Published on Oct 04, 2022 Updated 0 Hours ago

आर्थिक विकास, भू-राजनीतिक अवसर और वैज्ञानिक नवीनीकरण का आज का अनूठा संयोजन, भारत को एक शोध महाशक्ति बनने के लिए सटीक प्रेरक साबित हो रहा है.

भारतीय विज्ञान के भविष्य में निवेश

आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर भारत के पास गर्व करने के लिए बहुत कुछ है. लेकिन विश्व का नेता बनने के लिए उसे अपनी राष्ट्रीय ताकत के सबसे अहमलेकिन लगातार उपेक्षित स्तंभ: विज्ञान और तकनीकी मेंअपनी बढ़ती आर्थिक शक्तियों को प्रवाहित करना होगा. 

यदि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) पर इसके अनुपात में किए जाने खर्च के प्रतिशत पर नजर डाले तो, 2018 में जारी हुई वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने अपने जीडीपी का महज 0.66 प्रतिशत ही अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) पर खर्च किया, जबकि इस दौरान चीन ने अपनी जीडीपी का 2.14 प्रतिशत तथा अमेरिका ने तीन प्रतिशत खर्च किया था.

वैज्ञानिक नवीनीकरण में अभाव नजर

जब भी वैज्ञानिक नवीनीकरण की बात आती है भारत में हमेशा ही इसके लिए समर्थन का घोर अभाव नजर आता है. यदि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) पर इसके अनुपात में किए जाने खर्च के प्रतिशत पर नजर डाले तो, 2018 में जारी हुई वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने अपने जीडीपी का महज 0.66 प्रतिशत ही अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) पर खर्च कियाजबकि इस दौरान चीन ने अपनी जीडीपी का 2.14 प्रतिशत तथा अमेरिका ने तीन प्रतिशत खर्च किया था. लंबी अवधि में नजर डाली जाए तो चिंता और भी बढ़ जाती है. विगत 20 वर्षो में अनुसंधान पर होने वाला चीनी खर्च उसकी आर्थिक उन्नति से मेल खाने लगा हैजबकि भारत में व्यापक आर्थिक वृद्धि के बावजूद इस दिशा में होने वाला खर्च कम हुआ है. 

Source: World Bank

यह एक बड़ी गलती है. दीर्घकालीन विकास में वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति सबसे अहम उत्प्रेरक है. जैसा कि नोबेल पुरस्कार विजेता डेविड ग्रॉस ने कहा था, ‘‘भारत..के पास वैज्ञानिक शक्ति बनने की क्षमता मौजूद है.’’ कोविड-19 के लिए देशी वैक्सीन का विकास इस क्षमता को दर्शाने का एक बेहतरीन संकेत है. 

आजग्रॉस का कथन पहले से कहीं अधिक सच है. भारत एक ऐसी बेहतर और मधुर स्थिति में बैठा हैजहां उसे भू-राजनीतिक रुझानों से लाभ मिल सकता है. क्योंकि अब आपूर्ति श्रृंखलाएं चीन से दूर और विविध होती जा रही है. इसके साथ ही कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई)जैव प्रौद्योगिकी और अक्षय ऊर्जा जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों के रूप में वैज्ञानिक रुझान भी तीव्र गति से परिपक्व होने लगे हैं. विज्ञानआज चक्रव्यूह के ऐसे चरण में हैजहां एक क्षेत्र में होने वाली प्रगति दूसरे क्षेत्र को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा देती है. प्रोटिन्स का अध्ययन करने के लिए विकसित किया गया गुगल का अल्फाफोल्ड एआई मॉडल इसका एक उदाहरण है. केवल एक वर्ष में ही अल्फाफोल्ड ने विज्ञान को ज्ञात सभी प्रोटिन्स की संरचनाओं की भविष्यवाणी कर दी है और अब यह जैवतकनीकी अनुसंधानकर्ताओं के लिए अनिवार्य उपकरण बन गया है. विज्ञान के मोर्चे पर इस तरह की उथल पुथल मचा देने वाली खोज अब तेज और आम होने लगी हैं. अब भारत को अपनी वैज्ञानिक महत्वाकांक्षाओं को शुरू करने के लिए इस पीढ़ीगत अनुकूल माहौल का लाभ उठाना चाहिए.

