टेरर फंडिंग को लेकर वॉल स्ट्रीट जर्नल में प्रकाशित एक ख़बर के मुताबिक़ आतंकवादी संगठन फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद (PIJ) और हमास ने अगस्त 2021 से जून 2023 तक क्रिप्टोकरेंसी के माध्यम से 130 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की रकम जुटाई थी. ट्रॉन, बिटकॉइन और टीथर जैसी डिजिटल करेंसी वित्तीय लेनदेन और जन कल्याण एवं धार्मिक कार्यों के लिए दान देने के तौर-तरीक़ों को पूरी तरह से बदल रही हैं. रॉयटर्स की ख़बरों के मुताबिक़ लगभग दो-तिहाई ट्रॉन वॉलेट आतंकवादी संगठनों से जुड़े हुए हैं. इस्लामिक स्टेट खुरासान (IS-K) ने तो हाल ही में अपनी मैगजीन वॉयस ऑफ खुरासान में मोनेरो (XMR) क्रिप्टोकरेंसी के ज़रिए ज़कात देने की अपील की थी और पैसा ट्रांसफर करने के लिए एक क्यूआर कोड भी जारी किया था. इसके अलावा, पिछले दिनों बेंगलुरु के कैफे में हुए आतंकी हमले में भी कर्नाटक के आईएसआईएस मॉड्यूल को पैसे पहुंचाने के लिए क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग किया गया था.
रॉयटर्स की ख़बरों के मुताबिक़ लगभग दो-तिहाई ट्रॉन वॉलेट आतंकवादी संगठनों से जुड़े हुए हैं. इस्लामिक स्टेट खुरासान (IS-K) ने तो हाल ही में अपनी मैगजीन वॉयस ऑफ खुरासान में मोनेरो (XMR) क्रिप्टोकरेंसी के ज़रिए ज़कात देने की अपील की थी और पैसा ट्रांसफर करने के लिए एक क्यूआर कोड भी जारी किया था.
इस्लाम धर्म के पांच स्तंभों में से एक ज़कात भी है. इसके अतंर्गत ज़रुरतमंदों, ग़रीबों और धार्मिक कार्यों के लिए अपनी कमाई का कुछ हिस्सा दान करना अनिवार्य है. हालांकि, क्रिप्टोकरेंसी के लेनदेन में जिस प्रकार से पहचान छिपाने की सुविधा है, उसका आतंकवादी समूहों एवं तमाम देशों की सरकारों द्वारा समर्थित गैर-सरकारी संगठनों और समूहों द्वारा फायदा उठाया गया है. ज़कात का यह दुरुपयोग न केवल चिंताजनक है, बल्कि यह भी बताता है कि इसे रोकने के लिए सभी को अपनी ज़िम्मेदारी निभाना ज़रूरी है. इस आर्टिकल में ज़कात में क्रिप्टोकरेंसी के इस दुरुपयोग की विस्तार से छानबीन की गई है, ख़ास तौर पर भारत के केरल राज्य में ज़कात के नाम पर किस प्रकार से क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल टेरर फंडिंग के लिए किया गया है, उसकी गहन पड़ताल की गई है.
भारत में क्रिप्टो-हवाला
भारत में नोटबंदी के बाद से हवाला गतिविधियों में डिजिटल करेंसी का इस्तेमाल काफ़ी बढ़ गया है. केंद्रीय आर्थिक ख़ुफिया ब्यूरो (CEIB) द्वारा हाल ही में केरल में की गई एक जांच के दौरान एक ऐसे हवाला रैकेट का खुलासा हुआ है, जिसमें रुपयों के बजाए क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल किया जा रहा था. CEIB की इस जांच-पड़ताल के दौरान यह भी सामने आया कि क्रिप्टो का उपयोग सिंथेटिक ड्रग्स के धंधे के लिए किया जा रहा था और इससे ज़बरदस्त कमाई की जा रही थी. केरल एक ऐसा राज्य है, जहां के क़रीब 20 लाख लोग दूसरे देशों में काम-धंधा करते हैं और इनमें से ज़्यादातर लोग खाड़ी देशों में रहते हैं. इस लिहाज़ से देखा जाए तो खाड़ी देशों और केरल के बीच बेहद क़रीबी रिश्ता है. केरल माइग्रेशन सर्वे के मुताबिक़ केरल के जितने भी लोग विदेश में रहते हैं, उनमें से लगभग 89.4 प्रतिशत लोग खाड़ी देशों में हैं और वहां रोजी-रोटी कमाते हैं. ये लोग खाड़ी देशों से केरल में अपने परिवार को पैसे भेजने के लिए क्रिप्टो हवाला का इस्तेमाल करते हैं. बताया गया है कि ऐसा टैक्स से बचने के लिए किया जाता है, लेकिन कभी-कभी यह गैरक़ानूनी गतिविधियों की भी वजह बन जाता है.
