Published on Aug 30, 2024 Updated 5 Days ago

तिमोर-लेस्ते रणनीतिक रूप से हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच में स्थित है. तिमोर-लेस्ते की यह रणनीतिक स्थिति उसे भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के लिहाज़ से एक महत्वपूर्ण देश बनाती है.

दक्षिण पूर्व एशिया में तिमोर-लेस्ते राष्ट्र का उदय और भारत के लिए संभावनाएं

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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अगस्त, 2024 में तिमोर-लेस्ते का दौरा किया था. गौरतलब है कि यह किसी भी भारतीय राष्ट्रपति की डिली की पहली आधिकारिक यात्रा थी. राष्ट्रपति की तिमोर-लेस्ते की यह यात्रा बताती है कि भारत के लिए आसियान क्षेत्र का कितना अधिक महत्व है, साथ ही उनकी यह यात्रा भारत की एक्ट ईस्ट नीति के महत्व को भी प्रकट करती है.

तिमोर-लेस्ते को वर्ष 2022 में पर्यवेक्षक के रूप में आसियान में शामिल किया गया था. हालांकि, अभी तिमोर-लेस्ते को आसियान की पूर्ण सदस्यता नहीं मिली है.

ज़ाहिर है कि तिमोर-लेस्ते आसियान (ASEAN) का 11वां सदस्य देश है. तिमोर-लेस्ते को वर्ष 2022 में पर्यवेक्षक के रूप में आसियान में शामिल किया गया था. हालांकि, अभी तिमोर-लेस्ते को आसियान की पूर्ण सदस्यता नहीं मिली है. तिमोर-लेस्ते जब निर्धारित मापदंडों को पूरा कर लेगा, तब उसे आसियान की पूर्णकालिक सदस्यता मिल जाएगी. पिछले साल सितंबर के महीने में भारत-आसियान सम्मेलन आयोजित किया गया था. इस सम्मेलन में तिमोर-लेस्ते के प्रधानमंत्री ने शिरकत की थी. सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिली में भारत का दूतावास खोलने का ऐलान किया था. बताया जा रहा है कि डिली में इस साल के आख़िर तक भारतीय दूतावास खुल सकता है. जिस प्रकार से भारत की राष्ट्रपति ने तिमोर-लेस्ते की यात्रा की है और जिस तरह से वहां ज़ल्द ही भारतीय दूतावास की शुरुआत होने वाली है, उससे आने वाले दिनों में निश्चित तौर पर 1.4 मिलियन से कम आबादी वाले इस छोटे से देश के साथ भारत के संबंध मज़बूत होने का मार्ग प्रशस्त होगा. गौरतलब है कि भारत और तिमोर-लेस्ते के बीच विकास के क्षेत्र में नया-नया सहयोग संबंध बना है एवं पारस्परिक साझेदारी शुरू हुई है.

ऐतिहासिक संदर्भ

अगर इतिहास पर नज़र डालें, तो मोज़ाम्बिक और अंगोला समेत तमाम देशों पर कभी पुर्तगाल का शासन हुआ करता था, लेकिन 1970 के दशक में इन देशों को पुर्तगाली शासन से स्वतंत्रता मिली. इसके चलते कई देशों में गृह युद्ध जैसे हालात भी बन गए थे और जमकर हिंसा हुई थी. 1974 में पुर्तगाल में कार्नेशन रिवोल्यूशन की वजह से पुर्तगालियों को तिमोर से भी अपना शासन समेटना पड़ा था और वामपंथी फ्रेटिलिन ने डिली में चल रहे संघर्ष में जीत हासिल की थी, साथ ही पूर्वी तिमोर को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया था.

लेकिन पुर्तगालियों के हटने के बाद 7 दिसंबर 1975 को इंडोनेशिया ने पूर्वी तिमोर पर आक्रमण कर दिया और जुलाई 1976 में इंडोनेशिया ने पूर्वी तिमोर को अपने 27वें राज्य के तौर पर देश का हिस्सा बना लिया.

अगस्त 1999 में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति बखरुद्दीन जुसुफ़ हबीबी के कहने पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा पूर्वी तिमोर में जनमत संग्रह कराया गया. इस जनमत संग्रह में पूर्वी तिमोर के लोगों को तीन विकल्प दिए गए, यानी इंडोनेशिया का हिस्सा रहते हुए स्वायत्तता बनाए रखने, अर्ध-स्वायत्तता का दर्ज़ा और पूर्ण स्वतंत्रता के विकल्प दिए गए.

