तकनीक़ के दौर में आज पूरी दुनिया पहले की तुलना में आपस में बेहतर तरीक़े से जुड़ी हुई है, यानी स्थान, लोग, चीज़ें और समाज पारस्परिक तौर पर अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं. ऐसे में वर्तमान में टेक्नोलॉजी और साइबर सुरक्षा सहयोग दुनिया भर के देशों के बीच सबसे बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है. भारत विश्व का सबसे बड़ा डिजिटल लोकतंत्र है और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में इसकी गिनती अग्रणी देशों में होती है. भारत ने अपने डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को सशक्त करने और साइबरस्पेस यानी इंटरनेट, ऑनलाइन प्रणालियों को सुरक्षित करने में अभूतपूर्व प्रगति की है. एस्टोनिया भी डिजिटल तौर पर दुनिया के सबसे विकसित देशों में से एक है और उसने आईटी सेक्टर में भारत की कामयाबी को क़रीब से देखा है. ऐसे में एस्टोनिया की इच्छा डिजिटल और साइबर सिक्योरिटी क्षेत्र में भारत के साथ सहयोग स्थापित करने की है.
रूस-यूक्रेन युद्ध में जहां एक तरफ भारत ने रूसी हमले की आलोचना से परहेज किया है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका के साथ अपने नज़दीकी रिश्तों को भी बनाए रखा है.
देखा जाए तो साइबर सुरक्षा सहयोग में ऐसी किसी साझेदारी को आगे बढ़ाने की राह में कई तरह की चुनौतियां हैं और इसे मुकम्मल करने के लिए भारत को फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाने होंगे, साथ ही कूटनीतिक लिहाज़ से संतुलन क़ायम करना होगा. एस्टोनिया की बात की जाए तो वह कभी सोवियत संघ का हिस्सा था और आज उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) का सदस्य है. एस्टोनिया यूक्रेन-रूस युद्ध में यूक्रेन को अहम रक्षा उपकरणों और सैन्य साज़ो-सामान की आपूर्ति करने वाला प्रमुख देश है. जहां तक भारत की बात है, तो उसने दुनिया में चल रहे तमाम टकरावों के बीच अपनी रणनीतिक स्वायत्तता या कहें कि तटस्थता को बरक़रार रखा है. रूस-यूक्रेन युद्ध में जहां एक तरफ भारत ने रूसी हमले की आलोचना से परहेज किया है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका के साथ अपने नज़दीकी रिश्तों को भी बनाए रखा है. इस सबके बावज़ूद, अगर भारत और एस्टोनिया के बीच साइबर सुरक्षा क्षेत्र में गठजोड़ होता है, तो इससे न सिर्फ़ भारत की प्रौद्योगिकी क्षमताओं में सुधार होने पूरी संभावना है, बल्कि वैश्विक साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में भारत की स्थिति भी सशक्त हो सकती है.
एस्टोनिया में साइबर सुरक्षा ख़तरे पर एक नज़र
वर्ष 2023 में दुनिया भर में डिस्ट्रीब्यूटेड डिनायल-ऑफ-सर्विस (DDoS) हमलों की बाढ़ सी आ गई थी. इस प्रकार का हमला किसी भी सर्वर, ऑनलाइन सर्विस या नेटवर्क को क्रैश करने के इरादे से किया जाता है. वर्ष 2023 में एस्टोनिया में भी इस तरह के 484 साइबर हमले हुए, जो कि पिछले साल की तुलना में 182 ज़्यादा थे. ज़ाहिर है कि प्रत्येक सर्वर की क्षमता कुछ सीमित रिक्वेस्ट को संभालने की होती है, जबकि इस प्रकार के हमलों में सर्वरों पर अनगिनत रिक्वेस्ट भेजी जाती हैं और इस तरह से सर्वर को ठप करने का प्रयास किया जाता है. एस्टोनिया में भी इन DdoS हमलों का मकसद देश के महत्वपूर्ण राष्ट्रीय डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर एवं सर्विसेज को ठप करना था. एस्टोनिया में इसी तरह के एक DDoS साइबर हमले में देश के टिकटिंग प्लेटफार्म रिडांगो को निशाना बनाया गया था. इन हमलों की वजह से एस्टोनिया सरकार की एलरॉन ट्रेन सर्विस की टिकट बिक्री प्रणाली पूरे दिन प्रभावित रही थी. एस्टोनियन इन्फॉर्मेशन सिस्टम अथॉरिटी के मुताबिक़ इस साइबर हमले को एक रूसी हैकर ग्रुप ने अंज़ाम दिया था.
