Published on Mar 19, 2021 Updated 0 Hours ago

रचनात्मक उद्योगों में भारत को विश्व गुरू बनाने की तैयारी करने के लिए जो पहला क़दम उठाया जाना चाहिए वो है कल्पनाशीलता को बढ़ावा देना-इस बात का तसव्वुर करना कि आज से दस साल बाद मनोरंजन उद्योग का स्वरूप कैसा होगा और हमें उस परिस्थिति में सफल होने के लिए कौन से क़दम उठाने होंगे.

भारत के मनोरंजन उद्योग का भविष्य; नॉनलीनियर प्रणाली को स्वीकार्यता

ऐतिहासिक रूप से भारत में कहानी कहने की की परंपराएं हमेशा ज़ुबानी क़िस्साग़ोई पर आधारित रही हैं. फिर चाहे रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्य हों या पारिवारिक इतिहास. हमने इनकी कहानियां अपने बुज़ुर्गों से सुनी हैं. जो बड़े विस्तार से इन कहानियों का ऐसा सजीव चित्रण करते थे कि आप ख़ुद ब ख़ुद अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ाने लगते थे. बच्चों को शायद ही कभी रावण के विशाल सोते हुए भाई कुंभकर्ण की तस्वीर दिखाई जाती थी. इसके बजाय हर सुनने वाला अपने दिमाग़ में कुंभकर्ण की अपनी तस्वीर बनाता था.

लेकिन, बरसों बरस के तकनीकी विकास ने ज़ुबानी क़िस्सागोई में नए आयाम भी जोड़ दिए. मिसाल के तौर पर बड़े पैमाने पर किताबों के प्रकाश और इनके चलते एक मानक तय करने की ज़रूरत ने ये सुनिश्चित किया कि एक ही तरह की हज़ारों प्रतियां एक जैसे तरीक़े से बेची जाती थीं. इसके बावजूद, पढ़ने वाले की कल्पनाशीलता इसमें एक अहम भूमिका निभाती थी. जैसे कि हैरी पॉटर किताबों के शुरुआती पाठकों ने उस लड़के की कल्पना एक ऐसे बच्चे के तौर पर की जो चश्मा लगाता था और जिसके चेहरे पर घाव के निशान थे. ये वो तत्व थे, जो पढ़ने वालों को किताब के लेखकों के विवरण से मालूम हुए. लेकिन, किताब के अन्य अध्यायों को समझने के लिए पाठकों को अपनी कल्पनाशीलता का भी इस्तेमाल करने का मौक़ा मिला. ऐसे में जब किताब छपने के कुछ वर्षों बाद, हैरी पॉटर सीरीज़ की पहली फिल्म आई तो दर्शकों के लिए ये कल्पना करने की कोई गुंजाइश बची ही नहीं थी कि हैरी पॉटर किस तरह का दिखता था-क्योंकि वो सबके रूबरू था. लोग उसे असली रंग में 70mm स्क्रीन पर देख सकते थे.

आज आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस तकनीक (AI), गेमिंग, ऑग्यूमेंटेड रियालिटी (AR) और वर्चुअल रियलिटी (VR) के क्षेत्रों में तरक़्क़ी ने दिलों की गहराई में डूब जाने वाली क़िस्साग़ोई के नए युग की शुरुआत की है. ये ऐसा दौर है जिसमें सुनने वाला या दर्शक ख़ुद भी कहानी का एक हिस्सा बन जाता है. 

आज आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस तकनीक (AI), गेमिंग, ऑग्यूमेंटेड रियालिटी (AR) और वर्चुअल रियलिटी (VR) के क्षेत्रों में तरक़्क़ी ने दिलों की गहराई में डूब जाने वाली क़िस्साग़ोई के नए युग की शुरुआत की है. ये ऐसा दौर है जिसमें सुनने वाला या दर्शक ख़ुद भी कहानी का एक हिस्सा बन जाता है. इस तजुर्बे में जब कहानी के किरदारों को ठीक वैसा ही स्वरूप दे दिया जाता है, जैसे किसी सिनेमा हॉल की स्क्रीन में और ख़ुद कहानी अपने आप में उन प्रभावों से बदली जा सकती है, जैसा कोई दर्शक महसूस करता है, या बदलना चाहता है. ऐसे माध्यमों में श्रोता की कल्पनाशीलता केवल कहानी के व्याख्यानों का तसव्वुर करने तक सीमित नहीं रहती, बल्कि वो ये भी तय करती है कि कोई कहानी किस दिशा में आगे बढ़ेगी. क़िस्साग़ोई में आए इस बदलाव को समझने के लिए हमें सबसे पहले उन तत्वों के बारे में अपनी समझ बढ़ानी होगी, जिनके माध्यम से ये बदलाव आ रहे हैं.

1. आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI)

इस तकनीक से मशीन, इंसान की बुद्धिमत्ता और उसकी सीखने की क्षमता की नक़ल कर पाती है. जिसके चलते मशीनें बेहद मुश्किल ज्ञान संबंधी काम कर पाती हैं. आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का सबसे अधिक इस्तेमाल हम ओवर द टॉप (OTT)मंचों पर देखते हैं, जब हमें हमारे मत मुताबिक़ फिल्में या सीरीज़ देखने के सुझाव मशीन देती है. असल में यहां आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से लैस मशीनें किसी भी दर्शक की प्राथमिकताओं का आकलन इस आधार पर करते हैं कि वो अक्सर किस तरह की फिल्में या सीरीज़ देखते हैं. यही नहीं, उनके पास इस बात के आंकड़े भी होते हैं कि वो कब कोई ख़ास गाना सुनते हैं. बाद में इस सूचना को आधार बनाकर उससे मिलते जुलते कंटेंट के सुझाव संबंधित प्लेटफॉर्म जैसे कि कोई ऐप देते हैं. उसकी लिस्ट में आपकी रुचि से संबंधित कंटेंट ही दिखेंगे. इससे यूज़र को अपने मन-पसंद का कंटेंट खोजने में ज़्यादा मशक़्क़त नहीं करनी पड़ती. वो आसानी से अपनी पसंद की फिल्में और सीरीज़ देख पाता है. इसकी मदद से उस प्लेटफॉर्म पर आप समय अधिक बिताते हैं. उसका इस्तेमाल बढ़ता है. इसका एक नतीजा ये भी होता है कि किसी मंच पर एक दर्शक के अनुभव दूसरे से बिल्कुल जुदा होते हैं. इसके साथ साथ आर्टिफ़िशियल का इस्तेमाल करके मनोरंजन के अन्य अनुभवों में भी परिवर्तन किया जा सकता है.

Metric  OTT TV
संभावित दर्शक की पहचान मेटाडेटा की मदद से अलग-अलग मंच पर यूज़र की गतिविधियों पसंद और प्राथमिकता का पता लगा सकते हैं. इस आंकड़े की मदद से किसी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति और आबादी के वर्ग वग़ैरह का पता लगाया जा सकता है. आबादी के किसी भी वर्ग की पसंद-नापसंद का पता  लगाने के लिए सर्वे का इस्तेमाल. वो किस भाषा में कार्यक्रम देखते हैं. कैसे कार्यक्रम किस समय पसंद करते हैं (जैसे कि बच्चे अक्सर स्कूल से लौटकर कार्टून देखते हैं.
उपभोक्ता का फीडबैक सीमित वीडियो कितनी देर में देखा गया. माउस कितनी देर स्क्रीन पर रहा. किस विषय या फिल्म पर क्लिक किया गया. यूज़र अपनी रेटिंग से किसी सेवा की गुणवत्ता के बारे में फीडबैक दे सकता है. अपनी रणनीति बनाने के लिए प्रयोग कर सकता है. (जैसे कि A/B टेस्टिंग) यहां उपभोक्ताओं का फीडबैक TRP की शक्ल में सीमित तौर पर हासिल होता है. कुछ गिने चुने घरों में ही TRP के मीटर लगे होते हैं. ये फीडबैक हफ़्ते में एक बार मिल पाता है.

