Published on Nov 10, 2021 Updated 0 Hours ago

तालिबान जिस दिशा में बढ़ता है, चाहे वो ईरान, पाकिस्तान या चीन की तरफ़ हो, उसमें पानी जो भूमिका अदा कर सकता है उसे न ख़ारिज किया जा सकता है, न ही करना चाहिए.

अफ़ग़ानिस्तान और इस क्षेत्र का भविष्य पानी की कूटनीति से जुड़ा हुआ है

अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका की वापसी और तालिबान द्वारा गठित अंतरिम सरकार ने दुनिया भर में अनगिनत चिंताएं पैदा कर दी हैं. इन चिंताओं में सख़्त शरिया क़ानून को फिर से लागू करने से लेकर महिलाओं और अल्पसंख्यकों को लेकर तालिबान का रवैया और उनके साथ तालिबान का सलूक, आतंकवाद में संभावित बढ़ोतरी और उसका आसपास के देशों में असर के साथ-साथ इस क्षेत्र में और इससे आगे नई शक्तियों का खेल शामिल हैं. अफ़ग़ानिस्तान में पिछले कुछ दशकों में जो प्रगति दर्ज की गई है, उसे सख़्त शरिया क़ानून पलट सकता है.

अफ़ग़ानिस्तान का हर पड़ोसी देश जल संसाधनों के लिए एक हद तक अफ़ग़ानिस्तान पर निर्भर है. किस तरह साझा पानी और पानी की कूटनीति को लेकर मौजूदा कमी का सवाल क्षेत्रीय शक्ति की राजनीति और भविष्य की साझेदारी पर असर डालेगा, उस पर ज़्यादा ध्यान और अध्ययन की ज़रूरत है.

समृद्ध संस्कृति और प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर अफ़ग़ानिस्तान का दुर्भाग्यपूर्ण इतिहास वैश्विक और क्षेत्रीय शक्तियों के द्वारा इस्तेमाल और शोषण की कोशिशों से अनजान नहीं है. हालांकि ज़्यादातर वैश्विक और क्षेत्रीय शक्तियां अफ़ग़ानिस्तान को संभावित साझेदार या संपत्ति के तौर पर नहीं देखती हैं. अफ़ग़ानिस्तान को लेकर दुनिया की चिंताओं की लंबी सूची में बढ़ती पानी की असुरक्षा, अफ़ग़ानिस्तान के भीतर और पड़ोसियों के लिए, भी है जिस पर दुनिया का उतना ध्यान नहीं जा रहा जितना जाना चाहिए. अफ़ग़ानिस्तान का हर पड़ोसी देश जल संसाधनों के लिए एक हद तक अफ़ग़ानिस्तान पर निर्भर है. किस तरह साझा पानी और पानी की कूटनीति को लेकर मौजूदा कमी का सवाल क्षेत्रीय शक्ति की राजनीति और भविष्य की साझेदारी पर असर डालेगा, उस पर ज़्यादा ध्यान और अध्ययन की ज़रूरत है.

अफग़ानिस्तान में पानी: उपलब्धता बनाम पहुंच

समुद्र से दूर और ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान, तज़ाकिस्तान, चीन और पाकिस्तान से घिरा अफ़ग़ानिस्तान जल संसाधन के मामले में समृद्ध है. अफ़ग़ानिस्तान का भूगोल और भौगोलिक स्थिति पानी के इस्तेमाल और उसके दोहन के लिए महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है. परंपरागत तौर पर अफ़ग़ानिस्तान के कुछ क्षेत्रों ने अच्छी बारिश का अनुभव किया है. हालांकि, हाल में लंबे वक़्त तक सूखे की वजह से अफ़ग़ानिस्तान के भीतर और पड़ोस के देशों में पानी की गंभीर कमी हो गई है. अफ़ग़ानिस्तान में पानी की उपलब्धता पर सटीक डाटा हासिल करना थोड़ा मुश्किल है लेकिन अनुमानों के मुताबिक़ चार बड़ी नदियों के साथ उत्तरी नदी का जलाशय और अनगिनत दूसरी छोटी नदियां और झील 75 अरब क्यूबिक मीटर (बीसीएम) पानी मुहैया कराती हैं. लगभग 4 करोड़ लोगों के लिए मौजूदा उपयोग क़रीब 33-35 प्रतिशत के क़रीब होने की उम्मीद है.  चार प्रमुख नदी जलाशय हैं आमू दरिया, हेलमंद, हरिरुद-मुर्ग़ाब और काबुल.

