Published on Feb 22, 2024 Updated 7 Days ago
आतंकवाद के खिलाफ जंग का भविष्य: ऑनलाइन मुकाबले की क्या हो रणनीति?

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मौजूदा दौर में आतंकवाद और उग्रवाद से निपटने के लिए आतंकवाद विरोधी संस्थाओं को उनसे एक कदम आगे रहना होगा. एआई तकनीकी आने के बाद इसे लेकर ऑनलाइन और ऑफलाइन खतरे बढ़ गए हैं. ऐसे में इन संस्थाओं को ना सिर्फ पहले से जांचे, परखे अपने तंत्र को तो मजबूत बनाना होगा, बल्कि ऑनलाइन खतरों से निपटने के लिए नए रणनीतिक साझेदार भी तलाशने होंगे

आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए बने ग्लोबल इंटरनेट फोरम (GIFCT) ने अपने कार्य समूहों और अपने अनुसंधान विभाग, उग्रवाद और उसमें तकनीकी के इस्तेमाल पर बने ग्लोबल नेटवर्क (GNET), को आतंकवादी संगठनों द्वारा ऑनलाइन पोस्ट किए जा रही चरमपंथी सामग्री का अध्ययन करने और भविष्य में पैदा हो सकने वाले खतरों की जांच करने को कहा था.

सोशल मीडिया के अलग-अलग मंचों पर डाले गए कंटेंट का असर पूरी दुनिया में होता है. ऐसे में अगर इससे निपटने के लिए साझा रणनीति नहीं बनाई जाती तो फिर इसका मुकाबला करना बहुत मुश्किल होगा.


2024 में सबसे ज्यादा चर्चा में एआई ही रहेगा. माइक्रोसॉफ्ट, मेटा और यूट्यूब जैसी तकनीकी क्षेत्र की बड़ी कंपनियां तो इस बात की पूरी कोशिश कर रही हैं कि वो जो भी एआई सॉफ्टवेयर बनाएं, उनका दुरूपयोग ना हो लेकिन ओपन सोर्स और एआई टूल्स आजकल जितनी आसानी से सबकी पहुंच में हैं, उसे देखते हुए इसके बड़े पैमाने पर दुरुपयोग की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता. ग्लोबल इंटरनेट फोरम ने अपने अध्ययन में पाया कि एआई की मदद से ऑडियो, वीडियो और तस्वीरों में आसानी से छेड़छाड़ की जा सकती है

सोशल मीडिया का आजकल जिस तरह दुरूपयोग किया जा रहा है उस पर काबू पाना जांच एजेंसियों के लिए मुश्किल होता जा रहा है. सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि अलग-अलग देशों को अपने कानूनों के हिसाब से काम करना होता है लेकिन सोशल मीडिया के अलग-अलग मंचों पर डाले गए कंटेंट का असर पूरी दुनिया में होता है. ऐसे में अगर इससे निपटने के लिए साझा रणनीति नहीं बनाई जाती तो फिर इसका मुकाबला करना बहुत मुश्किल होगा.

आतंकवाद के ऑनलाइन और ऑफलाइन खतरों से निपटना भविष्य में और मुश्किल होने वाला है. इसकी वजह है थ्रीडी प्रिंटिंग तकनीकी और मानवरहित विमानों (UAVs)से पैदा होने वाले संभावित खतरे. 2019 के बाद से कम से कम ऐसे 9 मामले सामने आए हैं जहां आतंकवादियों या चरमपंथी गुटों ने बंदूक बनाने के लिए थ्रीडी प्रिटिंग तकनीकी की मदद ली है, खासकर व्हाइट सुप्रीमेसी नेटवर्क के लोगों ने. वहीं अल-कायदा, इस्लामिक स्टेट और अफ्रीका के अल शबाब जैसी आतंकी संगठनों ने ड्रोन्स और मानवरहित विमानों का हथियार की तरह इस्तेमाल बढ़ा दिया है. पुलिस के लिए ये पता लगाना बहुत मुश्किल है कि थ्रीडी प्रिटिंग का बंदूक बनाने के लिए कौन इस्तेमाल कर रहा है, आतंकी हमले के लिए ड्रोन कौन खरीद रहा है? हालांकि हाल में कुछ ऐसे समझौते किए गए हैं, जिससे इस पर कुछ हद तक काबू पाया जा सकेगा. इसे लेकर अक्टूबर 2022 में यूएन दिल्ली घोषणापत्र मंजूर किया गया. इसी तरह दिसंबर 2023 में यूएन अबू धाबी गाइडलाइंस को मंजूरी दी गई जिससे मानवरहित विमानों के जरिए आतंकी हमलों को रोका जा सके

आतंकवाद रोकने के कौन-कौन से उपकरण?

