Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

प्रतिबद्धता, सह-लाभ, लागत और पूंजी भारत के अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में प्रगति के लिए चार ज़रूरी 'सी' हैं.

जलवायु परिवर्तन: भारत के ग्रीन ग्रोथ (हरित विकास) के लिए ज़रूरी चार ‘C’
जलवायु परिवर्तन: भारत के ग्रीन ग्रोथ (हरित विकास) के लिए ज़रूरी चार ‘C’

जलवायु परिवर्तन (climate change) को लेकर भारत एक अनोखी  स्थिति में है. यह सबसे अधिक आबादी वाला देश है जहां के नागरिक लगातार गर्म होती दुनिया की वजह से ख़तरे की ज़द में हैं. अगर दुनिया को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे तापमान रखने के लक्ष्य को पूरा करना है तो भारत को अपने विकास संबंधी रोडमैप में सबसे तेज़ी से बदलाव लाना होगा क्योंकि जी-20 के सदस्य के तौर पर भारत ने अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में सबसे आगे बढ़-चढ़ कर संकल्प लिए हैं. इसलिए, जलवायु परिवर्तन पर भारत का नेतृत्व क़ेवल अपने वादों को निभाने भर का मामला नहीं है, यह देश की वैश्विक ज़िम्मेदारी को स्वीकृत करने जैसा है लेकिन एक तथ्य यह भी है कि भारत को कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की महत्वाकांक्षा को बढ़ावा देने के साथ इसे लागू करने की भारी लागत को भी वहन करना होगा – यह सब एक व्यापक आर्थिक बदलाव सुनिश्चित करते हुए देश की युवा आबादी की आकांक्षाओं को पूरा करते हुए करना है.

जलवायु परिवर्तन पर भारत का नेतृत्व क़ेवल अपने वादों को निभाने भर का मामला नहीं है, यह देश की वैश्विक ज़िम्मेदारी को स्वीकृत करने जैसा है लेकिन एक तथ्य यह भी है कि भारत को कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की महत्वाकांक्षा को बढ़ावा देने के साथ इसे लागू करने की भारी लागत को भी वहन करना होगा

विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तरह ही भारत का हरित बदलाव उन क्षेत्रों में क्षतिपूर्ति करने का मामला नहीं है, जहां कार्बन उत्सर्जन के स्तर को कम करना है बल्कि इससे दूसरे लाभदायक क्षेत्रों के पुन:संयोजन का यह विषय है. पूर्वी एशियाई देशों की उच्च मध्यम वर्गीय अर्थव्यवस्था की तरह ना ही भारत में पहले से ही बहुत ज़्यादा औद्योगिकीकरण हुआ है जिससे मैन्युफैक्चरिंग से सेवा आधारित अर्थव्यवस्था में आसान बदलाव मुमकिन हो और कार्बन उत्सर्जन के स्तर को कम किया जा सके. अर्थव्यवस्था में कार्बन उत्सर्जन के स्तर को साल 2030 (2005 के स्तर से अधिक) तक 45 प्रतिशत कम करने की भारत की प्रतिबद्धता, इस प्रकार, दूसरी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कहीं अधिक है, क्योंकि इसके लिए विकास के बहुत अलग स्तर पर कार्बन आधारित विकास की परियोजनाओं से मुंह मोड़ने की ज़रूरत है. इस तरह की हरित विकास निश्चित तौर पर अभूतपूर्व होगी लेकिन इसके लिए भारत को उच्च आय की स्थिति में पहुंचने के लिए एक विकल्प ढूंढने की ज़रूरत होगी, जो इससे पहले की सभी परियोजनाओं से एकदम अलग होनी चाहिए.

