Author : Kabir Taneja

Published on Jul 20, 2022 Updated 0 Hours ago

I2U2 समूह इस क्षेत्र में गेम चेंजर साबित हो सकता है क्योंकि यह सदस्य देशों को सहयोग के नए क्षेत्र की रूपरेखा तय करने का मंच उपलब्ध करवाता है.

I2U2 शिखर सम्मेलन: पश्चिमी एशिया के जटिल भू-राजनीतिक माहौल में भू-अर्थशास्त्र सहयोग की क़वायद

I2U2 समूह के देशों ने, जिसमें ‘I2’ अर्थात इज़राइल और इंडिया और ‘U2’ अर्थात यूनाइटेड स्टेट्स (US) एवं संयुक्त अरब अमीरात (UAE) शामिल हैं, 14 जुलाई को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के इजराइल दौरे के दौरान अपना पहला वर्चुअल शिखर सम्मेलन किया.

अक्टूबर 2021 में I2U2 के विदेश मंत्रियों की बैठक होने के बाद इस समूह को लेकर एक तरह से खामोशी छा गई थी. यह खामोशी इसलिए भी आश्चर्यजनक थी क्योंकि विशेषज्ञों ने इस नवगठित समूह को ‘मिडिल ईस्ट क्वॉड’ अथवा ‘वेस्ट एशिया का क्वॉड’ कहा था.

अक्टूबर 2021 में I2U2 के विदेश मंत्रियों की बैठक होने के बाद इस समूह को लेकर एक तरह से खामोशी छा गई थी. यह खामोशी इसलिए भी आश्चर्यजनक थी क्योंकि विशेषज्ञों ने इस नवगठित समूह को ‘मिडिल ईस्ट क्वॉड’ अथवा ‘वेस्ट एशिया का क्वॉड’ कहा था. इस खामोशी के बाद शिखर हुई यह शिखर स्तरीय वार्ता एक स्वागतयोग्य पहल थी.

इसमें शामिल चारों सदस्य देशों ने सहयोग के छह महत्वपूर्ण क्षेत्रों का चयन किया है, ताकि इन क्षेत्रों को लेकर अगले दौर की बातचीत की जा सके. भू-अर्थशास्त्र  को केंद्र में रखकर सहयोग के लिए जल, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन तथा अंतरिक्ष सहयोग क्षेत्र के प्रोजेक्ट्स को पायलट प्रोजेक्ट्स के रूप में चुना गया है. यह प्रोजेक्ट्स अंतरराष्ट्रीय आर्थिक स्थिरता, जलवायु परिवर्तन, अस्थिर ऊर्जा और खाद्यान्न बाजार के तहत व्यापक वैश्विक आयामों में काम करेंगे जिन्होंने ग्लोबल साऊथ को दुनिया के अन्य विकसित हिस्सों के मुकाबले ज्यादा प्रभावित किया हैं. इजराइल के प्रधानमंत्री यैर लैपिड ने कहा कि क्वॉड व्यवस्था ही तेजी से निर्णय लेने के लिए सही विकल्प है. ऐसा कहते हुए संभवत: वे परोक्ष रूप से दुनिया के जटिल हालातों में संयुक्त राष्ट्र (UN) अथवा G20 जैसे बड़े समूहों की तीव्रतापूर्ण और पुख्ता निर्णय लेकर उस पर अमल करने की क्षमता पर ही सवाल खड़ा कर रहे थे.

भू-अर्थशास्त्र  पहलू

नि:संदेह I2U2 समूह के गठन में 2020 में तय हुए अब्राहम अकॉर्ड पर हुए हस्ताक्षरों ने अहम भूमिका अदा की. इस समझौते के तहत इजराइल और संयुक्त अरब अमीरात की अगुवाई में कुछ अरब देशों के समूह के बीच आधिकारिक सहयोग और मान्यता की शुरुआत हुई थी. इस समूह का उद्देश्य साफतौर पर ऐसे क्षेत्रों में कुशल सहयोग को बढ़ावा देना था, जो दोनों क्षेत्रों की आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देने में परस्पर सहयोगी साबित हो. आज इजराइल के पास अपने यहां उपलब्ध तकनीकी उपकरणों और साजो-सामान को दुबई जैसे आर्थिक रूप से संपन्न बाजार में उपलब्ध करवाने का अवसर मौजूद है. इसका सबसे पहला लाभ तो खाड़ी के देशों को ही मिल रहा है. मसलन इजराइल की ओर से उपलब्ध करवाई जाने वाली सुरक्षा प्रौद्योगिकी में क्षेत्र के बहरीन जैसे देश ने रुचि दिखाई है. वह इजराइली ड्रोन और एंटी ड्रोन सिस्टम में रुचि इसलिए दिखा रहा है ताकि वह ईरान की ओर से पेश होने वाले खतरे का मुकाबला करने के लिए तैयार रह सके. हालांकि, इजराइल और कुछ हद तक UAE समेत अन्य खाड़ी देश अपनी रोजमर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बड़ी मात्रा में सामान का आयात करते हैं.

