्फ़ पिछले तीन वर्षों के दौरान अमेरिका के अंतर्राष्ट्रीय विकास वित्त निगम ने भारतीय सौर ऊर्जा निर्माताओं को 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा के कर्ज़ का एलान किया है. इसके अलावा प्रतिस्पर्धी दर पर बिजली मुहैया कराने के लिए भारतीय सरकारी संस्थानों के साथ दीर्घकालीन बिजली ख़रीद समझौतों में भी आगे रहा.

इसके अतिरिक्त सर्वे के निष्कर्षों के मुताबिक़, 78 प्रतिशत युवाओं ने माना कि अगले दशक में भारत के अग्रणी साझेदार के तौर पर अमेरिका के उभरने की पूरी संभावना है. भारत-अमेरिका साझेदारी को लेकर इस तरह के भरोसे को भारत की विदेश नीति के अलग-अलग सामरिक पहलुओं में अमेरिका की बढ़ती व्यापकता से जोड़ा जा सकता है. उदाहरण के लिए, सिर्फ़ पिछले कुछ वर्षों के दौरान अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता और कच्चे तेल का छठा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बनकर उभरा है.

78 प्रतिशत युवाओं ने माना कि अगले दशक में भारत के अग्रणी साझेदार के तौर पर अमेरिका के उभरने की पूरी संभावना है. भारत-अमेरिका साझेदारी को लेकर इस तरह के भरोसे को भारत की विदेश नीति के अलग-अलग सामरिक पहलुओं में अमेरिका की बढ़ती व्यापकता से जोड़ा जा सकता है. 

चीन को लेकर युवा वर्ग चिंतित

चीन और अमेरिका के बीच ‘ताक़त के मुक़ाबले’ के संदर्भ में 62 प्रतिशत युवाओं ने अमेरिका के साथ सहयोग का समर्थन किया. हालांकि इस तरह के सहयोग की अपील महानगरों (52 प्रतिशत) के मुक़ाबले ग़ैर-महानगरों (65 प्रतिशत) में ज़्यादा देखी गई. अमेरिका-चीन तनाव के बीच भारत-अमेरिका साझेदारी के लिए आम समर्थन ने तटस्थ बने रहने (32 प्रतिशत) या चीन के साथ सहयोग (सिर्फ़ 1 प्रतिशत) को साफ़तौर पर पीछे छोड़ दिया. 70 प्रतिशत युवाओं ने चीन के आगे बढ़ने पर चिंता जताई और 77 प्रतिशत ने चीन को लेकर अविश्वास जताया (69 प्रतिशत ने पूरी तरह अविश्वास और 8 प्रतिशत ने कुछ हद तक अविश्वास जताया).

लेकिन जैसा कि भारत-अमेरिका साझेदारी की बहुआयामी विशेषताओं से साबित हुआ है, अमेरिका के लिए युवा भारतीयों में ज़्यादा समर्थन के पीछे ज़बरदस्त चीन विरोधी भावना पूरी तरह नहीं है. भारत-अमेरिका भागीदारी के पक्ष में ज़्यादा समर्थन को अमेरिका के द्वारा भारत-अमेरिका साझेदारी के वादे को निभाने के संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए, ख़ासतौर पर तब, जब भारत और चीन के बीच तनाव है. उदाहरण के लिए, ये सर्वे भारत-चीन के बीच सीमा संघर्ष के बाद दिसंबर 2020 में किया गया. ये वो समय भी था जब नवंबर 2020 में रिपोर्ट आई कि भारत अमेरिका के दो समुद्री गार्जियन ड्रोन को शामिल कर रहा है.

हालांकि, ये ड्रोन प्रीडेटर सीरीज़ के हथियार रहित रूप थे लेकिन अमेरिका ने लीज़ की व्यवस्था के तहत इस महत्वपूर्ण ड्रोन की ख़रीद की सुविधा दी जिसका मक़सद चीन के साथ सीमा पर तनाव के दौरान भारत की निगरानी की कोशिशों का समर्थन करना था.

70 प्रतिशत युवाओं ने चीन के आगे बढ़ने पर चिंता जताई और 77 प्रतिशत ने चीन को लेकर अविश्वास जताया (69 प्रतिशत ने पूरी तरह अविश्वास और 8 प्रतिशत ने कुछ हद तक अविश्वास जताया). 

ब्रिटेन और फ्रांस पर भरोसा बरकरार

आख़िर में, ओआरएफ़ के विदेश नीति सर्वे के निष्कर्षों के मुताबिक दूसरी पश्चिमी ताक़तें जैसे यूनाइटेड किंगडम (यूके), फ्रांस और यूरोपियन यूनियन ने भी क्रमश: 61 प्रतिशत, 58 प्रतिशत और 51 प्रतिशत के साथ ज़्यादा भरोसे की रेटिंग हासिल की है. अमेरिका की तरह इन पश्चिमी ताक़तों ने भी भारत की विकास यात्रा में भारी निवेश किया है. इसका उदाहरण कोविशील्ड वैक्सीन को लेकर सफल भारत-यूके सहयोग और “हरित, सुरक्षित और किफायती सार्वजनिक परिवहन” को लेकर भारत की कोशिशों में यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक का बड़ा निवेश है.

इसके साथ-साथ भारत-अमेरिका के रिश्तों की तरह उन पश्चिमी ताक़तों के साथ भारत के संबंध भी चीन के ख़िलाफ़ सहयोग के भरोसेमंद उदाहरण हैं. उदाहरण के लिए, 2019 में ख़बर आई कि संयुक्त राष्ट्र की 1267 प्रतिबंध समिति के तहत जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अज़हर के ऊपर पाबंदी में अमेरिका के साथ फ्रांस और यूके ने भी भारत के पक्ष में महत्वपूर्ण कूटनीतिक समर्थन दिया. इसके अलावा फ्रांस ने अक्सर वैश्विक मंचों जैसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन के “किसी भी तरह के प्रक्रियागत खेल” के ख़िलाफ़ भारत के पक्ष में दृढ़ समर्थन का ऐलान किया.

कोविशील्ड वैक्सीन को लेकर सफल भारत-यूके सहयोग और “हरित, सुरक्षित और किफायती सार्वजनिक परिवहन” को लेकर भारत की कोशिशों में यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक का बड़ा निवेश है. 

इस तरह लगता है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ भारत के संबंधों के पक्ष में ओआरएफ के विदेश नीति सर्वे के नतीजे भारतीय विदेश नीति के मौजूदा सिद्धांतों, जो “क्षमता, संबंध और स्थिति के आदर्श मिश्रण” की कोशिश करता है, को सही ठहराते हैं.


ये लेख ‘ओआरएफ विदेश नीति सर्वे 2021: युवा भारत और विश्व’ के निष्कर्षों पर आधारित है.

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