कुछ सेक्टर में भारत ने पहले से ही बड़े  स्तर पर बदलाव और कार्बन उत्सर्जन को कम करने की क्षमता को प्रदर्शित किया है और अक्षय ऊर्जा का क्षेत्र ऐसा ही है. भारत में क़रीब 45 फ़ीसदी ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन सिर्फ बिजली उत्पादन के क्षेत्र से होता है – यह जानते हुए कि भारत में कोयला का बहुत बड़ा भंडार मौजूद है लेकिन विकासशील राज्यों के लिए ऊर्जा की कमी को दूर करना और आपूर्ति को बढ़ाना प्राथमिकता है लेकिन साल 2021 के अंत तक, भारत ने 100 गीगावाट से ज़्यादा अक्षय ऊर्जा की क्षमता को जोड़ा है और कॉप 26 सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री ने साल 2030 तक देश में गैर-फ़ॉसिल फ़्यूल की क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाने का संकल्प लिया है. भारत में अब सौर ऊर्जा के लिए दुनिया भर में सबसे कम लागत योजना अमल में है – जो आपूर्ति की तरफ नवीनीकरण को लेकर देश के परंपरागत कौशल को दर्शाता है.

कुछ सेक्टर में भारत ने पहले से ही बड़े  स्तर पर बदलाव और कार्बन उत्सर्जन को कम करने की क्षमता को प्रदर्शित किया है और अक्षय ऊर्जा का क्षेत्र ऐसा ही है.

आवासीय और वाणाज्यिक क्षेत्र में विस्तार

भारत में अक्षय ऊर्जा क्रांति कई वजहों के समन्वय द्वारा संचालित हो सकी थी. सबसे पहले, इसे लेकर साफ राजनीतिक प्रतिबद्धता थी, जो अनुकूल और लगातार नीति में बदली गई. दूसरा, यह भी साफ था कि संभावित मांग वास्तविक आपूर्ति से ज़्यादा थी लिहाज़ा यह फायदे का सौदा था. तीसरा, तकनीकी नवीनीकरण और लागत में कमी को फौरन लागू किया गया और चौथा, इस सेक्टर में वैश्विक और घरेलू पूंजी को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन दिया गया. प्रतिबद्धता, सह-लाभ, लागत और पूंजी भारत के अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में चमत्कारी प्रगति के लिए चार ज़रूरी ‘सी’ हैं. हरित विकास परियोजनाओं को बढ़ावा देने में भारत की कामयाबी इस बात पर निर्भर करेगी कि अन्य क्षेत्रों में इसे बढ़ावा देने के लिए चार ‘सी’ को कितने प्रभावी ढंग से बढ़ाया जा सकता है – गतिशीलता से आवास तक, और मैन्युफैक्चरिंग से लेकर कृषि तक.

चार में से तीन कारकों को घरेलू स्तर पर लागू किया जा सकता है – जिसमें सह-लाभ, प्रतिबद्धता और लागत शामिल है  लेकिन पूंजी को बाकी दुनिया के साथ – वित्तीय, औद्योगिक और तकनीकी – एकीकरण की ज़रूरत होगी. जैसा कि प्रधान मंत्री मोदी ने कॉप 26 में साफ किया था कि भारत को अपनी पर्यावरण लक्ष्यों को हासिल करने के लिए 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के वित्त की मदद की उम्मीद है. यह मदद नहीं बल्कि देश के साझा वैश्विक भविष्य में निवेश है – यह ऐसा निवेश है जो पर्यावरण कार्रवाई के तौर पर निवेश के बदले नकद में लाभ देगा. हरित विकास भी एक तरह का विकास है और विकास हमेशा निवेशकों के लिए मौके लाता है. 

अक्षय ऊर्जा पर भारत की महत्वाकांक्षा ने इस तथ्य को छुपा दिया है कि इसी तरह के महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं और इन्हें कुछ दूसरे क्षेत्रों में पूरा भी किया गया है. ठंडा करने को उदाहरण के तौर पर लें, जो आवास क्षेत्र के अलावा  कृषि क्षेत्र से कोल्ड चेन के नेटवर्क को बनाने से जुड़ा हुआ है. केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 2019 में शुरू की गई इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान, साल 2037-38 तक सभी क्षेत्रों में कूलिंग की मांग को कम से कम 20 प्रतिशत तक कम करने और कूलिंग के लिए कुल ऊर्जा आवश्यकताओं को 2037-38 तक कम से कम 25 प्रतिशत कम करने की योजना बना रही है. इसे देखते हुए कि यह ऐसे समय में आया है जब प्रासंगिक आवासीय और वाणिज्यिक क्षेत्रों में कई गुना विस्तार होने वाला है और तापमान में बढ़ोतरी भी जारी रहने वाली है, ऐसे में यह असाधारण रूप से दिखने वाली एक महत्वाकांक्षी परियोजना लगती है.

