Author : Shashidhar K J

Published on Aug 02, 2021 Updated 0 Hours ago

मौजूदा वक़्त में ही वो अवसर है जिसमें हम ये दिखा सकते हैं कि हम कितनी पारदर्शिता तैयार कर सकते हैं.

वर्चुअल करेंसी के साथ चौथी औद्योगिक क्रांति: क्रिप्टोकरेंसियों के प्रति डर और नफ़रत

इस साल फ़रवरीमार्च में बिटकॉइन में 15 प्रतिशत की गिरावट की ख़बर सुर्ख़ियों में छा गई थी. इस क्रिप्टोकरेंसी के भाव 49 हज़ार अमेरिकी डॉलर के भी नीचे  गए थे

नतीजतन ईथर टोकन जैसे दूसरी क्रिप्टोकरेंसियों की क़ीमतें भी 20 प्रतिशत तक नीचे गिर गए. संयोगवश दो प्रमुख बयानों के साथसाथ इनकी क़ीमतों में गिरावट देखी गई

  • पहला बयान अमेरिका की मौजूदा ट्रेज़री सेक्रेटरी जेनेट येलैन की तरफ़ से आया था. उन्होंने बिटकॉइन को लेनदेन के संचालन का बेहद अक्षम तरीक़ा करार दिया था. उन्होंने इसकी क़ीमत को बेहद काल्पनिक और अव्यवहार्य बताया था.
  • दूसरा बयान टेस्ला मोटर्स के सीईओ एलन मस्क की ओर से आया. आमतौर पर वो क्रिप्टोकरेंसियों को लेकर तेज़ी का रुख़ जताते रहे हैं. बहरहाल उस समय एक ट्वीट के ज़रिए उन्होंने बिटकॉइन की क़ीमत के ज़रूरत से ज़्यादा ऊंचे स्तर पर रहने की आशंका जताई थी.

उम्मीद के मुताबिक इन टिप्पणियों पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आईं. क्रिप्टोकरेंसियों के समर्थकों और उनके विरोधियों ने अपनेअपने हिसाब से तर्क पेश किए. कुछ लोगों ने विनम्र अंदाज़ में इनको लेकर लोगों से सतर्क रहने की अपील भी की. बहरहाल, हालात को गहराई से समझने के लिए ठंडे दिमाग़ से सोचने की ज़रूरत है.

बिटकॉइन के इतिहास में इससे भी बुरे दौर देखने को मिले हैं. 2011 के बाद से अब तक 13 बार इसमें बड़े स्तरों पर गिरावट देखी गई है. दिसंबर 2017 में आई गिरावट के दौरान बिटकॉइन के भाव में 83.7 प्रतिशत तक की कमी  गई थी. ऐसी गिरावटों का सामना व्यक्तिगत निवेशकों को करना पड़ा है. इन्हें बिटकॉइन व्हेल्स की संज्ञा दी गई है. उन्होंने जमाख़ोरी के ज़रिए इसकी क़ीमत को आसमान की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया था. “व्हेल जैसे इन निवेशकों ने बिटकॉइन को लेकर ज़बरदस्त हवा बनाई. उन्होंने दूसरे खुदरा निवेशकों को भी इसमें निवेश करने के लिए प्रेरित किया. जब भाव शिखर पर था तो उन्होंने खूब पैसे बनाए. बहरहाल यहां ये बात याद रखनी चाहिए कि सहसंबंध का मतलब ये नहीं है कि गिरावट के पीछे की वजह यही रही. हो सकता है कि जेनेट येलैन और एलन मस्क के बयानों का बिटकॉइन की क़ीमतों में आई गिरावट में कोई हाथ नहीं रहा हो. इस बात की संभावना ज़्यादा है कि ये एक किस्म का भाव में आया सुधार था जिसमें कुछ निवेशकों ने मुनाफ़ा कमा लिया

भले ही बिटकॉइन के दाम गिर रहे हैं लेकिन अब भी इस पर भरोसा करने वाले लोगो का एक तबका मौजूद है. ये लोग क़ीमतों के आसमान छूने की आस में अब भी बिटकॉइन जमा कर रहे हैं. क्रिप्टोकरेंसियों की बात करते वक़्त उतारचढ़ावों और अटकलबाज़ियों को मद्देनज़र रखना ज़रूरी है. ये कमज़ोर दिल वाले लोगों का खेल नहीं है

बिटकॉइन के इतिहास में इससे भी बुरे दौर देखने को मिले हैं. 2011 के बाद से अब तक 13 बार इसमें बड़े स्तरों पर गिरावट देखी गई है.

