Author : Jhanvi Tripathi

Expert Speak Raisina Debates
Published on Apr 04, 2024 Updated 0 Hours ago

आर्थिक और भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के बीच विश्व व्यापार संगठन को बेहतर बनाने और सुधार की दिशा में कमी केवल इसके भीतर बंटवारे को बढ़ावा देगी.

बदइंतज़ामी की चपेट में संयुक्त राष्ट्र संस्था ‘WTO’

विश्व व्यापार संगठन (WTO) के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (MC13) को लेकर स्थिति स्पष्ट होने के साथ अब समीक्षा का समय आ गया है. समय आ गया है कि इस सर्वोच्च व्यापार संस्था की इस साल की द्विवार्षिक बैठक में जो बातें कही गईं और जो नहीं कही गईं, उन पर विचार किया जाए. WTO के MC13 में शायद वो सारी गतिविधियां हुईं जो कि चुनाव से भरपूर एक साल, जिसमें 64 देशों में चुनाव होने हैं, में हो सकता था. इससे MC13 के दौरान हासिल मामूली लाभ में योगदान मिल सकता था अगर उसे ऐसा कहा जाए तो. चार मुख्य घटनाक्रम या उसकी प्रगति में कमी हमें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन का आकलन करने में मदद कर सकती है. 

WTO के MC13 में शायद वो सारी गतिविधियां हुईं जो कि चुनाव से भरपूर एक साल, जिसमें 64 देशों में चुनाव होने हैं, में हो सकता था.

पहला, WTO के सदस्यों में अभी भी बहुपक्षीय नियम निर्माण को लेकर इच्छा है. इसका उदाहरण आने वाले दो वर्षों के लिए काम-काज के कार्यक्रम पर स्पष्टता हासिल करने के लिए MC13 का एक दिन का विस्तार है. बिना किसी घोषणा या सहमति के सम्मेलन को ख़त्म करना आसान होता जैसा कि सात साल पहले MC11 के दौरान देखा गया था. सम्मेलन का विस्तार निश्चित तौर पर नियमों से हटकर है और ये व्यापार से जुड़े मुद्दों के लिए बहुपक्षीय सहयोग के प्रति समग्र वादे और मूल्य का एक सबूत है. 

दूसरा, बड़ी विकासशील अर्थव्यवस्थाएं पीछे हटने से इनकार करती हैं जिसकी वजह से सर्वसम्मति नहीं बनती है. शुरुआती GATT (जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एंड ट्रेड) का अनुभव, जो कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के इतिहास में एक मील का पत्थर था, ने तथाकथित ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) में कई देशों के लिए बुरा अनुभव छोड़ा. इसलिए अन्य देशों के साथ भारत और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश दोहा से अलग मुद्दों जैसे कि हरित व्यापार और निवेश सुविधा के लिए मानक के नाम पर व्यापार में नई बाधाओं का विरोध कर रहे हैं. ज्वाइंट स्टेटमेंट इनिशिएटिव (JSI) या साझा बयान की पहल, जो कि ‘समान विचार वाले’ साझेदारों के बीच दोहा से अलग मुद्दों पर चर्चा को आगे बढ़ाने के लिए मंच बन गई है, समस्या और समाधान- दोनों है. WTO के भीतर JSI एक छोटा समूह है जिसने 2017 में WTO के 11वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के दौरान एक साझा बयान जारी किया था और उन मुद्दों पर साथ मिलकर काम करने के इरादे का एलान किया था जिन पर ज़्यादातर सदस्य उस समय औपचारिक चर्चा के लिए तैयार नहीं थे. 

WTO के भीतर JSI एक छोटा समूह है जिसने 2017 में WTO के 11वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के दौरान एक साझा बयान जारी किया था और उन मुद्दों पर साथ मिलकर काम करने के इरादे का एलान किया था जिन पर ज़्यादातर सदस्य उस समय औपचारिक चर्चा के लिए तैयार नहीं थे. 

ये परेशानी की बात है कि सेवाओं, व्यापार, ई-कॉमर्स, निवेश और MSME पर चर्चा के मामले में भारत जैसी महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था इस बातचीत का हिस्सा नहीं है. JSI के साथ भारत के असंतोष का ठोस कानूनी और आर्थिक आधार है. JSI की वैधता कमज़ोर है. अगर नियमों का निर्माण बहुपक्षीय होने जा रहा है तो अच्छा होगा कि ये WTO के बाहर किया जाए और WTO के सदस्यों को मजबूर नहीं किया जाए जो इन मुद्दों पर बाध्यकारी नियमों को लेकर उलझन में हैं. इसका दूसरा पहलू ये है कि JSI ने जो गति पकड़ी है वो कहीं जाने वाली नहीं है. भारत को दो काम करने में जल्दबाज़ी करनी होगी- इन मामलों पर घरेलू नीतिगत खालीपन को भरे और उसके बाद WTO में चर्चा के साथ आगे बढ़ना चाहिए. घरेलू स्पष्टता महत्वपूर्ण होगी ताकि हम अंतर्राष्ट्रीय नियमों के तूफान में बह नहीं जाएं और अचानक हैरान हो जाएं. 

