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बांग्लादेश में, शेख हसीना सरकार के पतन के बाद, उभरे राजनैतिक उथल पुथल के बीच, कई युवा नेतृत्व में वाली ताकतें, कमज़ोर पड़ती धर्मनिरपेक्षता के कारण तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं.
Image Source: Getty
बांग्लादेश की सलाहकार परिषद ने हाल ही में वर्ष 2009 में लाये गये आतंकवाद विरोधी अधिनियम में संशोधन के प्रस्ताव वाली अधिनियम को अपनी मंज़ूरी दे दी है. इस संशोधन के तहत मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने अवामी लीग की सभी गतिविधियों पर तब तक के लिये पाबंदी लगा दी है, जब तक की अंतरराष्ट्रीय क्रिमिनल ट्रिब्यूनल इस पार्टी और इनके नेताओं के ऊपर चल रही सभी सुनवाइयों को पूरा नहीं कर लेती है. यह निर्णय, देश की सबसे पहली छात्र नेतृत्व वाली राजनीतिक पार्टी- नेशनल सिटीज़न पार्टी (NCP) द्वारा चलाये गये तीन दिनों के विरोध प्रदर्शन, जिसमें उन्हें कई अन्य राजनीतिक एवं छात्र संगठनों का भी साथ मिला के बाद लिया गया. एनसीपी का उदय और इसके साथ ही कई अन्य दलों एवं संस्थानों द्वारा देश की अंतरिम सरकार के खिलाफ़ बदस्तूर जारी विरोध प्रदर्शन, बांग्लादेश की सरज़मीं पर राजनीति के नये खिलाड़ियों के आगमन को रेखांकित कर रही है. लेकिन इसके साथ ही, धर्मनिरपेक्ष और तार्किक राजनीति के लिए जिस तरह से जगह सिकुड़ रही है, वो इन नई संस्थाओं के साथ-साथ देश के धर्मनिरपेक्ष भविष्य के लिए भी काफी बड़ी चुनौती है.
NCP की स्थापना स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रीमिनेशन (SAD) और जातीय नागरिक कमिटी (नेशनल सिटीजेंस कमिटी), के सौजन्य से किया गया था, जिसने शेख हसीना के खिलाफ़ विराट विरोध प्रदर्शन किये थे. एनसीपी के संयोजक नाहिद इस्लाम, इस छात्र आंदोलन के प्रमुख आयोजक थे, जिन्होंने अवामी लीग (AL) द्वारा सर्मथन किये गये कोटा और आर्थिक नीतियों का तीखे स्वर में विरोध किया था. जुलाई 2024 के दौरान सरकारी नीतियों के विरोध करने वाली एक ग़ैर-राजनीतिक छात्रों के नेतृत्व वाले दल से शुरू होकर, 28 फ़रवरी 2025 को एनसीपी का औपचारिक गठन, बांग्लादेश के राजनैतिक इतिहास में एक परिवर्तनकारी दौर का प्रतीक है. इस पार्टी का जन्म पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के देश छोड़ने के बाद, देश की सत्ता संरचना में जो रिक्तता आयी उसकी सीधी प्रतिक्रिया मे तौर पर उभरी. आंदोलन की अवधारणा के साथ चलते हुए, NCP का सपना एक दूसरे गणतंत्र के निर्माण का है. जिसका उद्देश्य बांग्लादेश की राजनीति को एक नयी परिभाषा देने के साथ-साथ, दशकों पुरानी सरकारी विफलताओं में सुधार करना और एक ऐसे ‘नवीन राजनैतिक राष्ट्र’ के तौर पर पेश करना है, जो लोकतांत्रिक एवं राजनीतिक न्याय पर आधारित होगा.
एनसीपी के संयोजक नाहिद इस्लाम, इस छात्र आंदोलन के प्रमुख आयोजक थे, जिन्होंने अवामी लीग (AL) द्वारा सर्मथन किये गये कोटा और आर्थिक नीतियों का तीखे स्वर में विरोध किया था. जुलाई 2024 के दौरान सरकारी नीतियों के विरोध करने वाली एक ग़ैर-राजनीतिक छात्रों के नेतृत्व वाले दल से शुरू होकर, 28 फ़रवरी 2025 को एनसीपी का औपचारिक गठन, बांग्लादेश के राजनैतिक इतिहास में एक परिवर्तनकारी दौर का प्रतीक है.
