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चीन और भारत के बीच ब्रह्मपुत्र नदी के जल के बंटवारे के उभरते भूराजनीतिक निहितार्थ क्या हैं?
यह लेख The China Chronicles श्रृंखला का 55 वीं हिस्सा है।
खुद को विश्वसनीय और शांतिपूर्ण पड़ोसी के रूप में प्रस्तुत करने के चीन के प्रयास कई मायनों में विफल रहे हैं। यह बात ब्रह्मपुत्र/यारलंग त्सांगपो नदी के जल बंटवारे के मामले से अधिक कहीं ओर जाहिर नहीं होती। डोकलाम गतिरोध से पहले और उसके बाद ब्रह्मपुत्र से जुड़े आंकड़ों को साझा नहीं करने तथा तिब्बत में यारलंग त्सांग्पो से शिनझियांग तक पानी ले जाने वाली 1,000 किलोमीटर लम्बी सुरंग के पीछे की मंशा स्पष्ट न होने की वजह से सीमा के आर⎯पार बहने वाली नदियों के जल के संबंध में चीन के स्वघोषित ‘जिम्मेदार’ व्यवहार की कलई खुल गई है। सरहद के आर⎯पार बहने वाली नदियों के जल से संबंधित भारत⎯चीन विशेषज्ञ स्तरीय तंत्र (ईएलएम) की हाल ही में सम्पन्न (26⎯27 मार्च 2018) 11वीं बैठक के बाद पानी संबंधी आंकड़ों को साझा करने का सिलसिला फिर से शुरू हो चुका है, लेकिन भारत⎯चीन जल संबंधों के भविष्य की राह के बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न उठ रहे हैं। चीन और भारत के बीच ब्रह्मपुत्र के जल के बंटवारे के उभरते भूराजनीतिक निहितार्थ क्या हैं?
ऐसा नहीं है कि चीन और भारत के बीच जल सहयोग से संबंधित कूटनीतिक वार्ताओं में हमेशा भूराजनीतिक संबंधों वाली रूपरेखा का ही अनुसरण होता आया हो। आदर्श रूप से, नदी तटीय देशों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध, सीधे तौर पर सरहद के आर⎯पार बहने वाले जल से संबंधित सहयोग की संभावनाओं के अनुपात में होते हैं। लेकिन हर बार ऐसा नहीं हुआ।
1950 के दशक में राजनीतिक संबंधों में सुधार के साथ ही संयुक्त जल और बाढ़ प्रबंधन तथा आपदा की रोकथाम भारत और चीन के बीच सहयोग का कारण रहे। जल सहयोग के बारे में सभी तरह की वार्ताएं 1962 में चीन⎯भारत युद्ध के दौरान अवरुद्ध हो गईं। संबंधों में सुधार होते ही, चीन और भारत ने 2002 में ब्रह्मपुत्र/यारलंग त्सांगपो नदी के संबंध में जल संबंधी जानकारी के आदान⎯प्रदान के बारे में पहले सहमति ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
2000 के दशक के आरंभ तक राजनीतिक⎯जल समीकरण जुड़े रहे, उसके बाद जल और राजनीतिक आदान⎯प्रदान कम से कम ऊपरी तौर पर ही सही, लेकिन अलग⎯अलग होने शुरु हो गए। बाद की अवधि (2002⎯2012) के दौरान, विवादित जल संबंधों का व्यापक राजनीतिक संबंधों पर प्रभाव बेहद कम रहा। ब्रह्मपुत्र की धारा के ऊपरी हिस्से में चीनी त्सांगपो बांध के प्रभाव के बारे में भारत की आशंकाएं उस समय ज्यादा थीं, जब चीन और भारत सीमा विवाद के समाधान के लिए व्यवस्था, आर्थिक एवं सामरिक भागीदारियां कर रहे थे और द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास शुरु कर रहे थे।
2000 के दशक के आरंभ तक राजनीतिक⎯जल समीकरण जुड़े रहे, उसके बाद जल और राजनीतिक आदान⎯प्रदान कम से कम ऊपरी तौर पर ही सही, लेकिन अलग⎯अलग होने शुरु हो गए।
अन्य अवसरों पर, ऐसे कई उदाहरण हैं, जब तनावपूर्ण राजनीतिक संबंधों के बावजूद जल संबंध काफी सहजता से आगे बढ़ते रहे हैं। 2013 में, लद्दाख की देबसांग घाटी में चीनी घुसपैठ के तत्काल बाद, चीन और भारत ने ब्रह्मपुत्र नदी के जल बंटवारे के आंकड़ों को साझा करने से संबंधित 2002 के सहमति ज्ञापन का नवीकरण और विस्तार किया। ईएलएम के तहत नियमित बैठकों के साथ इस दिशा में अगले कुछ वर्षों तक प्रगति होती रही। राजनीतिक उथल⎯पुथल के बावजूद, 2015 में, चीन और भारत ने लेंग्क्वेन जांग्बो/सतलुज नदी के जल के बंटवारे पर एक अन्य समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
