Author : Premesha Saha

Published on Jun 05, 2023 Updated 0 Hours ago
हिरोशिमा में क्वॉड नेताओं की बैठक को रास्ता दिखाते ASEAN, PIF और IORA

सिडनी में क्वॉड नेताओं की बैठक रद्द होने की ख़बर आने के बाद, Quad नेताओं ने इसके बजाय 20 मई 2023 को हिरोशिमा, जापान में G7 बैठक के दौरान ही मुलाकात कर ली. क्वॉड का प्राथमिक उद्देश्य इंडो-पैसिफिक में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करना है. क्वॉड को इस क्षेत्र के ज़्यादातर बढ़ते चीनी ख़तरे से निपटने वाले समूह के रूप में देखा जाता है. हालांकि, इसमें शामिल चार देशों के नेताओं द्वारा दिए गए बयान और टिप्पणियां इस तरह की होती हैं, जो सीधे तौर पर चीन का नाम लिए बगैर चीनी विस्तारवादी गतिविधियों की ओर संकेत करती हैं. इस संबंध में यह क्वॉड बैठक भी अलग नहीं थी. इस बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में भी चीन पर एक हल्का प्रहार साफ़ दिखाता है, "हम अस्थिरता या ऐसी एकतरफा कार्रवाइयों का दृढ़ता से विरोध करते हैं, जो बल या जबरन यथास्थिति को बदलने की कोशिश करते हैं. हम विवादित सुविधाओं के सैन्यीकरण, तट रक्षक और समुद्री मिलिशिया जहाज़ों के ख़तरनाक उपयोग और अन्य देशों के अपतटीय संसाधन शोषण गतिविधियों को बाधित करने के प्रयासों पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हैं.’’

क्वॉड की इस बैठक के अंत में संयुक्त बयान के अलावा और भी कई बयान जारी किए गए. इसमें हिंद-प्रशांत क्षेत्र की भू-सामरिक जलवायु को प्रभावित करने वाले मुद्दों जैसे साइबर सुरक्षा, महत्वपूर्ण और उभरती हुई तकनीक और स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखलाओं पर बयान के साथ ही एक विजन स्टेटमेंट भी जारी किया गया था. ये बयान न केवल इन मुद्दों के प्रति चार क्वॉड देशों की गंभीरता को दर्शाते हैं, बल्कि पिछली क्वॉड बैठकों के दौरान इन विषयों से निपटने के लिए बनाए गए कार्यकारी समूहों द्वारा की गई प्रगति को भी दर्शाते हैं. हर बैठक के साथ, क्वॉड द्वारा तैयार किए गए एजेंडे और चर्चित विषयों का विस्तार ही हुआ है.

इस बार, संयुक्त बयान और विजन स्टेटमेंट में ASEAN, पैसिफिक आइलैंड्स फोरम (PIF) और इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) जैसे संगठनों पर अतिरिक्त ध्यान दिया गया है. हालांकि ASEAN और ASEAN की केंद्रीयता को बनाए रखने की आवश्यकता का उल्लेख इन बयानों में हमेशा मिलता है. लेकिन वे एक औपचारिकता मात्र दिखाई देते हैं, क्योंकि बयान में इस संबंध में कुछ भी ठोस नहीं रखा गया है कि कैसे क्वॉड देश दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र में अधिक सक्रियता दिखाकर इसमें ASEAN को ज़्यादा महत्व दे सकते हैं. लेकिन, इस बार, कुछ ठोस पहल की रूपरेखा तैयार की गई है और PIF और IORA को शामिल करने पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है.

ASEAN, PIF और IORA

संयुक्त बयान में रेखांकित किया गया है कि क्वॉड देश यह सुनिश्चित करेंगे कि उनका काम ASEAN के सिद्धांतों और प्राथमिकताओं के अनुरूप ही हो और भारत-प्रशांत पर ASEAN आउटलुक के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने में सहायक साबित हो. ताज़ा बयान में इस क्षेत्र में और आसियान के नेतृत्व वाले संगठनों, जैसे ईस्ट एशिया समिट (EAS) और आसियान रीजनल फोरम (ARF) में भी आसियान के नेतृत्व की भूमिका को स्वीकार किया गया है. इंडोनेशिया की आसियान की चल रही अध्यक्षता के साथ-साथ उसकी अध्यक्षता के विषय "आसियान मैटर्स: एपिसेंट्रम ऑफ ग्रोथ" का समर्थन करते हुए उसे स्वीकृति देने को लेकर एक विशेष उल्लेख भी ताजा बयान में शामिल है. यह भी कहा गया है कि आसियान के साथ अलग-अलग क्वॉड देशों के संबंधों को मज़बूत करने के लिए और अधिक प्रयास किए जाएंगे.