अगर इतिहास पर नज़र डालें, तो मोज़ाम्बिक और अंगोला समेत तमाम देशों पर कभी पुर्तगाल का शासन हुआ करता था, लेकिन 1970 के दशक में इन देशों को पुर्तगाली शासन से स्वतंत्रता मिली.

इस जनमत संग्रह के दौरान पूर्वी तिमोर के नागरिकों ने बड़ी संख्या में पूर्ण स्वतंत्रता के पक्ष में मतदान किया. लेकिन इसके बाद वहां व्यापक स्तर पर हिंसा भड़क गई. इसके बाद, सितंबर 1999 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने पूर्वी तिमोर में शांति स्थापना और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बहुराष्ट्रीय सेना को तैनात किया. पूर्वी तिमोर को 20 मई 2002 को आधिकारिक रूप से स्वतंत्र देश घोषित किया गया था, लेकिन इन दो-तीन वर्षों के दरम्यान पूर्वी तिमोर में यूएन मिशन ने प्रशासन संभाला था. यूएन मिशन के प्रशासन के दौरान वहां तमाम व्यवस्थाएं स्थापित करने व गवर्नेंस में संयुक्त राष्ट्र में तैनात भारतीय राजनयिकों ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इनमें भारतीय राजनयिक कमलेश शर्मा और अतुल खरे का नाम सबसे आगे है, जिन्होंने तिमोर-लेस्ते में व्यवस्थाएं स्थापित करने और विकास को गति देने में अहम भूमिका निभाई थी.

 

हाल ही में तिमोर-लेस्ते उस समय सुर्खियों में आ गया था, जब बांग्लादेश के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने से पहले शेख हसीना ने कहा था कि "तिमोर-लेस्ते पश्चिमी देशों की ईसाई साजिश का हिस्सा" है. उन्होंने यह भी कहा कि कुछ इसी तरह की साजिश बांग्लादेश के साथ भी की जा रही है. ज़ाहिर है कि तिमोर-लेस्ते ईसाई बहुल आबादी वाला देश है, जबकि इंडोनेशिया में दुनिया की सबसे अधिक मुस्लिम आबादी निवास करती है. ये दोनों देश एक द्वीप साझा करते हैं. ज़ाहिर है कि इंडोनेशिया और तिमोर का इतिहास हिंसा से भरा रहा है, लेकिन अब दोनों देश हिंसा के उस दौर को छोड़कर आगे बढ़ चुके हैं और उनके बीच प्रगाढ़ रिश्ते हैं.

 

तिमोर-लेस्ते एशिया का सबसे नया राष्ट्र है. तिमोर-लेस्ते दक्षिण पूर्व एशिया का सबसे ग़रीब देश है, जहां की 42 प्रतिशत आबादी ग़रीबी में गुजर-बसर करती है. मानव विकास सूचकांक में तिमोर-लेस्ते का स्थान 140वां है. इससे पता चलता है कि वहां सामाजिक-आर्थिक विकास की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है और विकास के मामले में भी यह देश काफ़ी पिछड़ा हुआ है. तिमोर-लेस्ते में बेरोज़गारी बहुत अधिक है. आंकड़ों के मुताबिक़ देश की 20 प्रतिशत आबादी बेरोज़गार है, यानी उनके पास आय का कोई साधन नहीं है. वर्ष 2017 से 2022 के बीच राजनीतिक उथल-पुथल के साथ ही कोविड-19 महामारी और सेरोजा चक्रवात जैसे मुश्किलों की वजह से तिमोर-लेस्ते को आर्थिक संकट से जूझना पड़ा.

 

तिमोर-लेस्ते में अब अर्थव्यवस्था सुधार की ओर बढ़ रही है और 2024 में देश की आर्थिक वृद्धि 3.4 प्रतिशत तक पहुंचने की संभावना है. इतना ही नहीं, जिस प्रकार से वहां मुद्रास्फ़ीति कम हो रही है और वित्तीय हालत सुधर रही है, उसे देखते हुए यह उम्मीद जताई गई है कि वर्ष 2024 और 2025 में देश की आर्थिक वृद्धि औसतन 4.1 प्रतिशत तक बढ़ सकती है.