एस्टोनिया ने पिछले दो दशकों में ऐसे तमाम साइबर हमलों को झेला है और इनके पीछे रूसी हैकर्स का हाथ था. वर्ष 2007 में रूसी हैकर्स द्वारा किए गए एक शुरुआती साइबर अटैक में एस्टोनिया की सरकार, राजनीतिक पार्टियों, समाचार समूहों और बैंकों से संबंधित देश की तमाम वेबसाइटों को निशाना बनाया गया था. दरअसल, वर्ष 2007 में ही एस्टोनिया की राजधानी तेलिन में द्वितीय विश्व युद्ध के समय की एक प्रतिमा को एक जगह से दूसरी जगह पर स्थापित करने के मुद्दे पर रूस और एस्टोनिया के बीच विवाद पैदा हो गया था. इसी विवाद के बाद रूसी हैकरों की तरफ से एस्टोनिया पर ताबड़तोड़ साइबर हमलों को अंज़ाम दिया गया था. एक बार जब एस्टोनिया पर साइबर हमलों का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर वो कई सालों तक चलता रहा. हाल-फिलहाल के वर्षों में एस्टोनिया में रैनसमवेयर अटैक व्यापक रूप से ख़तरा बनकर सामने आए हैं. इन रैनसमवेयर हमलों के ज़रिए ख़ास तौर पर हेल्थकेयर से लेकर विनिर्माण जैसे उद्योगों को निशाना बनाया गया है और इससे इन उद्योगों को बहुत नुक़सान उठाना पड़ा है.
हाल-फिलहाल के वर्षों में एस्टोनिया में रैनसमवेयर अटैक व्यापक रूप से ख़तरा बनकर सामने आए हैं. इन रैनसमवेयर हमलों के ज़रिए ख़ास तौर पर हेल्थकेयर से लेकर विनिर्माण जैसे उद्योगों को निशाना बनाया गया है और इससे इन उद्योगों को बहुत नुक़सान उठाना पड़ा है.
रूस की तरफ से किए जाने वाले इन साइबर हमलों से परेशान होकर ही एस्टोनिया ने रूस-यूक्रेन जंग में रूस के ख़िलाफ़ कड़ा रुख अख़्तियार किया है. एस्टोनिया के नेताओं को अब लगातार इस बात का डर सता रहा है कि जब यूक्रेन पर रूस का कब्ज़ा हो जाएगा, तो वो अपना रुख बाल्टिक देशों की ओर करेगा और फिर एस्टोनिया जैसे देशों पर मास्को अपना आधिपत्य जमाने का प्रयास करेगा. इसी डर के चलते एस्टोनिया की सरकार ने रूस-यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन का समर्थन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. एस्टोनिया द्वारा यूक्रेन की हथियार, गोला-बारूद, सैन्य साज़ो-सामान और पैसों के रूप में अपनी क्षमता के मुताबिक़ हर संभव मदद की जा रही है. एस्टोनिया अपनी जीडीपी की 1 प्रतिशत से अधिक धनराशि कीव की सहायता में ख़र्च कर रहा है. आंकड़ों के मुताबिक़ एस्टोनिया ने अब तक यूक्रेन को लगभग 500 मिलियन यूरो की सैन्य मदद उपलब्ध कराई है. पिछले साल तेलिन ने यूक्रेन को कई बार सैन्य मदद का ऐलान किया था, जिनमें युद्ध में लड़ रहे सैनिकों के लिए हथियार एवं डी-30 टोड होवित्जर तोपें भेजना शामिल है. इतना ही नहीं, यूरोपीय संघ (ईयू) द्वारा मास्को के विरुद्ध जो राजनीतिक एवं आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए हैं, उन्हें लागू करने में भी एस्टोनिया ने कोई कोताही नहीं बरती है.