ब्लू पैसिफ़िक महाद्वीप के लिए 2050 की रणनीति जैसी पहलों में क्वॉड को शामिल करने की इच्छा जताने के साथ ही प्रशांत क्षेत्र के क्षेत्रीय संस्थानों, विशेष रूप से PIF के साथ और अधिक समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है. द्विपक्षीय और बहुपक्षीय स्तर पर व्यक्तिगत रूप से विभिन्न देशों की ओर से की गई पहलों का भी उल्लेख करते हुए बयान में उनकी सराहना की गई है.

जैसे कि फोरम फॉर इंडिया-पैसिफिक आइलैंड्स कोऑपरेशन और FIPIC का तीसरा शिखर सम्मेलन, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने पापुआ न्यू गिनी में आयोजित किया था; जापान के प्रशांत द्वीप समूह के नेताओं की बैठक; और PIF के संस्थापक सदस्य के रूप में ऑस्ट्रेलिया की "प्रशांत के लिए गहरी और स्थायी प्रतिबद्धता.’’ क्लाईमेट एक्शन, ओशन हेल्थ, लचीला बुनियादी ढांचा, समुद्री सुरक्षा और वित्तीय अखंडता जैसी "प्रशांत प्राथमिकताएं" ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर क्वॉड प्रशांत क्षेत्र में अपने पैर जमाने के लिए ध्यान केंद्रित करेगा.

क्वॉड, हिंद महासागर क्षेत्र में सहयोग और प्रभाव को बढ़ावा देना संबंधी प्रतिबद्धता को भी गंभीरता से देखना चाहता है, विशेषत: भारत को इंडो-पैसिफिक पर IORA आउटलुक का नेतृत्व करने और उसे लागू करने में सहायता करना चाहता है.

Quad के लिए ASEAN, PIF और IORA के साथ सहयोग के क्षेत्र

क्वॉड जिन क्षेत्रों में आसियान, PIF और IORA के साथ संवाद साधना चाह रहा है, उसमें ग्रीन शिपिंग और बंदरगाह, आपदा जोख़िम प्रबंधन, जलवायु सूचना का आदान-प्रदान, और क्षमता निर्माण परियोजनाएं जैसे आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन (CDRI) और रेजिलिएंट आइलैंड्स स्टेट्स (IRIS) के लिए बुनियादी ढांचा पहल का समावेश हैं. इसके अतिरिक्त, समुद्री डोमेन जागरूकता के लिए भारत-प्रशांत साझेदारी के माध्यम से, नियर-रियल टाइम,  इंटीग्रेटेड और कॉस्ट इफेक्टिव समुद्री डोमेन डेटा, दक्षिण पूर्व एशिया और प्रशांत क्षेत्र में समुद्री एजेंसियों को मुहैया करवाया जा रहा है. अब इसे विस्तारित करते हुए यह डेटा आने वाले महीनों में भारतीय महासागर क्षेत्र के भागीदारों के साथ भी साझा किया जाएगा. लचीले बुनियादी ढांचे का विकास एक ऐसा क्षेत्र है जिसे सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है और जहां क्वॉड भी प्रवेश करने का इच्छुक है. एक नई पहल की घोषणा भी की गई है, 'केबल कनेक्टिविटी और लचीलेपन के लिए क्वॉड साझेदारी', जिसका उद्देश्य " इंडो-पैसिफिक में केबल सिस्टम्स को मज़बूत करना है. यह मज़बूती केबल इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण, वितरण और रखरखाव में Quad देशों की विश्व स्तरीय विशेषज्ञता की सहायता से प्रदान की जाएगी.’’

Quad के लिए ASEAN, PIF और IORA महत्वपूर्ण क्यों हैं?

क्वॉड में शामिल चारों देशों की हिंद-प्रशांत नीतियों को आसियान की केंद्रीयता को बनाए रखते हुए  दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करने का उद्देश्य ही चला रहा है. इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते पदचिन्ह; दक्षिण पूर्व एशिया के अधिकांश देशों के साथ उसके मज़बूत आर्थिक संबंध; दक्षिण चीन सागर के विवादित जल क्षेत्र में उसकी मुखर कार्रवाइयां; इस क्षेत्र का सामरिक भूगोल; और यहां तक कि आसियान और आसियान के नेतृत्व वाले संगठनों को भारत-प्रशांत क्षेत्र में प्रमुख क्षेत्रीय संरचना के रूप में देखा जाता है- सभी ASEAN को भारत-प्रशांत बहस में आधार बनाने में योगदान करते हैं. इसके अतिरिक्त, अब जब चीन की अगुवाई वाली अनेक परियोजनाएं पूर्णत्व के करीब हैं तो यह बात भी उजागर हो रही है कि कैसे चीनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजनाओं ने कंबोडिया जैसे देशों को लाभान्वित किया है. उदाहरण के लिए, US$ 880 मिलियन चीनी-वित्तपोषित अंगकोर इंटरनेशनल एयरपोर्ट इन्वेस्टमेंट (कंबोडिया) कं, लिमिटेड, चीन के युन्नान इन्वेस्टमेंट होल्डिंग ग्रुप कंपनी लिमिटेड से संबंधित है.

