पहले मानव रहित एयरक्राफ्ट सिस्टम (UAS) या कहा जाए कि ड्रोन का इस्तेमाल ख़ास तौर पर सिर्फ़ सेना द्वारा किया जाता था, लेकिन हाल-फिलहाल में तमाम क्षेत्रों में ड्रोन्स का उपयोग किया जा रहा है और दिनोंदिन इसका उपयोग बढ़ रहा है. विशेष रूप से शहरी इलाकों में तो ड्रोन का इस्तेमाल काफ़ी बढ़ गया है. आपदा प्रबंधन, सर्विलांस, सामान की डिलीवरी, यातायात की निगरानी और स्वास्थ्य सेवाओं जैसे विभिन्न कार्यों में ड्रोन्स का उपयोग काफी कारगर साबित हुआ है. इतना ही नहीं स्मार्ट शहरों की योजना बनाने और उनके विकास की कल्पना तो ड्रोन्स के उपयोग के बगैर की ही नहीं जा सकती है. ड्रोन्स की कहीं भी पहुंचने की खूबी और तेज़ गति के चलते, उन्हें दूरदराज के इलाक़ों में आसानी से पहुंचाया जा सकता है. ड्रोन्स को ऐसे जोख़िम वाले क्षेत्रों में भी आसानी से पहुंचाया जा सकता है, जहां मनुष्यों के लिए पहुंचा बेहद मुश्किल है. ड्रोन-आधारित परिवहन के तौर-तरीक़ों में हाल में जिस प्रकार से वृद्धि हुई है, इससे निश्चित तौर पर आने वाले दिनों में इनकी संख्या और उपयोग में बढ़ोतरी होगी. जिस गति से ड्रोन्स का इस्तेमाल बढ़ रहा है, उससे लगता है कि आने वाले दिनों में आसमान में दुर्घटनाओं का ख़तरा भी बढ़ जाएगा और यह नागरिक उड्डयन सेक्टर एवं इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है. अगर इस प्रकार की विषम परिस्थितियों से बचना है तो दुनिया के तमाम देशों की सरकारों को शहरी इलाक़ों में ड्रोन के उपयोग के संबंध में व्यापक स्तर पर नीतियां बनाने में अब तनिक भी देरी नहीं करनी चाहिए.
ड्रोन-आधारित परिवहन के तौर-तरीक़ों में हाल में जिस प्रकार से वृद्धि हुई है, इससे निश्चित तौर पर आने वाले दिनों में इनकी संख्या और उपयोग में बढ़ोतरी होगी.
हवाई टैक्सियों का आरंभ
हवाई टैक्सियों की शुरुआत की बात की जाए, तो इज़राइल का उदाहरण लिया जा सकता है. इज़राइल ने हाल ही में अपनी राष्ट्रीय ड्रोन पहल के अंतर्गत यरूशलम में एयर टैक्सियों की परीक्षण उड़ान आरंभ की है. इज़राइल की इस एयर टैक्सी परियोजना का मकसद भीड़भाड़ वाली सड़कों से राहत प्रदान करते हुए यात्रियों को ट्रांसपोर्ट की बेहतर सुविधा उपलब्ध कराना है, साथ ही भारी सामान की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करना है. इसके अलावा इसका मकसद भूकंप जैसी आपातकालीन परिस्थितियों के दौरान लोगों को व्यावसायिक एवं सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करना है, साथ ही ज़रूरत पड़ने पर दवाएं और चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराना है. यानी ड्रोन्स के माध्यम से कम समय में आपातकालीन सेवाएं पहुंचाई जाएंगी और दूरदराज के इलाक़ों में आखिरी छोर तक सामान की आपूर्ति की जाएगी. इसमें कोई संदेह नहीं है कि अब लोगों को कम दूरी की तेज़ और निर्बाध हवाई यात्रा के लिए एयर टैक्सी की शुरुआत भी बस होने ही वाली है.