बिटकॉइन के चढ़ाव में संस्थागत निवेशकों द्वारा दिखाई गई दिलचस्पी का भी बड़ा हाथ रहा है. संस्थागत निवेशक एक परिसंपत्ति के तौर पर क्रिप्टोकरेंसियों को अब और अधिक गंभीरता से लेने लगे हैं. टेस्ला, माइक्रोस्ट्रैटेजी, मैसाच्यूसेट्स म्यूचुअल लाइफ़ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन और स्कवॉयर जैसी कंपनियां अपने ट्रेज़री ऑपरेशंस (परिसंपत्ति के रूप में) के हिस्से के तौर पर बिटकॉइन रख रहे हैं, वहीं दूसरी ओर मास्टरकार्ड जैसी कंपनियों ने घोषणा की है कि वो कुछ चुनिंदा क्रिप्टोकरेंसियों (करेंसी के तौर पर) में भुगतान की सुविधा प्रदान करने जा रहे हैं. टेस्ला ने भी ऐलान किया है कि वो यूज़र्स को अपने इलेक्ट्रिक कार बिटकॉइन में ख़रीदने की सुविधा देगा. इतना ही नहीं फ़िडेलिटी इंवेस्टमेंट ने 774 संस्थागत निवेशकों का एक सर्वेक्षण किया. इससे पता चला कि 36 प्रतिशत निवेशकों ने क्रिप्टोकरेंसियों को अपने पोर्टफ़ोलियो का हिस्सा बना रखा है

मोटे तौर पर क्रिप्टोकरेंसियों में संस्थागत निवेशकों की दिलचस्पी अच्छी बात है. क्रिप्टोकरेंसियों के बाज़ार में उनका दख़ल होने से रिटेल व्हेल्स की हरकतों पर लगाम लग सकेगी. साथ ही इनके कारोबार में और जवाबदेही सुनिश्चित की जा सकेगी. बहरहाल क्रिप्टोकरेंसियों में अधिक तादाद में संस्थागत निवेशकों द्वारा रुचि दिखाने से ये आवश्यक हो गया है कि इनमें जोखिमप्रबंधन से जुड़े सुचारू उपाय किए जाएं. जिस तरह से एसेट मैनेजमेंट कंपनियां (एएमसी) लोगों की बचत और पेंशन को उतारचढ़ावों से भरे क्रिप्टोकरेंसी बाज़ार में लगाने लगे हैं, उसको देखते हुए ये और भी ज़रूरी हो जाता है. क्रिप्टोकरेंसियों के प्रति सरकार का सख्त या शत्रुतापूर्ण रवैया यहां कारगर नहीं हो सकता. सरकारों को क्रिप्टोकरेंसियों में होने वाले निवेशों के लिए सुरक्षा से जुड़ा तंत्र बनाना होगा ताकि अनचाहे हालातों से उनकी रक्षा की जा सके

इतना ही नहीं क्रिप्टोकरेंसी बाज़ार में संस्थागत निवेशकों के प्रवेश से क्रिप्टोकरेंसियों पर भी अपने अस्तित्व को लेकर गंभीर होने का अतिरिक्त दबाव बनेगा

येलैन, और क्रिप्टोकरेंसी पर मची चीख़-पुकार

जेनेट येलैन बिल्कुल सही हैं. उतारचढ़ावों की वजह से क्रिप्टोकरेंसी को व्यवहार्य करेंसी नहीं माना जा सकता. गेम्स बाज़ार में स्ट्राइप और वाल्व्स स्टीम गेम्स जैसी कंपनियां बिटकॉइन को अदायगियों के स्वरूप के तौर पर स्वीकार किया करती थीं. बहरहाल लेनदेन के संचालन के दौरान बिटकॉइन में आने वाले उतारचढ़ावों के चलते उन्होंने अपना रुख़ पलट दिया.  

बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी सिक्योरिटीज़ की तरह काम नहीं करते क्योंकि वो किसी फिक्स्ड रिटर्न का वादा नहीं करते. यूनाइटेड स्टेट्स सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज कमीशन (एसईसी) के पूर्व चेयरमैन जे क्लेयटन ने इस बात की अच्छे से व्याख्या की है कि बिटकॉइन को क्यों सिक्योरिटी की तरह नहीं समझा जा सकता. इसकी वजह बताते हुए वो कहते हैं कि उन्होंने अपनी तकनीक के विकास के लिए पब्लिक फ़ंड जुटाने की कोशिश नहीं की है. क्रिप्टोकरेंसी काग़ज़ी या वैधमुद्रा में मूल्य संरक्षित करता है, लिहाज़ा ये मूल्य के भंडार के रूप में काम करते हैं

एसईसी का कहना है कि यही बात रिपल्स एक्सआरपी टोकन जैसी क्रिप्टोकरेंसियों के बारे में नहीं कही जा सकती. शुरुआती दौर में उनका कारोबार करने वाले लोगों ने उनकी ख़रीद की थी. तब उन्हें जो टोकन दिए गए थे उन्हें पहले ही माइन कर लिया गया था. इतना ही नहीं टोकन के बारे में विज्ञापनों के ज़रिए ये बताया गया था कि ख़रीदी पर वो गारंटी के साथ रिटर्न प्रदान करेंगे. इसके बाद एसईसी ने अपनी जांचपड़ताल शुरू की. आगे चलकर उन्होंने कंपनी और उसके प्रमोटर के ख़िलाफ़ ग़ैरपंजीकृत सिक्योरिटी चलाने के लिए केस भी दर्ज किया. चूंकि एक्सआरपी टोकनों को पहले ही माइन कर लिया गया था और उनमें से कुछ को प्रमोटरों ने अपने हाथ में कर रखा था, लिहाज़ा इससे सूचनाओं को लेकर एक असंतुलन का माहौल बन गया. ज़्यादा से ज़्यादा लोगों द्वारा ख़रीदी किए जाने पर प्रमोटरों को इसका लाभ मिला. माइन किए जा सकने या जुगाड़े जाने वाले टोकनों की सीमित संख्या के मद्देनज़र क्रिप्टोकरेंसियों का कारोबार मोटे तौर पर सोने जैसी वस्तुओं की तरह हो रहा है

टेस्ला, माइक्रोस्ट्रैटेजी, मैसाच्यूसेट्स म्यूचुअल लाइफ़ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन और स्कवॉयर जैसी कंपनियां अपने ट्रेज़री ऑपरेशंस (परिसंपत्ति के रूप में) के हिस्से के तौर पर बिटकॉइन रख रहे हैं, वहीं दूसरी ओर मास्टरकार्ड जैसी कंपनियों ने घोषणा की है कि वो कुछ चुनिंदा क्रिप्टोकरेंसियों (करेंसी के तौर पर) में भुगतान की सुविधा प्रदान करने जा रहे हैं.

कमोडिटीज़ के उपयोग को लेकर भी भारी अनिश्चितता का माहौल रहता है. आगे चलकर उनके कारोबार से इसकी झलक भी मिलती है. कोविड-19 महामारी के दौरान तमाम आर्थिक गतिविधियों के ठप हो जाने की वजह से तेल का वायदा कारोबार धराशायी हो गया. एक समय पर तो तेल का मूल्य शून्य पर  गया था. हालांकि, तेल का इस्तेमाल देरसवेर शुरू होना तय था लिहाज़ा तेल का मोल बरकरार रहा. स्टील, कॉफ़ी, एल्यूमिनियम जैसी दूसरी वस्तुओं के लिए भी इसी तरह की कयासबाज़ियां की जा सकती हैं

सोना एक दिलचस्प वस्तु है क्योंकि वास्तविक संसार में इसके उपयोग सीमित हैं. दुर्लभ होने और लंबे समय तक नष्ट  होने के गुणों के चलते इसका बड़ा मोल है. लिहाज़ा अनिश्चितताओं से भरे वक़्त में ये मूल्य के भंडार और विनिमय के साधन के तौर पर काम करता है. दूसरे विश्वयु्द्ध के बाद से दुनिया ने परिवर्तनीय वैध या काग़ज़ीमुद्रा व्यवस्था के लिए गोल्ड स्टैंडर्ड का त्याग कर दिया हैबहरहाल इससे भी अहम बात ये है कि आज सोना दूसरे वित्तीय दांवों के सामने हेज की तरह काम करता है. फ़िलहाल सोना निवेशकों के निवेश पोर्टफोलियो के तौर पर काम आता है. अगर इक्विटी बाज़ार में गिरावट के चलते निवेश किए गए स्टॉक्स में गिरावट आती है तो सोने में निवेशित राशि का मूल्य पोर्टफ़ोलियो में होने वाले घाटों को पाटने में मदद करता है

मौजूदा वक़्त में क्रिप्टोकरेंसी सोने की तरह ही कार्य कर रहे हैं. सोने की ही तरह उनका मुख्य इस्तेमाल दूसरे वित्तीय साधनों और महंगाई से भरे मौजूदा दौर के ख़िलाफ़ हेज के तौर पर देखा जाता है. निवेशकों को वित्तीय मामलों में विकेंद्रीकृत नीतियों का पालन करने की सलाह देने वाले एसेट मैनेजर अनुभव पर आधारित सामान्य नियम के तौर पर निवेशकों को अपने पोर्टफ़ोलियो का 1-2 फ़ीसदी क्रिप्टोकरेंसी के तौर पर रखने की सलाह देते हैं. 