अगर आतंकवाद और उग्रवाद का प्रभावी मुकाबला करना है तो इसके लिए त्रिस्तरीय रणनीति अपनाना जरूरी है. पहली- अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की सुरक्षा, दूसरी- इन ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से साझेदारी और तीसरी- विभिन्न प्लेटफॉर्म्स में मौजूद हिंसा को बढ़ावा देने वाली सामग्री की पहचान और समाधान करना.

बड़ी सोशल मीडिया कंपनियां इस तरह के कंटेंट की पहचान कर खुद ही उनपर रोक लगाती हैं. कई बार पुलिस और जांच एजेंसियों के निर्देश पर ये कंपनियां अपने प्लेटफॉर्म पर मौजूद हिंसा को उकसाने वाली सामग्री को हटाती हैं. बड़ी कंपनियां खुद विकसित किए गए एआई टूल्स से आतंकवादी विचारधारा फैलाने वाले कंटेंट का मुकाबला करती हैं. हिंसक सामग्री की पहचान करने के लिए ये कंपनियां तस्वीरों और वीडियो का मिलान करने, गैरकानूनी सामग्री की पहचान करने और अलग-अलग भाषाओं को समझने वाले एआई टूल्स का इस्तेमाल करती हैं. इतना ही नहीं इसके लिए ये कंपनियां स्ट्रेटजिक नेटवर्क डिसरप्शन की भी मदद लेती हैं, लेकिन इतने सब संसाधनों का इस्तेमाल करना इन कंपनियों के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बन जाता है. वो भी तब जब ये कंपनियां कई तरह के सुरक्षा सम्बंधी खतरों से जूझ रही हैं.

बड़ी कंपनियां खुद विकसित किए गए एआई टूल्स से आतंकवादी विचारधारा फैलाने वाले कंटेंट का मुकाबला करती हैं. हिंसक सामग्री की पहचान करने के लिए ये कंपनियां तस्वीरों और वीडियो का मिलान करने, गैरकानूनी सामग्री की पहचान करने और अलग-अलग भाषाओं को समझने वाले एआई टूल्स का इस्तेमाल करती हैं.


आतकंवाद और उग्रवाद का मुकाबला करने के लिए इन सोशल मीडिया कंपनियों और कानूनी एजेंसियों के बीच जो साझेदारी है, उसमें काफी भरोसेमंद माने जाने वाला फ्लेगर प्रोग्राम भी शामिल है. इसके तहत ये कंपनियां उन यूआरएल की पहचान में मदद करती हैं, जिनमें हिंसा को उकसाने वाला कंटेंट होता है. इसके अलावा साइट (SITE), फ्लैशप्वाइंट, जिहादोस्कोप और मेमरी जैसी ऑनलाइन सर्विस देने वाले संगठनों की भी मदद ली जाती है. ये संगठन ऑनलाइन आतंकवादी गतिविधियों को ट्रैक करते रहते हैं. सरकार की मदद से पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप में टेररिस्ट कंटेंट एनालिटिक्स प्लेटफॉर्म (TCAP) भी बनाए गए हैं, जो इस काम में मदद करते हैं. इतना ही नहीं इंटरनेट पर मौजूद हिंसक सामग्री की पहचान और उसकी रोकथाम के लिए कई गैरसरकारी संगठनों (NGOs)और कंटेंट डेवलपर की मदद ली जाती है क्योंकि खतरा बहुत बड़े पैमाने पर और बहुत बड़े क्षेत्र में फैला है.

