Published on Feb 23, 2024 Updated 8 Days ago

भविष्य के शहरों की योजना बनाते वक्त वहां की यातायात व्यवस्था को भी केंद्र में रखना चाहिए. परिवहन प्रणाली ऐसी हो जिसकी लागत कम हो. लोगों को सुविधा हो और पर्यावरण को नुकसान ना पहुंचे

बिजली में छिपा है शहरी परिवहन का भविष्य

ये लेख हमारी- रायसीना एडिट 2024 सीरीज़ का एक भाग है

पूरी दुनिया इस वक्त एक बड़े बदलाव से गुजर रही है और ये बदलाव है गावों से शहरों की ओर पलायन. हर हफ्ते करीब 10 लाख लोग गांव छोड़कर शहरों को अपना स्थायी ठिकाना बना रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक शहरों की आबादी करीब 7 अरब तक पहुंच जाएगी. इतनी बड़ी संख्या में पलायन ने शहरी परिवहन के सामने एक बड़ी चुनौती पेश की है. इस चुनौती से निपटने की हमारी क्षमता ही ये तय करेगी कि क्या भविष्य में भी देश के आर्थिक विकास में शहर अपनी अहम भूमिका में सफल होंगे या नहीं?

इस मुद्दे पर हमारे सामने अतीत से सीखे गए सबक हैं. जिन विकसित देशों में काफी हद तक शहरीकरण हो चुका है, वहां ये देखा गया कि गाड़ियों ने इस क्रांति में अहम भूमिका निभाई, खासकर निजी वाहनों ने . अमेरिका में हर 1000 लोगों में से 900 के पास अपनी गाड़ियां हैं. हालांकि इसके कुछ दुष्परिणाम भी दिखे हैं. ट्रैफिक जाम और वायु प्रदूषण की वजह से लोगों की उत्पादन क्षमता घटी है क्योंकि ट्रैफिक जाम में फंसने से काम के घंटों का नुकसान हुआ. एक अनुमान के मुताबिक अगर यही ट्रेंड जारी रहा तो 2050 में ट्रैफिक जाम की वजह से हर साल 106 घंटे का नुकसान होगा. अब जबकि विकासशील देशों में तेजी से शहरीकरण हो रहा है तो ये जरूरी हो जाता है कि शहरों में यातायात की ऐसी प्रणाली हो, जिससे इंसान और सामान दोनों का परिवहन आसान और सुविधाजनक हो.

शहरी परिवहन एक समस्या

शहरों में परिवहन प्रणाली सुधारने में नई तकनीकी अहम भूमिका निभा सकती है. आज जिस तरह पूरी दुनिया प्रदूषण से परेशान है, उसे देखते हुए शहरी यातायात में बिजली से चलने वाली गाड़ियां सबसे बड़ी गेमचेंजर साबित हो सकती हैं. लेकिन अलग-अलग देशों में इसका अलग असर दिख रहा है. पूरी दुनिया में जितनी बिजली चालित गाड़ियां बिक रही हैं, उसकी 50 फीसदी अकेले चीन में बिकती हैं. विकसित देशों में वही लोग इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियां खरीद रहे हैं, जो तेल से चलने वाली अपनी गाड़ियों को बदलना चाहते हैं. 2022 में यूरोप में 15 प्रतिशत और अमेरिका में 8 फीसदी इलेक्ट्रिक कारें बिकीं.

वहीं अगर विकासशील देशों को देखें तो यहां इलेक्ट्रिक कारों की तुलना में बिजली से चलने वाले दुपहिया और तिपहिया वाहन ज्यादा बिक रहे हैं. इनका ज्यादातर इस्तेमाल वो लोग कर रहे हैं जिनकी आय कम है. विकसित देशों में आम तौर पर अमीर लोग इस तरह की कारों को खरीदते हैं,लेकिन विकासशील देशों में इसका उल्टा है. यहां मध्यम या निम्न आय वर्ग वाले लोग इलेक्ट्रिक गाड़ियों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इनके लिए इलेक्ट्रिक गाड़ियां ना सिर्फ यातायात का जरिया है बल्कि ईंधन के खर्च में आई कमी और उससे हुए बचत उनके लिए अपना जीवन स्तर सुधारने का एक माध्यम भी है.

विकसित देशों में वही लोग इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियां खरीद रहे हैं, जो तेल से चलने वाली अपनी गाड़ियों को बदलना चाहते हैं.


विकासशील देशों में तेज़ी से हो रहा डिजिटलाइजेशन भी परिवहन प्रणाली पर असर डाल रहा है. इसकी वजह से लोग अब निजी वाहनों से साझा इस्तेमाल वाले वाहनों की तरफ बढ़ रहे हैं. इसे आप इस तरह भी समझ सकते हैं कि डिजिटल प्लेटफॉर्म की मदद से लोगों को साझा वाहनों के इस्तेमाल में आसानी होती है. फिर चाहे वो गाड़ियां हों या साइकिल. इसका फायदा ये है कि जो पहले से मौजूद वाहन होते हैं, उनका अधिकतम इस्तेमाल होता है. इससे लोगों के पैसे तो बचते ही हैं साथ ही ट्रैफिक जाम और वायु प्रदूषण भी कम होता है. साझा परिवहन प्रणाली में पिछले कुछ साल में बहुत तेज बढ़ोतरी देखी गई है. 2016 से 2019 के बीच ई-हैलिंग ट्रिप बिजनेस 5.5 ट्रिलियन से बढ़कर 16.5 ट्रिलियन हो गया है. निवेशकों के लिए भी ये एक पसंदीदा बिजनेस बन गया है. 2010 से अब तक साझा परिवहन वाली कंपनियों में 100 अरब डॉलर का निवेश किया जा चुका है