उदाहरण के लिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस पर आधारित विश्लेषण को दर्शक से जुड़े आंकड़े जुटाकर ही तैयार किया जा सकता है. टेलीविज़न के दर्शकों की पसंद-नापसंद का पता जहां नमूने जुटाकर लगाया जाता है, वहीं OTT माध्यम हर दर्शक से जुड़ी विशिष्ट जानकारी जुटाते हैं. हर व्यक्ति की पसंद-नापसंद का आंकड़ा उनके पास होता है. किसी भी व्यक्ति के बर्ताव, उसकी पसंद और प्राथमिकताओं की ऐसी गोपनीय जानकारी हासिल करके OTT मंच अपने लाभ से जुड़े संतुलित फ़ैसले ले पाते हैं. इसी तरह आंकड़ों का विश्लेषण करके व्यक्ति विशेष को ध्यान में रखकर विज्ञापन तैयार किए जाते हैं. हर यूज़र को वही विज्ञापन देखने को मिलते हैं, जो उसके लिए काम के हों या जिनमें उसकी दिलचस्पी हो. इससे विज्ञापन पर आधारित कारोबारी मॉडल को भी मदद मिलती है. जहां यूज़र को कंटेंट के लिए भुगतान करने की ज़रूरत नहीं होती. इसके बजाय कंटेंट में लगने वाले पैसे को विज्ञापन से कमाए जाने वाले राजस्व से निकाला जाता है. इसी से किसी कंपनी को मुनाफ़ा भी मिलता है.

2. गेमिंग

हाई स्पीड इंटरनेट के इस ज़माने में मनोरंजन उद्योग में से गेमिंग उद्योग का हिस्सा बड़ा होता जा रहा है. ऑनलाइन गेम जैसे कि फोर्टनाइट ने कंटेंट और बिज़नेस मॉडल में ऐसे नए नए प्रयोग किए हैं कि वो अपने आप में एक प्लेटफॉर्म बन गए हैं. फोर्टनाइट जो मुफ़्त में खेला जा सकने वाला ऑनलाइन गेम है, उसके 35 करोड़ से ज़्यादा खिलाड़ी हैं. सिर्फ़ अप्रैल महीने में इन लोगों ने फोर्टनाइट खेलने में 3.2 अरब घंटे गुज़ारे हैं. खिलाड़ियों को ये खेल खेलने के लिए भले ही पैसे न देने पड़ते हों. लेकिन, उन्हें गेम खेलते हुए बहुत सी चीज़ें ख़रीदने के विकल्प मुहैया कराए जाते हैं. जैसे कि लिबास. फोर्टनाइट को असली आमदनी इसी से होती है. खिलाड़ियों के खेलने की प्रवृत्ति से पैसे कमाने और लगातार इनोवेशन के चलते आज फोर्टनाइट ने मनोरंजन उद्योग में बहुत ऊंचा मुकाम हासिल कर लिया है. 2019 में अपने शेयर धारकों को लिखे एक ख़त में नेटफ्लिक्स ने अपने कारोबार के लिए, फोर्टनाइट को HBO से भी बड़ा प्रतिद्वंदी क़रार दिया था. ऑनलाइन गेमिंग की इस वैश्विक वैल्यू चेन में भारत भी एक महत्वपूर्ण कड़ी है. कंटेंट का डिज़ाइन करने के काम को ऑउटसोर्स करने के लिए भारत एक बड़ा केंद्र है. लेकिन, पुणे में स्थित नॉडिंग हेड गेम्स कंपनी द्वारा पौराणिक कहानियों पर आधारित ऑनलाइन गेम जैसे कि राजी:एक प्राचीन महाकाव्य का विकास करना, भारत की स्थिति में आ रहे बदलाव का इशारा देता है. जैसे जैसे भारत के और डेवेलपर वैश्विक बाज़ार के लिए नए गेम विकसित करेंगे, वैसे वैसे भारत में तैयार किए गए ऑनलाइन गेम की संख्या भी बढ़ेगी. इससे भारत में ऑनलाइन गेम के उद्योग का विकास भी रफ़्तार पकड़ेगा.

टेलीविज़न के दर्शकों की पसंद-नापसंद का पता जहां नमूने जुटाकर लगाया जाता है, वहीं OTT माध्यम हर दर्शक से जुड़ी विशिष्ट जानकारी जुटाते हैं. हर व्यक्ति की पसंद-नापसंद का आंकड़ा उनके पास होता है. किसी भी व्यक्ति के बर्ताव, उसकी पसंद और प्राथमिकताओं की ऐसी गोपनीय जानकारी हासिल करके OTT मंच अपने लाभ से जुड़े संतुलित फ़ैसले ले पाते हैं. 