सब्सिडी का संवेदनशील मुद्दा

तीसरा, जिनेवा में जो होता है वो अक्सर बाहर भटका रहता है. कृषि और मत्स्यपालन की सब्सिडी के मुद्दों का वैश्विक असर होगा; इसमें हैरानी की बात नहीं है कि कई देशों ने अपना समर्थन वापस ले लिया. सब्सिडी का मुद्दा हमेशा से संवेदनशील रहा है, ख़ास तौर पर तब जब कृषि जैसे क्षेत्र शामिल होते हैं. अधिकतर विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में इन मुद्दों पर बाध्यकारी नियमों को स्वीकार करने का देश में स्वागत नहीं किया जाएगा. ई-कॉमर्स पर रोक (मोरेटोरियम) का विस्तार शायद वो न्यूनतम कदम है जिसकी हम उम्मीद कर सकते थे. मोरेटोरियम अलग-अलग देशों को डिजिटल ट्रांसमिशन पर कस्टम ड्यूटी लेने से रोकता है. ये WTO के भीतर एक ध्रुवीकरण वाला मुद्दा है क्योंकि भारत जैसे देश जहां मोरोटोरियम हटाना चाहते हैं, वहीं EU स्थायी मोरेटोरियम चाहता है. 

व्यापार और तकनीक के ट्रांसफर पर वर्किंग ग्रुप में रुचि की बहाली एक दिलचस्प घटनाक्रम है जिसका ज़िक्र होना चाहिए. जुलाई 2023 में अफ्रीका समूह के द्वारा पेश किया गया एक निवेदन MC13 के घोषणापत्र में ज़िक्र किए गए एकल अनुच्छेद (सिंगल पाराग्राफ) का प्रेरक रहा है. 

चौथा लेकिन सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम, अब वो समय आ गया है जब WTO के सदस्य विवाद दूर करने के तौर-तरीके को अनिवार्य रूप से पंगु बनाने के लिए अपना दोष स्वीकार करें. ये बदइंतज़ामी का लक्षण है. विवाद निपटारा निकाय (DSB) में सुधार पर निर्णय को MC13 के फैसलों के हिस्से के रूप में जारी करना ठीक नहीं है. अपीलीय निकाय (DSB की स्थायी शाखा) के बाद से जिस निकाय को पंगु बना दिया गया है, उसमें नवंबर 2020 से कोई आसीन सदस्य (सिटिंग मेंबर) नहीं है. लेकिन इसके बावजूद अलग-अलग देश WTO में अपनी अपील दायर कर रहे हैं जिसकी वजह से अजीब तरह का गतिरोध बन गया है. ये स्थिति ठीक उसी तरह है जैसे कोई लोकतांत्रिक देश बिना न्यायपालिका के संदिग्ध रूप से काम कर रहा है.

WTO में सुधार पर मौजूदा स्थिति का दस्तावेज़ व्यवस्था से जुड़ी समस्या के बारे में बताता है. इसका शीर्षक ‘रिफॉर्म बाई डूइंग (काम करके सुधार)’ रखा गया है जिसमें एक आदर्श उम्मीद होगी कि WTO को अधिक जवाबदेह और वैध बनाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए जाएं.

WTO में सुधार पर मौजूदा स्थिति का दस्तावेज़ व्यवस्था से जुड़ी समस्या के बारे में बताता है. इसका शीर्षक ‘रिफॉर्म बाई डूइंग (काम करके सुधार)’ रखा गया है जिसमें एक आदर्श उम्मीद होगी कि WTO को अधिक जवाबदेह और वैध बनाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए जाएं. इसमें उन अधिक गंभीर समस्याओं की पहचान की गई है जिनका सामना WTO परिषद WTO के नियमों के समन्वय और कार्यान्वयन में करती है. इनमें अलग-अलग देशों के बीच डिजिटलाइज़ेशन के अलग-अलग स्तर शामिल हैं. हालांकि इस दस्तावेज़ में अलग-अलग परिषदों के आंतरिक काम-काज में विशेष प्रक्रियात्मक बदलाव के बारे में बताया गया है जबकि वास्तविक परिवर्तन का कोई ज़िक्र नहीं है. 

इस दस्तावेज़ के मुताबिक MC12 और MC13 के बीच DSB के लिए सबसे बड़ा बदलाव “दस्तावेज़ों को एयरग्राम से हाइपरलिंक” करने की प्रक्रियात्मक क्षमता रही है. DSB से मिल रहा अपडेट ये है कि अनौपचारिक बातचीत की वजह से समय के साथ 50 पन्नों के एक सुधार दस्तावेज़ का मसौदा तैयार किया गया है जो कि वर्तमान में पांचवीं बार दोहराया गया है और छठवीं बार चल रहा है. औपचारिक रास्ते पर ये आगे कब और कहां बढ़ना चाहिए, इसको लेकर समय पर सदस्य MC13 के लिए सहमत होने में नाकाम रहे. इसकी वजह से हम अंधेरे में हैं कि इस निकाय में सुधार के लिए क्या वास्तविक प्रगति दर्ज की गई है. 

सदस्यों को इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि तौर-तरीके को बहाल करने पर आगे नहीं बढ़ने से WTO के भीतर बंटवारा और बढ़ेगा. अलग-अलग देश नए, बाध्यकारी, अंतर्राष्ट्रीय नियमों पर प्रतिबद्धता जताने में तब तक सुरक्षित महसूस नहीं करेंगे जब तक कि एक मज़बूत अपीलीय निकाय न हो जो सदस्यों के हितों की रक्षा कर सकता है.


जान्हवी त्रिपाठी ORF में एसोसिएट फेलो हैं.

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