अलग-अलग सोशल मीडिया साइट्स पर मौजूद आतंकी और हिंसक सामग्री (TVEC)की समस्या से निपटने के लिए सबसे पहले इन प्लेटफॉर्म्स के काम करने के तौर-तरीकों को समझना जरूरी है. आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए बने ग्लोबल इंटरनेट फोरम (GIFCT)ने एक ऐसा तरीका खोजा है, जो इस तरह के खतरों से निपटने का व्यवहारिक समाधान है और हर तरह की कंपनियां इसका इस्तेमाल कर सकती हैं. 2018 में इसने हैश शेयरिंग टेक्नोलॉजी विकसित की थी, जिसकी मदद से इस संगठन में शामिल कंपनियां आतंकी और हिंसक सामग्री से सम्बंधित कंटेंट को रोकने के तरीकों को शेयर कर रही हैं

ग्लोबल इंटरनेट फोरम ने हैश शेयरिंग डाटाबेस (HSDB)को लॉन्च करने के बाद से 2 बार इसमें बदलाव किए हैं, जिससे ये और भी बेहतर तरीके से काम कर सके. कंपनियां अगर इस तकनीकी का प्रभावी इस्तेमाल करना चाहती हैं तो उन्हें  आतंकी और हिंसक सामग्री (TVEC)की उस परिभाषा को स्वीकार करना होगा जो ग्लोबल इंटरनेट फोरम ने तय की है. एचएसडीबी की स्थापना संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 'प्रस्ताव 1267' के हिसाब से हुई है. यही वजह है कि अकेले हमला करने वाले आतंकी और कई देशों के चरमपंथी संगठन इस लिस्ट में शामिल नहीं हैं

ग्लोबल इंटरनेट फोरम ने हैश शेयरिंग डाटाबेस (HSDB)को लॉन्च करने के बाद से 2 बार इसमें बदलाव किए हैं, जिससे ये और भी बेहतर तरीके से काम कर सके.

2019 में न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च में हुए आतंकी हमले के बाद ग्लोबल इंटरनेट फोरम ने इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए नया तंत्र बनाया. हैश शेयरिंग डाटाबेस का भी विस्तार किया. हमलावर से जुडी जानकारी इसमें शामिल की गई. 2021 में ग्लोबल इंटरनेट फोरम ने आतंकी सामग्री को लेकर अपनी लिस्ट में और विस्तार किया क्योंकि व्हाइट सुप्रीमेसी मुहिम से जुड़ी हिंसा में बढ़ोत्तरी के बाद कई देशों ने इस बात पर चिंता जताई कि कुछ समूहों को आतंकी या उग्रवादी विचारधारा वाला घोषित करने को लेकर अलग-अलग देशों की सरकारें पक्षपात करती हैं. इस लिस्ट में विस्तार कर इन समूहों के घोषणापत्र को भी हिंसा उकसाने वाली सामग्री में शामिल किया गया. अब हैश शेयरिंग डाटाबेस के तहत तस्वीरें और वीडियो ही नहीं बल्कि पीडीएफ, यूआरएल और ऑडियो फाइल्स को भी शेयर किया जाता है

 

भविष्य के लिए क्या समाधान?

आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए हिंसक सामग्री पर रोक लगाना तो जरूरी है ही लेकिन इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि आतंकवाद और उग्रवाद से जुड़े लोगों का सोशल मीडिया पर किस तरह का बर्ताव है, वो कैसे वित्तीय लेन-देन करते हैं. अपनी हिंसक सोच को छुपाने के लिए वो किस तरह की कोड लैंग्वेज का इस्तेमाल करते हैं. अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मौजूद इस तरह की कंटेंट की पहचान करने के लिए आतंकवाद विरोधी मुहिम में लगी सभी संस्थाओं को तो इसमें शामिल करना ही होगा, साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि इससे किसी के मानवाधिकारों का उल्लंघन ना हो