आमू दरिया मध्य एशिया की सबसे लंबी नदियों में से एक है और ये ताज़िकिस्तान, उज़्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के साथ अफ़ग़ानिस्तान की सीमा साझा करती है और अरल सागर में प्रवाहित होती है.

हेलमंद अफ़ग़ानिस्तान के भीतर सबसे लंबी नदी है और ये ईरान के साथ अफ़ग़ानिस्तान की सीमा साझा करती है. हेलमंद नदी दोनों देशों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और इसके पानी का इस्तेमाल सिंचाई में व्यापक तौर पर होता है. हेलमंद इकलौती नदी है जिसका पानी साझा करने के लिए ईरान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच एक संधि मौजूद है. दोनों देशों ने अतीत में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तत्वावधान में हमून झील पर संवाद के लिए रचनात्मक कोशिशें की हैं. हालांकि उन कोशिशों के बावजूद कुछ ठोस बात नहीं बन सकी. मौजूदा सूखे के तीन वर्षों ने निरंतर सहयोग में कमी और पानी के इस्तेमाल पर तनाव को सामने ला दिया है.

काबुल नदी अफ़ग़ानिस्तान की सबसे महत्वपूर्ण नदी है जिसमें कुल पानी का 26 प्रतिशत हिस्सा है. काबुल नदी की शुरुआत हिंदुकुश पहाड़ियों से होती है और पूर्वी दिशा की ओर बढ़ने पर पाकिस्तान पहुंचने से पहले कुनार नदी (पाकिस्तान में चित्राल) में मिलती है और फिर सिंधु नदी में शामिल हो जाती है.

हरिरुद-मुर्ग़ाब नदी में अफ़ग़ानिस्तान के जल संसाधनों का तकरीबन 12 प्रतिशत हिस्सा है और ये ईरान से होते हुए तुर्कमेनिस्तान तक बहने से पहले हेरात से होकर गुज़रती है जो कि सघन सिंचाई वाला इलाक़ा है.

काबुल नदी अफ़ग़ानिस्तान की सबसे महत्वपूर्ण नदी है जिसमें कुल पानी का 26 प्रतिशत हिस्सा है. काबुल नदी की शुरुआत हिंदुकुश पहाड़ियों से होती है और पूर्वी दिशा की ओर बढ़ने पर पाकिस्तान पहुंचने से पहले कुनार नदी (पाकिस्तान में चित्राल) में मिलती है और फिर सिंधु नदी में शामिल हो जाती है. कुनार नदी अफ़ग़ानिस्तान में बहती है जिससे पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान- दोनों देश साझा जलाशय की धारा के अनुकूल और धारा के प्रतिकूल प्रवाह के क्षेत्र बनते हैं. काबुल जलाशय के क्षेत्र में क़रीब ढाई करोड़ लोग बसते हैं और ये काबुल, इस्लामाबाद और दूसरे शहरों के लिए महत्वपूर्ण है. इसको लेकर कोई औपचारिक समझौता या प्रबंधन का तौर-तरीक़ा नहीं बना है. उत्तरी जलाशय, छोटी नदियों का एक जटिल क्षेत्र, शायद अफ़ग़ानिस्तान में अकेला बड़ा जलाशय है जिसका व्यापक इस्तेमाल होता है.

