Author : Aparna Roy

Published on Oct 11, 2021 Updated 0 Hours ago

क्वॉड देश एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय आर्क का हिस्सा हैं जिसमें प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका, दक्षिण और दक्षिण पूर्वी एशिया में भारत और जापान और ऑस्ट्रेलिया हैं

जलवायु परिवर्तन का एजेंडा और ‘क्वॉड’

24 सितंबर को आयोजित क्वॉड के पहले व्यक्तिगत शिखर सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर चर्चा अपेक्षित थी. व्हाइट हाउस से जारी प्रेस रिलीज़ में इसके संकेत थे कि पृथ्वी के भविष्य के सामने खड़े वैश्विक खतरों के बीच, जिसमें अफगानिस्तान का संकट और कोविड 19 महामारी शामिल है- भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका एक और मंडरा रहे वैश्विक खतरे- जलवायु संकट- से निपटने के लिए अपने संबंधों को गहरा करने के तरीकों पर चर्चा कर सकते हैं.

नवंबर 2021 में होने वाले ग्लासगो सीओपी 26 इवेंट से पहले जलसंकट पर कार्रवाई को लेकर बढ़ते वैश्विक वक्तव्यों के साथ ही पूरी दुनिया में जलवायु के लिए कारगर, ठोस और सशक्त कार्रवाई की ज़रूरत है. क्वॉड देश एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय आर्क का हिस्सा हैं जिसमें प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका, दक्षिण और दक्षिण पूर्वी एशिया में भारत और जापान और ऑस्ट्रेलिया हैं. इन चारों देशों में ऐसे कई महत्वपूर्ण इलाके हैं जो जलवायु संकट के विविध नतीजों को झेल रहे हैं. इन सभी देशों के लिए ग्लोबल वॉर्मिंग ने कार्रवाई और परिवर्तन के लिए कई मोर्चे खड़े कर दिये हैं.

ऐसे देशों के एक महत्वपूर्ण समूह के तौर पर जिनकी आबादी दुनिया में एक चौथाई है और दुनिया की कुल जीडीपी का करीब 35 प्रतिशत है, क्वॉड वैश्विक जलवायु एजेंडे का पथप्रदर्शक साबित हो सकता है. 

ऐसे देशों के एक महत्वपूर्ण समूह के तौर पर जिनकी आबादी दुनिया में एक चौथाई है और दुनिया की कुल जीडीपी का करीब 35 प्रतिशत है, क्वॉड वैश्विक जलवायु एजेंडे का पथप्रदर्शक साबित हो सकता है. इसके लिए, इस साल मार्च में वर्चुअली आयोजित हुई पहली क्वॉड मीटिंग के दौरान इन देशों ने, जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते को लागू करने के लिए घरेलू, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर कार्रवाई के लिए सही कदमों को उठाने के लिए जलवायु शमन, अनुकूलन, लचीलापन, तकनीक, क्षमता निर्माण और जलवायु वित्त को बढ़ावा देन के लिए क्लाइमेट वर्किंग ग्रुप (CWG) को स्थापित करने का एलान किया. हालांकि क्वॉड CWG के प्रदर्शन या CWG के सदस्यों का आकलन करना जल्दबाज़ी होगा, लेकिन यह देखा गया है कि जलवायु परिवर्तन पर क्वॉड की प्रतिबद्धता ज़्यादातर सिर्फ साधारण वक्तव्य है, जो यह दर्शाते हैं कि चारों शक्तियों के इस वैश्विक एजेंडे में अपने-अपने हित हैं.

