22 फरवरी को अबू धाबी में आई2यू2 (I2U2) व्यापार मंच का उद्घाटन हुआ, जहां इसके सदस्य देश एकत्र हुए जिन्हें आई2यू2 समूह के रूप में जाना जाता है: ये देश हैं- भारत, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस). इस समूह का गठन 2022 में हुआ था और इसका उद्देश्य तकनीक, ऊर्जा, परिवहन, अंतरिक्ष, जल और खाद्य सुरक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना था. इस साझेदारी का उद्भव पश्चिम एशिया (जिसे मध्य पूर्व के रूप में भी जाना जाता है) में बदलती भू-राजनीतिक गतिविधियों के बीच हुआ, जिनमें शामिल था इज़राइल और यूएई के बीच संबंधों का सामान्य होना और भारत का एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय खिलाड़ी के रूप में इस मंच का सदस्य होना. माना जा रहा है कि आने वाले समय में होने वाले महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक बदलावों की स्थिति में आई2यू2 (I2U2) यह पश्चिम एशिया के वृहद क्षेत्र के लिए एक सुरक्षा चक्र के रूप में काम करेगा. इसलिए, आई2यू2 व्यापार मंच निजी क्षेत्र के नियंत्रण वाले ऐसी संस्थागत व्यवस्था स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है जिसे सहमति-बनाकर क्षेत्रीय स्तर पर विस्तार दिया जा सकता है.
आई2यू2 व्यापार मंच निजी क्षेत्र के नियंत्रण वाले ऐसी संस्थागत व्यवस्था स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है जिसे सहमति-बनाकर क्षेत्रीय स्तर पर विस्तार दिया जा सकता है.
आई2यू2 व्यापार मंच का आर्थिक शासन कौशल
आई2यू2 व्यापार मंच सरकारों और आई2यू2 समूह के निजी क्षेत्र प्रतिनिधियों के बीच संवाद की सुविधा प्रदान करता है, जिसके माध्यम से व्यापार सहयोग के अवसरों को प्रोत्साहित किया जाता है. यह क्षेत्र के सामान्यीकरण के सकारात्मक प्रभाव को दर्शाता है. इज़राइली विदेश मंत्रालय के महानिदेशक रोनेन लेवी ने बताया कि कैसे मंच ने मध्य पूर्व और इससे भी आगे समृद्धि के लिए अब्राहम अकॉर्ड और अन्य आपसी समझौतों से पैदा होने वाली संभावनाओं की ओर ध्यान दिलाया. प्रारंभिक सत्र में संभावित साझेदारियों पर विचार किया गया, जैसे कि भारत में एकीकृत कृषि सुविधाओं में 2 अरब डॉलर के निवेश और गुजरात में 300 मेगावॉट के एकीकृत पवन और सौर विद्युत प्लांट के विकास के बारे में. आई2यू2 व्यापार मंच का उद्देश्य पश्चिमी एशिया, दक्षिण एशिया या वृहद क्षेत्र में आई2यू2 को पश्चिम एशिया की भू-राजनीतिक और आर्थिक एकीकरण करने में सक्षम एक मंच में बदलना है. सदस्य देशों और उनके निजी क्षेत्र प्रतिनिधियों को एक जगह लाकर मंच गतिमान क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं के उद्देश्यों को एक दिशा में देखने का अवसर प्रदान करता है. पारंपरिक बहुपक्षीय व्यापार समझौतों से इतर, जो विनियमन और बाज़ार उपलब्धता पर ध्यान केंद्रित करते हैं, मंच आई2यू2 समूह के भू-राजनीतिक उद्देश्यों के लिए नीति निर्माताओं और निजी क्षेत्र प्रतिनिधियों के बीच संवाद को सुविधाजनक बनाकर, एक आधार प्रदान करता है, इसके साथ ही निजी पूंजी और विशेषज्ञों को लामबंद कर साझा प्रयासों को आगे बढ़ाता है. भू-राजनीतिक तनावों के बीच द्विपक्षीय और बहुपक्षीय आर्थिक सहयोग से जुड़ी चुनौतियों के इतिहास को देखते हुए ये भू-राजनीतिक उद्देश्य बहुत महत्वाकांक्षी नज़र आते हैं.