ये संक्षेप विवरण न सिर्फ़ साझा जल संसाधनों और दीर्घकालीन जल सुरक्षा पर अफ़ग़ानिस्तान और इस क्षेत्र के बीच परस्पर निर्भरता का संकेत देता है बल्कि ये भी बताता है कि इन संसाधनों पर सहयोग और अफ़ग़ानिस्तान की मौजूदा या भविष्य की सरकार को फ़ायदा भूराजनीतिक साझेदारी में एक प्रमुख कारण होगा. अफ़ग़ानिस्तान जहां पर्याप्त पानी से भरा-पूरा है वहीं ये भी सच है कि लोगों तक उपलब्धता वैसी नहीं है. अफ़ग़ानिस्तान के 30 प्रतिशत से कम भाग की स्वच्छ पानी तक पहुंच है. कई दशकों की बदइंतज़ामी और पानी के इंफ्रास्ट्रक्चर और आपूर्ति में निवेश की कमी की वजह से यहां के लोग पानी और खाद्य संकट का सामना कर रहे हैं. ये संकट लंबे सूखे, बाढ़, मिट्टी के कटाव एवं मरुस्थलीकरण, अवक्षेपण के स्वरूप में परिवर्तन और जलवायु परिवर्तन के दूसरे असर की वजह से और बढ़ गया है. जहां भारत समेत कई देश, अंतर्राष्ट्रीय संगठन और ग़ैर-सरकारी संगठन युद्ध से नष्ट चीज़ों को फिर से बनाने और प्रबंधन, बांध, रिसाइक्लिंग यूनिट और छोटे सामुदायिक नेतृत्व वाले पानी के नेटवर्क और कार्यक्रमों के ज़रिए नई प्रणाली लाने का काम कर रहे हैं, लेकिन ये पर्याप्त नहीं है. मौजूदा अंतरिम सरकार को देखते हुए इस तरह के कार्यक्रमों की राह स्पष्ट नहीं है.

तालिबान के तहत जल संसाधन

तालिबान को मीरब यानी स्थानीय अनौपचारिक और परंपरागत जल प्रबंधन संस्थानों को प्रभावित करते देखा गया है. उसने पानी को अपने पक्ष में इस्तेमाल किया है. ये कोई नई बात नहीं है. आईएसआईएस के कुछ गुटों ने भी इराक़ में पूरे समुदायों और गांवों को अपने समर्थन में करने के लिए पानी को औज़ार और हथियार की तरह इस्तेमाल किया है. निर्वाचित सरकारें भी अक्सर पानी को समर्थन जुटाने के लिए इस्तेमाल करती हैं या ग़ैर-सरकारी पक्षों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करती हैं.

अफ़ग़ानिस्तान फिलहाल बिजली के लिए अपने पड़ोसियों पर निर्भर है क्योंकि देश के भीतर बिजली के उत्पादन की क्षमता बेहद कम है. अफ़ग़ानिस्तान के भीतर सीमित संख्या में कुशल मानव संसाधन और जानकारी मौजूद है. साथ ही साझा पानी पर क्षेत्रीय संवाद में हिस्सेदारी को लेकर वित्तीय क्षमता और कथित झिझक भी है.

