Published on Aug 03, 2023 Updated 0 Hours ago

तकनीक और स्वचालन में तेज़ उन्नति संघर्ष और युद्ध के भविष्य को गढ़ना जारी रखेगी. जो देश इन तकनीकों को आगे बढ़ा रहे हैं, उनका एकमात्र लक्ष्य इन्हें हथियार की तरह इस्तेमाल करना और जल्द से जल्द तैनात करना है

#DisruptiveTechnology यानी विध्वंस को बढ़ाने वाले तकनीकों के ज़माने में युद्ध का भविष्य
#DisruptiveTechnology यानी विध्वंस को बढ़ाने वाले तकनीकों के ज़माने में युद्ध का भविष्य

यह लेख रायसीना एडिट 2022 नामक सीरिज़ का हिस्सा है.


यमन और यूक्रेन से लेकर सीरिया, आर्मीनिया और अज़रबैजान तक के लड़ाई के मैदानों से, युद्ध ने 21वीं सदी में अपनी केंद्रीयता मज़बूत कर ली है. ये आधुनिक संघर्ष ज़मीन, हवा, समुद्र और साइबर क्षेत्रों तक फैल गये हैं, जिन्हें जातीय (एथनिक) द्वेष, क्षेत्रों पर अपने अधिकार के दावों और भूराजनीतिक प्रतिस्पर्धा से ख़ुराक मिल रही है. लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि, इन संघर्षों ने भविष्य की युद्धक्षेत्र रणनीति को प्रभावित करने और सैन्य सिद्धांतों (मिलिट्री डॉक्ट्रिन) को स्वरूप देने में विघ्नकारी तकनीकों (disruptive technologies) की बेहद अहम भूमिका प्रदर्शित की है.

तकनीक ने हमेशा युद्ध के तरीक़े में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है; दोनों के बीच लगभग सहजीवी संबंध है. 11वीं सदी में ‘बारूद क्रांति’ के समय से ही, तकनीकी उन्नति ने युद्धक्षेत्र की गतिकी (डाइनैमिक्स) को हमेशा आकार दिया है और सैन्य योजनाकारों को उनके बलों की घातकता बढ़ाने में सक्षम बनाया है. इसके विपरीत, ख़तरे के बदलते वातावरण ने नयी विघ्नकारी तकनीकों की तलाश को प्रेरित किया है.[i]

तकनीक ने हमेशा युद्ध के तरीक़े में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है; दोनों के बीच लगभग सहजीवी संबंध है. 11वीं सदी में ‘बारूद क्रांति’ के समय से ही, तकनीकी उन्नति ने युद्धक्षेत्र की गतिकी (डाइनैमिक्स) को हमेशा आकार दिया है और सैन्य योजनाकारों को उनके बलों की घातकता बढ़ाने में सक्षम बनाया है. 

जब भी सही ढंग से इस्तेमाल किया गया, तकनीक ने मौजूदा सैन्य संतुलन को उलट दिया और अपेक्षाकृत कमज़ोर पक्ष को फ़ायदा पहुंचाया. उदाहरण के लिए, प्यूनिक युद्धों (264-146 ईसा पूर्व) के दौरान, कार्थेज की दुर्जेय समुद्री ताक़त से मुक़ाबिल, रोम ने कार्थेजियाई जहाज़ों को ललकारने और परास्त करने के लिए ‘कोर्वस’ (Corvus) बोर्डिंग डिवाइस विकसित किया. दूसरे मामलों में भी, तकनीकी उन्नति ने सैन्य श्रेष्ठता को सशक्त किया. उदाहरण के लिए, 1940 के दशक में परमाणु हथियारों के आगमन को लीजिए, जिसने अमेरिका और सोवियत संघ की पहले ही श्रेष्ठ सैन्य क्षमताओं को ख़ासा मज़बूत कर दिया.[ii]

तकनीक की जंग (टेक्नो-वॉर)

ये प्रवृत्तियां क़ायम हैं, लेकिन 21वीं सदी के युद्धों को जो चीज़ अलग बना रही है, वह है रोबोटिक्स और स्वायत्तता (ऑटोनॉमी), क्वॉन्टम कंप्यूटिंग, साइबर युद्धकला, कृत्रिम बुद्धि (एआई) इत्यादि जैसी विघ्नकारी तकनीकों का इस्तेमाल. अभी जारी यूक्रेन संघर्ष ने सक्रिय युद्ध (काइनेटिक वॉर) प्रयत्नों को सशक्त करने में इन तकनीकों की बेहद अहम भूमिका प्रदर्शित की है: रूस द्वारा तैनात किये गये KUB-BLA ड्रोन एआई का इस्तेमाल कर निशाने की पहचान कर सकते हैं; एंटी-टैंक हथियारों से लैस यूक्रेनी ड्रोन हवाई टोह के लिए सैटेलाइट फीड का इस्तेमाल करते हैं; और रूसी साइबर हमलों की लहर और यूक्रेन के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार अभियान ने ‘युद्ध की धुंध’ (क्षमताओं को लेकर अनिश्चितता का वातावरण) पैदा की.

