Author : Soumya Bhowmick

Published on Sep 23, 2021 Updated 0 Hours ago

भारतीय बाज़ार का तौर-तरीक़ा चीन से काफ़ी हद तक मिलता-जुलता है. इसकी वजह से चीन के निवेशक ये मानने लगे हैं कि अगर भारत में बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था को पर्याप्त रूप से तैयार किया जाए तो सफल होने की काफ़ी ज़्यादा संभावना है.

महामारी का मारा बीआरआई: पहले, अब और आगे क्या?

बेशक कोविड-19 महामारी वैश्विक अर्थव्यवस्था को कई तरीक़े से चोट पहुंचा रही है. बार-बार के लॉकडाउन और दूसरी पाबंदियों ने न सिर्फ़ बाज़ार की ताक़त को संतुलन की तरफ़ पहुंचने से रोका बल्कि इनकी वजह से अलग-अलग सेक्टर को तबाह करने वाली सप्लाई चेन की रुकावट और संसाधनों की कमी हुई है. महामारी की शुरुआत के साथ ही चीन के उत्पादन पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता ने वैश्विक आर्थिक विकास को चोट पहुंचाना शुरू कर दिया है. 2003 में सार्स के प्रकोप के दौरान वैश्विक उत्पादन में चीन का योगदान सिर्फ़ 4 प्रतिशत के क़रीब था जो 2020 में बढ़कर भारी-भरकम 20 प्रतिशत हो गया है. सार्स-कोव-2 वायरस की उत्पति चीन में होने के साथ ही इस संकट से निपटने के चीन के तरीक़ों को लेकर आरोप लगने लगे और अब मौजूदा अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के बाद विदेशी निवेशकों ने अपनी उत्पादन गतिविधियां चीन से हटाकर भारत, बांग्लादेश, थाईलैंड, वियतनाम और फिलीपींस से शुरू कर दी हैं. 

2003 में सार्स के प्रकोप के दौरान वैश्विक उत्पादन में चीन का योगदान सिर्फ़ 4 प्रतिशत के क़रीब था जो 2020 में बढ़कर भारी-भरकम 20 प्रतिशत हो गया है. 

 इस पृष्ठभूमि में चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) पर चर्चा ध्यान देने लायक है. चीन की सरकार ने इसके बारे में 2013 में सोचा था. वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट (बीआरआई का पुराना नाम) चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत बन गया जिसका मक़सद एशिया, यूरोप, अफ्रीका और यहां तक कि लैटिन अमेरिका के भी कई देशों में विकास सहयोग के लिए भौतिक इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाना था. महामारी के पहले भी बीआरआई ने ग़ैर-टिकाऊ परियोजनाओं, समझौतों और कर्ज़ की वजह से कई बार मुश्किलों का सामना किया. यहां तक कि मानवाधिकार के मुद्दों और भारत जैसे दूसरे देशों के साथ संप्रभुता को ले कर चिंताओं का भी सामना किया. लेकिन महामारी की वजह से आए स्वास्थ्य आपातकाल ने बीआरआई की महत्वाकांक्षा पर काफ़ी हद तक पानी फेर दिया है. हालांकि चीन अभी भी इस प्रोजेक्ट पर आगे बढ़ने के लिए अटल है. 

चीनी निवेश में अचानक गिरावट

वैश्विक आंकड़ों के मुताबिक़ 2020 में बीआरआई के देशों में चीन का निवेश 47 अरब डॉलर से ज़्यादा था. इस तरह 2019 के मुक़ाबले निवेश में 54.5 प्रतिशत की कमी आई और 2015, जब बीआरआई में निवेश सबसे ज़्यादा हुआ, के कुल निवेश के मुक़ाबले लगभग 78 अरब डॉलर की कमी आई. बीआरआई देशों में चीन के निवेश में ये कमी ग़ैर-बीआरआई देशों के मुक़ाबले हल्की थी. जिन देशों ने चीन के साथ बीआरआई की रूप-रेखा के भीतर समझौते पर दस्तख़त नहीं किए हैं, वहां चीन के निवेश में लगभग 70 प्रतिशत कमी देखी गई. 

आने वाला कर्ज़ संकट

बीआरआई की एक प्रमुख समस्या है प्राप्तकर्ता देशों के लिए दीर्घकालीन कर्ज़, ख़ास तौर पर दक्षिण-पूर्व एशिया और सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित अफ्रीका के विकासशील और अविकसित देशों में. विशेषज्ञों को डर है कि इससे कई अर्थव्यवस्थाओं में कर्ज़ का संकट खड़ा हो सकता है. ये स्थिति महामारी की वजह से बढ़े आर्थिक बोझ की वजह से और मज़बूत हुई है. 2019 के आख़िर तक चीन से सबसे ज़्यादा कर्ज़ लेने वालों देशों में पाकिस्तान (20 अरब अमेरिकी डॉलर), अंगोला (15 अरब अमेरिकी डॉलर), केन्या (7.5 अरब अमेरिकी डॉलर), इथियोपिया (6.5 अरब अमेरिकी डॉलर) और लाओ पीपुल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (5 अरब अमेरिकी डॉलर) शामिल हैं. 

बीआरआई देशों में चीन के निवेश में ये कमी ग़ैर-बीआरआई देशों के मुक़ाबले हल्की थी. जिन देशों ने चीन के साथ बीआरआई की रूप-रेखा के भीतर समझौते पर दस्तख़त नहीं किए हैं, वहां चीन के निवेश में लगभग 70 प्रतिशत कमी देखी गई.  