अनेक “वाद” और क्रिप्टो

बहरहाल, सिक्के का दूसरा पहलू ये है कि हमें क्रिप्टोकरेंसी में मंदी आने से जुड़ी बातों को भी ध्यान में रखना चाहिए. युद्ध या जलवायु से जुड़ी तबाहियों जैसे विनाशकारी घटनाओं के चलते जब बिजली और इंटरनेट कनेक्टिविटी बाधित हो जाती है. इन परिस्थितियों में भी विनिमय के माध्यम के तौर पर सोने का मूल्य बरकरार रहता है. डिजिटल वॉलेट में जमा कर रखा गया बिटकॉइन ऐसी परिस्थिति में (बिजली या इंटरनेट सुविधा  होने पर) बेकार साबित होता है. ये हालात क्रिप्टोकरेंसी के पीछे की मूलभूत दर्शन के बिल्कुल ख़िलाफ़ जाते हैं. ग़ौरतलब है कि क्रिप्टोकरेंसी का विचार अराजकपूंजीवादी दर्शन पर आधारित है. नियामकों के लिए इस सिद्धांत की मज़बूतियों को समझना बेहद अहम हो जाता है

ये विचार अराजकतावाद और पूंजीवाद से जुड़े राजनीतिक दर्शन का मिश्रित स्वरूप प्रस्तुत करता है

अराजकतावाद राज्यसत्ताविहीन समाज के विचार को आगे बढ़ाता है. इसके साथ ही ये सत्ता के ढांचे में किसी भी किस्म के वर्गीकरण को प्रोत्साहित नहीं करता. इस विचार में भले ही सत्ता का कोई ढांचा या सरकारें नहीं होती लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि इसमें प्रशासन भी नहीं होता. अराजकतावाद आत्मप्रशासन (चाहे वो कितना ही अच्छा, बुरा या भद्दा हो) और ग़ैरआक्रामकता के विचार को बढ़ावा देता है. इसमें प्रत्येक व्यक्ति से तर्कपूर्ण किरदार की तरह बर्ताव करने की अपेक्षा की जाती है. इसमें प्रतिस्पर्धी आत्महित व्यवस्था को बरकरार रखने में मददगार साबित होते हैं.  

निवेशकों को वित्तीय मामलों में विकेंद्रीकृत नीतियों का पालन करने की सलाह देने वाले एसेट मैनेजर अनुभव पर आधारित सामान्य नियम के तौर पर निवेशकों को अपने पोर्टफ़ोलियो का 1-2 फ़ीसदी क्रिप्टोकरेंसी के तौर पर रखने की सलाह देते हैं. 

अराजकपूंजीवाद राज्यसत्ताविहीन समाज की परिकल्पना का समर्थन करता है, लेकिन इसके साथसाथ वो निजी संपत्ति का मालिकाना हक़ रखने के विचार और मुक्तबाज़ारों का भी समर्थक है. इस परिकल्पना में समाज की सारी भूमिकाएं आपस में प्रतिस्पर्धा कर रही निजी कंपनियां निभाती हैं और उनको लागू कराने की ज़िम्मेदारी स्वैच्छिक करारों पर होती है

बिटकॉइन के निर्माता सतोशी नाकामोतो ने केंद्रीय बैंकों और मौद्रिक अधिकारियों की अक्षमता पर कटाक्ष के तौर पर पहले क्रिप्टोकरेंसी का निर्माण किया था. इसके ज़रिए मुद्राओं के मोल को कम करने की कोशिश की गई. साथ ही इस बात के लिए बैंकों की आलोचना की गई कि वो लोगों का धन तो अपने पास जमा रखते हैं मगर उसके बाद अपने पास बहुत कम आरक्षित रकम रखकर अंधाधुंध तरीक़े से ऋण जारी करते रहते हैं. 1980 के समूचे दशक से लेकर अबतक नवउदारवादी नीतियां अपनाई गई हैं. इसमें कर्ज़ की बुनियाद पर आर्थिक विकास की वक़ालत की गई है. इसकी वजह से आय की असमानता बढ़ गई है. साधारण लोग अपने लिए धन पैदा करने और सामाजिकआर्थिक सीढ़ियां चढ़ पाने में नाकाम रहे हैं.   