अमेरिकी नौसेना एक ऐसे एआई-सक्षम पनडुब्बी प्रोटोटाइप को तैनात करने के कगार पर है, जो बिना मानवीय हस्तक्षेप के हथियार दाग सकता है. इसी तरह, रूस एक अनमैन्ड ग्राउंड व्हीकल विकसित कर रहा है, जो बिना इन्सानी नियंत्रण के गश्त लगा सकता है और ड्रोनों के झुंड को संचालित कर सकता है.

एआई से लैस ड्रोन और रोबोटिक्स जैसी स्वचालन (ऑटोमेशन) और डाटा-चालित तकनीकों ने विघ्नकारी तकनीकों के भीतर प्रमुखता हासिल की है और स्वायत्त प्रणालियों को जन्म दिया है. सेंसरों और प्रोसेसरों से सुसज्जित, ये प्रणालियां सैन्य कर्मियों को ख़तरे के वातावरण से आगाह करती हैं और, अगर वे हथियारों से लैस हों, तो बिना मानवीय हस्तक्षेप के लक्ष्य को चुनने और प्रहार करने के लिए सक्रिय हो सकती हैं. इसके अलावा, अपने बलों के लिए मानव क्षति का जोखिम कम करते हुए, स्वायत्त प्रणालियों को बड़ी तादाद में तैनात किया जा सकता है, जैसा कि, उदाहरण के लिए, ‘ड्रोन स्वॉर्म’ (ड्रोनों का झुंड) की अवधारणा में देखा गया, जहां कई ड्रोन सैन्य अभियान पूरा करने के लिए एक-दूसरे से संवाद और समन्वय करते हैं. जुलाई 2021 में, इस्राइली सेना ने हमास आतंकवादियों को निशाना बनाने के लिए दक्षिणी गाज़ा में एक ड्रोन स्वॉर्म संचालित किया.

कई पूर्ववर्ती प्रणालियां – जिन्हें अर्ध-स्वायत्त प्रणालियां भी कहा जाता है  बढ़ती स्वायत्तता की प्रवृत्ति को साफ़ दिखाती हैं, गहरे समुद्र से लेकर आसमान तक. उदाहरण के लिए, अमेरिकी नौसेना एक ऐसे एआई-सक्षम पनडुब्बी प्रोटोटाइप को तैनात करने के कगार पर है, जो बिना मानवीय हस्तक्षेप के हथियार दाग सकता है. इसी तरह, रूस एक अनमैन्ड ग्राउंड व्हीकल विकसित कर रहा है, जो बिना इन्सानी नियंत्रण के गश्त लगा सकता है और ड्रोनों के झुंड को संचालित कर सकता है. इसराइल की संचालन में आ चुकी आयरन डोम मिसाइल रक्षा प्रणाली अपने क्षेत्र में प्रवेश करने वाली दुश्मन की मिसाइल के विश्लेषण और यह निर्धारण करने कि नागरिक ख़तरे में हैं या नहीं, के लिए एआई का उपयोग करती है. इन प्रणालियों का विकास भारत समेत कई देशों की डाटा-चालित तकनीकों की रणनीतिक तलाश को रेखांकित करता है. इसके अलावा, चीन जैसे कुछ देश इन प्रणालियों और अन्य उभरती तकनीकों के समेकित विकास के लिए नागरिक-सैन्य फ्यूजन दृष्टिकोण आगे बढ़ा रहे हैं.

बलों का इस्तेमाल ‘ऑटोमेटिक मोड’ में?

लेकिन जैसे-जैसे स्वायत्त प्रणालियां विकसित और प्रसारित हो रही हैं, उन्होंने नैतिक चिंताएं (ट्रिगर कौन दबायेगा?) और प्रोटोकॉल संबंधी चुनौतियां (क्या ये प्रणालियां नियमन के अधीन होंगी?) भी उत्पन्न की हैं.