ख़ास तौर से परेशान करने वाला तथ्य ये है कि जो देश उच्च सार्वजनिक विदेशी कर्ज़ के साथ-साथ चीन के बड़े कर्ज़ की दोहरी समस्या से जूझ रहे हैं, वो अपने सार्वजनिक वित्त के अस्थिर हालात को उजागर कर रहे हैं. उदाहरण के लिए, ग्रीन बीआरआई सेंटर के द्वारा 52 बीआरआई देशों में हुए अध्ययन के आधार पर तैयार एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 2019 में कांगो, जिबूती और लाओ पीपुल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक जैसे देशों का चीनी कर्ज से सकल राष्ट्रीय आमदनी (जीएनआई) अनुपात सबसे ज़्यादा (क्रमश: 0.39, 0.35 और 0.29) था. इसके साथ विदेशी कर्ज़ से जीएनआई अनुपात (क्रमश: 0.60, 0.62 और 0.58) थोड़ा ज़्यादा था. 

चीन ने अक्सर अपनी आर्थिक ताक़त का फ़ायदा उठाकर अफ्रीका के प्राकृतिक संसाधन के बाज़ारों पर नियंत्रण करने की कोशिश की है, जहां ज़्यादातर छोटे देश चीन के कर्ज़ को चुकाने में काफ़ी ज़्यादा मुश्किलों का सामना करते हैं. एशिया की बात करें तो श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह का 70 प्रतिशत नियंत्रण 99 वर्षों के लिए चीन की एक सरकारी कंपनी को लीज़ पर सौंपा गया है. इसने चीन की ‘कर्ज़ जाल वाली कूटनीति’ को मज़बूत किया है. ‘कर्ज़ जाल वाली कूटनीति’ शब्द का ईजाद कुछ वर्ष पहले अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने किया था. इसकी वजह आर्थिक रूप से कमज़ोर देशों पर चीन का बढ़ता कर्ज़ था. ज़्यादा हैरानी की बात नहीं है कि अब कई देश महामारी को काबू में करने के लिए घरेलू संसाधनों को इधर-उधर लगाने की वजह से कर्ज में राहत देने के लिए चीन के सामने कतार में खड़े हैं. 

आगे क्या? 

इस साल जुलाई के मध्य में यूरोपीय यूनियन (ईयू) के 27 सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों ने ईयू के लिए एक नई वैश्विक संपर्क रणनीति को आगे बढ़ाया जिसकी विशेषता “संपर्क के लिए एक भूरणनीतिक और वैश्विक पहुंच” है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान ईयू में चीन की बढ़ती पहुंच इस महादेश के लिए चिंता की एक बड़ी वजह रही है, ख़ास तौर पर ग्रीस और पुर्तगाल में चीनी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को देखते हुए. इसलिए ईयू की वैश्विक संपर्क रणनीति के साथ-साथ बहुप्रतीक्षित “इंडो-पैसिफिक में सहयोग के लिए ईयू की रणनीति” दस्तावेज़ का प्रकाशन बीआरआई के विकल्प को मज़बूत संकेत है. ये वैश्विक इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए चीन के बीआरआई का मुक़ाबला करने के मक़सद से 2021 में जी7 के बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (बी3डबल्यू) इनिशिएटिव के साथ मिलता भी है. 

ख़ास तौर से परेशान करने वाला तथ्य ये है कि जो देश उच्च सार्वजनिक विदेशी कर्ज़ के साथ-साथ चीन के बड़े कर्ज़ की दोहरी समस्या से जूझ रहे हैं, वो अपने सार्वजनिक वित्त के अस्थिर हालात को उजागर कर रहे हैं. 

महामारी के अलावा चीनी अर्थव्यवस्था के सामने अपने घर में कुछ प्रमुख आर्थिक मुद्दों का निपटारा करने की चुनौती है. उसके घरेलू उत्पाद बाज़ार के सामने काफ़ी मुक़ाबला है और उसके विस्तार के लिए जगह नहीं है. इस वजह से वो भारत को अपने सबसे बड़े उभरते बाज़ारों में से एक मानता है जहां काफ़ी संभावनाएं हैं. वास्तव में भारतीय बाज़ार का तौर-तरीक़ा चीन से काफ़ी हद तक मिलता-जुलता है. इसकी वजह से चीन के निवेशक ये मानने लगे हैं कि अगर भारत में बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था को पर्याप्त रूप से तैयार किया जाए तो सफल होने की काफ़ी ज़्यादा संभावना है. घटक बाज़ार के मामले में पिछले तीन दशकों के दौरान चीन में श्रम की लागत में काफ़ी ज़्यादा बढ़ोतरी हुई है. इसकी वजह से अलग-अलग सेक्टर में उत्पाद की क़ीमत को वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धी बनाए रखने के लिए दूसरे देश में उत्पादन का इंतज़ाम ज़रूरी हो गया है. इसलिए महामारी की वजह से चीन की घरेलू अर्थव्यवस्था के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट को देखते हुए अगर चीन बीआरआई को लेकर आगे बढ़ता है तो उसे एक ज़्यादा संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत होगी जिसमें हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर पर ज़ोर हो जैसे बीआरआई के हेल्थ सिल्क रोड हिस्से का पुनर्निर्माण करना जो बीआरआई में नई विश्वसनीयता जोड़ सकता है. . 

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