खास बात ये है कि शुरू के कुछ साल तो साझा परिवहन प्रणाली को आम लोग आगे बढ़ाएंगे लेकिन दीर्घकाल में ऑटोमेटिक गाड़ियों के विकास से इसमें बड़ा बदलाव दिखेगा. भविष्य के शहरों में तकनीकी अहम भूमिका निभाएगी. इन शहरों के ज्यादा रूट्स पर साझा टैक्सी और साझा शटल सेवा को रोबोट चलाएंगे. इससे परिवहन की लागत भी कम होगी और प्रदूषण भी घटेगा. कुछ अनुमानों के मुताबिक 2030 तक ही ऑटोमेटिक साझा परिवहन सेवा का बाज़ार 400 अरब डॉलर का हो सकता है, लेकिन ऑटोमेटिक गाड़ियों के अपने खतरे भी हैं. यही वजह है कि कई शहरी निकाय इस तरह का प्रशासनिक तंत्र तैयार कर रहे हैं, जिससे ऑटोमेटिक गाड़ियों से लोगों को सुविधा तो हो लेकिन साथ ही उनके खतरे कम से कम हों. ऑटोमेटिक गाड़ियों के विकास की गति इसी चीज पर निर्भर करेगी कि इसे लेकर नियम कानून कितनी जल्दी बनाए जाते हैं

इस तरह ये कहा जाता है कि भविष्य में शहरों की परिवहन प्रणाली, गाड़ियों की नई तकनीकी, डिजिटलाइजेशन और ऑटोमेशन के क्षेत्र में होने वाली बढ़ोतरी पर निर्भर करेगी लेकिन ये सभी तकनीकी सभी सफल होंगी जब शहरी निकाय विकास योजनाएं बनाते समय इन सब चीजों को भी ध्यान में रखें और शहरीकरण की योजनाओं में इन्हें लेकर तालमेल बिठाएं.

विकसित देशों में आम तौर पर अमीर लोग इस तरह की कारों को खरीदते हैं,लेकिन विकासशील देशों में इसका उल्टा है. यहां मध्यम या निम्न आय वर्ग वाले लोग इलेक्ट्रिक गाड़ियों का इस्तेमाल कर रहे हैं.


विकसित देशों के शहरों में अभी जो मौजूदा परिवहन प्रणाली हैं, उनके लिए ये जरूरी है कि पेट्रोल और डीडल से चलने वाले निजी गाड़ियों को कम किया जाए और लोगों के आने-जाने के लिए ऐसी सेवा शुरू की जाए जो सुविधाजनक और प्रदूषण रहित हो. इस तरह के नियम बनाए जाने चाहिए कि लोग खुद ही अपनी गाड़ियों का इस्तेमाल छोड़कर साझा इस्तेमाल वाली गाड़ियों या सार्वजनिक परिवहन प्रणाली का इस्तेमाल करें. लोगों को इलेक्ट्रिक गाड़ियां खरीदने को प्रेरित करने के लिए उन्हें आर्थिक प्रोत्साहन भी देना चाहिए. 

समाधान

इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा मौके विकासशील देशों के पास हैं. इन्हीं देशों में शहरीकरण की सबसे ज्यादा गुंजाइश है. आने वाले वक्त में जो अरबों लोग शहरों में बसेंगे, वो इन्हीं देशों में होंगे. यही पर नए शहर बसाए जाएंगे. शहरीकरण की इस नई लहर में ना सिर्फ विशाल शहर बसेंगे बल्कि मध्यम शहरों की भी स्थापना करनी होगी. जो अभी छोटे शहर हैं, उन्हें भी बदलना होगा. फिलहाल दुनिया की एक तिहाई आबादी ऐसे शहरों में रहती है जिनकी जनसंख्या 1 लाख से कम है. 2050 तक ये आंकड़ा 40 प्रतिशत तक होने की उम्मीद है. इसका मतलब ये हुआ कि जो अभी छोटे शहर हैं, वही भविष्य में तेजी से विकास करेंगे. ये शहर नए प्रयोग, सतत-स्थायी और समावेशी विकास के मौके उपलब्ध कराएंगे. ऐसे में शहरों की योजना बनाने वालों, आर्किटेक्ट और नीति निर्माताओं के पास ये अवसर है कि वो ऐसी नीतियां और डिजाइन बनाएं जिससे इन शहरों में रहने वालों का जीवनस्तर सुधरे. इन शहरों को बेहतर बनाने के लिए,  जीवन स्तर सुधारने का लक्ष्य पूरा करने के लिए ये जरूरी है कि जो भी नीतियां बनाई जाएं, उसमें इन शहरों के यातायात को भी केंद्र में रखा जाए. नई परिवहन प्रणाली की नीतियां बनाते वक्त इस बात का ख्याल रखा जाए कि उसकी लागत कम हो और गाड़ियों के लिए जो भी सिस्टम बने, उसके लिए शहरों को नए सिरे से डिजाइन करने की जरूरत ना पड़े.

आने वाली सदी शहरीकरण की सदी होने वाली है, लेकिन इसके साथ ही ये नई और अनूठी परिवहन प्रणाली का भी दौर होगा. इसलिए यातायात को लेकर ऐसी नीतियां बनाई जाए कि लोगों को भी सुविधा हो और पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए ये जरूरी है कि सरकार और प्रशासन शहरीकरण को लेकर जो भी योजनाएं और नीतियां बनाएं, वो तेजी से बदल रही और बेहतर हो रही तकनीकी के साथ तालमेल बिठा सके

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