 

तिमोर-लेस्ते के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वहां के तेल एवं गैस उद्योग का लगभग 70 प्रतिशत योगदान है, जबकि कुल निर्यात में इस सेक्टर की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत है. तिमोर-लेस्ते पेट्रोलियम फंड में सरकार द्वारा पेट्रोलियम और गैस सेक्टर से होने वाली आय से बची हुई राशि जमा की जाती है. इस फंड का उद्देश्य पेट्रोलियम सेक्टर से होने वाली अत्यधिक आय के ख़र्च को सुगम बनाना है, साथ ही पेट्रोलियम उत्पादन में होने वाली ऊंच-नीच का सामना करना है. इसके अलावा, इस फंड का मकसद सरकारी धन का समझबूझ के साथ उपयोग सुनिश्चित करना है, यानी इस कोष के ज़रिए कहीं न कहीं भविष्य की पीढ़ियों के लिए अपने प्राकृतिक तेल और गैस संसाधनों की आय को बचाना है.

 

तिमोर-लेस्ते ऐसे देशों में शामिल है, जो राजस्व अर्जित करने के लिए पेट्रोलियम पर सबसे अधिक निर्भर हैं. हालांकि, मौज़ूदा वक़्त में वहां की सरकार कृषि, मत्स्य पालन और पर्यटन सेक्टरों के विकास पर भी विशेष ध्यान दे रही है और ऐसा करके अपनी आय के अलग-अलग स्रोत बनाने का प्रयास कर रही है.

 

भारत के लिए तिमोर-लेस्ते इतना महत्वपूर्ण क्यों है?

समुद्र में तिमोर-लेस्ते की रणनीतिक स्थिति बेहद ख़ास है. यह देश हिंद महासागर एवं प्रशांत महासागर के बीच में स्थिति है और इस प्रकार से इसमें रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण लॉजिस्टिक हब बनने की संभावना है. कहने का मतलब है कि तिमोर-लेस्ते की सामरिक स्थिति न केवल उसे कार्गो जहाजों के लिए सुविधाजनक ट्रांसशिपमेंट केंद्र बनाती है, बल्कि ऑस्ट्रेलिया एवं आसियान देशों के बाज़ारों के लिए इसे एक समुद्री प्रवेश द्वार के तौर पर भी स्थापित करती है. तिमोर-लेस्ते का नया टिबार बे बंदरगाह वहां का पहला पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप पोर्ट है. यह पोर्ट तिमोर-लेस्ते में व्यापार की संभावनों को बढ़ाने के साथ ही, वहां निवेश और रोज़गार को भी बढ़ावा देने का काम करता है.

 

इतनी संभावनों के बावज़ूद वर्ष 2022 में तिमोर-लेस्ते में बमुश्किल 262 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) हुआ था. तिमोर के गहरे पानी में स्थित तिमोर सागर संयुक्त पेट्रोलियम विकास क्षेत्र में मौज़ूद ग्रेटर सनराइज कन्वेंशनल गैस डेवलपमेंट परियोजना में वर्ष 2030 तक उत्पादन शुरू हो जाएगा. इस परियोजना के शुरू होने के बाद निश्चित तौर पर न सिर्फ़ तिमोर-लेस्ते की गैस उत्पादन क्षमता में इजाफ़ा होगा, बल्कि अर्थव्यवस्था को भी लाभ पहुंचेगा.

अपनी ग्रेटर सनराइज परियोजना के लिए पूर्वी तिमोर भागीदारों एवं निवेशकों की तलाश में जुटा है. तिमोर-लेस्ते के विशेष प्रतिनिधि और समुद्री सीमाओं के मुख्य वार्ताकार ज़ानाना गुस्माओ की अगुवाई में नवंबर 2019 में एक प्रतिनिधिमंडल ने नई दिल्ली का दौरा किया था. इस दौरान गुस्माओ ने भारत के तत्कालीन पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक संसाधन मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से मुलाक़ात कर विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की थी. इस बैठक में उन्होंने भारत से तिमोर-लेस्ते के तेल एवं गैस सेक्टर में निवेश करने का अनुरोध किया था. इसके बाद OVL, OIL और EIL के एक प्रतिनिधिमंडल ने दिसंबर 2019 में तिमोर-लेस्ते का दौरा किया था और वहां ग्रेटर सनराइज परियोजना के आसपास के क्षेत्रों में अवसरों को तलाशने के साथ ही, एलएनजी प्लांट की स्थापना पर विचार-विमर्श किया था.

