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ऑपरेशन सिंदूर इस बात का सटीक उदाहरण है कि भारत दुश्मन को युद्ध के मैदान पर धूल चटाने और मनोवैज्ञानिक तौर पर कमज़ोर करने के लिहाज़ से किस प्रकार रणनीतिक कुशलता के साथ सैन्य अभियान संचालित कर सकता है, साथ ही अपना बचाव भी कर सकता है.
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सैन्य सिद्धांतकार क्लॉज़विट्ज़ के मुताबिक़ सैन्य रणनीति को हमेशा व्यापक राजनीतिक लक्ष्यों के साथ संरेखित करना चाहिए. उनके सिद्धांतों को अगर आज के दौर में देखें, तो सैन्य अभियान अनिश्चितता से भरे होते हैं, यानी वे किस लक्ष्य को हासिल करने के मकसद से शुरू किए जाते हैं और उनके नतीज़े क्या निकलते हैं, इसके बारे में कुछ भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है. एक सेना किस प्रकार काम करती है और अपने उद्देश्यों को पाने के लिए क्या क़दम उठाती, क्या रणनीति अपनाती है, उसी से युद्ध के मैदान में और बाहर उसकी सफलता या विफलता को आंका जाता है. हाल ही में भारतीय सेनाओं की ओर से पाकिस्तान के ख़िलाफ़ चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर को ही देखा जाए, तो इसे पाकिस्तान के कब्ज़े वाले जम्मू - कश्मीर (PoJK) और आतंक के कर्ताधर्ता पाकिस्तान की ज़मीन पर मौज़ूद आतंकवादी संगठनों के विरुद्ध शुरू किया गया था. ऑपरेशन सिंदूर का पहला लक्ष्य वहां के आतंकी ठिकानों और ट्रेनिंग कैंपों को निशाना बनाकर आतंक की रीढ़ तोड़ना था. इसके जवाब में पाकिस्तान ने भारत पर हवाई हमले किए और भारत के नागरिक व सैन्य ठिकानों को निशाना बनाकर मिसाइल व ड्रोन्स दागे. ऐसा करके पाकिस्तान ने कहीं न कहीं ज़ल्दबाज़ी दिखाई और असंयमित सैन्य कार्रवाई की. उसकी इस हरकत के जवाब में भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान के अहम सैन्य ठिकानों और संपत्तियों को निशाना बनाया, जिनमें पाक वायु सेना के अड्डे और वहां के वायु सुरक्षा प्रणाली के रडार्स शामिल थे. कुल मिलाकर दोनों देशों के बीच युद्ध काफ़ी भीषण हो गया था, लेकिन भारत ने संतुलन बनाए रखा और केवल अपने उद्देश्य को पाने पर ही ध्यान केंद्रित किया. इस प्रकार से भारत ने संयम और संतुलित कार्रवाई की एक लाइन खींच दी, साथ ही यह भी बता दिया कि अगर इसे पार किया जाएगा, तो भारत करारा जवाब देगा.
पाकिस्तान के साथ हालिया युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने युद्ध संचालन के लिहाज़ से युद्ध के सिद्धांतों का किस प्रकार पालन किया, इसकी गहन समीक्षा करना ज़रूरी है.
पाकिस्तान के साथ हालिया युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने युद्ध संचालन के लिहाज़ से युद्ध के सिद्धांतों का किस प्रकार पालन किया, इसकी गहन समीक्षा करना ज़रूरी है. इससे नई दिल्ली को भविष्य में ऐसे संघर्षों के दौरान युद्ध प्रबंधन के बारे में काफ़ी कुछ जानकारी मिल सकती है, जो बहुत काम आ सकती है.
सैन्य विशेषज्ञों और विचारकों ने सैन्य रणनीति और उसके तहत चलाए जाने वाले सैन्य अभियानों की प्रभावशीलता को परखने के लिए नौ प्रमुख बुनियादी सैन्य सिद्धांत तय किए हैं. इसके अलावा, सैन्य अभियानों के तौर-तरीक़ों, माध्यमों एवं उद्देश्यों के लिहाज़ से इन सिद्धांतों के तालमेल के बारे में भी बताया है.