"गल्फ मनी" की बात की जाए, तो यह ख़ास तौर पर खाड़ी देशों में रहने वाले केरल के नागरिकों से मिलती है और इसका उपयोग तमाम कार्यों में किया जाता है, जिनमें मस्जिदों और मदरसों की फंडिंग भी शामिल है. पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) जैसे कट्टरपंथी समूहों के फलने-फूलने के पीछे इसी गल्फ मनी को ज़िम्मेदार माना जाता है, क्योंकि इसका ज़्यादातर हिस्सा पीएफआई को ही पहुंचता है. पीएफआई एक कट्टरपंथी संगठन है, जो भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए लगातार ख़तरा बना हुआ है. पीएफआई पर भारत में प्रतिबंध लगा हुआ है, बावज़ूद इसके यह कट्टरपंथी संगठन अपने ख़तरनाक मंसूबों को अंज़ाम देने में लगा हुआ है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पीएफआई, पार्टी ऑफ इस्लामिक रिन्यूअल जैसे समूहों के सहयोग से क्रिप्टोकरेंसी में ज़कात मांगता है. जांच के दौरान यह भी सामने आया है कि पीएफआई अपनी तमाम गतिविधियों के लिए ज़कात इकट्ठा करता है. इनमें दिल्ली दंगों जैसी घटनाओं के पीड़ितों को आर्थिक मदद मुहैया करना, हज के लिए जाने वाले यात्रियों का आर्थिक सहयोग करना और रिहैब फाउंडेशन एवं नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट जैसे डमी संगठनों और समूहों का वित्तपोषण करना शामिल है. पीएफआई दूसरे देशों में अलग-अलग नामों से सक्रिय है और वहां पैसा जुटाने का काम करता है. कुवैत में पीएफआई कुवैत इंडिया सोशल फोरम (KISF) के नाम से सक्रिय है और इसी संगठन की आड़ लेकर अपने भारत विरोधी ख़तरनाक मंसूबों को आगे बढ़ाता है और भारत में गैरक़ानूनी गतिविधियां संचालित करता है.
जांच के दौरान यह भी सामने आया है कि पीएफआई अपनी तमाम गतिविधियों के लिए ज़कात इकट्ठा करता है. इनमें दिल्ली दंगों जैसी घटनाओं के पीड़ितों को आर्थिक मदद मुहैया करना, हज के लिए जाने वाले यात्रियों का आर्थिक सहयोग करना और रिहैब फाउंडेशन एवं नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट जैसे डमी संगठनों और समूहों का वित्तपोषण करना शामिल है.
लॉजिकली नाम की ब्रिटिश टेक्नोलॉजी कंपनी द्वारा पीएफआई की ऑनलाइन गतिविधियों को लेकर एक रिपोर्ट जारी की गई है. “द पॉपुलर फ्रंट्स ऑनलाइन नैरेटिव्स अटेम्प्टिंग टू रेडिकलाइज़ इंडियन मुस्लिम्स” नाम की इस रिपोर्ट में क्रिप्टोकरेंसी डोनेशन के ज़रिए पीएफआई का सहयोग करने वाले दुनिया के तमाम आतंकवादी संगठनों की भागीदारी के बारे में विस्तार से बताया गया है. इनमें ISIS, पार्टी ऑफ इस्लामिक रिन्यूअल एवं KISF जैसे आतंकी संगठन भी शामिल हैं. इन आतंकी समूहों द्वारा पीएफआई के समर्थन में अभियान चलाया जाता है और इसके उद्देश्यों को प्रति झुकाव रखने वालों से आर्थिक मदद की अपील की जाती है. इसके लिए लोगों से एक्सोडस, समुराई, एटॉमिक मोनेरो और बिटकॉइन जैसे क्रिप्टोकरेंसी वॉलेट के ज़रिए पीएफआई को आर्थिक सहयोग करने को कहा जाता है. इतना ही नहीं, दानदाताओं से अपना नाम उजागर नहीं करने और एजेंसियों की नज़र से बचने के लिए XRP, रिपल और कार्डानो जैसे क्रिप्टोकरेंसी ट्रांसफर करने वाले माध्यमों का इस्तेमाल करने के लिए भी कहा जाता है. इसके अलावा, आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट द्वारा पीएफआई के सदस्यों को आईएसआईएस में शामिल होने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है और उन्हें ख़िलाफ़त के लिए जिहाद करने को कहा जाता है.