सैद्धांतिक तौर पर, पार्टी खुद को मध्यमार्गी मानती है. उन्होंने एक नए संविधान सभा एवं एक पुनर्लिखित संविधान के स्थापना की मांग की है, जो बांग्लादेश के संस्थापक शेख़ मुजीबुर रहमान के मूल्यों, विचारों एवं विरासत में कुछ खास बदलाव लाएगी. हालांकि, एनसीपी को अब भी ये स्पष्ट करना बाकी है कि वो विरासत के किन पहलुओं को चुनौती देकर उसका पुन:र्निर्माण करना चाह रही है. यहां तक कि उन्होंने शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग की 15 वर्षीय शासन को भी एक सत्तावादी तानाशाही वाला कार्यकाल का नाम दे दिया है. खुद को अवामी लीग से दूरी बनाने के प्रयास के तहत, इस दल ने पार्टी और विचारधारा विरोधी बयानबाज़ियां की, जिस कारण NCP नाम का ये नया दल दक्षिणपंथी पार्टियों एवं चरमपंथी गुटों के और भी नज़दीक आ खड़ा हुआ है.
अपने गठन के वक्त़ बांग्लादेश के मूल संविधान ने देश को एक धर्मनिरपेक्ष एवं लोकतांत्रिक राष्ट्र घोषित किया था. बाद में, अनुच्छेद 2 (ए) को शामिल करने के साथ इसे बदल दिया गया, जिसके बाद इस्लाम को राष्ट्र धर्म के तौर पर नामित कर दिया गया. हालांकि, बाद में फिर से एक संशोधन के ज़रिये धर्म-निरपेक्षता को पुनः संविधान में बहाल कर दिया गया, और फिर एक बेहद जटिल एवं विवादित वैचारिक स्थान बनाते हुए - अब ये इस्लाम को दिये गये पूर्व राष्ट्र धर्म के दर्जे के समकक्ष औपचारिक स्थिति में मौजूद है. एक तरफ जहां अवामी लीग ने अल्पसंख्यक समुदायों के समर्थन के साथ-साथ, धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को कायम रखा, शेख़ हसीना के निष्कासन से जो राजनीतिक शून्य पैदा हुआ, उसने तमाम कट्टरपंथी दलों को समाज में अपने प्रभाव को और मज़बूत करने का पर्याप्त अवसर दे दिया है. इस दौरान ऐसी कई कट्टरपंथी समूहों द्वारा ढाका में अनगिनत रैलियां आयोजित की गई है, जिन्हें लोगों का भरपूर समर्थन मिला.बांग्लादेश अवामी लीग और बांग्लादेशी राष्ट्रवादी पार्टी (बीएनपी) सरीख़ी मुख्य धारा की पार्टियों का ये इतिहास रहा है कि उन्होंने कट्टरपंथी संस्थाओं के साथ नरमी बरती है. हसीना सरकार पर भी ये आरोप लगता रहा है कि उनका भी जमात-ए-इस्लामी (जेईएल) या हिफ़ाजत-ए-इस्लाम (एचईएल) जैसे कट्टरपंथी संगठनों के साथ काफी असहज एवं विवादास्पद संबंध रहे हैं. इससे इन पार्टियों को, रूढ़िवादी वर्गों एवं गांव-देहात के क्षेत्रों से काफी हद तक धार्मिक साख़ एवं प्रतिष्ठा अर्जित करने में मदद मिली है. बल्कि, एक बार तो हिफ़ाजत-ए-इस्लाम (एचईएल) के नेता शाह अहमद शफ़ी ने तो, शेख़ हसीना को ‘मदर ऑफ कवामी’ यानी ‘देशवासियों की माता’ की उपाधि से भी सम्मानित किया है. इसके बावजूद उनकी सरकार चरमपंथियों को नियंत्रित कर पाने में सक्षम रही एवं आतंकवाद के खिलाफ़ ज़ीरो टोलरेंस का सख्त़ रुख़ भी अपनाए हुई थी. इसके साथ ही, वे 2009 में आतंकवाद विरोधी कानून भी लेकर आयीं, और बाद में वर्ष 2012 एवं 2013 के दौरान इसमें ज़रूरी संशोधन भी किये.