एस्टोनिया ने इसके अतिरिक्त देशवासियों के बीच ऑनलाइन माध्यमों के ज़रिए दुष्प्रचार और भ्रामक ख़बरें फैलाने की रूसी रणनीति के ख़िलाफ़ भी क़दम उठाए हैं. इस रणनीति के अंतर्गत रूस द्वारा एस्टोनिया में रूसी भाषी लोगों के बीच स्थानीय सरकार के विरोध में भड़काया जाता है, इसके अलावा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर विरोधी माहौल बनाया जाता है. रूस की इस दुष्प्रचार वाली रणनीति से निपटने के लिए तेलिन ने रूसी टीवी चैनलों के प्रसारण पर रोक लगाने के साथ-साथ घरेलू मीडिया साक्षरता कार्यक्रमों को संचालित करने जैसे तमाम उपाय किए हैं. इसी के फलस्वरूप यूरोपियन यूनियन में एस्टोनिया एक ऐसा देश बन चुका है, जहां लोगों के बीच मीडिया साक्षरता सबसे अधिक है, यानी लोगों को इस बात की समझ सबसे अधिक है कि मीडिया में प्रसारित होनी सूचनाओं और संदेशों की सच्चाई कैसे पता लगाई जाए और उन पर कितना भरोसा किया जाए.
कुल मिलाकर पहले ही कड़वाहट से भरे ऐस्टोनिया और रूस के संबंधों में अब और तेज़ी के साथ गिरावट आती जा रही है. इसकी वजह यह है कि एक ओर एस्टोनिया द्वारा यूक्रेन की मदद के लिए वहां अपनी सेना भेजने पर विचार किया जा रहा है, जबकि दूसरे ओर रूस ने सोवियत सैनिकों की याद में बनाए गए सोवियत युग के स्मारकों को हटाने के लिए एस्टोनिया के प्रधानमंत्री काजा कालास को वांछित लोगों की सूची में शामिल कर दिया है. इस सभी हालातों के बीच एस्टोनिया की आर्थिक स्थिति भी ख़राब हो रही है और कहा जा रहा है कि कम होते निर्यात एवं निवेश की वजह से 2024 में एस्टोनिया की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ सकती है. यही वजह है कि वर्तमान में डांवाडोल होती अर्थव्यवस्था के बीच तेलिन तेज़ी से नए भागीदार देशों को खोज रहा है, यानी ऐसी साझीदार देशों की तलाश में जुटा है, जो प्रगति कर रहे हों और उसकी ज़रूरत को पूरा करने वाले हों.
भारत के साथ साझेदारी की कोशिश में जुटा एस्टोनिया
भारत की बात की जाए तो देश में इंटरनेट का उपयोग करने वालों की संख्या 830 मिलियन है और डिजिटल तकनीक़ का इतने व्यापक स्तर पर इस्तेमाल करने के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है. भारत में बड़े स्तर पर कई डिजिटल पहलों को सफलतापूर्वक लागू किया गया है, जिनमें यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस द्वारा संचालित दुनिया की सबसे बड़ी रीयल-टाइम डिजिटल भुगतान प्रणाली भी शामिल है. इस तरह की पहलों ने जहां दुनिया में एक तरफ भारत की डिजिटल लिहाज़ से एक सशक्त पहचान बनाई है, वहीं दूसरी ओर वैश्विक डिजिटल इकोनॉमी में भारत को एक बड़ी ताक़त के रूप में स्थापित करने का काम किया है. डिजिटल क्षेत्र में इतनी तरक़्क़ी करने के साथ-साथ भारत को भी तमाम साइबर चुनौतियों और ख़तरों का सामना करना पड़ा है. कहने का मतलब है कि भारत को भी राष्ट्रीय महत्व के अहम इंफ्रास्ट्रक्चरों पर साइबर हमले झेलने पड़े हैं, वित्तीय सेक्टर को निशाना बनाने वाले साइबर हमलों का सामना करना पड़ा है, ऑनलाइन जासूसी की घटनाएं झेलनी पड़ी हैं और रैनसमवेयर हमलों जैसे अलग-अलग साइबर अटैक का मुक़ाबला करना पड़ा है. कहने का मतलब है कि भारत को भी एस्टोनिया की तरह साइबर हमलों का सामना करना पड़ा है. हालांकि, दोनों देशों में इन साइबर हमलों को अंजाम देने वाले अलग-अलग हैं. एस्टोनिया को रूस की ओर से, तो भारत को चीन और पाकिस्तान एवं उनके द्वारा समर्थित हैकिंग सिंडिकेट की ओर से होने वाले साइबर हमलों का सामना करना पड़ता है.