ऑनलाइन गेमिंग उद्योग ने ओपेन वर्ल्ड गेम्स के ज़रिए कहानी कहने के अंदाज़ में एक और नई शुरुआत की है. ये खेल के वर्चुअल मैदान हैं, जहां श्रोता/दर्शक गेम बनाने वाले की तरफ़ से उपलब्ध कराए गए मंज़र के साथ अपनी कल्पना को जोड़कर अपनी अलग कहानी गढ़ते हैं. उदाहरण के लिए, मिडिल अर्थ:शैडो ऑफ़ वॉर में खिलाड़ी को JRR टोलकिन की रची गई दुनिया में ले जाया जाता है. उसे खेल का एक किरदार बनाकर ख़ुद भी खेलने का मौक़ा दिया जाता है. जैसे जैसे खेल आगे बढ़ता है, वैसे वैसे खिलाड़ी सीधे खेल में हिस्सा लेने का विकल्प चुन सकता है-वो तय कर सकता है कि किस विरोधी के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलना है, किसी मुक़ाबले को किस तरह खेलना है और किस तरह के औज़ार इस्तेमाल करने हैं. इस खेल के दौरान, हर खिलाड़ी का अपना अलग विशिष्ट अनुभव होता है. इसमें दुश्मन के साथ विशेष तरह का संबंध भी शामिल है. वीडियो गेम के इंटरएक्टिव पहलू से सीख लेते हुए, कई ऑनलाइन मंच ऐसे कंटेंट तैयार कर रहे हैं, जहां पर नतीजों पर दर्शक का अधिक से अधिक नियंत्रण हो रहा है. 2019 में नेटफ्लिक्स ने ब्लैक मिरर:बैंडरस्नैच नाम का एक फिल्मनुमा एपिसोड जारी किया था. ये उसकी मशहूर सीरीज़ का एक हिस्सा था, जिसमें दर्शकों को कहानी आगे बढ़ने के साथ-साथ मुख्य किरदार के बारे में तमाम विकल्पों में से किसी एक को चुनने का अवसर दिया जाता था.

3. वर्चुअल और ऑग्यूमेंटेड रियालिटी

वर्चुअल रियालिटी (VR)तकनीक का ऐसा इस्तेमाल है, जिसके माध्यम से एक बनावटी माहौल तैयार किया जाता है. दर्शक को स्क्रीन देखने के बजाय, इसका अनुभव करने के लिए ख़ास तरह के माहौल का हिस्सा बनाया जाता है. इसके लिए उन्हें अलग तरह का चश्मा लगाना और हेडफ़ोन पहनना पड़ता है. इन्हें लगाकर वो इस बनावटी माहौल का हिस्सा बन जाते हैं. वहीं, ऑग्यूमेंटेड रियालिटी (AR)किसी दर्शक के लाइव शो देखने के दौरान उसमें डिजिटल तत्व डालते हैं; उदाहरण के लिए इंसान के दिमाग़ के डिजिटल मॉडल का इस्तेमाल करके बच्चों को उससे संवाद करने का अवसर देना. वर्चुअल और ऑग्यूमेंटेड रियालिटी, दोनों तकनीकों का इस्तेमाल करके उपभोक्ताओं के विकल्पों का दायरा बहुत व्यापक किया जा सकता है. दोनों ही तकनीकों का कारोबारी इस्तेमाल तो पहले से ही हो रहा है. आज ऑकुलस रिफ्ट और प्लेस्टेशन वीआर और एआर आधारित मोबाइल गेम पोकेमॉन की सफलता इसकी मिसाल है.

भविष्य में वर्चुअल रियालिटी/ऑग्यूमेंटेड रियालिटी का इस्तेमाल दर्शकों को मनोरंजन के माध्यमों में रिमोट और की-बोर्ड की जगह इंटरएक्टिव विकल्प कराए जाएंगे, जहां वो अपने हाव-भाव से अपने अनुभवों को ख़ुद नियंत्रित कर सकेंगे. इससे कंपनियों को शिक्षाप्रद कार्यक्रम तैयार करने में भी मदद मिलेगी, जिससे सीखने की प्रक्रिया इंटरएक्टिव हो सकेगी. इसके अलावा, नई तकनीक की मदद से दर्शक, थिएटर के भीतर बैठने का अनुभव प्राप्त कर सकेंगे. इन तकनीकों के शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग किए जाने की संभावनाएं, भारत के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक हैं. भारत की युवा आबादी ने नई नई तकनीकों, जैसे कि डिजिटल भुगतान को स्वीकार करने की ज़बरदस्त इच्छाशक्ति दिखाई है. आख़िर में ऑग्यूमेंटेड रियालिटी/वर्चुअल रियालिटी का इस्तेमाल संग्रहालयों, कला प्रदर्शनियों और मनोरंजन पार्क में आने वाले लोगों के अनुभव को बेहतर बनाने में भी किया जा सकता है. इस लेख में जिन अन्य तकनीकों का ज़िक्र किया गया है, उसी तरह AR/VR भी दर्शक की और अधिक सक्रिय भूमिका की परिकल्पना को आगे बढ़ा सकते हैं.