प्रतिबद्धता, सह-लाभ, लागत और पूंजी भारत के अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में चमत्कारी प्रगति के लिए चार ज़रूरी ‘सी’ हैं. हरित विकास परियोजनाओं को बढ़ावा देने में भारत की कामयाबी इस बात पर निर्भर करेगी कि अन्य क्षेत्रों में इसे बढ़ावा देने के लिए चार ‘सी’ को कितने प्रभावी ढंग से बढ़ाया जा सकता है 

ऐसे में विकास की दौड़ में देर से शामिल होने का एक फ़ायदा साफ़ नज़र आता है. कुछ अनुमान के मुताबिक साल 2030 तक तीन चौथाई जिन भवनों का निर्माण किया जाना है, उन्हें अभी बनाया नहीं गया है. इन भवनों का सही डिज़ाइन कूलिंग की मांग को इसके स्रोत पर ही कम कर सकता है. इसी तरह की संभावनाएं परिवहन क्षेत्र में भी मौजूद हैं – जो सार्वजनिक परिवहन और व्यक्तिगत गतिशीलता दोनों क्षेत्रों के लिए समान रूप से मान्य है. अभी भी कई भारतीय हैं जिन्हें अपनी पहली कार खरीदनी है और ज़रूरी नहीं है कि ये लोग घरेलू ज्वलनशील इंजन आदि के हों. अगर इनके सामने गैर-कार्बन सार्वजनिक परिवहन या सस्ते और शून्य कार्बन उत्सर्जन करने वाले निजी वाहन के रूप में आकर्षक विकल्प दिए जाएंगे तो वो कभी भी पारंपरिक कार नहीं खरीदेंगे. इस तरह यहां पर हर मुमकिन संभावना है कि भारत में कार का मालिकाना हक़ पाने की मौजूदा दर प्रति 1000 लोगों पर 25 है, जो ना तो चीन और ना ही दुनिया के स्तर तक बढ़ेगी. 

अभी भी कई भारतीय हैं जिन्हें अपनी पहली कार खरीदनी है और ज़रूरी नहीं है कि ये लोग घरेलू ज्वलनशील इंजन आदि के हों. अगर इनके सामने गैर-कार्बन सार्वजनिक परिवहन या सस्ते और शून्य कार्बन उत्सर्जन करने वाले निजी वाहन के रूप में आकर्षक विकल्प दिए जाएंगे तो वो कभी भी पारंपरिक कार नहीं खरीदेंगे.

आख़िर में, भारत की विकास  परियोजनाओं को हरित बनाना लाख ही नहीं बल्कि उससे कहीं ज़्यादा विकल्पों का नतीजा होगा और भारत के कई पर्यावरण बदलाव को लेकर प्रतिबद्धता सिर्फ मुल्क के एक नेता की चाह पर आधारित नहीं होगी लेकिन यह आधारित होगा देश के नागरिकों द्वारा चुने गए विकल्पों से – जो बिजली, ऊर्जा सक्षमता और ज़िम्मेदारी से उपभोग की प्रवृतियों से जुड़ी होगी. आज़ादी और विकास के 75 वर्षों का सफ़र जैसा रहा है उसके मुताबिक़ भारत में हरित बदलाव का नेतृत्व यहां की जनता और निजी क्षेत्र की ऊर्जा से होगा. 

ओआरएफ हिन्दी के साथ अब आप FacebookTwitter के माध्यम से भी जुड़ सकते हैं. नए अपडेट के लिए ट्विटर और फेसबुक पर हमें फॉलो करें और हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें. हमारी आधिकारिक मेल आईडी [email protected] के माध्यम से आप संपर्क कर सकते हैं.


The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.