कहने का मतलब है कि भारत को भी एस्टोनिया की तरह साइबर हमलों का सामना करना पड़ा है. हालांकि, दोनों देशों में इन साइबर हमलों को अंजाम देने वाले अलग-अलग हैं.
भारत ने साइबर हमलों का मुक़ाबला करने, ऑनलाइन सुरक्षा उपायों को लागू करने, हमलों से हुए नुक़सान की तेज़ी से भरपाई करने के लिए कई क़दम उठाए हैं. इसके अलावा भारत ने प्रौद्योगिकी एवं साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए भी कई क़दम उठाए हैं. नई दिल्ली ने वैश्विक स्तर पर भारत के बढ़ते दबदबे का फायदा उठाते हुए द्विपक्षीय स्तर पर और क्वाड जैसे बहुपक्षीय मंचों पर समान विचारधारा वाले देशों के साथ इस मुद्दे पर बातचीत शुरू की है, साथ ही विचार-विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए विशेषज्ञों के कार्य समूहों में इन विषयों को उठाया है. एक अहम बात यह है कि विभिन्न देशों और बहुपक्षीय समूहों के साथ साइबर सुरक्षा सहयोग स्थापित करने में भारत ने अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता पर कोई आंच नहीं आने दी है. यानी साइबरस्पेस और ऑनलाइन क्षेत्र में भारत न तो अमेरिका की अगुवाई वाले पश्चिमी देशों के समूह शामिल हुआ है और न ही चीन व रूस की अगुवाई वाले पूर्वी समूह का हिस्सा बना है. ज़ाहिर है कि जिस प्रकार से भारत ने साइबर सुरक्षा को लेकर दूसरे देशों के साथ सहयोग करने में संतुलित नज़रिया अपनाया है और जिस तरह से डिजिटल सेक्टर में भारत ने विशेषज्ञता अर्जित की है, उसने वैश्विक स्तर पर साइबर सुरक्षा के मौज़ूदा मुश्किल वातावरण में भारत को एक ऐसे देश के रूप में स्थापित किया है, जिसके साथ साझेदारी करना हर लिहाज़ से लाभदायक है. कहने का मतलब है कि अलग-अलग गुटों में बंटे साइबरस्पेस में आज भारत को एक भरोसेमंद और क़ामयाब लोकतांत्रिक भागीदार राष्ट्र के तौर पर देखा जाता है.
यही वजह है कि एस्टोनिया भी साइबर सुरक्षा के मुद्दे पर भारत के साथ सहयोग स्थापित करना चाहता है. एस्टोनिया के अधिकारियों ने भारत के साथ कई क्षेत्रों में पारस्परिक संबंधों को प्रगाढ़ करने में दिलचस्पी दिखाई है. इन क्षेत्रों में शामिल हैं:
- नॉलेज का आदान-प्रदान: साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में विशेषज्ञता, अमल में लाए जाने वाले सफल उपायों और नए-नए नज़रियों को साझा करना;
- रिसर्च में सहयोग: साइबर सुरक्षा से जुड़ी नई तकनीक़ों और रणनीतियों को विकसित करने के लिए मिलकर अनुसंधान करना;
- प्रशिक्षण कार्यक्रम: दोनों देशों में साइबर सुरक्षा क्षेत्र से जुड़े पेशेवरों के कौशल को बढ़ाने के लिए मिलजुलकर प्रशिक्षण उपलब्ध कराने का प्रयास करना;
- साझा अभ्यास: साइबर सिक्योरिटी से जुड़ी चुनौतियों का सामना करने की क्षमताओं को पुख्ता करने के लिए नाटो द्वारा संचालित कार्यक्रमों सहित साइबर सुरक्षा अभ्यासों में भागीदारी करना;
- निजी क्षेत्र की भागीदारी: साइबर सुरक्षा क्षेत्र में इनोवेशन को प्रोत्साहन देने और आर्थिक अवसरों का सृजन करने के लिए दोनों देशों के उद्योगों एवं बिजनेस को भागीदारी निभाने के लिए प्रेरित करना;
- डिजिटल सर्विसेज और शिक्षा प्रणाली: साइबर सुक्षरा के क्षेत्र में भारत और एस्टोनिया की विशेषज्ञता का फायदा उठाने के लिए मिलेजुले क़दम उठाने की संभावनाओं को तलाशना.
