Published on Feb 23, 2024 Updated 6 Days ago
एआई का विकास और इस पर विश्वास को लेकर विरोधाभास

ये लेख हमारी- रायसीना एडिट 2024 सीरीज़ का एक भाग है


'हर तकनीकी का दोहरा इस्तेमाल किया जा सकता है'. ये काफी प्रचलित कहावत है. अब जबकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर नियामक संस्थाओं की सख्ती बढ़ रही है, तब से इस कहावत पर फिर बात होने लगी है. टेक्नॉलोजी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों के बोर्डरूम में भी इसकी चर्चा हो रही है. सवाल ये है कि तकनीकी के दोहरे इस्तेमाल का मतलब क्या है? आम तौर पर किसी भी तकनीकी का सैनिक और नागरिक क्षेत्र में इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन एआई के संदर्भ में इसका मतलब ये होता है कि इसके सदुपयोग और दुरूपयोग दोनों हो सकते हैं. एआई के दोहरे इस्तेमाल की ये खासियत इस तकनीकी के डीएनए में है

क्या एआई का दोहरा इस्तेमाल होता है?

वैसे ये तथ्य है कि सिर्फ एआई ही नहीं बल्कि किसी भी तकनीकी का इस्तेमाल विकास या विनाश फैलाने के लिए किया जा सकता है. 1953 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट आइजनहावर ने 'एटम्स फॉर पीस' कार्यक्रम का ऐलान किया था. उन्होंने कहा था कि परमाणु ऊर्जा भविष्य का सपना नहीं बल्कि उस वक्त की हकीकत है. इस प्रोग्राम ने दुनियाभर में न्यूक्लियर पावर का इस्तेमाल शांतिपूर्ण काम में करने के अहम भूमिका निभाई. इसे आप इस तरह भी समझ सकते हैं कि दुनियाभर में मशहूर क्रिस्टल ज्वैलरी बनाने वाली ऑस्ट्रियन कंपनी स्वारोस्की राइफल के स्कोप भी बनाती है

एआई टूल्स को विकसित करने वाली कंपनियों में पिछले 4-5 साल में निजी पूंजी निवेश में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है.


एआई के दोहरे इस्तेमाल को लेकर असमंजस की स्थिति इसलिए भी है क्योंकि अभी तक कोई ये समझ नहीं पाया है कि आम जीवन में इसका क्या असर होगा, फिर भी सभी एआई क्षेत्र के लीडर बनने की दौड़ में हैं

एआई टूल्स को विकसित करने वाली कंपनियों में पिछले 4-5 साल में निजी पूंजी निवेश में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है. 2022 में एआई बनाने वाली 1400 कंपनियों में करीब 92 अरब डॉलर का निवेश हुआ, जो 2016 की तुलना में करीब दोगुना है. एआई को लेकर नई नीतियां भी इसे बढ़ावा दे रही हैं. बिडेन प्रशासन ने एक कार्यकारी आदेश जारी कर सरकारी संस्थाओं से एआई अपनाने को कहा है, जिसका मकसद लोगों को जरूरी सेवाएं आसानी से दिलाना है लेकिन फिर भी एआई पर लोगों का भरोसा कम हो रहा है.

2024 में एडलमेन ट्रस्ट बैरोमीटर में पाया गया कि कई लोग एआई से उनके जीवन पर पड़ने वाले असर को लेकर सशंकित हैं. 2022 में आईपीएसओएस सर्वे में शामिल सिर्फ 50 प्रतिशत लोग ही उन कंपनियों पर भरोसा करते थे, जो एआई का इस्तेमाल करती हैं. सबसे हैरानी की बात ये है कि विकसित माने जाने वाले पश्चिमी देशों में उच्च आय वर्ग के लोगों को एआई पर कम भरोसा था. अगर अपवाद के तौर पर चीन को छोड़ दें तो जो देश नई तकनीकी का विकास और नई खोज करने में सबसे आगे थे, उन्हीं देशों के लोग एआई को खारिज कर रहे हैं. आसान शब्दों में कहें तो एआई से वो अहम चीज गायब है जो किसी उत्पाद को सफल बनाती है और वो चीज है सरलता. सिलीकॉन वैली के भी कई लोगों को एआई समझ नहीं आता. उन्हें लगता है एआई का जादू कोड में है

एआई से चलने वाली दुनिया कैसी होगी?