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) के मुताबिक़ पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) द्वारा दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में पैसा जुटाने के लिए व्यापक नेटवर्क का उपयोग किया जाता है. पैसा उगाही के लिए पीएफआई द्वारा पारंपरिक तरीक़ों का भी इस्तेमाल किया जाता है, साथ ही आधुनिक तरीक़े भी अपनाए जाते हैं. जैसे कि पैसा जुटाने के लिए क्यूआर कोड का उपयोग किया जाता है, साथ ही ऑनलाइन माध्यमों पर एकाउंट की जानकारी साझा करके भी पैसा इकट्ठा किया जाता है. FATF की जांच में रकम जुटाने के लिए पीएफआई द्वारा 3,000 से अधिक बैंक खातों और हवाला जैसे अनौपचारिक तरीक़ों का इस्तेमाल करने के बारे में पता चला है.
पैसा देने वालों का नाम छिपाने की वजह
क्रिप्टोकरेंसी आज हर जगह पर आसानी से उपलब्ध है और इसमें अपना नाम उजागर किए बगैर दूसरे फर्जी नामों से लेनदेन करने का सुविधा मिलती है. इसी वजह से इसका टेरर फंडिंड जैसी अवैध गतिविधियों के लिए उपयोग आसान होता है. ज़कात के अंतर्गत दान देने वाले व्यक्ति की पहचान को गुप्त रखने को बढ़ावा दिया जाता है, लेकिन जब ज़कात से हासिल धन का इस्तेमाल ग़लत कार्यों के लिए किया जाता है, तो यही नाम छिपाना समस्या की वजह बन जाता है. ज़ाहिर है कि ज़कात को हमेशा अच्छे उद्देश्य के लिए दिया जाता है, लेकिन इससे मिली धनराशि का उपयोग आतंकवादी गतिविधियों के लिए किया जा सकता है. मोनेरो, जैडकैश और डैश ऐसी प्रमुख क्रिप्टोकरेंसी हैं, जो उपयोगकर्ता की पहचान और लेनदेन के इतिहास को गुप्त रखने के लिए अलग-अलग तरीक़ों का इस्तेमाल करती हैं:
- मोनेरो क्रिप्टोकरेंसी में ब्लॉकचेन एड्रेस हर लेनदेन के लिए एक नया एड्रेस बनाती है, जिससे लेनदेन करने वाले की गोपनीयता बनी रहती है.
- मोनेरे और बिटकॉइन क्रिप्टोकरेंसी में लेनदेन करने पर रिंग सिग्नेचर यानी एक प्रकार के डिजिटल हस्ताक्षर की सुविधा मिलती है और इसका इस्तेमाल उपयोगकर्ता समूह के किसी भी सदस्य द्वारा किया जा सकता है. इस प्रकार से इसमें व्यक्तिगत पहचान को छिपाया जाता है.
- जैडकैश क्रिप्टो में लेनदेन करने पर zk-SNARKs तकनीक़ का इस्तेमाल किया जाता है. यह एक भ्रमित करने वाली प्रक्रिया है, जिसका इस्तेमाल उपयोगकर्ता की गोपनीयता बनाए रखने के लिए ब्लॉकचेन में किया जाता है.
ज़कात में क्रिप्टो के दुरुपयोग की समस्या से निपटना
ज़कात में क्रिप्टोकरेंसी के दुरुपयोग की समस्या बहुत बड़ी है और इसका समाधान निकालने के लिए एक व्यापक नज़रिए की आवश्यकता है. यानी क्रिप्टोकरेंसी लेनदेन को नियंत्रित करने, उन्हें अधिक पारदर्शी बनाने और गैरक़ानूनी वित्तपोषण गतिविधियों को रोकने के लिए कड़े नियम-क़ानून बनाने की ज़रूरत है.
वर्ष 2019 में “टेररिस्ट यूज़ ऑफ क्रिप्टोकरेंसीज” नाम से प्रकाशित RAND रिपोर्ट के मुताबिक़ लेखकों ने सुझाव दिया है कि देशों को क्रिप्टो का गुप्त तरीक़े से इस्तेमाल करने की घटनाओं को रोकने के लिए सरकारी एजेंसियों को तैयार करने से पहले अपनी पुख्ता रणनीति बनानी चाहिए. RAND रिपोर्ट तैयार करने वालों के अनुसार देशों को अपनी रणनीति को नीचे दिए गए बिंदुओं के हिसाब से बांटा जा सकता है:
- पहचान गुप्त रखने की प्रक्रिया को समाप्त करना: क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग करने वालों की पहचान को सार्वजनिक करने का प्रावधान करना.