अतीत की सरकारों के लिए पानी बड़ा मुद्दा नहीं रहा है. 2014 में पूर्व राष्ट्रपति ग़नी ने आर्थिक विकास और ऊर्जा के लिए पानी के प्रबंधन को प्राथमिकता देने की शुरुआत और सीमा पार गुज़रने वाली नदियों के ऊपर अपना अधिकार जमाने की कोशिश की. उपलब्ध पानी में से ज़्यादातर का इस्तेमाल सिंचाई के लिए किया जाता है और इसमें पानी निकालने के औपचारिक और अनौपचारिक- दोनों तरीक़ों का उपयोग होता है. लेकिन दूसरे क्षेत्रों जैसे उद्योग और पनबिजली के लिए पानी के इस्तेमाल में बेहद कम निवेश किया गया है. अफ़ग़ानिस्तान फिलहाल बिजली के लिए अपने पड़ोसियों पर निर्भर है क्योंकि देश के भीतर बिजली के उत्पादन की क्षमता बेहद कम है. अफ़ग़ानिस्तान के भीतर सीमित संख्या में कुशल मानव संसाधन और जानकारी मौजूद है. साथ ही साझा पानी पर क्षेत्रीय संवाद में हिस्सेदारी को लेकर वित्तीय क्षमता और कथित झिझक भी है.

इस झिझक में कैसे बदलाव होगा ये काफ़ी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के साथ कैसी साझेदारी बनाती है. लेकिन क्या अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार पानी के संकट को समझती है जो व्यापक खाद्य और स्वास्थ्य संकट में बदल सकता है और इस संकट से निपटने के लिए तालिबान सरकार क्या तरीक़े अपनाती है, ये देखा जाना अभी बाक़ी है.

आगे किन चुनौतियों पर विचार की ज़रूरत है?

इस बात में कोई शक नहीं है कि अफ़ग़ानिस्तान के हर पड़ोसी के साथ भारत समेत दूसरे क्षेत्रीय देशों को अफ़ग़ानिस्तान में अपनी भूमिका अदा करनी होगी. परिवर्तन दिख रहा है क्योंकि हर देश धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है और अपना दृष्टिकोण रख रहा है. कोई मौजूदा सरकार के वैध होने की मान्यता दे रहा है तो कोई देखो और इंतज़ार करो की नीति अपना रहा है. इस मामले में पाकिस्तान और ईरान के पास सबसे ज़्यादा पाने का मौक़ा है. वो अपनी साझा नदियों के उपयोग से लेकर अफ़ग़ानिस्तान पर अपनी निर्भरता का अपने फ़ायदे में इस्तेमाल कर सकते हैं. जब अफ़ग़ानिस्तान ने पानी प्रबंधन का एक तरीक़ा शुरू किया तो पाकिस्तान और ईरान ने सबसे ज़्यादा नाराज़गी भी जताई थी. इस नाराज़गी का एक हिस्सा भारत की मदद को लेकर भी था. ईरान इकलौता देश है जिसका पानी को लेकर अफ़ग़ानिस्तान के साथ एक समझौता है लेकिन अतीत में हेलमंद और हरिरुद नदियों और इनकी सहायक नदियों को लेकर उसका अफ़ग़ानिस्तान के साथ कुछ तनाव भी रहा है. 2017 में राष्ट्रपति रूहानी ने भारत के द्वारा अफ़ग़ानिस्तान में बनाए गए सलमा बांध को लेकर चेतावनी भी दी थी. ईरान का दावा है कि पानी की कमी हमून की प्रसिद्ध दलदली ज़मीन को नष्ट कर सकती है. रूहानी के इस तीखे बयान से पहले तालिबान ने हेरात में सलमा बांध (अफ़ग़ानिस्तान-भारत दोस्ती का बांध) के पास एक चेकप्वाइंट पर हमला किया था जिसका ईरान ने कथित रूप से समर्थन किया था.