भारत को इसकी शुरुआत अनुसंधान एवं विकास पर अपने सकल खर्च (जीईआरडी) में वृद्धि के साथ करनी चाहिए. दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति दीपक पेंटल ने वास्तविक लक्ष्य के रूप में जीईआरडी को जीडीपी के एक प्रतिशत तक बढ़ाने की वकालत की थी.

भारत को इसकी शुरुआत अनुसंधान एवं विकास पर अपने सकल खर्च (जीईआरडी) में वृद्धि के साथ करनी चाहिए. दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति दीपक पेंटल ने वास्तविक लक्ष्य के रूप में जीईआरडी को जीडीपी के एक प्रतिशत तक बढ़ाने की वकालत की थी. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह खर्च विगत तीस वर्षो की तरह स्थिर नहीं होना चाहिए. यह महत्वपूर्ण है कि जीईआरडी में भारत की अर्थव्यवस्था में होने वाले विकास के अनुपात में वृद्धि की जाए.

2020 में बनी राष्ट्रीय शिक्षा नीतिजो 2022 में भी लागू नहीं हो सकी हैमें राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान (एनआरएफ/नेशनल रिसर्च फाउंडेशन) के गठन का प्रस्ताव थाजिसका उद्देश्य विश्वविद्यालयों में बड़े पैमाने पर अनुसंधान प्रकल्पों को पांच वर्ष में 50,000 करोड़ रुपए के खर्च से बढ़ावा देना था.  इसे यूएस के नेशनल साइंस फाउंडेशन पर आधारित किया जा सकता हैजिसने अमेरिका के विश्वविद्यालयों को अनुसंधान पावरहाउस यानी महाशक्ति में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

आरंभ में अनुसंधान पर होने वाला अधिकांश खर्च केंद्र की ओर से किया जाना चाहिएलेकिन लंबी अवधि का लक्ष्य निजी क्षेत्र में होने वाले आर एंड डी के खर्च में वृद्धि को रखा जाना चाहिए. जैसा कि 2021 के आर्थिक सर्वे में बताया गया था कि वैज्ञानिक रूप से प्रभावी देशोंजैसे यूएस और चीन में जीईआरडी का 80 प्रतिशत से ज्यादा खर्च निजी क्षेत्र करता हैजो गुगल के अल्फाफोल्ड जैसा सफलताओं की व्याख्या करता है. इसके मुकाबले भारतीय निजी क्षेत्र का अनुसंधान में योगदान महज 37 प्रतिशत है. इस संदर्भ में एनआरएफ का शैक्षणिक समुदाय और उद्योगों के बीच संबंध बढ़ाने का लक्ष्य अमूल्य कहा जा सकता है. 

भारत की विज्ञान रणनीति

हालांकि, ज्यादा राशि का मतलब यह नहीं होता कि इससे नवीनीकरण में भी वृद्धि होगी. विज्ञान के मूल में मानवीय प्रतिभा होनी चाहिए. ऐसे में भारत की विज्ञान रणनीतिमानवीय पूंजी को बढ़ावा देने पर ध्यान देने वाली होनी चाहिए. खर्च में होने वाली किसी भी वृद्धि का उपयोग पीएचडी और पोस्ट डॉक्टोरल छात्रवृत्ति को बढ़ावा देने वाला होना चाहिएताकि श्रेष्ठ विद्यार्थियों को बुनियादी शोध की ओर आकर्षित किया जा सके. डॉक्टोरल रिसर्च के लिए प्रधानमंत्री फेलोशिप जैसी पहल एक अच्छी शुरुआत हैलेकिन इसका विस्तार किया जाना चाहिए.