स्वायत्त प्रणालियां वहां फ़ायदेमंद हैं जहां तुरंत निर्णय लिये जाने की ज़रूरत है. अपने काम को निर्धारित करने वाले एल्गोरिदम के साथ, ये प्रणालियां तेज़ी से विकसित हो रही युद्धक्षेत्र की स्थितियों के साथ निस्संदेह बराबरी कर सकती हैं और जवाब दे सकती हैं. स्वायत्त प्रणालियां क्या-क्या हासिल कर सकती हैं, इस दिशा में तेज़ विकास के साथ, उन्होंने ऐसे परिदृश्य उत्पन्न किये हैं जहां मशीन तय कर सकती है और करेगी कि घातक बल का उपयोग कब करना है. यह बहस तब और उभर कर सामने आयी जब लीबिया पर विशेषज्ञों के एक संयुक्त राष्ट्र (यूएन) पैनल ने यह रहस्योद्घाटन किया कि मार्च 2020 में प्रतिद्वंद्वी मिलिशिया को निशाना बनाने और ‘मार गिराने’ के लिए सरकारी बलों ने तुर्की में बने Kargu-2 स्वायत्त हथियारबंद ड्रोनों का इस्तेमाल किया था. पैनल ने पाया कि इन प्रणालियों को इस तरह कोड किया गया था कि ‘लक्ष्यों पर हमले के लिए ऑपरेटर और आयुध सामग्री के बीच डेटा कनेक्टिविटी की आवश्यकता न पड़े : प्रभावी तौर पर, एक सच्ची ‘फायर, फॉरगेट एंड फाइंड’ क्षमता.’

जैसे-जैसे अधिक तादाद में अर्ध-स्वायत्त प्रणालियां सैन्य फ़ेहरिस्त में जगह बनाती हैं तथा स्वायत्त प्रणालियां एक हक़ीक़त बन जाती हैं, इंसानी नियंत्रण का मुद्दा – मौतों के लिए किसे जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए और कितनी स्वायत्तता अनुमति-योग्य और स्वीकार्य है – ज़्यादा महत्व हासिल करेगा.

जैसे-जैसे अधिक तादाद में अर्ध-स्वायत्त प्रणालियां सैन्य फ़ेहरिस्त में जगह बनाती हैं तथा स्वायत्त प्रणालियां एक हक़ीक़त बन जाती हैं, इंसानी नियंत्रण का मुद्दा – मौतों के लिए किसे जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए और कितनी स्वायत्तता अनुमति-योग्य और स्वीकार्य है – ज़्यादा महत्व हासिल करेगा. दुर्भाग्य से, अंतरराष्ट्रीय नियमन इन तकनीकी उन्नतियों और युद्धक्षेत्र में हो रहे विकास की बराबरी करने में सुस्त हैं.

‘घातक स्वायत्त हथियार प्रणालियों के क्षेत्र में उभरती तकनीकों पर ग्रुप ऑफ गवर्नमेंटल एक्सपर्ट्स’ में यूएन 2017 से ही स्वायत्त प्रणालियों के मुद्दे पर चर्चा करता रहा है. इसने घातक स्वायत्त हथियार प्रणालियों का इस्तेमाल करने के लिए कुछ सिद्धांत सुझाये, जैसे अंतरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून लागू करना और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए इन्सानी ज़िम्मेदारी तय करने की ज़रूरत. स्वायत्त हथियार प्रणालियों पर पूरी तरह रोक लगाने का आह्वान करते हुए, सिविल सोसाइटी ‘स्टॉप किलर रोबोट्स’ अभियान के ज़रिये अपनी कोशिश कर रही है.

हितधारक इन मुद्दों पर बहस कर रहे हैं, लेकिन कई राज्य उनके द्वारा तय समाधान का इंतज़ार नहीं करेंगे और ऐसी प्रणालियों की तैनाती के साथ आगे बढ़ेंगे. एक संबंधित पहलू ऐसी तकनीकों का नॉन-स्टेट ऐक्टर्स तक प्रसार है, जो बिल्कुल नये ढंग से इन्हें काम में लेकर इनकी घातकता और उपयोगिता को बहुत ज़्यादा बढ़ा सकते हैं. उदाहरण के लिए, विभिन्न विचारधाराओं के आतंकवादी गुट सैन्य अड्डों और बेहद अहम अवसंरचना सुविधाओं को निशाना बनाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कर चुके हैं. इसके अलावा, पाकिस्तानी आतंकवादी गुट और तस्कर पहले ही उत्तर भारत के सीमावर्ती राज्यों में ड्रोन का इस्तेमाल ड्रग्स और छोटे हथियारों को पहुंचाने के लिए कर चुके हैं.