हालांकि, उन युवा पीढ़ी के – जिन्होंने अपने जीवनकाल में कभी भी ‘मुक्ति जुद्धो’ (स्वतंत्रता आंदोलन) नहीं देखा और विशुद्ध रूप से शेख हसीना के नेतृत्व-काल में ही पले बढ़े थे – वे अवामी लीग की ‘चुनावी निरंकुशता’ की तीख़ी आलोचना करते हैं – और उनके लिये अवामी लीग का ये सिद्धांत बेमानी है. वर्तमान समय की राजनीतिक प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार और सुस्ती से ये पीढ़ी काफी खफ़ा रहने के साथ-साथ दुविधापूर्ण स्थिति में उलझी है. इनमें से एक तबका ऐसा भी है जिन्होंने बांग्लादेश के इतिहास के पन्नों से अवामी लीग को पूरी तरह से अलग किये जाने की मांग की है. जिसी तस्दीक शेख़ मुजीबुर रहमान (राष्ट्रपिता, एवं अवामी लीग के संस्थापक और शेख हसीना के पिता) के पोर्ट्रेट एवं संपत्तियों का विध्वंस कर रहा था. प्रदर्शनकारियों ने तो ये भी मांग कर दी थी कि देश के भीतर से मुजीबुर रहमान के स्वतंत्रता सेनानी की पहचान तक को रद्द कर दिया जाये. जनता का अवामी लीग के प्रति बढ़ता असंतोष और उसके साथ ही धर्मनिरपेक्ष राजनीति की घटती स्वीकृति और इस्लाम के लिए बढ़ता झुकाव, इन सबने मिलकर NCP जैसी नई पार्टियों को एक बेहद ही जटिल स्थिति पर लाकर खड़ा कर दिया है. पार्टी की मध्यमार्गी एवं अवामी लीग विरोधी बयानबाज़ी एवं रुख़ ने इसे कट्टरपंथी ताकतों एवं दक्षिणपंथी दलों के साथ सहयोग करने पर मजबूर कर दिया. यहां तक कि इसने अवामी लीग के खिलाफ़ हिफ़ाजत-ए-इस्लाम (एचईएल) के सेक्रेटरी जनरल के साथ एक संयुक्त बयान भी जारी किया है जिसमें, औपचारिक तौर पर अवामी लीग के पार्टी पंजीकरण को रद्द किये जाने की मांग की गई थी.
पार्टी की मध्यमार्गी एवं अवामी लीग विरोधी बयानबाज़ी एवं रुख़ ने इसे कट्टरपंथी ताकतों एवं दक्षिणपंथी दलों के साथ सहयोग करने पर मजबूर कर दिया. यहां तक कि इसने अवामी लीग के खिलाफ़ हिफ़ाजत-ए-इस्लाम (एचईएल) के सेक्रेटरी जनरल के साथ एक संयुक्त बयान भी जारी किया है जिसमें, औपचारिक तौर पर अवामी लीग के पार्टी पंजीकरण को रद्द किये जाने की मांग की गई थी.
केंद्र की तरफ बढ़ते उनके वैचारिक झुकाव ने भी उनके लिये दक्षिणपंथी बयानबाज़ी का सीधे तौर पर विरोध करना मुश्किल कर दिया है. ये भी एक वजह जो इस नवगठित पार्टी को वोट एवं वैधता दोनों ही हासिल करने में मदद करेगा. उदाहरण के लिए, पार्टी ने इस्लामिक छात्र शिबीर, जो कि JeI की छात्र शाखा है, को छात्रों के विरोध प्रदर्शन का समर्थन करने के लिए अपना आभार प्रकट किया है. मार्च 2025 में, हिज़्ब-उत-तह़रीर (HuT) जो कि खलीफ़ा समर्थक अंतरराष्ट्रीय कट्टरपंथी इस्लामी संगठन है, उसने ढाका में “ख़िलाफत के समर्थन” में मार्च रैली का आह्वान किया, जिसका एनसीपी के वर्तमान संयोजक ने समर्थन किया था. 3 मई 2025 को, HeI ने अंतरिम यूनुस प्रशासन द्वारा स्थापित महिला मामलों के सुधार आयोग के विरोध में विराट रैली का आयोजन किया था. उसने समान अधिकार संबंधित प्रस्तावित संशोधन का विरोध किया एवं ‘थर्ड जेंडर’ जैसी शब्दावली – को शामिल करने का सिरे से विरोध किया; ये एक ऐसी भावना थी, जिसे रैली में शामिल एनसीपी के नेता द्वारा पूरे दमखम के साथ प्रतिध्वनित किया गया था.