विश्व की अग्रणी स्वायत्त हवाई वाहन प्रौद्योगिकी प्लेटफॉर्म कंपनी Ehang के EH216-S इलेक्ट्रिक वर्टिकल टेक-ऑफ और लैंडिंग (eVTOL) वाहन को 13 अक्टूबर 2023 को चीन के नागरिक उड्डयन प्रशासन द्वारा "टाइप सर्टिफिकेट" प्रदान किया गया था. इस प्रकार से यह वाहन आधिकारिक तौर पर अब दुनिया की पहली हवाई टैक्सी बन गया है. हालांकि कंपनी को अपनी हवाई टैक्सी का व्यावसायिक उपयोग शुरू करने से पहले अभी एक ऑपरेशन परमिट लेने की आवश्यकता है. यह एक दो सीटों वाला ड्रोन है, जो 130 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से 30 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है और वो भी किसी पायलट के बगैर.
भारत की बात करें, तो यहां इंडिगो एयरलाइन्स को संचालित करने वाली कंपनी इंटरग्लोब एंटरप्राइजेज ने हाल ही में eVTOL एयरक्राफ्ट विकसित करने वाली अमेरिकी कंपनी आर्चर एविएशन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. इस समझौते में वर्ष 2026 तक भारत में इलेक्ट्रिक एयर टैक्सी शुरू करने की बात कही गई है. इसके अंतर्गत नई दिल्ली के कनाट प्लेस से हरियाणा के गुरुग्राम के बीच 27 किलोमीटर लंबे रास्ते पर एयर टैक्सी का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया जाएगा. ज़ाहिर है कि सड़क मार्ग से इस दूरी को पूरा करने में 90 मिनट लग जाते हैं, लेकिन एयर टैक्सी के ज़रिए मात्र 7 मिनट का ही समय लगेगा.
भारत की बात करें, तो यहां इंडिगो एयरलाइन्स को संचालित करने वाली कंपनी इंटरग्लोब एंटरप्राइजेज ने हाल ही में eVTOL एयरक्राफ्ट विकसित करने वाली अमेरिकी कंपनी आर्चर एविएशन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. इस समझौते में वर्ष 2026 तक भारत में इलेक्ट्रिक एयर टैक्सी शुरू करने की बात कही गई है.
दुनिया भर में एयर टैक्सी का संचालन शुरू करने को लेकर इसी तरह की तमाम कोशिशें की जा रही हैं. इसका साफ मतलब है कि हवाई टैक्सी का संचालन अब ज़्यादा दिनों तक सिर्फ़ एक विचार नहीं रहने वाला है, बल्कि ज़ल्द ही वास्तविकता में हवाई टैक्सियां उड़ती हुई नज़र आने वाली हैं. इतना ही नहीं कुछ जगहों पर तो एयर टैक्सियों का व्यावसायिक संचालन वर्ष 2024 के शुरुआती महीनों में ही शुरू हो जाएगा. यही वजह है कि मौज़ूदा वक़्त में पूरी दुनिया के देशों के लिए शहरी क्षेत्रों में ड्रोन संचालन के लिए के एक स्पष्ट नीति बनाना बेहद ज़रूरी हो गया है. ऐसे में भारत को भी ड्रोन नीति बनाने की दिशा में अपने प्रयासों को तेज़ करना चाहिए.
शहरी क्षेत्रों के लिए विस्तृत ड्रोन नीति ज़रूरी
स्पष्ट ड्रोन नीति बनाने और उसे कार्यान्वित करने की इसलिए सबसे अधिक ज़रूरत है, क्योंकि अभी ड्रोन के व्यावसायिक संचालन की कोई मुकम्मल नीति नहीं हैं. ज़ाहिर है कि ड्रोन के सुरक्षित एवं प्रभावशाली तरीक़े से संचालन के लिए आवश्यक भौतिक और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करना ज़रूरी है. इसमें सबसे महत्वपूर्ण मसला, जिसे संबोधित किया जाना है, वो हवाई क्षेत्र का है. पारंपरिक विमानों की तुलना में ड्रोन्स बहुत कम ऊंचाई पर उड़ते हैं. वर्तमान में निचले हवाई क्षेत्र की वास्तविक सीमाओं के बारे में विस्तृत रूप में कुछ भी स्पष्ट नहीं है. विशेष रूप से एयर टैक्सियों जैसे बड़े और भारी ड्रोन के उड़ने की हवाई सीमा क्या होगी इसके बारे में कुछ भी साफ तौर नहीं बताया गया है. ये भारी ड्रोन कहां से उड़ेंगे, कहां पर उतरेंगे, उन्हें किस प्रकार से निर्देश दिए जाएंगे और किस प्रकार से उनका संचालन किया जाएगा, इस सबके लिए किस प्रकार के बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होगी, इन सभी मुद्दों पर विस्तार से चर्चा करनी होगी और इनका समाधान निकालना होगा. ज़ाहिर है कि इसके लिए विशेष प्रकार के नो-फ्लाई ज़ोन बनाने होंगे, साथ ही ड्रोन संचालित करने वाली कंपनियों के लिए विशेष कॉरिडोर भी निर्धारित करने होंगे. आसान शब्दों में अगर कहा जाए, तो ड्रोन के सुव्यवस्थित संचालन के लिए ड्रोन हाईवे स्थापित करने होंगे, साथ ही साथ एक एयर-रोड पुलिसिंग प्रणाली बनाने की भी ज़रूरत होगी.
