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Published on Oct 16, 2024 Updated 2 Days ago

अफ्रीकी देश अपने सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विकास के लिए भारतीय प्रवासियों की वैश्विक सफलता काफ़ी कुछ सीख सकते हैं.

अफ्रीका के लिए भारत का STEM प्रवासी मॉडल: सहयोग और विकास की नई राह

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वैश्विक स्तर पर भारतीय प्रवासियों की सफलता से अफ्रीका बहुत कुछ सीख सकता है. अगर अफ्रीकी देशों को सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देना है तो उन्हें भारतीय प्रवासी मॉडल के नक्शेकदम पर चलने की कोशिश करनी चाहिए. ये देश भी प्रवासी अफ्रीकियों की उद्यमशीलता की भावना का उपयोग करके अपने आर्थिक विकास को आगे बढ़ा सकते हैं. सतत विकास लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं. आधुनिक अर्थव्यवस्थाएं विकास के लिए वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग अनुसंधान पर निर्भर हैं. आज की परस्पर जुड़ी दुनिया में, भारत सहित प्रवासी समुदाय वैश्विक राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वर्तमान में  अफ्रीकी समुदाय के लगभग 30 मिलियन लोग विदेशों में रहते हैं. इनमें से बहुत लोगों के पास एडवांस डिग्री और उद्यमशीलता का कौशल है. ये लोग जिन देशों में रह रहे हैं, वहां के विकास में मदद के लिए वित्त, आईटी और कृषि जैसे क्षेत्रों में योगदान दे रहे हैं. इतना ही नहीं कई लोग राजनीतिक भागीदारी और धर्मार्थ कोशिशों के माध्यम से ऐसी नीतियों को बनाने की सक्रिय रूप से वकालत करते हैं, जिससे अफ्रीका के भविष्य को बेहतर बनाया जा सके.

संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट 2022 के अनुसार, विदेशों में रहने वाले नागरिकों में सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की है.

संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट 2022 के अनुसार, विदेशों में रहने वाले नागरिकों में सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की है. 18 मिलियन से ज़्यादा भारतीय विदेशों में रहते हैं और उन्होंने महत्वपूर्ण वैश्विक प्रभाव भी डाला है. उदाहरण के लिए, अमेरिका में रहने वाले प्रवासी भारतीयों की सालाना औसत घरेलू आय करीब 150,000 डॉलर है. अमेरिका में रहने वाली किसी भी प्रवासी समूह के बीच सबसे अधिक पैसा भारतीय प्रवासी ही कमाते हैं. ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीय प्रवासियों की औसत सालाना घरेलू आय लगभग 87,000 अमेरिकी डॉलर है, जबकि अमेरिका में चीनी प्रवासियों की औसत पारिवारिक आय करीब 58,000 डॉलर है.

54 अफ्रीकी देशों में लगभग 1.4 अरब लोग रहते हैं. अगले 25 से 30 साल में ये आबादी बढ़कर 2.5 अरब होने का अनुमान है. जनसंख्या में ये वृद्धि ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा पर महत्वपूर्ण सवाल उठाती है. ये लेख वैज्ञानिक उन्नति के लिए प्रवासी भारतीयों का लाभ उठाने में भारत की रणनीति की पड़ताल करता है. इसके साथ ही इस बात पर भी विचार करता है कि अफ्रीकी देश अपने विकास के लिए कैसे खुद के प्रवासी पेशेवरों का इस्तेमाल कर सकते हैं और इस दृष्टिकोण के लिए भारतीय प्रवासियों से क्या सीख सकते हैं?

अफ्रीकी STEM प्रवासी

सबसे पहले तो ये जानना ज़रूरी है कि STEM आखिर है क्या? STEM का अर्थ है साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स. इन चारों क्षेत्रों में काम करने वाले पेशेवर लोग किसी भी आधुनिक अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. लेकिन दुख की बात ये है कि अफ्रीकी सरकारों से इन्हें पर्याप्त वित्तीय मदद नहीं मिलती. इसकी वजह से अफ्रीका में सरकारी और निजी शोधकर्ताओं, दोनों का, वैज्ञानिक उन्नति में योगदान न्यूनतम है. इतना ही नहीं ये महत्वाकांक्षी शोधों के अवसरों को भी सीमित करता है. अपने वैज्ञानिक उत्पादन को बढ़ाने के लिए, अफ्रीका को स्थानीय और वैश्विक भागीदारों के साथ सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए. उन्हें अफ्रीकी STEM प्रवासियों के साथ जुड़ना चाहिए. इसके अलावा, निजी क्षेत्र के व्यवसायियों को भी अफ्रीकी STEM अनुसंधानकर्ताओं के साथ मिलकर काम करना चाहिए, खासकर ऐसे शोधकर्ता जिन्होंने रासायनिक उत्पादन, चिकित्सा उपकरणों, टीके और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में नवाचार विकसित किए हैं. इससे अफ्रीका और उसके बाहर चुनौतियों से निपटने में मदद मिल सकती है.