बिटकॉइन ने ख़ुद को इन समस्याओं के समाधान के तौर पर पेश किया है. इसके ज़रिए सीमित संख्या में टोकन जारी किए जाते हैं और इस वजह से अंधाधुंध ऋण जारी करने की प्रवृति पर लगाम लगाई जा सकती है. लिहाज़ा लोग या इकाइयां जो बिटकॉइन भुनाने के लिए प्रोसेसिंगपावर में योगदान दे सकते हैं उन्हें टोकनों से पुरस्कृत किया जाता है. इसका मूल्य केवल और केवल मांग और आपूर्ति से जुड़ी गतिशीलताओं पर निर्भर करता है. ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी ने यूज़र्स द्वारा माइन किए गए टोकनों और उसके बाद किए गए लेनदेनों का स्थिर लेखाजोखा रखकर वित्त का विकेंद्रीकरण किया है. इसके विपरीत केंद्रीय बैंक मुद्रा के उत्पादन और उनको जारी किए जाने की प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं. वो मौद्रिक नीतियों के ज़रिए वित्त का केंद्रीकरण करते हैं. दूसरी ओर बिटकॉइन ने विश्वास से जुड़े मसलों को सीमित तरीक़े से लेनदेन के ज़रिए सुलझाया है. ब्लॉकचेन लेनदेन का एक स्थिर लेखाजोखा होता है. इसे सिस्टम के तमाम बिंदुओं द्वारा प्रमाणित किए जाने की ज़रूरत होती है

बहरहाल इस सिस्टम के कारगर रहने के लिए नागरिकों द्वारा केंद्रीय बैंकों और सरकारों की भूमिका को पूरे तौर पर ख़ारिज किए जाने की आवश्यकता होती है. सरकारें सत्ता ख़ासतौर से मुद्रा जैसी शक्तिशाली वस्तु का त्याग करने के विचार की विरोधी होती हैं

वस्तुएं और क्या क्रिप्टो ठीक हैं?

क्रिप्टोकरेंसी भी सरकार द्वारा मुहैया कराई गई सार्वजनिक वस्तुओं जैसे माइनिंग के लिए सस्ती बिजली पर निर्भर करते हैं. इसके अलावा वो इंटरनेट कनेक्टिविटी मुहैया कराने वाली उन कंपनियों से बंधे होते हैं जिन्हें सरकार द्वारा तय किए गए कायदों को मानना होता है. भारत जैसे देश में जहां इंटरनेट की सुविधाएं अक्सर बाधित हो जाती हैं, वहां क्रिप्टोकरेंसी के संचालन में बारबार रुकावटें आती हैं

राज्यसत्ताएं क्रिप्टोकरेंसियों में अपेक्षाकृत आसान तरीक़े से कटौती करती हैं. वो तरीक़ा है क़ानूनों प्रावधानों के ज़रिए उनपर पाबंदी लगाना. भारत की सरकार तमाम क्रिप्टोकरेंसियों पर पाबंदी लगाने से जुड़ा क़ानून पारित करने की तैयारी कर रही है. इस क़ानून की ज़द से केवल सरकार द्वारा समर्थित वर्चुअल करेंसी के ही बाहर रहने के आसार हैं. ख़बरों के मुताबिक रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया, सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) खड़ा करने की दिशा में काम कर रही है. इसे तैयार करने में ब्लॉकचेन तकनीक समेत क्रिप्टोकरेंसियों की कई ख़ासियतों का इस्तेमाल किए जाने की संभावना है

राज्यसत्ताएं क्रिप्टोकरेंसियों में अपेक्षाकृत आसान तरीक़े से कटौती करती हैं. वो तरीक़ा है क़ानूनों प्रावधानों के ज़रिए उनपर पाबंदी लगाना. भारत की सरकार तमाम क्रिप्टोकरेंसियों पर पाबंदी लगाने से जुड़ा क़ानून पारित करने की तैयारी कर रही है. इस क़ानून की ज़द से केवल सरकार द्वारा समर्थित वर्चुअल करेंसी के ही बाहर रहने के आसार हैं. 