शिखर सम्मेलन के महत्वपूर्ण निर्णयों में से एक है संयुक्त अरब अमीरात का भारत के विभिन्न हिस्सों में हाईटेक इंटीग्रेटेड फूड पार्क में दो बिलियन अमेरिकी डॉलर्स के निवेश का निर्णय. इस वजह से संभावित UAE-इजराइल के सरकारी और निजी क्षेत्र के सहयोग से न केवल भारतीय कृषि क्षेत्र को नई प्रौद्योगिकी उपलब्ध होगी, बल्कि इजराइल, UAE और उनके क्षेत्र के अन्य देशों को महत्वपूर्ण खाद्य सुरक्षा क्षमता भी मिल सकेगी.

कोविड-19 की वजह से आपूर्ति श्रृंखला में उत्पन्न हुई बाधा, रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध और इसके साथ ही अब चीन के स्थान पर वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग क्षमताओं को अलग-अलग देशों में विकसित करने की योजनाओं के चलते I2U2 जैसे छोटे ‘बहुपक्षीय’ समूह का महत्व बढ़ने लगा है. शिखर सम्मेलन के महत्वपूर्ण निर्णयों में से एक है संयुक्त अरब अमीरात का भारत के विभिन्न हिस्सों में हाईटेक इंटीग्रेटेड फूड पार्क में दो बिलियन अमेरिकी डॉलर्स के निवेश का निर्णय. इस वजह से संभावित UAE-इजराइल के सरकारी और निजी क्षेत्र के सहयोग से न केवल भारतीय कृषि क्षेत्र को नई प्रौद्योगिकी उपलब्ध होगी, बल्कि इजराइल, UAE और उनके क्षेत्र के अन्य देशों को महत्वपूर्ण खाद्य सुरक्षा क्षमता भी मिल सकेगी. इस वजह से इन देशों को जटिल अंतरराष्ट्रीय कमोडिटिज ट्रेड फ्रेमवर्क में होने वाले उतार चढ़ाव से खुद को महफूज़ रखने का अवसर भी मिलेगा. इसके बदले में भारत को अब UAE के माध्यम से और अपरोक्ष रूप से US के सहयोग से, आबु धाबी, जो की खाड़ी देशों में सबसे सशक्त राजधानी के रूप में पहचाना जाता है, में उत्पादक संघ OPEC तथा OPEC+ जैसे इकोसिस्टम के समक्ष अपनी बात मजबूती से रखने का मौका मिलेगा. ऐसे में जहां खाड़ी देशों को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध होगी, वहीं भारत को ऊर्जा सुरक्षा मिलेगी.

चुनौतियों के बीच रणनीतिक अवसर

I2U2 के भविष्य की अपार संभावनाओं के बीच नई दिल्ली को इस तथ्य को भी स्वीकारना होगा कि मध्य पूर्व की क्षेत्रीय भू-राजनीतिक स्थिति में वह रणनीतिक रूप से अपेक्षाकृत बाहरी ताकत के रूप में जाना जाता रहा है. पहला I2U2 उस वक्त हुआ है जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन इस क्षेत्र में एक बेहद नाज़ुक स्थिति में यात्रा पर आए थे. आज अनेक खाड़ी देश अमेरिका के साथ एक नए रणनीतिक ढांचे की उम्मीद कर रहे हैं ताकि ईरान की ओर से कोई सैन्य खतरा पेश आने की स्थिति में अमेरिका उन्हें अनिवार्य सुरक्षा प्रदान कर सके. दूसरी ओर बाइडेन को यह संतुलन बनाए रखना है कि वह इस क्षेत्र में अहम भूमिका तो अदा करें, लेकिन यहां सैन्य तौर पर गुत्थमगुत्था न हो. हाल ही में अफगानिस्तान से अमेरिका की अस्त-व्यस्त वापसी की वजह से खाड़ी देशों की यह चिंता बढ़ी है कि गारंटी के बगैर भविष्य में अमेरिका का समर्थन क्या मायने रखेगा. इसी वजह से खुद को रणनीतिक दृष्टि से अधिक मजबूत और डाइवर्सिफाई बनाने के लिए खाड़ी देश रूस और चीन जैसे देशों को भी मध्य पूर्व क्षेत्र में खड़ा होने का मौका दे रहे हैं. ऐसा करने से वाशिंगटन की बेचैनी बढ़ रही है.