वाशिंगटन में व्यापार का एक नया युग
संयुक्त राज्य अमेरिका की चीन नीति की तरह, व्यापार नीति में भी उल्लेखनीय बदलाव आया है, जिसमें दोनों दल एकमत हैं, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इसे शुरू किया और बाद में राष्ट्रपति बाइडेन ने इसे जारी रखा. इस परिवर्तन में औद्योगिक क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जा रही है और मुक्त व्यापार को स्वागत करने को लेकर हिचक दिख रही है, साथ ही यह श्रम के इस्तेमाल को बढ़ावा देना पसंद करता है. यह अमेरिका के मौजूदा व्यापार नज़रिये की दिशा को दिखाता है और माना जा रहा है कि यह 2024 के चुनाव के बाद भी जारी रहेगा. अमेरिकी विदेश नीति का समर्थन करने की ओर चलने पर अमेरिकी बाज़ार में पहुंच बनने देने, के युग की समाप्ति हो रही है. आई2यू2 व्यापार मंच भी इस बदलाव के मामले में कोई अपवाद नहीं है. इस मंच के माध्यम से, अमेरिका ने एक अधिकर चुनौतीपूर्ण लेकिन ज़्यादा व्यावहारिक रास्ता चुना है जो इच्छा और क्षमता को बेहतर ढंग से संतुलित करता है. वाशिंगटन का लक्ष्य यह है कि वह अमेरिका के नेतृत्व वाले व्यापारिक साझेदारी के लाभों को प्रदर्शित करें और साथ ही पूरे पश्चिम एशिया में चीन के आर्थिक साझीदार बनने के अनुरोधों को कमज़ोर किया जाए.
पश्चिम एशिया में आईपीईएफ़ की प्रतिकृति बनाना
आई2यू2 व्यापार मंच की पारंपरिक व्यापार समझौतों से तुलना नहीं की जा सकती. अपनी प्रकृति में यह भारत-प्रशांत आर्थिक ढांचा (Indo-Pacific Economic Framework- IPEF) के नज़दीक है, जिसका लक्ष्य अमेरिका और कई एशियाई अर्थव्यवस्थाओं (भारत समेत) के बीच व्यापार और प्रौद्योगिकी सहयोग को मजबूत करना है, देशों के बीच बाज़ार पहुंच के बारे में सौदेबाज़ी करने के बजाय. अमेरिका और इसके प्रशांत सहयोगियों के बीच लचीलापन, स्थायित्व, समावेशिता, आर्थिक विकास, निष्पक्षता और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए आईपीईएफ़ प्रतिबद्ध है. इसके सदस्यों में कई देश शामिल हैं, जिनमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई दारुस्सलाम, फ़िजी, भारत, इंडोनेशिया, जापान, कोरिया गणराज्य, मलेशिया, न्यूज़ीलैंड, फ़िलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम हैं. इस ढांचे के चार मूल स्तंभ हैं: जुड़ी हुई अर्थव्यवस्था, लोचशील अर्थव्यवस्था, स्वच्छ अर्थव्यवस्था और न्यायसंगत अर्थव्यवस्था. भविष्य की बातचीत व्यापार, आपूर्ति श्रृंखला, स्वच्छ ऊर्जा, कार्बन मुक्तिकरण , इंफ़्रास्ट्रक्चर, और कर और भ्रष्टाचार-विरोधी उपायों पर केंद्रित होगी. ख़ास बात यह है कि आईपीईएफ़ अपने साझीदारों पर चारों मूल स्तंभों को लागू करने की अनिवार्यता लगाने के बजाय में यह लचीलापन प्रदान करता है कि वह अपनी रुचि के अनुसार स्तंभ का चुनाव कर उसे लागू कर सकें.
वाशिंगटन का लक्ष्य यह है कि वह अमेरिका के नेतृत्व वाले व्यापारिक साझेदारी के लाभों को प्रदर्शित करें और साथ ही पूरे पश्चिम एशिया में चीन के आर्थिक साझीदार बनने के अनुरोधों को कमज़ोर किया जाए.
वैश्विक भू-राजनीतिक और आर्थिक विनिमय के चौराहे पर मौजूद अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के एक नए युग के साथ अनुकूल होने की क्षमता के चलते आई2यू2 व्यापार मंच की आईपीईएफ़़ से तुलना की जा सकती है. जैसे-जैसे आई2यू2 व्यापार मंच अपने चार सदस्य राज्यों के बीच अंतर-प्रादेशिक आर्थिक समन्वय को बढ़ावा दे रहा है, इस तरक्की को पश्चिमी एशिया में सक्रिय आर्थिक खिलाड़ियों तक पहुंचाने और विस्तृत क्षेत्र में एक-दूसरे से जुड़ने को प्रोत्साहित करने का ऐसा मौका बन रहा है जिसे पाने की कोशिश की जानी चाहिए. इस भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक संरचना में अधिक राष्ट्रों, विशेष रूप से मिस्र और सऊदी अरब, को शामिल करना पश्चिम एशिया के आर्थिक परिदृश्य की क्षमताओं को बदल देने के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व होगा. मध्य पूर्व में पहले ही ऐसी ऐतिहासिक पहल हो चुकी हैं जो आई2यू2 के विस्तार पाते ढांचे में अंतर-प्रादेशिक आर्थिक समन्वय के लिए प्रेरणा का काम कर सकती हैं. एक उल्लेखनीय उदाहरण अमेरिका द्वारा स्थापित क्वालिफ़ाइंग इंडस्ट्रियल ज़ोन्स (क्यूआईज़ेड) हैं जो मिस्र, जॉर्डन, और इज़राइल में विनिर्माण गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए बनाए गए थे. इन क्यूआईज़ेड को एक-दूसरे पर आर्थिक निर्भरता को बढ़ावा देने और उनके शांति समझौतों की सुरक्षा व्यवस्थाओं से परे राजनीतिक संबंधों को मजबूत करने के लिए तैयार किया गया था.