इस परियोजना पर विकास कार्य मार्च 2020 में शुरू हुआ था और मार्च 2023 के अंत तक निर्माण 90 प्रतिशत कार्य पूरा हो गया है. इस हवाई अड्डे के अक्टूबर 2023 में परिचालन के लिए तैयार हो जाने की उम्मीद है. इसलिए, संयुक्त बयान में दक्षिण पूर्व एशिया, प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को आगे बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है. दक्षिण पूर्व एशिया में चीनी प्रभाव को कम करने के सबसे कारगर तरीकों में से एक है, इस क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को लागू करना. ये परियोजनाएं न केवल दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के आर्थिक विकास में मदद करेगी बल्कि इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचे की ख़ामी को पाटते हुए समग्र तौर पर कनेक्टिविटी 2025 पर आसियान मास्टरप्लान में भी योगदान देने में सहायक साबित होगी.

दक्षिण पूर्व एशिया के अलावा, दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में भी चीन का प्रभाव बढ़ रहा है. उदाहरण के लिए, 2022 में, सोलोमन द्वीप ने चीन के साथ एक सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए है. चीनी विदेश मंत्री ने फिजी, किरिबाती, समोआ, टोंगा, वानुअतु, पापुआ न्यू गिनी और तिमोर-लेस्ते का दौरा किया है. 2022 में, चीनी विदेश मंत्री ने सुवा में प्रशांत द्वीप के विदेश मंत्रियों की बैठक की भी मेज़बानी की थी.

दक्षिण प्रशांत न केवल ऑस्ट्रेलिया का बैकयार्ड है, बल्कि अमेरिका ने भी इस क्षेत्र में अपना प्रभाव और सैन्य उपस्थिति बनाए रखी है. इस इलाके में चीनी की बढ़ती उपस्थिति के बाद, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया भी इस क्षेत्र में अपनी रुचि को बढ़ा रहे हैं. 2022 में लोवी इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, "प्रशांत क्षेत्र में द्विपक्षीय ऋण के प्रमुख स्रोत के रूप में ऑस्ट्रेलिया ने चीन को पीछे छोड़ दिया है." US ने भी इस क्षेत्र में अपनी कूटनीति तेज़ कर दी है, हालांकि, राष्ट्रपति बाइडेन ने अंतिम क्षण में पापुआ न्यू गिनी की अपनी यात्रा को रद्द कर दिया था, जिसकी वज़ह से अमेरिका की प्रशांत कूटनीति को नुकसान हो सकता है. भारत भी प्रशांत द्वीपों में अपनी उपस्थिति को बढ़ाना चाहता है; प्रधानमंत्री मोदी की पापुआ न्यू गिनी की नवीनतम यात्रा - किसी भी भारतीय नेता की पहली यात्रा - इसी बात का प्रतिबिंब है. वास्तव में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का अहम खिलाड़ी बनने के लिए, भारत को प्रशांत क्षेत्र में भी अपनी उपस्थिति बढ़ाने की आवश्यकता है.

हिंद महासागर क्षेत्र न केवल भारत की रुचि का प्राथमिक क्षेत्र है, बल्कि अब हम ऑस्ट्रेलिया को भी हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति और कूटनीति को पुनर्जीवित करते हुए देख रहे हैं. उदाहरण के लिए, हाल ही में, ऑस्ट्रेलिया ने कहा है कि वह श्रीलंका की संप्रभु हवाई समुद्री निगरानी क्षमता को बढ़ाने के लिए वायु सेना के एक विमान को उपहार में देगा. ऑस्ट्रेलिया ने यह फैसला भारत के हिंद महासागर आउटरीच के हिस्से के रूप में द्वीप राष्ट्र के साथ सुरक्षा संबंधों का विस्तार करने के बाद लिया है. 2020 के डिफेंस स्ट्रैटेजिक अपडेट में और 2023 के डिफेंस स्ट्रैटेजिक अपडेट में भी, पूर्वोत्तर हिंद महासागर, दक्षिण पूर्व एशिया और प्रशांत क्षेत्र को उसकी भारत-प्रशांत नीति के हिस्से के तीन प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के रूप में उद्धृत किया गया था. इस अपडेट के अनुसार ये तीनों ही क्षेत्र ऑस्ट्रेलिया के आसपास होने की वज़ह से बेहद अहम है.

इंडो-पैसिफिक, दक्षिण पूर्व एशिया, प्रशांत द्वीप समूह और हिंद महासागर क्षेत्र वास्तव में ऐसा क्षेत्र हैं जहां न केवल महान शक्ति प्रतियोगिता देखी जाएगी, बल्कि यहां मीडिल पॉवर डिप्लोमेसी और अपना प्रभाव जमाने की आपाधापी भी मचती दिखाई देगी.



प्रेमेशा साहा, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम की फेलो हैं.

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