जलवायु एजेंडे को लेकर भारत की सराहना

क्वॉड देशों के अपने महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिन्हें हल करने की ज़रूरत है ताकि संयुक्त जलवायु कार्रवाई सुनिश्चित की जा सके. उदाहरण के तौर पर अमेरिका और जापान ने 21वीं सदी के मध्य तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन हासिल करने का लक्ष्य रखा है, भारत और ऑस्ट्रेलिया ने फिलहाल कोई भी ठोस नेट ज़ीरो लक्ष्य घोषित नहीं किया है. एक ओर जलवायु एजेंडे के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए प्रयासरत देशों में शामिल भारत की सराहना हो रही है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका ने कोई तुलनात्मक प्रयासों का प्रदर्शन नहीं किया है. 2021 में न्यू क्लाइमेट इंस्टीट्यूट और द क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क के जर्मनवॉच द्वारा जारी जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन इंडेक्स में भारत का स्थान दसवां था, जबकि उसके क्वॉड के पार्टनर काफी नीचे थे: 61 देशों की सूची में जापान 45 पर, ऑस्ट्रेलिया 54 पर और अमेरिका आखिरी स्थान पर था ऐसे मुद्दों के समाधान के बारे में विचार करने और क्वॉड क्षेत्र में और उससे बाहर भी जलवायु पर कारगर कार्रवाई करने से पहले, ऐतिहासिक संदर्भ को समझना उचित रहेगा जिस पर इस फोरम की मूल रूप से स्थापना हुई थी.

क्वॉडिलेट्रल सिक्योरिटी डायलॉग (क्वॉड) का जन्म 2004 में सुनामी संकट के बाद हुआ था, जिसे 2007 में कूटनीतिक वार्ता में बदल दिया गया और 2017 में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा और अन्य हितों की हिफ़ाज़त के लिए संयुक्त सहयोग करने के लिए एक जगह के रूप में पुनर्जीवित किया गया था. 12 मार्च 2021 को, पहली बार क्वॉड का नेता स्तरीय शिखर सम्मेलन चारों देशों के प्रमुखों के बीच वर्चुअल माध्यम से हुआ था. सभी नेताओं ने उनकी जनता के सामने खड़ी वर्तमान चुनौतियों को दूर करने के लिए और मुक्त, खुले, लचीले और समावेशी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिए साझा परिकल्पना के प्रति प्रतिबद्धता, अंतरराष्ट्रीय कानून के आधार पर सुरक्षा और समृद्धि को बढ़ावा देने जबकि इंडो-पैसिफिक और उसके बाहर के क्षेत्रों में खतरों का मुकाबला करने के लिए इस सहयोग को मज़बूत करने का संकल्प लिया.

2021 में न्यू क्लाइमेट इंस्टीट्यूट और द क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क के जर्मनवॉच द्वारा जारी जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन इंडेक्स में भारत का स्थान दसवां था, जबकि उसके क्वॉड के पार्टनर काफी नीचे थे