भविष्य में अगर हमें ऑनलाइन आतंकी गतिविधियों को रोकने में सफलता हासिल करनी है तो वो इस बात पर निर्भर करता है हम सुरक्षित एआई टूल्स, इससे जुड़ी सूचनाओं का आदान-प्रदान और चरमपंथी विचारधारा की पहचान करने के तरीकों का कितना बेहतर इस्तेमाल कर पाते हैं. हिंसा को उकसाने वाली सामग्री का जितना तेजी से प्रचार-प्रसार होता है उसे रोकने के लिए जरूरी है कि इससे जुड़े एआई टूल्स को सीखा जाए. ग्लोबल इंटरनेट फोरम हिंसक सामग्री को लेकर अपने प्रस्तावों में लगातार विस्तार कर रहा है. जहां तक एआई की मदद से इस तरह का कंटेंट बनाने पर रोक लगाने का सवाल है, उस पर काबू पाने के लिए हैशिंग अब भी सबसे असरदार तरीका है. यहां पर ये बात याद रखनी भी जरूरी है कि जैसे-जैसे नए एआई टूल्स का विकास होते जा रहा है, वैसे-वैसे इनसे लड़ने की पुरानी तकनीकी बेअसर हो रही है. आतंकवाद विरोधी ग्लोबल इंटरनेट फोरम के तकनीकी निदेशक टॉम थ्रोले का ये कथन बिल्कुल सही है कि “कार में एयरबेग आ जाने का ये मतलब नहीं है कि आप सीट बेल्ट लगाना छोड़ दें“ इसलिए आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए ये जरूरी है कि कई स्तरों पर इससे लड़ने का तरीका अपनाएं. ग्लोबल इंटरनेट फोरम ने अपनी जांच में पाया है कि एआई टूल्स और अलग-अलग स्तरों पर सूचना शेयर करने से ऑनलाइन हिंसक सामग्री के प्रचार-प्रसार में कमी आई है. ये सुरक्षा प्रणाली तभी बेहतर काम करती है जब इसमें मानवीय और तकनीकी दोनों तरीके शामिल किए जाएं. तकनीकी का इस्तेमाल हो लेकिन उसे इंसान नियंत्रित करे

आतंकवाद विरोधी तंत्र कैसे हो तैयार?

सबसे पहले ये बात समझनी जरूरी है कि ऑनलाइन हिंसक सामग्री के खतरों से कोई एक देश या एक क्षेत्र नहीं निपट सकता. इसे रोकने के लिए उन सभी देश और संस्थाओं को साथ आना होग, जो इसका मुकाबला कर रहे हैं क्योंकि इसे रोकने के लिए जो कदम उठाए जाते हैं, उनके सामने मानवाधिकार और अन्तर्राष्ट्रीय कानून से जूझने की चुनौती भी आ सकती है. ग्लोबल इंटरनेट फोरम ने 2021 में इसे लेकर किए गए एक अध्ययन में ये पाया कि आतंकवाद का प्रभावी तरीके से तभी मुकाबला किया जा सकता है जब आतंकी हमले के पीड़ित और इससे प्रभावित होने वाले समुदायों के मानवाधिकारों का भी ध्यान रखा जाए. इसका एक तरीका ये भी है कि आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए जो टीम बनाई जाए, उसमें विविधता हो. सभी धर्म, जाति औऱ समुदाय के लोग उसमें शामिल हों. इसके साथ ही ये भी जरूरी है कि सरकारों, निजी कंपनी और नागरिक समाज (सिविल सोसायटी) से भी उनके विचार पूछे जाएं, जैसा कि दिल्ली में रायसीना डायलॉग इसे लेकर हर साल अपने बहुमूल्य सुझाव देता है. तकनीकी क्षेत्र की कंपनियों के लिए भी ये जरूरी है कि वो सरकार और विशेषज्ञों से सलाह लेते रहें, जिससे उनके काम में पारदर्शिता आएगी और ऑनलाइन आतंक के खतरे का प्रभावी तरीके से मुकाबला किया जा सकेगा

याद रखिए आतंकवादी और चरमपंथी गुट हिंसा फैलाने की अपनी ऑनलाइन रणनीति को लगातार बेहतर करते जा रहे हैं. इसलिए उनका मुकाबला करने वाली सरकारों और दूसरी संस्थाओं को चाहिए कि वो बेहतर तालमेल बनाकर काम करें, तभी इनकी चुनौती से निपटना संभव होगा

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