अफ्रीका को अपनी खोजों और नवाचारों को प्रभावी ढंग से बढ़ावा देने के लिए एक प्रभावी रणनीति की ज़रूरत है. व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए शोध का विस्तार करना फायदेमंद होगा.

दूसरे शब्दों में कहें तो अफ्रीका को अपनी खोजों और नवाचारों को प्रभावी ढंग से बढ़ावा देने के लिए एक प्रभावी रणनीति की ज़रूरत है. व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए शोध का विस्तार करना फायदेमंद होगा. इससे उन लोगों को प्रोत्साहित किया जा सकता है जिन्होंने STEM के क्षेत्र में बेहतर अवसरों की तलाश में अफ्रीकी महाद्वीप छोड़ दिया और वापस लौटने और सहयोग करने के लिए प्रेरित हुए. ये रणनीति मध्यम वर्ग के लिए नए आर्थिक अवसर खोल सकती है. इस वर्ग का लगातार विस्तार हो रहा है और इसके पास खर्च करने योग्य आय की मात्रा अधिक है.

आईबीएम, नेस्ले और गूगल जैसे वैश्विक कंपनियों ने स्थानीय नवाचार को बढ़ावा देने के अहमियत को पहचानते हुए प्रमुख अफ्रीकी देशों में अनुसंधान और विकास केंद्र स्थापित किए हैं. उदाहरण के लिए, गूगल के पास घाना में एआई अनुसंधान सुविधा है. आईबीएम दक्षिण अफ्रीका और केन्या में इस तरह के केंद्र संचालित करता है. इनमें से कई कंपनियों ने स्थानीय और वैश्विक विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिए प्रवासी पेशेवरों को भी काम पर रखा है. हालांकि, अभी पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं हो रहा है. अफ्रीकी देश इस क्षेत्र में भारत के अनुभव से सीख सकते हैं.

अपने वैज्ञानिक प्रवासियों को शामिल करने का "भारत का तरीका"

प्रवासी भारतीयों के साथ संबंध मजबूत करना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के तहत भारत की विदेश नीति का एक मुख्य पहलू बन गया है. प्रवासी भारतीयों की क्षमता और उनकी प्रतिभा को स्वीकार करते हुए भारत सरकार देश में व्यवसाय शुरू करने के लिए वापस आने वालों को टैक्स में छूट और अन्य कई तरह के प्रोत्साहन प्रदान करती है. इस क्षेत्र में उल्लेखनीय उदाहरणों में विप्रो और रिलायंस इंडस्ट्रीज शामिल हैं. इन दोनों कंपनियों की स्थापना या नेतृत्व वापस लौटे प्रवासी भारतीयों द्वारा किया गया है.

विज्ञान के क्षेत्र में हाल की प्रगति ने प्रवासी भारतीयों के साथ भारत के संबंधों को मजबूत किया है. इसका बहुत बड़ा श्रेय पश्चिमी संस्थानों में शिक्षित पेशेवरों को जाता है. ये लोग मूल्यवान ज्ञान और कौशल के साथ लौटे हैं. ये रणनीति कोरोना महामारी के दौरान विशेष रूप से प्रभावी साबित हुई. इसकी वजह से भारत दुनिया का अग्रणी वैक्सीन उत्पादक देश बन गया. अफ्रीकी सरकारों को भी इस पहलू पर ध्यान देना चाहिए.

इसके अलावा, सरकार ने शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों को प्रवासी वैज्ञानिक से जोड़ने के लिए वैश्विक भारतीय वैज्ञानिक (VAIBHAV) फेलोशिप कार्यक्रम शुरू किया है. इस पहल का उद्देश्य अत्याधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी में सर्वोत्तम प्रथाओं को बढ़ावा देना है. इसके माध्यम से ज्ञान के आदान-प्रदान और सहयोगात्मक अनुसंधान को प्रोत्साहन देकर प्रवासी भारतीयों के साथ संबंधों को और गहरा करना है. इसके ज़रिए भारत के शैक्षणिक संस्थानों में रिसर्च इकोसिस्टम को मज़बूत और उन्नत करना है.

विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत, फेलोशिप कार्यक्रम का लक्ष्य भारतीय मूल के 75 प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों और तकनीशियनों (NRI/IOC/PIO) को उनके घरेलू देशों में अनुसंधान करने में सहायता करना है. इस कार्यक्रम में क्वांटम तकनीकी, स्वास्थ्य और कृषि समेत 18 प्रमुख क्षेत्र शामिल हैं. 302 आवेदनों की समीक्षा करने के बाद, शीर्ष समिति ने 22 वैभव फेलो और दो डिस्टिंग्विश्ड वैभव फेलो के नाम की सिफारिश की.

विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत, फेलोशिप कार्यक्रम का लक्ष्य भारतीय मूल के 75 प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों और तकनीशियनों (NRI/IOC/PIO) को उनके घरेलू देशों में अनुसंधान करने में सहायता करना है.

वैभव फेलो जल्द ही भारतीय शैक्षणिक संस्थानों से जुड़ेंगे. ये सभी फेलो भारत सरकार द्वारा निर्धारित प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में उन्नत अनुसंधान पर केंद्रित एक सहयोगी नेटवर्क विकसित करने में मदद करेंगे. वो संयुक्त अनुसंधान के माध्यम से प्रमुख समस्याओं का समाधान करेंगे और शोध की सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करेंगे. फेलोशिप में यात्रा, आवास, आकस्मिकताएं और तीन साल तक 400,000 रुपये (5000 डॉलर) का मासिक अनुदान शामिल है. हर फेलो अपने सहयोग के लिए एक भारतीय संस्थान को चुन सकता है और जिस परियोजना पर काम कर रहा है, उसके लिए तीन साल तक सालाना दो महीने तक समर्पित कर सकता है.

आगे बढ़ने का रास्ता

पिछले कुछ दशकों में, तकनीकी प्रगति की वजह से विकसित देशों में आईटी क्षेत्र में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई. इससे स्थानीय समुदायों को तो लाभ हुआ ही है, साथ ही कर राजस्व में भी बढ़ोतरी हुई है. कई लोगों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों में प्रोग्रामर, प्रोडक्ट मैनेजर और विश्लेषक के रूप में नौकरियां मिली हैं. अफ्रीका अपनी घरेलू आईटी कंपनियों का समर्थन करके इस सफलता को दोहरा सकता है. फिर चाहे वो कंपनियां प्रयोगशाला नवाचारों, स्टार्टअप्स या शैक्षिक परियोजनाओं से खड़ी हुई हों. इन कंपनियों को लेकर ये दृष्टिकोण अफ्रीकियों, विशेषकर नए स्नातकों के लिए नौकरी के अधिक अवसर पैदा करेगा.

अफ्रीकी देशों को समृद्ध अर्थव्यवस्था बनाने और संस्कृतियों को बदलने के भारतीय प्रवासियों के इतिहास से प्रेरणा लेनी चाहिए. अपने प्रवासियों को वैज्ञानिक अनुसंधान में मदद करके अफ्रीका भी इन उद्देश्यों को हासिल कर सकता है. 

इसके अलावा, अफ्रीकी देशों को प्रवासियों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी में शामिल करके अपनी ग्लोबल सॉफ्ट पावर को बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए. इससे एक मजबूत ज्ञान अर्थव्यवस्था (नॉलेज इकोनॉमी) का निर्माण हो सकता है. इस सहयोग से वित्तीय सहायता, तकनीकी सहायता और विचारों का आदान-प्रदान होना चाहिए. चूंकि आने वाले दशकों में अफ्रीकी महाद्वीप को महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, ऐसे में एक शक्तिशाली संसाधन के रूप में प्रवासियों का लाभ उठाना महत्वपूर्ण है. अगले 25 वर्षों में 2.5 अरब की अनुमानित आबादी के साथ, अफ्रीका को अपने वैश्विक समुदाय की विशेषज्ञता को महत्व देते हुए विज्ञान और इंजीनियरिंग पर आधारित नए समाधान विकसित करने होंगे.

अफ्रीका अपने सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देने में भारतीय प्रवासियों की वैश्विक सफलता से काफ़ी कुछ सीख सकता है. अपने प्रवासियों की उद्यमशीलता की भावना का इस्तेमाल कर अफ्रीकी देश आर्थिक विकास को आगे बढ़ा सकते हैं. सतत विकास लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं. अफ्रीकी देशों को समृद्ध अर्थव्यवस्था बनाने और संस्कृतियों को बदलने के भारतीय प्रवासियों के इतिहास से प्रेरणा लेनी चाहिए. अपने प्रवासियों को वैज्ञानिक अनुसंधान में मदद करके अफ्रीका भी इन उद्देश्यों को हासिल कर सकता है. 


समीर भट्टाचार्य ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

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