ऐसे में बेहतर यही होगा कि तिमोर-लेस्ते को भारत आसियान के दृष्टिकोण से देखे और वहां भारत-आसियान फंड का इस्तेमाल करके सहकारी उपक्रमों को विकसित करे.

तिमोर-लेस्ते ने भारत से उसके विकास में सहयोग करने का आग्रह किया है और इसी के बाद भारत द्वारा वहां विकास परियोजनाओं में दिलचस्पी दिखाई गई है. हालांकि, यह बात अलग है कि सहयोग की यह प्रक्रिया बहुत धीमी गति से चल रही है. वर्ष 2013 में तिमोर में भारतीय सहयोग उस वक़्त बढ़ने लगा, जब इंडोनेशिया में भारतीय दूतावास के लोगों ने वहां दौरे करने शुरू किए. इसके बाद से ही तिमोर में अलग-अलग मंत्रालयों, ख़ास तौर पर स्वास्थ्य एवं पेट्रोलियम मंत्रालयों के साथ विकास संबंधी परियोजनाओं को लेकर पारस्परिक तालमेल में बढ़ोतरी हुई. ज़ाहिर है कि तिमोर-लेस्ते में कार्य करने वाले भारतीय पेशेवरों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है. ये पेशेवर वहां की सरकारी परियोजनाओं में विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के माध्यम से कार्यरत हैं. तिमोर-लेस्ते में जैसे-जैसे विकास परियोजनाओं पर काम आगे बढ़ा, वहां भारतीय मूल के लोगों की कंपनियों ने कार्य करना शुरू किया और इस प्रकार से वहां भारतीय पेशेवरों की संख्या भी बढ़ती गई. जकार्ता में स्थित भारतीय दूतावास द्वारा वर्ष 2014 में पहली बार वहां भारतीय व्यवसायियों और उद्योगपतियों के लिए सम्मेलन का आयोजन किया गया था, जिसमें इंडिया बिजनेस फोरम के ज़रिए बिजनेस प्रतिनिधिमंडल ने शिरकत की थी. लेकिन, इतनी कोशिशों के बावज़ूद तिमोल-लेस्ते में भारतीय व्यवसायियों और उद्योगों ने कोई विशेष दिलचस्पी नहीं दिखाई है.

वर्ष 2013 के बाद से भारत और तिमोर-लेस्ते के बीच सहयोग की बात की जाए, तो भारत ने सहयोग साझेदारी विकसित करने के लिए दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच बैठक की शुरुआत की. इस तरह की एक बैठक में तिमोर-लेस्ते के लिए 1,00,000 अमेरिकी डॉलर की मदद देने का ऐलान किया गया. इस राशि का उपयोग अत्याधुनिक एंबुलेंस ख़रीदने में किया गया.

भारत द्वारा तिमोर-लेस्ते में वर्ष 2014 और 2018 में एक आईटी सेंटर स्थापित करने की पेशकश की गई थी, लेकिन इसे वहां स्थापित नहीं किया जा सका. असम में स्थित केन एंड बैम्बू टेक्नोलॉजी सेंटर (CBTC) द्वारा वर्ष 2012 में UNIDO की अगुवाई में तिमोर-लेस्ते में बैम्बू स्किल्स डेवलपमेंट एंड डिमॉन्सट्रेशन सेंटर स्थापित किया गया था.

भारत ने तिमोर-लेस्ते में विकास सहयोग को गति देने और विकास परियोजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए त्रिपक्षीय भागीदारी का इस्तेमाल किया है. भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र विकास भागीदारी फंड के ज़रिए और आईबीएसए फंड के माध्यम से त्रिपक्षीय भागीदार का उपयोग किया गया है.

भारत द्वारा अप्रैल 2019 में तिमोर-लेस्ते के ओए क्यूसे एन्क्लेव (Oé cusse Enclave) में “तिमोर लेस्ते में शिक्षा और कौशल में सुधार के लिए आईसीटी का लाभ” नाम की एक पायलट परियोजना शुरू की गई थी. इस पायलट प्रोजेक्ट के ज़रिए भारत-संयुक्त राष्ट्र विकास भागीदारी फंड के माध्यम से तिमोर-लेस्ते के 12 स्कूलों में 5,000 से अधिक बच्चों को प्रशिक्षित किया गया है.