एयरपोर्ट की तर्ज पर ड्रोन्स के उड़ान भरने एवं लैंडिंग के लिए ड्रोन पोर्ट्स की भी ज़रूरत होगी. ज़ाहिर है कि इन ड्रोन पोर्ट्स की क्षमता कितनी होगी और इन्हें बनाने व संचालित करने के लिए क्या मानक होंगे, इसके लिए विस्तृत दिशानिर्देशों को बनाने की ज़रूरत होगी. इन ड्रोन पोर्ट्स को कहां बनाया जाए, इसके बारे में गहन विचार-विमर्श करना होगा और सुनिश्चित करना होगा की ये पोर्ट्स शहरी सीमा के पास ही बनाए जाएं, ताकि हवाई टैक्सियों को उड़ान भरने और उतरने में आसानी हो. उदाहरण के तौर पर इन ड्रोन पोर्टस को ऊंची इमारतों के ऊपर बनाया जा सकता है, या फिर मौज़ूदा हवाई अड्डों पर भी ड्रोन पोर्ट्स विकसित किए जा सकते हैं. इसके अलावा चिन्हित की गई नई जगहों पर भी इन्हें स्थापित किया जा सकता है. ड्रोन पोर्ट्स पर आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर भी बनाना होगा, जैसे कि चार्जिंग और ईंधन भरने से संबंधित पुख्ता इंतज़ाम करने होंगे.
ड्रोन पोर्ट्स के अलावा ड्रोन्स के यातायात का प्रबंधन भी एक बड़ा मसला है, जिस पर भी गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए. इसके लिए ड्रोन्स के सुगम आवागमन को सुनिश्चित करने के लिए और उनके सुरक्षित व व्यवस्थित संचालन के लिए दिशानिर्देशों को बनाना होगा. कहने का तात्पर्य यह है कि ड्रोन संचालित करने वाली कंपनियों को स्पष्ट जानकारी उपलब्ध कराने की ज़रूरत होगी कि वे किस प्रकार से ड्रोन्स का संचालन करें. ड्रोन्स के संचालन के लिए इस बात का भी निर्धारण करना होगा कि आसमान में उड़ते समय उनके बीच कितनी सुरक्षित दूरी होनी चाहिए. इसके अलावा ड्रोन्स का परिचालन करने वाली कंपनियों के लिए प्रमाणन प्रक्रिया भी बनानी होगी, यानी कि इसके लिए क्या न्यूनतम आवश्यकताएं होनी चाहिए, उसका निर्धारण करना होगा. इसके साथ ही विपरीत मौसम के दौरान ड्रोन्स के संचालन में किस तरह की एहतियात बरती जाएगी, उसके बारे में भी सुरक्षा नियमों को बनाने और उन्हें कार्यान्वित किए जाने की जरूरत है. अर्थात ऐसे सुरक्षा नियमों को बनाने की ज़रूरत है, जो बताएंगे कि प्रतिकूल मौसमी हालात में कितनी दृश्यता, कितनी तेज़ हवाओं के बीच ड्रोन को उड़ाया जा सकता है और ऐसी परिस्थितियों में ड्रोन या एयर टैक्सी की स्पीड कितनी होनी चाहिए.