नई तकनीकी का काम दुनिया में बेहतर व्यवस्था बनाना है. अपने निबंध 'क्या कलाकृतियों की भी राजनीति होती है' में राजनीतिक विचारक लैंडगॉन विनर लिखते हैं कि जिस भी तकनीकी में डिजाइन करने के विकल्प को शामिल किया जाता है, वो तकनीकी हमारे चाहने या ना चाहने के बावजूद ये तय कर देती है कि उसका इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है. एआई के दोहरे इस्तेमाल की इसी विशेषता को लेकर शुरू से ही चिंता जताई जा रही थी कि इससे ग्राहकों का नुकसान हो सकता है. यूनाइटेड स्टेट्स फेडरल ट्रेड कमीशन की चेयरपर्सन लिना खान ने न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे अपने एक लेखलेख में इस बात की चेतावनी दी थी कि एआई के विस्तार से बड़ी तकनीकी कंपनियों का एकाधिकार हो सकता है. चुनिंदा कंपनियां ही एआई को विकसित करने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री को नियंत्रित करती हैं. एआई की दुनिया ही ऐसी है कि एक सीधे-साधे लगने वाले एआई टूल्स के एल्गोरिदम का गलत इस्तेमाल किया जा सकता है. 31 जनवरी 2024 को पेंटागन ने ऐसी कंपनियों की लिस्ट जारी की जो हैं तो अमेरिका में लेकिन वो चीन की मिलिट्री कंपनियों के तौर पर काम कर रहीं थीं. इनमें बीजिंग मेगावी टेक्नॉलोजी प्राइवेट लिमिटेड और मेगावी फेस++ जैसी कंपनियां शामिल हैं. मेगावी फेस++ पॉपुलर ब्यूटी ऐप 'कैमरा 360' और मेतू ब्यूटी प्लस ऐप को बनाने वाली कंपनी है. इतना ही नहीं ये कंपनी उन सरकारी परियोजनाओं में भी शामिल है, जिनका काम निगरानी (सर्विलांस) रखना है

ये कहा जा सकता है कि एआई पर अविश्वास करना एक अच्छा संकेत है. जिस तरह एआई टूल्स विकसित किए जाते हैं उसे देखते हुए इन पर पूरी तरह भरोसा करना ठीक नहीं है लेकिन साथ ही ये भी याद रखना जरूरी है कि स्वास्थ्य, शिक्षा और सतत विकास के क्षेत्र में एआई का बेहतरीन इस्तेमाल हो सकता है.

इस सबको देखते हुए ये जरूरी है कि हम लैंडगॉन विनर के निबंध के उस दूसरे हिस्से पर भी विचार करें जिसमें उन्होंने कहा था कि कुछ तकनीकी ऐसी होती हैं, जो एक खास तरह के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवेश में ही सफल हो सकती हैं. तकनीकी के क्षेत्र में काम करने वाली रिपोर्टर एज़रा क्लेन ने पिछले साल लिखा था कि उन्होंने एआई टूल्स विकसित करने वाले प्रोफेशनल्स के साथ काफी वक्त बिताया है और उनके काम करने का तरीका बहुत अजीब है. ये लोग अपनी अलग दुनिया में रहते हैं. इन्हें अपने काम और उसके परिणामों की चिंता नहीं है. ये लोग बहुत तेजी से नए पावरफुल टूल्स को डेवलप कर रहे हैं लेकिन ये नहीं समझ पा रहे कि इसके नतीजे क्या होंगे? डराने वाली बात ये है कि एआई टूल्स इसी तरह के माहौल में बनाए जा सकते हैं. उनमें आत्मअनुशासन नहीं है. उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं है कि उनके बनाए एआई टूल्स के क्या नैतिक प्रभाव होंगे.

नई खोज और नियमन के बीच बनावटी संघर्ष

कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि एआई पर अविश्वास करना एक अच्छा संकेत है. जिस तरह एआई टूल्स विकसित किए जाते हैं उसे देखते हुए इन पर पूरी तरह भरोसा करना ठीक नहीं है लेकिन साथ ही ये भी याद रखना जरूरी है कि स्वास्थ्य, शिक्षा और सतत विकास के क्षेत्र में एआई का बेहतरीन इस्तेमाल हो सकता है. इनकी मदद से मानवता की सेवा उस गति से की जा सकती है, जिसके बारे में पहले सोचा भी नहीं जा सकता था. लेकिन नियामक संस्थाओं के जरिए इसपर नियंत्रण रखना अच्छी बात है. अगर एआई का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो इसके बहुत फायदे हैं. इसमें जो नुकसान पहुंचाने वाली कमियां हैं, उन पर कड़ी नज़र रखी जाए. लगातार इनकी समीक्षा हो. जो संस्थाएं इन पर निगरानी का काम करती हैं उन्हें और शक्तिशाली बनाया जाए. इससे एआई के दुरुपयोग में कमी लाकर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इसके फायदे पहुंचाए जा सकते हैं.

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