पाकिस्तान ने भी साझा काबुल नदी पर बांध बनाने की गतिविधि को लेकर बेचैनी जताई है, ख़ास तौर पर भारत द्वारा प्रायोजित शाहतूत बांध के ख़िलाफ़. इस बांध को लेकर समझौता ज्ञापन पर फरवरी 2021 में हस्ताक्षर किया गया था. पाकिस्तान की घबराहट की वजह काबुल और चित्राल नदियों को लेकर किसी संधि या सहयोग का तौर-तरीक़ा नहीं होने के साथ-साथ भारत का समर्थन और भागीदारी है. वैसे तो पाकिस्तान ने चित्राल नदी पर अफ़ग़ानिस्तान को बताए बिना भंडारण बांध बनाने की एकतरफ़ा रणनीति अपनाई है लेकिन उसे इस बात का डर भी है कि भारत अपनी स्थिति का इस्तेमाल दोनों तरफ़ पाकिस्तान को तंग करने के लिए करेगा. ये चिंताएं सही हों या नहीं लेकिन अफ़ग़ानिस्तान की नई सरकार, जिसे पाकिस्तान ने औपचारिक तौर पर मान्यता दे दी है, के साथ पाकिस्तान के व्यवहार, पानी साझा करने के समझौतों और एकतरफ़ा पानी के दोहन की इसकी सोच में इनकी बड़ी भूमिका होगी. भारत के साथ पाकिस्तान के मौजूदा ख़राब संबंधों को देखते हुए वो अपनी स्थिति का इस्तेमाल भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच किसी भी संभावित सहयोग को पटरी से उतारने में कर सकता है, ख़ास तौर से जल संसाधन के विकास को लेकर सहयोग को जिस पर पाकिस्तान निर्भर है.

मध्य एशिया के देशों, जो रूस की तरह रवैया अपनाते हैं, का अफ़ग़ानिस्तान के साथ सीमित आर्थिक और व्यापारिक साझेदारी है. अभी तक साझा पानी को लेकर कोई बड़ा मुद्दा खड़ा नहीं हुआ है लेकिन अगर भविष्य में अफ़ग़ानिस्तान की कोई सरकार उत्तर और उत्तर-पूर्व क्षेत्र में विकास की तरफ़ अपना ध्यान देती है तो इससे आमू दरिया के उज़्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान तक प्रवाह पर असर पड़ सकता है.

निश्चित रूप से अफ़ग़ानिस्तान को अपने जल संसाधनों के इस्तेमाल और दोहन, आयातित पनबिजली पर निर्भरता कम करने, सिंचाई प्रणाली को सुधारने और देश भर में लोगों तक पानी और सफाई की पहुंच बढ़ाने का अधिकार है. अफग़ानिस्तान कई बड़ी नदियों का देश है जो पड़ोस के देशों को भी पानी पहुंचाता है. ऐसे में सफल पानी की कूटनीति में शामिल होने के लिए वो अपनी परिस्थिति का फ़ायदा भी उठा सकता है. हालांकि फिलहाल उसके पास ऐसा करने का माध्यम और विशेषज्ञता नहीं है. चूंकि अफ़ग़ानिस्तान का घटनाक्रम इस क्षेत्र के सुरक्षा माहौल पर दबाव डालता है, ऐसे में पानी को लेकर बढ़ती असुरक्षा और जलवायु परिवर्तन से खलल का इस बातचीत में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने की संभावना है.

तालिबान जिस दिशा में बढ़ता है, चाहे वो ईरान, पाकिस्तान या चीन की तरफ़ हो, उसमें पानी जो भूमिका अदा कर सकता है उसे न तो खारिज किया जा सकता है, न ही करना चाहिए. इस बात में कोई शक नहीं है कि जिन पड़ोसी देशों में पानी का अनुकूल प्रवाह है वो इसका ध्यान रखेंगे, ख़ास तौर पर तब जब अनुकूल समझौते की पेशकश हो और जहां पानी को तालिबान की ज़रूरत की चीज़ से बदला जा सकता है. भारत इन बातों से दूर नहीं रह सकता है, ख़ास तौर पर तब जब अफ़ग़ानिस्तान के पड़ोसी देश रूस और चीन के असर में आ सकते हैं. क्षेत्रीय विकास के मूल में पानी के होने की संभावना नहीं है लेकिन ये जोखिम बढ़ा सकता है. बिना शक कहा जा सकता है कि इसका व्यापक असर दक्षिण एशिया पर पड़ेगा.

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