एयर टैक्सी के लिए भारत में फ्रेमवर्क की कमी
भारत में वर्तमान परिस्थितियों की बात करें तो, ड्रोन्स को पारंपरिक हवाई जहाजों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है और इन्हें ज़रूरत एवं परिस्थिति के मुताबिक़ हर बार संबंधित विभागों द्वारा संचालन की मंज़ूरी दी जाती है. उदाहरण के तौर पर भारत में ड्रोन उड़ाने की मंज़ूरी "डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म" के ज़रिए दी जाती है. इतना ही नहीं भारत में हर बार ड्रोन उड़ाने से पहले अनुमति लेना आवश्यक है. यद्यपि भारत में ड्रोन नियम 2021 लाया गया था और उसके बाद ड्रोन (संशोधन) नियम 2022 लाया गया, जिनके अंतर्गत ड्रोन को उड़ाने के लिए अलग हवाई क्षेत्र निर्धारित किया गया है और इसे ग्रीन, यलो एवं रेड ज़ोन्स में वर्गीकृत किया गया है. हालांकि अभी तक ड्रोन को उड़ाने के लिए निश्चित हवाई मार्ग निर्धारित करने को लेकर कुछ भी नहीं किया गया है. इसके अतिरिक्त ड्रोन संचालन से संबंधित इस नियम के माध्यम से सिर्फ़ 500 किलोग्राम तक भार वाले ड्रोन को उड़ाने के बारे में ही निर्णय लिया जाता है. जबकि उदाहरण के तौर पर EH216-S ड्रोन का अधिकतम वहन किए जाने वाला भार 620 किलोग्राम है.
भारत में वर्तमान परिस्थितियों की बात करें तो, ड्रोन्स को पारंपरिक हवाई जहाजों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है और इन्हें ज़रूरत एवं परिस्थिति के मुताबिक़ हर बार संबंधित विभागों द्वारा संचालन की मंज़ूरी दी जाती है.
इतना ही नहीं जो भी नियम है, उसके अंतर्गत ड्रोन को तभी उड़ान भरने की अनुमति दी जाती है, जब वो विज़ुअल लाइन-ऑफ-साइट के भीतर संचालित किया जाता है, यानी उड़ान के दौरान खुली आंखों से ड्रोन उड़ता हुआ दिखाई देना चाहिए. इसके अलावा यह अनुमति भी जोख़िम का आकलन करने के पश्चात ही दी जाती है. भारत में बियोन्ड विज़ुअल लाइन-ऑफ-साइट (BVLOS) यानी आंख से ओझल होने की स्थिति में उड़ान भरने की मंज़ूरी देने को लेकर और विज़ुअल लाइन-ऑफ-साइट के अंतर्गत भी व्यापक स्तर पर ड्रोन संचालन की अनुमति देने को लेकर कोई नियम नहीं है. यूएस फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (FAA) ने हाल ही में BVLOS एडवाइजरी जारी की है एवं नियम बनाने की कमेटी का गठन किया है. इतना ही नहीं NASA द्वारा भी "यूएएस ट्रैफिक प्रबंधन" जैसे विचार को प्रस्तुत किया गया है. नासा का यह विचार न केवल ड्रोन्स के संचालन के लिए आवश्यक ढांचागत सुविधाओं के गठन का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, बल्कि नीति निर्माताओं को भी ड्रोन संचालन से संबंधित नीतियां बनाने में इससे काफ़ी मदद मिल सकती है.