- क्रिप्टो के उपयोग पर लगाम: क्रिप्टोकरेंसी के कुछ विशेष लेनदेन को ब्लॉक करना, यानी उन पर रोक लगाना, ताकि आतंकवादी गतिविधियों के लिए उस रकम का इस्तेमाल नहीं किया जा सके.
- क्रिप्टो की चोरी: क्रिप्टो फंड की चोरी या लूट पर लगाम लगाने के लिए क्रिप्टोग्राफी तकनीक़ का उपयोग करना, ताकि गोपनीय जानकारी को सुरक्षित रखा जा सके.
- प्रणालीगत हमले: क्रिप्टोकरेंसी लेनदेन की पूरी प्रणाली पर अटैक करके ब्लॉकचेन नेटवर्क को बाधित करना, ताकि कोई क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग न कर पाए.
RAND रिपोर्ट बनाने वालों ने आगे और भी सुझाव दिए हैं. जैसे कि क्रिप्टोकरेंसी के उपयोग की निगरानी के लिए इन सारी जवाबी कार्रवाइयों को चार वर्गों में बांटा जा सकता है. पहला, इसे ऑफलाइन किया जा सकता है, यानी सिस्टम की सीधी भागीदारी के बगैर अमल में लाया जा सकता है. दूसरा, इसे सिस्टम में रुकावट डाले बिना धीरे-धीरे आराम से आगे बढ़ाया जा सकता है. तीसरा, इसे सक्रिय रूप से आगे बढ़ाया जा सकता है, यानी क्रिप्टो लेनदेन पर पूरी तरह के रोक लगाने के लिए सूझबूझ के साथ दख़ल दिया जा सकता है. चौथा, कार्रवाई को खुलेआम किया जा सकता है, जैसे DDoS, यानी डिस्ट्रीब्यूटिड डिनायल ऑफ सर्विस और सर्वर टेकडाउन.
इसके अलावा, जवाबी कार्रवाई के लिए कुछ सॉफ्टवेयर का भी उपयोग किया जा सकता है, जैसे:
- सॉफ्टवेयर सप्लाई चेन अटैक: यह एक प्रकार का साइबर हमला है, जिसे सॉफ्टवेयर आपूर्ति श्रृंखला में मौज़ूद कमज़ोर कड़ियों पर किया जाता है, ताकि किसी संगठन को नुक़सान पहुंचाया जा सके. उदाहरण के तौर पर वर्ष 2017 में यूक्रेन में किया गया NotPetya अटैक. इस साइबर हमले को यूक्रेन के अंदर कंप्यूटर सिस्टम पर रैंसमवेयर के रूप में किया गया था.
- बैकडोर अटैक: इसमें मौज़ूदा साइबर सुरक्षा उपायों को दरकिनार करते हुए कंप्यूटर सिस्टम तक पहुंचा जाता है और इसे आख़िरी स्टेज पर संचालित किया जाता है.
- क्रिप्टोग्राफिक अटैक: इसके तहत क्रिप्टोग्राफिक सिस्टम की सुरक्षा को तोड़ने की कोशिश की जाती है. इसका मकसद सिस्टम की कमज़ोरियों का फायदा उठाना और संवेदनशील जानकारी तक अनधिकृत पहुंच हासिल करना है. ये हमले एन्क्रिप्टेड डेटा की गोपनीयता के लिए एक ख़तरा पैदा करते हैं.
आख़िर में वित्तीय संस्थानों के लिए भी कुछ सुझाव है, जिन्हें उनके द्वारा अमल में लाया जा सकता है, जैसे:
- वित्तीय संस्थान फंड के उपयोग की निगरानी करने और ज़कात में मिली रकम का उचित आवंटन सुनिश्चित करने के लिए ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर सकते हैं.
- वित्तीय संस्थानों द्वारा विदेशों से आने वाली धनराशि पर निगरानी रखने के लिए नियमित तौर पर गैर-सरकारी संगठनों के बैंक खातों का ऑडिट किया जाता है. ऐसे में इनके द्वारा विदेशी मुद्रा में दी जाने वाली ज़कात की रकम को भारतीय करेंसी में परिवर्तित करना अनिवार्य किया जाए, ताकि विदेश से दान के रूप में आने वाली राशि का पूरा लेखा-जोखा रखा जा सके और उस पर टैक्स लगाया जा सके.
- मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फंडिंग की समस्या से निपनटे के लिए शेल कंपनियों, क़ीमती पेंटिंग्स और कलाकृतियों की नीलामी एवं रियल स्टेट को लेकर सख़्त नियम-क़ानून बनाए जाने चाहिए. इसके साथ ही क्रिप्टोकरेंसी को नियमित करेंसी में बदलने के लिए भी कड़े नियम बनाए जाएं.
- पारंपरिक मुद्रा को नियंत्रित करने के लिए जो नियम बनाए गए हैं, उसी प्रकार के नियम-क़ानून डिजिटल करेंसी पर भी लागू किए जाने चाहिए, ताकि इसका गैरक़ानूनी गतिविधियों में इस्तेमाल रोका जा सके. इसके लिए नो-योर-कस्टमर और नो-योर-क्लाइंट जैसे नियमों को डिजिटल करेंसी के लिए भी अनिवार्य किया जाना चाहिए.
निष्कर्ष
कुल मिलाकर यह कहना उचित होगा कि क्रिप्टोकरेंसी और ज़कात का यह संबंध अगर ग़रीबों एवं ज़रूरतमंदों की आर्थिक मदद के अवसर लाने का काम करता है, तो वहीं यह गठजोड़ तमाम चुनौतियां भी पेश करता है. ज़ाहिर है कि ज़कात ज़रूरतमंदों की मदद करने और नेक कार्यों के लिए दिया जाता है, लेकिन जब अपनी पहचान छिपाकर क्रिप्टोकरेंसी लेनदेन के माध्यम से ज़कात दी जाती है, तो ऐसा करना वैश्विक सुरक्षा के लिहाज़ से बेहद ख़तरनाक साबित होता है. ज़कात की पवित्रता और प्रमाणिकता को बनाए रखने एवं गैरक़ानूनी और विनाशकारी कार्यों के लिए इसके दुरुपयोग पर लगाम लगाने के लिए न सिर्फ़ इससे होने वाले ख़तरों के बारे में पता लगाना बेहद ज़रूरी है, बल्कि इसे रोकने के लिए सख़्त क़दम उठाना भी बहुत आवश्यक है. ज़कात के बुनियादी मकसद को बनाए रखने के लिए हर स्तर पर मिलजुलकर कोशिश करना आवश्यक है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ज़कात का उपयोग सिर्फ़ ग़रीबों की मदद और धार्मिक कार्यों के लिए ही किया जाए, न कि इसका उपयोग हिंसा और आतंकवाद को बढ़ावा देने के एक हथियार के रूप में किया जाए.
ज़ाहिर है कि आतंकी और कट्टरपंथी संगठन धन उगाही के लिए समय के साथ-साथ नई-नई तकनीक़ों का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन जिस प्रकार से मौज़ूदा वित्तीय प्रणाली की अपनी सीमाएं हैं, उनके चलते आतंकी समूहों द्वारा फंडिंग के लिए उपयोग की जानी वाली इन नई तकनीक़ों पर लगाम लगान मुश्किल दिखाई देता है.
इसी प्रकार से आतंकवादी एवं कट्टरपंथी संगठनों के वित्तपोषण में जो बदलाव आ रहा है, उसे समझना एवं उसका पूर्वानुमान लगाना भी बेहद महत्वपूर्ण है. ज़ाहिर है कि आतंकी और कट्टरपंथी संगठन धन उगाही के लिए समय के साथ-साथ नई-नई तकनीक़ों का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन जिस प्रकार से मौज़ूदा वित्तीय प्रणाली की अपनी सीमाएं हैं, उनके चलते आतंकी समूहों द्वारा फंडिंग के लिए उपयोग की जानी वाली इन नई तकनीक़ों पर लगाम लगान मुश्किल दिखाई देता है. टेरर फंडिंग का कोई तय तरीक़ा नहीं होता है और अक्सर यह वैश्विक या स्थानीय स्तर पर आर्थिक मंदी या तेज़ी के अनुसार बदलता रहता है. एक और बात यह है कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में वित्तीय नियामक फ्रेमवर्क में समानता नहीं है, यानी इसमें कई विषमताएं हैं. कहने का मतलब है कि वैश्विक स्तर पर वित्तीय लेनदेन की निगरानी प्रणाली में तमाम खामियां है और इस वजह से जिन देशों में वित्तीय निगरानी तंत्र मज़बूत नहीं है, वहां इन आतंकवादी संगठनों को अवैध तरीक़े से पैसा जुटाने में मदद मिलती है.
सौम्या अवस्थी स्वतंत्र सलाहकार हैं.
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