पश्चिम एशिया में आर्थिक लंगर के रूप में भारत
बहुपक्षीय आर्थिक संरचनाओं में भारत की भागीदारी सुविचारित है, जैसा कि दिल्ली के आईपीईएफ़ के व्यापार स्तंभ से बाहर रहने के फ़ैसले से पता चलता है. केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के अनुसार, भारत इस निर्णय के साथ “भारत के लोगों और व्यापारों के राष्ट्रीय हित को ध्यान में रख रहा है”. वह इसके ढांचे की संभावित “शर्तेो” का ज़िक़्र करते हैं जो विकासशील देशों के प्रति भेदभाव पूर्ण हो सकती हैं. इसमें चिंता, व्यापार से संबंधित पर्यावरण और श्रम मुद्दों को लेकर संभावित बाध्य प्रतिबद्धताओं को लेकर है. इसके बदले पश्चिम एशिया में भारत आईपीईएफ़ जैसे मॉडल के लिए तैयार हो है जिसके प्रारूप में भारत को नेतृत्व करने का अधिक मौका मिलता है और उससे दिल्ली के रणनीतिक और आर्थिक उद्देश्यों के साथ अनुकूलता सुनिश्चित करने की क्षमता बढ़ती है. इस नज़रिये से देखें तो, आई2यू2 पश्चिम एशिया में भारत को आर्थिक रूप से नेतृत्व करने और खुद को पश्चिम एशिया में आर्थिक लंगर (जो विशाल जहाज़ को अपनी जगह पर थामे रहे) के रूप में स्थापित करने का मंच हो सकता है. एक विस्तृत प्रारूप में मिस्र और सऊदी अरब को शामिल कर इसे आगे बढ़ाने के लिए एक लघुपक्षीय संरचना में लाया जा सकता है जो उस भू-आर्थिक दृष्टिकोण के साथ चले जिसे भारत और अन्य आई2यू2 सदस्यों ने मिलकर मज़बूती दी है.
पश्चिम एशिया में भारत आईपीईएफ़ जैसे मॉडल के लिए तैयार हो है जिसके प्रारूप में भारत को नेतृत्व करने का अधिक मौका मिलता है और उससे दिल्ली के रणनीतिक और आर्थिक उद्देश्यों के साथ अनुकूलता सुनिश्चित करने की क्षमता बढ़ती है.
निष्कर्ष
पश्चिम एशियाई क्षेत्रीय ढांचे की स्थापना का लक्ष्य प्राथमिक रूप से आर्थिक समन्वय को प्राथमिकता देना होना चाहिए. हालांकि, इस प्रक्रिया में समय उल्लेखनीय रूप से काफ़ी ज़्यादा लग सकता है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि आई2यू2 व्यापार मंच के साथ शुरुआत की जाए. यह मंच बाज़ारोन्मुख नीतियों को अपनाने, जो कि क्षेत्र में निवेश, कुशल पेशेवर और उन्नत तकनीकों को आकर्षित करेगा, का बखान कर इस प्रक्रिया को शुरू करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. इसका उद्देश्य होना चाहिए कि ये आधारभूत संरचनाएं और व्यावसायिक नेटवर्कों को प्रोत्साहित करे जो धीरे-धीरे आर्थिक एकीकरण की ओर बढ़ें और क्षेत्रीय परस्पर निर्भरता को बढ़ावा दें. लंबे समय में, आई2यू2 व्यापार मंच में यह संभावना है कि अन्य क्षेत्रीय शक्तियों को शामिल करें और एक बढ़ने वाले नज़रिये को अपनाएं जो इसके सदस्य देशों के हितों का प्रतिनिधित्व करता हो और अर्थवान सहयोग को संभव बनाता है. क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को प्राथमिकता देकर, आई2यू2 व्यापार मंच पश्चिमी एशिया की क्षेत्रीय संरचना के लिए मज़बूत आधार स्थापित कर सकता है जो टिकाऊ आर्थिक विकास को आधार देता है और अपने भागीदारों के बीच सहयोग और परस्पर निर्भरता को प्रोत्साहित करता है.
मोहम्मद सोलिमान वॉशिंगटन के मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट में रणनीतिक तकनीकों और साइबर सुरक्षा कार्यक्रम के निदेशक हैं
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