यह एक ऐसा क्षेत्र हैजहां भारत का भू-राजनीतिक लाभ उपयोगी साबित हो सकता है. यूएस जैसे देशों के साथ अपने दोस्ताना संबंधों का लाभ का उपयोग भारत वैज्ञानिक आदान प्रदान को प्रोत्साहित करने के लिए कर सकता है. क्वॉड फेलोशिप जैसे कार्यक्रम – जो अमेरिकी विश्वविद्यालयों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी में स्नातक डिग्री हासिल करने के लिए सभी चार क्वॉड देशों (अमेरिकाभारतजापानऑस्ट्रेलिया) के 100 छात्रों को निधि देता है – एक अच्छी पहल हैलेकिन इसका दायरा बहुत छोटा है. भारत को अपने भागीदारों के साथ प्रतिभा विनिमय कार्यक्रमों पर विचार करना चाहिएजिनके लाभार्थी चुनते वक्त किसी प्रकार की सार्वजनिक सेवा दायित्व को आधार बनाया जाना चाहिए. इसे सिंगापुर के राष्ट्रपति की ओर से दी जाने वाली छात्रवृत्ति पर आधारित किया जा सकता हैताकि स्नातक बनने के बाद भारतीय छात्र स्वदेश लौटकर यहां एक देशी अनुसंधान इकोसिस्टम को विकसित करें. इस तरह के दायित्व का एक उदाहरण स्नातक होने के बाद राष्ट्रीय प्रयोगशाला में कुछ वर्षों का शोध करना हो सकता है.

भारत को अपने भागीदारों के साथ प्रतिभा विनिमय कार्यक्रमों पर विचार करना चाहिए, जिनके लाभार्थी चुनते वक्त किसी प्रकार की सार्वजनिक सेवा दायित्व को आधार बनाया जाना चाहिए. इसे सिंगापुर के राष्ट्रपति की ओर से दी जाने वाली छात्रवृत्ति पर आधारित किया जा सकता है

भारत को वैज्ञानिक शक्ति बनने के लिए चीन को मिली सफलता से भी सबक सीखना चाहिए. चीन की एक आइडिया थाउजेंड टैलेंट्स प्लानकी चर्चा की जा सकती है. 2008 में शुरू हुई इस योजना के तहत विदेश में बसे हुए चीनी वैज्ञानिकों को उच्च वेतनअधिक अनुसंधान खर्च और आवासीय सुविधाएं देकर चीन में वापस आने के लिए कहा जा रहा है. भारत को भी विदेश में बसे अपने प्रतिभाशाली नागरिकों को वापस लाने के लिए ऐसी ही कोई योजना बनानी चाहिएजिसका उपयोग भारत की भविष्य के वैज्ञानिकों को प्रशिक्षण देने में किया जा सके. 

स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने देश को अपनी शताब्दी वर्ष तक एक विकसित देश बनने की चुनौती दी है. ऐसा करने के लिए हमें सिर्फ मेड इन इंडिया की जरूरत नहीं हैबल्कि भारत में आविष्कार की भी जरूरत है. आर्थिक विकासभू-राजनीतिक अवसर और वैज्ञानिक नवीनीकरण का आज का अनूठा संयोजनभारत को एक शोध महाशक्ति बनने के लिए सटीक प्रेरक साबित हो रहा है. आजनवीनीकरण के प्रति इस प्रतिबद्धता को बनानाभारत की भविष्य की समृद्धि की दिशा में हमारे द्वारा लिए गए सबसे महत्वपूर्ण निर्णयों में से एक हो सकता है.

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Contributors

Preey Shah

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Preey Shah is an MS candidate in Computer Science at Stanford University with a focus in artificial intelligence. He obtained his undergraduate degree in Computer ...

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Jyotirmai Singh

Jyotirmai Singh

Jyotirmai Singh is a PhD candidate in Physics at Stanford University interested in quantum sensing. He obtained his undergraduate degree in Physics from UC Berkeley.

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