इसके अतिरिक्त, ‘फर्ज़ी ख़बरों’ और दुष्प्रचार का मुक़ाबला करने में एस्टोनिया को महारत हासिल है. एस्टोनिया के इस अनुभव का लाभ भारत को मिल सकता है और यह उसके लिए लाभदायक सिद्ध हो सकता है. ज़ाहिर है कि भारत को भी पाकिस्तान और चीन से दुष्प्रचार का सामना करना पड़ता है.
भारत और एस्टोनिया के बीच साइबर सुरक्षा क्षेत्र में सहयोग होने पर दोनों देशों को फायदा होगा. अगर ऐसा होता है तो जहां एस्टोनिया को भारत के व्यापक स्तर पर फैले डिजिटल इकोसिस्टम तक पहुंच बनाने में मदद मिलेगी, वहीं भारत की साइबर सुरक्षा क्षमताओं एवं इस क्षेत्र में भारत की प्रौद्योगिकी विशेषज्ञता का भी फायदा मिलेगा. वहीं भारत की बात की जाए, तो भारत को एस्टोनिया के साथ साइबर सुरक्षा में सहयोग करने पर नाटो के स्तर पर साइबर हमलों से निपटने के लिए अपनाए जाने वाले तौर-तरीक़ों की जानकारी हासिल होगी. इसके साथ ही भारत को साइबर सुरक्षा से जुड़े मसलों पर यूरोपियन यूनियन के साथ अपना अनुभाव साझा करने का भी मौक़ा मिलेगा.
निष्कर्ष
हाल-फिलहाल में अगर भारत की रणनीतिक कूटनीति में इस तरह की कोई बात शामिल की गई है, तो साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में एस्टोनिया के साथ भारत का सहयोग बहुत लाभदायक साबित हो सकता है. कहने का मतलब है कि अगर एस्टोनिया द्वारा इस तरह के पारस्परिक सहयोग को लेकर प्रतिबद्धता जताई जाती है, तो निश्चित तौर पर यह दोनों देशों को लाभ पहुंचा सकता है. नई दिल्ली की कोशिश हमेशा विभिन्न क्षेत्रों में वैश्विक स्तर पर सहयोग विकसित करने की रहती है. ऐसे में अगर साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में नाटो के सदस्य देश यानी एस्टोनिया के साथ गठजोड़ स्थापित होता है, तो यह बेहद विशेष और अभूतपूर्व उपलब्धि होगी. एस्टोनिया के साथ साइबर सिक्योरिटी क्षेत्र में सहयोग करके भारत न सिर्फ़ डिजिटल सेक्टर में दुनिया के एक अग्रणी राष्ट्र के तौर पर अपनी भूमिका को और ऊंचाई पर ले जा सकता है, बल्कि वैश्विक स्तर पर इस क्षेत्र में नई-नई तकनीक़ों को विकसित करने में मददगार साबित हो सकता है और साइबर हमलों से निपटने, ऑनलाइन सुरक्षा उपायों को लागू करने व ऐसे हमलों से हुए नुक़सान की भरपाई के तरीक़ों को विकसित करने में भी सहायक सिद्ध हो सकता है. ज़ाहिर है कि भारत और एस्टोनिया के बीच साइबर सुरक्षा साझेदारी की क़ामयाबी इस बात निर्भर करेगी कि भारत अपने कूटनीतिक रिश्तों के संतुलन को बिगाड़े बगैर अपने राष्ट्रीय हितों को किस खूबी के साथ प्राथमिकता में रखता है.
समीर पाटिल ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं.
अनीश पार्नेकर ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.