कंटेंट का डिज़ाइन करने के काम को ऑउटसोर्स करने के लिए भारत एक बड़ा केंद्र है. लेकिन, पुणे में स्थित नॉडिंग हेड गेम्स कंपनी द्वारा पौराणिक कहानियों पर आधारित ऑनलाइन गेम जैसे कि राजी:एक प्राचीन महाकाव्य का विकास करना, भारत की स्थिति में आ रहे बदलाव का इशारा देता है. 

इन तकनीकों की मदद से क़िस्साग़ोई के अंदाज़ में क्रांतिकारी बदलाव आ रहा है. अब उपभोक्ताओं को कहानी सुनाने/दिखाने की प्रक्रिया के केंद्र में रखा जा रहा है. ऐसे में भविष्य की क़िस्साग़ोई के अधिक इंटरएक्टिव होने की संभावना है, जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए विशिष्ट अनुभव अपने साथ लाएगी. अंतरराष्ट्रीय प्रतिद्वंदिता के ख़िलाफ़ ख़ुद को मज़बूत बनाए रखने के लिए सबसे ज़रूरी ये है कि हम पहले मनोरंजन उद्योग के भविष्य के मंज़र की कल्पना करें. ऐसे में सही ये होगा कि रचनात्मक उद्योगों में भारत को विश्व गुरू बनाने की तैयारी करने के लिए जो पहला क़दम उठाया जाना चाहिए वो है कल्पनाशीलता को बढ़ावा देना-इस बात का तसव्वुर करना कि आज से दस साल बाद मनोरंजन उद्योग का स्वरूप कैसा होगा और हमें उस परिस्थिति में अग्रणी बनने के लिए कौन से क़दम उठाने होंगे.

भविष्य में वर्चुअल रियालिटी/ऑग्यूमेंटेड रियालिटी का इस्तेमाल दर्शकों को मनोरंजन के माध्यमों में रिमोट और की-बोर्ड की जगह इंटरएक्टिव विकल्प कराए जाएंगे, जहां वो अपने हाव-भाव से अपने अनुभवों को ख़ुद नियंत्रित कर सकेंगे. 

इस संदर्भ में भारत के पास बढ़त बनाने की कम से कम दो बातें उपलब्ध हैं. पहली तो ये कि भारत में प्रतिभाशाली लोगों की भरमार है, जो विश्व स्तर का कंटेंट कई भारतीय और अंतरराष्ट्रीय भाषाओं में तैयार कर सकते हैं. दूसरी बात ये कि भारत के दर्शकों/श्रोताओं की भी दिलचस्पी ऐसे माध्यमों में है, जो आगे चलकर नए उभरते मीडिया और मनोरंजन उद्योग की ख़ूबी बनने वाले हैं. इन बातों की मदद से भारत विश्व स्तर पर अपना सांस्कृतिक प्रभुत्व स्थापित करने की होड़ में शामिल हो सकता है. वो दक्षिण कोरिया जैसे मनोरंजन उद्योग के बड़े खिलाड़ियों का मुक़ाबला कर सकता है. दक्षिण कोरिया ने अपनी आर्थिक समृद्धि को भी बढ़ाया है और फिल्मों, टीवी शो और पॉप म्यूज़िक जैसी सॉफ्ट पावर के इस्तेमाल से अपने सांस्कृतिक प्रभाव का दायरा भी बढ़ाया है. हालांकि, भारत के मीडिया और मनोरंजन सेक्टर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुक़ाबला करने के लिए दूरगामी दृष्टिकोण और नेतृत्व की ज़रूरत है, जो धीरे-धीरे मगर मज़बूती से आने वाले समय में परिवर्तन को अपना सके.


ये लेख शेखर कपूर, वाणी त्रिपाठी टिक्कू और अन्य द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट, एंब्रेसिंग नॉनलीनियारिटी: द फ्यूचर ऑफ़ इंडियाज़ एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री का संपादित और संक्षिप्त विवरण है. जो पहली बार दिसंबर 2020 में ईसिया सेंटर में प्रकाशित हुई थी.

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