ग़ौरतलब है कि सीबीडीसी भी एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें प्रवेश करने का इससे पहले कोई अनुभव नहीं रहा है. इसको स्वीकार्यता दिलाने के लिए कई सवालों के जवाब देने होंगे. इनमें राज्यसत्ता के आगे निकलने और निजता से जुड़े सवाल प्रमुख हैं. जिन मामलों में केंद्रीय बैंक को लेनदेन की पूरी तस्वीर का पता होगा उनके संदर्भ में निजता से जुड़े प्रश्न अहम हो जाएंगे. इन हालातों में बैंकों की भूमिका पर भी सवाल खड़े होंगे. साथ ही ये प्रश्न भी उठेगा कि क्या वाकई इसे मुद्रा की विकेंद्रीकृत व्यवस्था की आवश्यकता है

सीबीडीसी द्वारा केंद्रीकृत वित्तीय कार्रवाइयों का संचालन विकेंद्रीकृत वित्त को बढ़ावा देने के ब्लॉकचेन के विचार के ख़िलाफ़ हैं. मंज़ूरी के बाद चलाए जाने वाले ब्लॉकचेन नोड्स की संख्या को सीमित कर देंगे, पर यहां ये सवाल जस का तस ही बना रहेगा: इन नोड्स का नियंत्रण किसके पास होगा और उनके लक्ष्य या उद्देश्य क्या होंगे?

राज्यसत्ता का शासन सबसे ऊपर

नीतियों पर अलगअलग नज़रियों के बावजूद राजनीतिक सत्ता का दर्जा सबसे ऊपर होता है. इस सच्चाई को स्वीकार करने में ही सबकी भलाई है. राज्यसत्ता समाज में अपना प्रभाव रखना चाहती है. ख़ासतौर से भारत जैसे समाजवादीलोकतांत्रिक देश में यही प्रवृति दिखाई देती है. यहां राज्यसत्ता को जनसंख्या के एक बड़े हिस्से, ख़ासतौर से नाज़ुक तबकों, का ध्यान रखना होता है. लिहाज़ा अर्थव्यवस्था के लिए क्या अच्छा है, ये विमर्श राज्यसत्ता का विशेषाधिकार हो सकता है. वो अपने विवेक और निर्णयों के हिसाब से उसका संचालन कर सकती है

बहरहाल सरकारों और क्रिप्टोकरेंसियों के बीच इतने शत्रुतापूर्ण रिश्ते की ज़रूरत नहीं है. विकेंद्रीकृत वित्त लोगों के लिए बेहतर वित्तीय नतीजों का बड़ा मौका मुहैया कराती है. आय की विषमताओं से निपटने के लिए ताज़े विचारों की ज़रूरत है. भारत सरकार को भी ये समझना होगा कि क्रिप्टोकरेंसियों को वैश्विक स्तर पर दूसरे न्याय-क्षेत्रों में रेगुलेट किया गया है. कुछ मायने में मौजूदा ढांचों को अमल में लाकर ही इनका नियमन किया गया है

भारत सरकार को भी ये समझना होगा कि क्रिप्टोकरेंसियों को वैश्विक स्तर पर दूसरे न्याय-क्षेत्रों में रेगुलेट किया गया है.

दूसरी ओर क्रिप्टोकरेंसियों को भी निश्चित तौर पर ये समझना होगा कि ज़्यादा से ज़्यादा सरकारों और बाज़ारों द्वारा उनको अपनाए जाने से ही उन्हें वैधानिकता मिलती है. सरकारों को भी आख़िर तौर पर ये समझना होगा कि क्रिप्टोकरेंसियों का निर्माण नवउदारवादी नीतियों की प्रतिक्रिया के तौर पर हुआ था. वो पूरी तरह से ये समझने की कोशिश में लगे रहते हैं कि सरकारें नागरिकों के लिए बेहतर नतीजे कैसे हासिल कर सकती हैं. सरकारों को नई प्रक्रियाओं को स्वीकार करना चाहिए, चाहे राजनीतिक तौर पर वो कितने भी असुविधाजनक क्यों  हों.

बहरहाल चौथी औद्योगिक क्रांति से प्रभावित इस सदी में हम डिजिटलफ़ाइनेंस से जुड़ी अपनी नीतियों का विकास कर रहे हैं. ऐसे में मौजूदा वक़्त में ही वो अवसर है जिसमें हम ये दिखा सकते हैं कि हम कितनी पारदर्शिता तैयार कर सकते हैं

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