बांग्लादेश की मौजूदा कार्यवाहक सरकार ने देश के दक्षिणपंथी ताकतों के साथ काफी घनिष्ट संबंध कायम कर रखे हैं, जो शेख़ हसीना की सरकार को सत्ता से बाहर निकालने में उनके योगदान को दर्शाता है. उसने जमात पर लागू प्रतिबंध को निरस्त भी किया और अब तमाम कट्टरपंथी समूह उसपर शरिया कानून का पालन करने के लिये धमकियां दे रहे हैं. उसे देश में लैंगिक मुद्दों पर किये गये सुधारों के विरोध में HeI से भी काफी विरोध का सामना करना पड़ रहा है. वहीँ दूसरी तरफ, बीएनपी भी सरकार के पर आम चुनाव करवाने को लेकर दबाव बना रही है, और अगर रिपोर्ट्स की माने तो सेना ने भी कार्यवाहक सरकार से आगामी दिसंबर महीने तक चुनाव कराने की मांग कर रही है.
ये तमाम परिवर्तन बांग्लादेश के लोकतंत्र के भीतर हो रही एक पीढ़ीगत परिवर्तन एवं विकासशील वैचारिक संघर्ष को दर्शा रही है. इनमें से ज्य़ादातर संगठन जहां अपने उभरते हुए दौर में है, और जब धर्म निरपेक्षता एवं तर्कसंगत राजनीति के लिए देश में जगह काफी संकुचित होती जा रही है,
चुनाव का आह्वान, अवामी लीग पर लगाए प्रतिबंध, और बीएनपी का बढ़ता जनादेश, युवाओं एवं एनसीपी जैसी नई संस्थाओं एवं दल, जो कि वर्तमान व्यवस्था से निराश है, उन्हें तमाम कट्टरपंथी संस्थाओं के साथ हाथ मिलाने के लिए विवश कर सकते हैं. ये तमाम परिवर्तन बांग्लादेश के लोकतंत्र के भीतर हो रही एक पीढ़ीगत परिवर्तन एवं विकासशील वैचारिक संघर्ष को दर्शा रही है. इनमें से ज्य़ादातर संगठन जहां अपने उभरते हुए दौर में है, और जब धर्म निरपेक्षता एवं तर्कसंगत राजनीति के लिए देश में जगह काफी संकुचित होती जा रही है, तो ऐसी स्थिति में कट्टर दक्षिणपंथी दलों के लिये तमाम संभावित गठबंधनों एवं दलों के साथ गठजोड़ करने और अपनी विचारधारा के विस्तार के लिए, काफी उर्वर ज़मीन मौजूद है. अगर समय से पूर्व चुनाव होते हैं तो ये रुझान और भी ज़्यादा खुलकर सामने आ जायेंगे. देश के एक बड़े युवा वर्ग का एनसीपी सरीख़ी नई पार्टियों का समर्थन करना और सुधार एवं राजनीतिक भागेदरी के प्रति ज़ाहिर की गई उत्सुकता, उस तथाकथित ‘दूसरे गणतंत्र’ के वास्तविक चरित्र या रूपरेखा को लेकर अब भी अनिश्चित है, लेकिन देश लोकतंत्र एवं अराजक पतन के बीच की एक जोख़िम भरी रेखा पर चलने को विविश है.
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Aditya Gowdara Shivamurthy is an Associate Fellow with the Strategic Studies Programme’s Neighbourhood Studies Initiative. He focuses on strategic and security-related developments in the South Asian ...
Read More +Madhurima Pramanik is an intern with ORF’s Strategic Studies Programme. Her works focus on political, strategic and security related developments in South Asia , with a ...
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