सैन्य श्रम बल की पुनर्कल्पना

युद्धक्षेत्र में टर्मिनेटर जैसे रोबोट दिखे बिना भी, स्वायत्त प्रणालियां सेनाओं के लिए बेहद अहम भूमिका निभायेंगी, क्योंकि स्वचालन अपने कामकाज के मामले में मशीन लर्निंग के आधार पर विकसित होता है. वो दिन दूर नहीं जब सेनाएं इन प्रणालियों को बारूदी सुरंगें हटाने और रेडियोएक्टिव वातावरण में काम करने जैसे ख़तरनाक कामों को अंजाम देने तथा सीमा सुरक्षा जैसे एक लय वाले कामों के लिए तैनात करेंगी. अमेरिकी रक्षा विभाग का ‘अनमैन्ड सिस्टम्स रोडमैप : 2007-2032’ उल्लेख करता है कि स्वायत्त प्रणालियां ‘उबाऊ, गंदे, या ख़तरनाक’ अभियानों के लिए इन्सानों के मुक़ाबले ज़्यादा उपयुक्त हैं, क्योंकि बहुत से कामों में इन्सानी क्षमता और मौजूदगी अक्सर अवरोधकारी कारक है. लेकिन मशीनों का उपयोग कर, योजनाकार मानव क्षतियों को कम कर सकते हैं और कार्य बल का ज़्यादा दक्ष इस्तेमाल कर सकते हैं.

युद्धक्षेत्र में एक दूसरे के आमने-सामने रोबोट और दूसरी स्वायत्त प्रणालियों के होने की संभावना और मानव क्षति का कोई डर नहीं होने से, सैन्य योजनाकार लड़ाई में पूरे दमख़म से कूद सकते हैं और उसे बढ़ा सकते हैं. युद्ध के लिए इस तकनीकी विकास का यह सबसे गंभीर नतीजों वाला प्रभाव है. 

यह संभावित विकास सैन्य श्रम बल पर गहरा असर डाल सकता है. स्वचालन होने पर ‘कुछ विशेषज्ञताओं को कम करने, बहुत से सैन्य कर्मियों को नये सिरे से कुशल बनाने, और बिल्कुल नयी तरह की नौकरियों के सृजन’ की आवश्यकता होगी. इसके अलावा, यह केयरगिवर्स, एजुकेटर्स और विषय-वस्तु विशेषज्ञ जैसी क्रिटिकल थिंकिंग और इमोशनल इंटेलिजेन्स वाली नौकरियों के लिए संभावनाओं का विस्तार करेगा.

निष्कर्ष

तकनीक और स्वचालन में तेज़ उन्नति संघर्ष और युद्ध के भविष्य को गढ़ना जारी रखेगी. जो देश इन तकनीकों को आगे बढ़ा रहे हैं, उनका एकमात्र लक्ष्य इन्हें हथियार की तरह इस्तेमाल करना और जल्द से जल्द तैनात करना है. युद्धक्षेत्र में एक दूसरे के आमने-सामने रोबोट और दूसरी स्वायत्त प्रणालियों के होने की संभावना और मानव क्षति का कोई डर नहीं होने से, सैन्य योजनाकार लड़ाई में पूरे दमख़म से कूद सकते हैं और उसे बढ़ा सकते हैं. युद्ध के लिए इस तकनीकी विकास का यह सबसे गंभीर नतीजों वाला प्रभाव है. यह युद्ध लड़ने के राजनीतिक नतीजों तथा शत्रुता ख़त्म करने के लिए एक शांतिपूर्ण समाधान ढूंढ़ने की नैतिक आवश्यकता को समाप्त कर देगा. अराजकता की ओर बढ़ने की यह स्पष्ट संभावना घातक स्वायत्त हथियार प्रणालियों और रोबोटिक्स जैसी तकनीकों का नियमन अनिवार्य बनाती है.


[i] Alex Roland, War and Technology: A Very Short Introduction (New York: Oxford University Press, 2016), 36–41.

[ii] Michael Quinlan, Thinking About Nuclear Weapons: Principles, Problems, Prospects (Oxford & New York: Oxford University Press, 2009), 9.

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