एक साझा बयान ने तीन बेहद ज़रूरी वैश्विक चुनौतियों की पहचान की और रेखांकित किया: कोविड 19 का आर्थिक और स्वास्थ्य पर प्रभाव, और इसके प्रतिक्रिया के रूप में वैक्सीन का विकास; जलवायु परिवर्तन; और भविष्य की प्रौद्योगिकी. इन चुनौतियों पर काम करने के लिए कार्यकारी समूहों का गठन किया गया. 2021 का अंत आते-आते, इन नेताओं ने 24 सितंबर 2021 को गठजोड़ गहरा करने पर ध्यान केंद्रित करने और जलवायु संकट समेत ऊपर दिये प्रमुख क्षेत्रों पर व्यावहारिक सहयोग बढ़ाने के लिए पहली बार व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की थी. इस संदर्भ में, चूंकि क्वॉड व्यस्क हो चुका है और स्थिरता के एक अहम स्तंभ के रूप में सराहा जा रहा है, अनिवार्य प्रश्न उठाये जा रहे हैं: पेरिस समझौते के तहत क्षेत्रीय देशों का, उत्सर्जन कम करने की उनकी प्रतिबद्धताओं में सहयोग करने के लिए, क्वॉड के क्या वास्तविक उपाय हैं? अन्य मौजूदा अंतरराष्ट्रीय मंचों की परिधि से बाहर क्वॉड कैसे जलवायु संकट से निपटने पर विचार करता है?  सबसे पहले तो, क्वॉड को, सभी नियमों को मानते हुए, संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन के घोषित सिद्धांत के मूलतत्व को स्वीकार करना होगा: जो है “समान लेकिन अलग-अलग ज़िम्मेदारियां”. विकसित और विकासशील देशों के बीच प्रत्यक्ष कार्बन असमानता को देखते हुए, सामूहिक कार्रवाई के लिए एक राह बनाने में इस सिद्धांत को व्यापक रूप से स्वीकृत आदर्श बनाना बेहद महत्वपूर्ण है. उदाहरण के तौर पर, भारत से- जो 1.9 मीट्रिक टन पर कैपिटा से कम Co2 उत्सर्जन करता है, या जापान- जिसका Co2 उत्सर्जन पर कैपिटा 9.7 मीट्रिक टन है- जलवायु की कार्रवाइयों से जुड़े आनुपातिक खर्चों का, अमेरिका और उसके 15.52 मीट्रिक टन पर कैपिटा से अधिक Co2 उत्सर्जन या 17.1 मीट्रिक टन Co2 उत्सर्जन वाले ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ, दायित्व उठाने की मांग करना अन्यायपूर्ण होगा. क्वॉड को जलवायु लक्ष्य को हासिल करने के लिए न्यायसंगत और समावेशी सिद्धांतों पर अपने सामूहिक भरोसे की पुष्टि करनी होगी.

कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास

दूसरा, लगभग सभी विकास के क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के बहुआयामी चित्रण के मद्देनज़र, जलवायु चुनौतियों को प्रतिस्पर्धा की तरह देखने की बजाय, जलवायु कार्रवाई को समग्र रूप से लागू करने के लिए जलवायु कार्यकारी समूह को वैक्सीन विशेषज्ञ या अहम और उभरती हुई प्रौद्योगिकी समूह जैसे अन्य समूहों के साथ मिलकर काम करना होगा. उदाहरण के लिए, वैक्सीन परिवहन और भंडारण में कोल्ड चेन एक अहम भूमिका निभाता है. कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर के कायाकल्प के लिए नई तरीकों को तलाशना ज़रूरी है क्योंकि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में इसके 3-3.5 प्रतिशत के योगदान का अनुमान है. इस तरह के क्रॉस-सेक्टोरल पार्टनरशिप, जो कोल्ड स्टोरेज वैल्यू चेन और वैक्सीन के जीवन चक्र से जुड़े हैं, कार्बन उत्सर्जन के शमन में लाभकारी साबित होंगे. इसके साथ ही, ज्ञान बांटकर, तकनीक का हस्तांतरण और उभरती औद्योगिकी में ज़िम्मेदार व्यापार आचरण, ख़ासकर हरित प्रौद्योगिकी, बहुमूल्य नतीजों को पाने में क्वॉड कार्यकारी समूहों को जोड़े रखने के लिए एक अहम कड़ी है.

सबसे पहले तो, क्वॉड को, सभी नियमों को मानते हुए, संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन के घोषित सिद्धांत के मूलतत्व को स्वीकार करना होगा: जो है “समान लेकिन अलग-अलग ज़िम्मेदारियां”. 