इसी प्रकार से तिमोर-लेस्ते में आईबीएसए फंड से 1.4 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से एक अन्य परियोजना भी शुरू की गई. इस परियोजना का नाम था "संरक्षित कृषि, पर्माकल्चर और टिकाऊ मत्स्य प्रबंधन: खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में वृद्धि और तिमोर-लेस्ते में आपदा जोख़िम में कमी". तिमोर-लेस्ते में इस परियोजना को फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (FAO) यानी खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा विकसित किया गया था. इस परियोजना को विकसित करने में "नाटेरा" और "कंजर्वेशन इंटरनेशनल" नाम के दो गैर सरकारी संगठनों की मदद ली गई थी. इस परियोजना को आतुरो द्वीप के सुदूरवर्ती हिस्से में विकसित किया गया था. इस परियोजना के हिस्से के रूप में आतुरो द्वीप पर स्थित अटरू में एक लर्निंग सेंटर स्थापित किया गया. इस प्रशिक्षण केंद्र द्वारा टिकाऊ कृषि और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण व विकास के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि कृषि एवं मत्स्य पालन सेक्टर में उत्पादकता बढ़ाई जा सके.

 

ज़ाहिर है कि आसियान का सदस्य बनने से तिमोर-लेस्ते की न सिर्फ़ अन्य देशों के व्यापक बाज़ार तक पहुंच स्थापित होगी, बल्कि उसे अपने राष्ट्रीय विकास कार्यक्रमों के लिए ज़रूरी धनराशि भी हासिल होगी. इतना ही नहीं, तिमोर-लेस्ते आसियान में शामिल होने के बाद भारत, चीन और जापान जैसे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों का भी फायदा उठा सकता है.

 

तिमोर-लेस्ते में गैस सेक्टर में व्यापक अवसर मौज़ूद हैं. हालांकि, एक सच्चाई यह भी है कि बड़ी वैश्विक कंपनियों का वहां के गैस सेक्टर पर वर्चस्व बना हुआ है. तिमोर-लेस्ते के साथ पारंपरिक विकास सहयोग का भारत का नज़रिया और एफडीआई जैसे क़दम वहां कारगर सिद्ध नहीं हुए हैं. ऐसे में बेहतर यही होगा कि तिमोर-लेस्ते को भारत आसियान के दृष्टिकोण से देखे और वहां भारत-आसियान फंड का इस्तेमाल करके सहकारी उपक्रमों को विकसित करे. ज़ाहिर है कि भारत CLMV देशों, यानी कंबोडिया, लाओ पीपुल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (PDR), म्यांमार और वियतनाम में यह तरीक़ा अपना चुका है. गौरतलब है कि भारत ने CLMV देशों को विकास के मार्ग पर अग्रसर करने के लिए इनिशिएटिव फॉर आसियान इंटीग्रेशन एंड नौरोइंग डेवलपमेंट गैप (IAI NDG) का समर्थन किया है. इस पहल के अंतर्गत IAI कार्य योजना IV (2021-2025) तैयार की गई है और इसके तहत उन क़दमों एवं कार्यों की रूपरेखा बनाई गई है, जिनके ज़रिए भागीदार राष्ट्र CLMV देशों को मदद पहुंचा सकते हैं. तिमोर-लेस्ते वर्ष 2022 से आसियान में एक पर्यवेक्षक है, बावज़ूद इसके भारत को इस बारे में गहनता से विचार करना चाहिए कि तिमोर-लेस्ते में IAI NDG पहल को किस तरह से कार्यान्वित किया जा सकता है और वहां विकास सहयोग को किस प्रकार से आगे बढ़ाया जा सकता है. ऐसे में भारत द्वारा अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ अपने त्रिपक्षीय सहयोग का भी उपयोग किया जा सकता है और तिमोर-लेस्ते में विकास सहयोग को गति प्रदान की जा सकती है. इसके अतिरिक्त, तिमोर-लेस्ते में क्वाड विकास सहयोग की भी पूरी संभावनाएं मौज़ूद हैं और इसे भी अमल में लाया जा सकता है.


गुरजीत सिंह जर्मनी, इंडोनेशिया, इथियोपिया, आसियान और अफ्रीकी संघ में भारत के राजदूत के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं.





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