अतीत से आगे बढ़ते हुए, राजनीतिक और जल संबंधी सम्पर्कों का अलग⎯अलग रखे जाने का सिलसिला बरकरार रह पाने की संभावना नहीं हैं। चीन⎯भारत सीमा विवाद के प्रबल होते ही, जल सहयोग पर भी उसका नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना बढ़ेगी। जैसा कि हाल के डोकलाम गतिरोध के मामले में चीन की ओर से ब्रह्मपुत्र के बाढ़ संबंधी आंकड़े जारी नहीं किए जाने से पहले ही जाहिर हो चुका है कि सीमा के आर⎯पार बहने वाली नदियों का इस्तेमाल सीमा विवाद से संबंधित वार्ता को प्रभावित करने वाले सामरिक साधनों के तौर पर किया जाएगा।
ऐतिहासिक रुझान भले ही इस ओर इशारा करते प्रतीत होते हों कि ब्रह्मपुत्र से संबंधित तनाव चीन और भारत के बीच के व्यापक राजनीतिक संबंधों का छोटा सा अंश ही है। हालांकि, भविष्य में जल संबंधों में ढुलमुल रवैया अपनाने और कुप्रबंधन के भारत के लिए ज्यादा गंभीर भूराजनीतिक निहितार्थ होंगे।
भारतvचीन की जल संबंधी गतिशीलता, मोटे तौर पर अन्य नदी तटीय देशों जैसे बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल और भूटान के साथ भारत के रिश्तों से बंधी है। ब्रह्मपुत्र नदी पर भारत के अधिकारों और हक से जुड़ी मांगों को बांग्लादेश, पाकिस्तान और यहां तक कि नेपाल ने भी ‘पाखण्ड’ करार दिया है, जबकि ‘निचला नदी तटीय देश’ होने के कारण उनकी भी इसी तरह की ही शिकायते हैं। तीस्ता जल संधि को लेकर बांग्लादेश के साथ भारत के संबंध पहले ही लम्बे अरसे से तनावपूर्ण बने हुए हैं तथा पनबिजली बांधों और सिंधु नदी में जल का प्रवाह कम होने के कारण पाकिस्तान के साथ भी उसका टकराव है। इसलिए, जिस तरह भारत साझा नदियों पर अधिकारों को लेकर चीन के साथ वार्ता करता है, उसी तरह उसे भी नदी से सटे निचले देशों के साथ संतुलित, रणनतिक और निष्पक्ष होना होगा
भारत⎯चीन की जल संबंधी गतिशीलता, मोटे तौर पर अन्य नदी तटीय देशों जैसे बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल और भूटान के साथ भारत के रिश्तों से बंधी है। ब्रह्मपुत्र नदी पर भारत के अधिकारों और हक से जुड़ी मांगों को बांग्लादेश, पाकिस्तान और यहां तक कि नेपाल ने भी ‘पाखण्ड‘ करार दिया है, जबकि ‘निचला नदी तटीय देश‘ होने के कारण उनकी भी इसी तरह की ही शिकायते हैं।
एक अन्य रुझान, जो भारत की भूराजनीतिक स्थिति को प्रभावित कर सकता है, वह है चीन द्वारा भारत को असहज स्थिति में छोड़, अपने रुख में बदलाव लाते हुए द्विपक्षीय की जगह बहुपक्षीय जल सहयोग को तरजीह देना। चीन ने 2016 में पड़ोसी देशों से रिश्तों से संबंधित अपनी नीति के अनुरूप मेकोन्ग के तटवर्ती छह देशों के साथ मिलकर लेंत्सेंग मेकोन्ग कमिशन (एलएमसी) की स्थापना की थ। यह कमिशन, एडीबी के नेतृत्व वाले उस मेकोंग नदी आयोग के विकल्प के तौर पर बनाया गया था, जिसे चीन सिरे से खारिज करता आया है। चीन ब्रह्मपुत्र बेसिन में भी इसी से मिलते⎯जुलते चीन⎯नियंत्रित बहुपक्षीय ढांचे की स्थापना पर जोर दे रहा है। चीन 2010 से ही बांग्लादेश के साथ जल प्रबंधन, जल संबंधी आंकड़ों(ब्रह्मपुत्र से संबंधित) को साझा करने, बाढ़ नियंत्रण और आपदा में कमी लाने के संबंध में अपना सम्पर्क बढ़ा रहा है। चीन, अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत पाकिस्तान में पनबिजली परियोजनाओं को वित्तीय सहायता देने को तैयार है, इनमें से एक परियोजना भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित क्षेत्र में है।