तीसरा, जलवायु परिवर्तन की समस्या का समाधान सही मायने में विश्वस्तर पर करने के लिए, क्वॉड को एक समूह के रूप में अपनी वैश्विक सोच को दोबारा आकार देने की ज़रूरत है जो सैन्य सहयोग पर केंद्रित हो. वैश्विक समुदाय के साथ वो जिस तरह से  दक्षिण चीन सागर में क्षेत्रीय विवाद और समुद्री सुरक्षा को लेकर डील करते हैं, उसी तरह का नज़रिया अपनाकर क्वॉड को जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक खतरे से निपटने के लिए सामूहिक तरीके से अपनी प्रतिबद्धता जतानी होगी. चीन ने भी, जिसे व्यापक रूप से समूह को पुनर्जीवित करने का कारण माना जाता है, 2060 तक नेट-ज़ीरो लक्ष्य प्राप्त करने के प्रति अपनी जलवायु प्रतिबद्धता का एलान किया है. इसलिए, जलवायु कार्रवाई सरल हो सकती है जो जलवायु परिवर्तन के समान अस्तित्व संबंधी खतरों से मुकाबले में कमज़ोर और बिखरे हुए ग्लोबल एक्टर्स को एकजुट कर सकता है.

अंत में, क्वॉड को जलवायु के मोर्चे पर पर्याप्त कार्रवाई के लिए लोकतांत्रिक गुणों को अभिव्यक्त करने के प्रयास करने चाहिए. यह समूह जलवायु शमन और अनुकूलन के लिए उपाय और योजना बनाने के साथ ही न्यायसंगत-परिवर्तन के ढांचे पर कार्य करने वाला एक मॉडल बन सकता है. जलवायु एजेंडे के मूल में लोगों और न्याय को शामिल करने के लिए क्वॉड संयुक्त शोध, ज्ञान साझा करने और अपनी क्षमता का प्रदर्शन के लिए बेहतर स्थान है. इस संबंध में अमेरिका और भारत ने घरेलू स्तर पर कई कदम उठाये हैं: उदाहरण के लिए, iFOREST में अमेरिका का जस्ट ट्रांज़िशन फंड और भारत का जस्ट ट्रांज़िशन सेंटर, क्वॉड में, इंडो-पैसिफिक और विश्व में जस्ट ट्रांज़िशन दृष्टिकोण को समाहित करने के लिए उपयुक्त प्रवेश बिंदु के तौर पर काम कर सकता है.

वैश्विक समुदाय के साथ वो जिस तरह से  दक्षिण चीन सागर में क्षेत्रीय विवाद और समुद्री सुरक्षा को लेकर डील करते हैं, उसी तरह का नज़रिया अपनाकर क्वॉड को जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक खतरे से निपटने के लिए सामूहिक तरीके से अपनी प्रतिबद्धता जतानी होगी. 

इसलिए क्वॉड जो ‘स्थिरता’ को एक विशेषता के रूप में प्रदर्शित करता है, ‘लोकतंत्र’ के मूल तत्व का लाभ उठाते हुए जलवायु एजेंडे से जुड़ी परिकल्पना और कार्रवाई को बढ़ावा दे सकता है. वक्त है कि जलवायु कार्रवाई में क्षेत्रीय सहयोग के लिए सही मायने में व्यापक, समावेशी और न्यायसंगत नज़रिये को अपनाया जाए.


This piece is part of ORF’s Special Report No. 161, The Rise and Rise of the ‘Quad’: Setting an Agenda for India | ORF (orfonline.org)

Endnotes

[1] Press Secretary, The White House.

[2] Fact Sheet: Quad Summit, The White House.

[3] UK CoP 26, “26th UN Climate Change Conference of the Parties (COP26)”.

[4] Jyotsna Mehra, “The Australia-India-Japan-US Quadrilateral: Dissecting the China Factor,” ORF Occasional Paper No. 264, August 2020.

[5] Chee Leong Lee, “Three Questions for the Quad’s Indo-Pacific Security Commitments,” The Diplomatist, April 22, 2021.

[6]Germanwatch, Climate Change Performance Index, Bonn, Germanwatch 2021.

[7] “Explained: What is Quad and what it hopes to achieve”, Money Control, March 12, 2021.

[8]KallolBhattacharjee and SuhasiniHaider, “First Quad Summit | Quad leaders for ‘open, free’ Indo-Pacific”, The Hindu, March 12, 2021.

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