वर्तमान में ज़्यादातर एयर टैक्सी पूरी तरह से ऑटोमैटिक नहीं हैं, यानी इनके संचालन के लिए एक पायलट की आवश्यकता होती है. लेकिन जिस प्रकार से EH216-S एयर टैक्सी को चलाने के लिए पायलट की ज़रूरत नहीं पड़ती है, उस हिसाब से देखा जाए तो पूर्णतया स्वचालित एयर टैक्सी अब दूर की बात नहीं हैं, यानी भविष्य में ऐसी टैक्सियों का संचालन संभव है. हालांकि, इन स्वचालित ड्रोन्स या हवाई टैक्सियों को भी आपातकालीन परिस्थितियों में या किसी गड़बड़ी की स्थिति में ज़मीन पर ऑपरेटरों की ज़रूरत होगी. यही वजह है कि ड्रोन ऑपरेटरों और पायलटों को बाक़ायदा प्रशक्षित किया जाना और उन्हें सर्टिफिकेट देना भी एक ऐसा अहम मुद्दा है, जिस पर गंभीरता से ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है. भारत द्वारा इस दिशा में हाल ही में पहल की गई है और ड्रोन पायलटों के लिए ड्रोन (संशोधन) नियम 2023 को अधिसूचित किया गया है, जो कि 27 सितंबर 2023 से प्रभावी है. इस नियम के अंतर्गत दूरदराज के क्षेत्रों में ड्रोन उड़ाने के लिए पायलटों को सर्टिफिकेट देने एवं उनकी योग्यता और पहचान को लेकर तमाम प्रावधान किए गए हैं. हालांकि, जब एयर टैक्सियों जैसे बड़े और जटिल किस्म के ड्रोन सामने आएंगे तो उन्हें उड़ाने के लिए पायलटों को सर्टिफिकेट देने और उनकी योग्यता निर्धारित करने के नियमों में संशोधन की ज़रूरत पड़ेगी.
पूरी दुनिया में जिस तेज़ी के साथ, या कहा जाए कि जिस भयानक गति के साथ ड्रोन टेक्नोलॉजी विकसित हो रही है, उससे यह तो साफ है कि आने वाले दिनों में एयर टैक्सियों का संचालन और सामान की डिलावरी के लिए ड्रोन्स का उपयोग आम बात हो जाएगी. सच्चाई यह है कि चीन के शेनझेन जैसे शहरों में तो डिलीवरी ड्रोन पहले से ही आम जनजीवन का हिस्सा बन चुके हैं. यह बिलकुल 1960 के दशक की उस स्थिति के अनुरूप है, जब व्यावसायिक ऑटोमोबाइल्स की शुरूआत हुई थी और उस दौरान एक नया यातायात नियामक फ्रेमवर्क बनाना पड़ा था. हालांकि, ड्रोन एयर टैक्सियों का संचालन और सामान की आपूर्ति के लिए ड्रोन्स का उपयोग काफ़ी लाभदायक है और इससे न केवल सड़कों पर भीड़ से निजात मिलेगी और सामान की आपूर्ति का समय कम होगा, बल्कि आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने में भी सहूलियत होगी. ऐसे में यह ज़रूरी है कि ड्रोन्स के संचालन से संबंधित नीतियों को तत्काल प्रभाव से लागू किया जाए.
वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो, ज़्यादातर देशों ने अपने स्तर पर पहले से ही ड्रोन नीति बनाई है, लेकिन मौज़ूदा वक़्त में इन तमाम देशों की ड्रोन नीति में कोई एकरूपता नहीं हैं और स्थान व देश के मुताबिक़ इसमें काफ़ी अंतर है. यहां तक कि इन देशों की फिलहाल जो ड्रोन नीति है, उसमें ऊपर चर्चा किए गए ड्रोन टैक्सियों से जुड़े मुद्दों का समाधान तलाशने के बारे में बहुत कुछ नहीं है. जिस प्रकार से निकट भविष्य में ड्रोन्स का व्यापक स्तर पर व्यावसायिक उपयोग होने वाला है, ऐसे में तमाम देशों की सरकारों को शहरी इलाक़ों में एयर ट्रैफिक की बढ़ोतरी को लेकर भी तत्काल कमर कसने की ज़रूरत है. इन हालातों में विभिन्न देशों के नीति निर्माताओं को ड्रोन्स के सुगम एवं सुरक्षित तरीक़े से संचालन को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक नियम-क़ानूनों, दिशानिर्देशों और इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में तेज़ी लाने की ज़रूरत है. अगर इस दिशा में तीव्र गति से कार्य नहीं किया जाता है, तो भविष्य में ड्रोन और एयर टैक्सियों के संचालन से आसमान में अराजकतापूर्ण हालात पैदा हो सकते हैं.
समीर पाटिल ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्योरिटी स्ट्रैटेजी एंड टेक्नोलॉजी में सीनियर फेलो हैं.
प्रतीक त्रिपाठी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्योरिटी स्ट्रैटेजी एंड टेक्नोलॉजी में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
ये लेखक के निजी विचार हैं.
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