इसके विपरीत, भारत, नदी तटीय देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को तरजीह देना जारी रखे हुए है। उसने अपने पूर्वी (बांग्लादेश) और पश्चिमी (पाकिस्तान) नदी तटीय पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में सावधानी बरकरार रखी है। बांग्लादेश और पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक संबंध बेहतर बनाने के प्रयासों के बावजूद भारत को आशंका है कि चीन की घेराबंदी और रुकावट के कारण बातचीत में उसका पक्ष कमजोर पड़ जाएगा।
इसके विपरीत, भारत, नदी तटीय देशों क साथ द्विपक्षीय संबंधों को तरजीह देना जारी रखे हुए है। उसने अपने पूर्वी (बांग्लादेश) और पश्चिमी (पाकिस्तान) नदी तटीय पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में सावधानी बरकरार रखी है।
अन्ततः ब्रह्मपुत्र की धारा के ऊपरी हिस्से पर चीन की उग्र गतिविधियों से उसकी ‘फूट डालो और जीत हासिल करो’यानी सलामी स्लाइसिंग की रणनीति को बल मिल सकता है। दक्षिण पूर्व तिब्बती क्षेत्र और पूर्वोत्तर भारत, दोनों देशों के सबसे अल्पविकसित क्षेत्र हैं। पहले उपयोग के अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार, यदि चीन जल को पहले अपने बंजर क्षेत्रों तक पहुंचाने, बिजली का उत्पादन करने या खेती⎯बाड़ी के इस्तेमाल में लाने में समर्थ हो सके, तो वह ब्रह्मपुत्र नदी के जल के बड़े हिस्से पर दावा कर सकता है। यदि चीन अपने भाग के दक्षिण⎯पूर्वी तिब्बती पठार को विकसित करने में सफल हो जाता है, तो वह न सिर्फ अपनी सैन्य पहुंच को मजबूत बनाएगा, बल्कि अरुणाचल प्रदेश के भूभाग पर अपने दावे को भी सुदृढ़ करेगा, जिसे वह ‘दक्षिण तिब्बत’ कहता है।
इससे कोई इंकार नहीं कि हाल के वर्षों में चीन⎯भारत जल संबंध बेहतर हुए हैं और गहन राजनीतिक तनावों के बावजूद कायम रहे हैं। हालांकि निकट भविष्य में, जलवायु परिवर्तन, पानी के बहाव में कमी, पानी की मांग में वृद्धि, आपदाओं के बार⎯बार और जल्दी⎯जल्दी आने तथा ऐसे कई अन्य कारणों से बेसिन राष्ट्रों को कड़ी चुनौतियों का सामना करना होगा। इनके अलावा, चीन और भारत दोनों सीमा मामलों, आर्थिक संबंधों पर ज्यादा प्रबल रूप से एक⎯दूसरे के साथ सम्पर्क करते रहेंगे तथा क्षेत्र में अपने भूराजनीतिक हितों और प्रभाव को बनाए रखने का प्रयास करते रहेंगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि चीन⎯भारत जल संबंधों के भविष्य की राह बेहद जटिल और उतार⎯चढ़ाव वाली भूराजनीतिक सच्चाइयों के साथ उलझी हुई लगातार मुश्किल हो रही वार्ताओं की ओर इशारा कर रही है। ब्रह्मपुत्र के लिए, भारत को सब होने के बाद में प्रतिक्रिया व्यक्त करने के अपने मौजूदा दृष्टिकोण को छोड़ना होगा और उसकी जगह पहले कदम उठाने की रणनीति अपनानी होगी। भारत को वैसा ही आक्रामक रुख अपनाना होगा, जैसा उसने बीआरआई के मामले में तथा डोकलाम गतिरोध के दौरान उठाया था। साथ ही भारत को सीमा के आर⎯पार बहने वाली नदियों के प्रबंधन की योग्यताएं और क्षमताएं विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए जल बंटवारे की बेहतर पद्धतियों के मानक तय करने होंगे। परिणामस्वरूप, भारत, चीन के साथ वार्ता के दौरान ज्यादा समेकित और लचीला रुख अपनाने में समर्थ हो सकेगा।
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Sonali Mittra is a therapist, specializing in Regression therapy, Inner Child healing, Family Constellations, and Access bars. She is certified by TASSO International, Netherlands, Clover ...
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