भले ही शिखर सम्मेलन के दौरान लैपिड ने अपनी टिप्पणी में ‘क्वॉड’ को एक अच्छा समूह बताया था, लेकिन अमेरिका ने इसकी तुलना सीधे ओरिजनल क्वॉड से की थी, जहां इंडो-पैसिफिक में अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया एक ऐसे समूह के सदस्य हैं, जो एशिया में चीन के प्रभाव को सीमित करने के लिए बनाया गया है.

भले ही शिखर सम्मेलन के दौरान लैपिड ने अपनी टिप्पणी में ‘क्वॉड’ को एक अच्छा समूह बताया था, लेकिन अमेरिका ने इसकी तुलना सीधे ओरिजनल क्वॉड से की थी, जहां इंडो-पैसिफिक में अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया एक ऐसे समूह के सदस्य हैं, जो एशिया में चीन के प्रभाव को सीमित करने के लिए बनाया गया है. अमेरिकी सुरक्षा सलाहकार जैक सुलीवान ने सीधे तौर पर यह कहा है कि ओरिजनल क्वॉड के बाद अब I2U2 का गठन अर्थात ‘पश्चिम एशियाई क्वॉड’ का गठन हुआ है. उनका यह बयान नई दिल्ली के दो अलग-अलग क्षेत्रों की विविध और रणनीतिक दृष्टि से भिन्न धारणाओ के अनुकूल नहीं कहा जा सकता. अमेरिका की ओर से प्रायोजित और समर्थित इजराइल-अरब सुरक्षा समझौते के बीच भारत का फंसना उसे परेशानी में डाल सकता है. इसका कारण यह है कि भारत हमेशा से ही मध्य पूर्व में अपनी ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ के लिए पहचाना जाता है जो उस क्षेत्र के हर विवाद में तटस्थ रहा है. हालांकि अब गुटनिरपेक्ष धारणा बीते हुए कल की बात हो गई है, लेकिन इसे आज भी भारत की पश्चिम एशिया नीति के लिए सामायिक माना जा सकता है. अब्राहम अकॉर्ड पर हस्तक्षार होने के बाद क्षेत्र में काफी हद तक स्थिरता देखी जा रही है, लेकिन इसने इस क्षेत्र को दो मुख्य धड़ों में बांट दिया है. इसमें एक है ईरान का और दूसरा उसके खिलाफ यानी एंटी ईरान वाला धड़ा. ऐसा कुछ समानांतर कूटनीति प्रयासो के बावजूद है जिसमें साऊदी और ईरान के बीच बगदाद की मेजबानी में होने वाली बातचीत तथा यूएई और तेहरान के बीच कुछ मुद्दों पर लगातार जारी सहयोग शामिल है. इन बातों को लेकर न केवल नई दिल्ली की दृष्टि से चिंताएं जताई जा रही हैं, बल्कि यूरोप में भी विशेषज्ञ इसको लेकर आगाह कर रहे हैं. उनका कहना है कि वाशिंगटन की पहल पर बन रहे खाड़ी-ईरान सुरक्षा समझौते का समर्थन करने के बजाय यूरोपीय राजधानियों को क्षेत्र में युद्ध के माहौल की तीव्रता को कम करने की दिशा में काम जारी रखना चाहिए.

अब्राहम अकॉर्ड स्वत: ही काफी भारी भू-राजनीतिक  उठापटक फुर्ती से कर रहा है, ऐसे में बाहरी तत्व माने जाने वाले नई दिल्ली को इस मामले में सजग रहने की जरूरत है .

 

निष्कर्ष

I2U2 न केवल कागजों पर बल्कि हकीकत में भी काफी मायने रखता है. भारत के लिए इसके कारण इजराइल, खाड़ी देश और अमेरिका के साथ अच्छे संबंध रखकर दोनों के लिए आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने का अवसर उपलब्ध हुआ है. हालांकि भू-अर्थशास्त्र  और आर्थिक संबंध  को हम भू-राजनीति  से अलग करके नहीं देख सकते. और मध्य पूर्व में अब्राहम अकॉर्ड के बावजूद भू-राजनीति अब भी परिवर्तनशील ही है, क्योंकि ईरान संकट के और भी जटिल होने के आसार हैं. इसका कारण यह है कि JCPOA 2.0 की संभावनाएं कम ही दिखती हैं. इन सारे कारणों के बावजूद भारत को अब ‘सामान्य’ हो रहे अरब-इजराइल क्षेत्र के साथ अपने आर्थिक संबंधों को तेज़ी के साथ बेहतर करने से पीछे नहीं हटना चाहिए. लेकिन यह चिंता अब भी बनी हुई है कि अब्राहम अकॉर्ड स्वत: ही काफी भारी भू-राजनीतिक  उठापटक फुर्ती से कर रहा है, ऐसे में बाहरी तत्व माने जाने वाले नई दिल्ली को इस मामले में सजग रहने की जरूरत है .

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.