युद्ध के ये नौ बुनियादी सिद्धांत वे नियम और दिशानिर्देश हैं, जिन्हें अपनाकर सैन्य बल अपनी रणनीति तय कर सकते हैं और इन्हीं के मुताबिक़ क़दम-दर-क़दम आगे बढ़ सकते हैं, ताकि अपने लक्ष्य को हासिल कर सकें. इनमें से पहला सिद्धांत हैं उद्देश्य, यानी यह तय करना कि युद्ध किस मकसद से या लक्ष्य को पाने के लिए लड़ा जा रहा है, उसी के मुताबिक़ रणनीति बनाई जानी चाहिए. दूसरा सिद्धांत है युद्धाभ्यास, यानी सैन्य ताक़त को परखने और तैयारियों को पुख्ता करने के लिए समय-समय पर सेनाओं को युद्धाभ्यास करते रहना चाहिए. तीसरा है दुश्मन को अचरज में डालना, यानी सैन्य बलों को दुश्मन पर अप्रत्याशित तरीक़े से हमला करना चाहिए, ताकि उसे संभलने का मौक़ा न मिल पाए. चौथा सिद्धांत है सामूहिकता, यानी सेनाओं को युद्ध के समय एकजुट होकर पूरी ताक़त से साथ हमला करना चाहिए. पांचवा है सैन्य बल के संसाधनों का समझदारी के साथ उपयोग, यानी यह सुनिश्चित करना कि जहां जिसकी ज़रूरत हो, वहीं पर उस संसाधन का इस्तेमाल किया जाए. छठा सिद्धांत है आक्रामकता, यानी युद्ध के दौरान आक्रामक रुख बनाए रखने से दुश्मन का मनोबल टूटने लगता है और जंग में इसका बहुत फायदा मिलता है. सातवां सिद्धांत है सुरक्षा, यानी अपनी सेना और सैनिकों को दुश्मन के हमलों से सुरक्षित रखना. आठवां है युद्ध के दौरान सूचनाओं और संदेशों को प्रसारित करने में स्पष्टता होनी चाहिए, यानी कोई गफलत जैसी स्थिति नहीं होना चाहिए. नौवां और अंतिम सिद्धांत है कमान की एकजुटता, यानी युद्ध के दौरान कमांड देने वालों और नियंत्रण करने वालों में कोई दुविधा नहीं होनी चाहिए, कहने का मतलब है कि सैन्य अभियान के दौरान राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व के बीच बेहतर समन्वय होना चाहिए.
इस लेख में आगे इन सिद्धांतों की कसौटी पर ऑपरेशन सिंदूर की प्रभावशीलता का आकलन किया गया है और हर सिद्धांत के लिहाज़ से ऑपरेशन की सफलता को आंका गया है.
इस लेख में आगे इन सिद्धांतों की कसौटी पर ऑपरेशन सिंदूर की प्रभावशीलता का आकलन किया गया है और हर सिद्धांत के लिहाज़ से ऑपरेशन की सफलता को आंका गया है.
ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत की ओर से किए गए हमलों का मकसद एकदम साफ था, यानी पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर और पाकिस्तान के भीतर मौज़ूद आतंकी अड्डों को नेस्तनाबूत करना. भारत इन हमलों के ज़रिए बताना चाहता था कि आतंकियों के ठिकाने जहां कहीं भी होंगे उन्हें बख्शा नहीं जाएगा, तबाह कर दिया जाएगा. इसके बाद, जब इस्लामाबाद की तरफ से भारत के सैन्य और नागरिक ठिकानों पर ड्रोन व मिसाइलों से हमला किया गया, तो सभी ने देखा कि नई दिल्ली ने भी अपने लक्ष्य और मकसद को बदल दिया. पहले जहां भारतीय सेनाओं ने सिर्फ़ आतंकी अड्डों पर हमला किया था, वहीं पाकिस्तानी सैन्य कार्रवाई के बाद भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया और सटीक व मारक हमले करते हुए पाकिस्तानी सेना के कमांड कंट्रोल को ज़बरदस्त नुक़सान पहुंचाया. पाकिस्तान के ख़िलाफ़ की गई जवाबी सैन्य कार्रवाई की जानकारी धीरे-धीरे सामने आई और कहीं न कहीं ऐसा जानबूझकर किया गया, जो कि युद्ध रणनीति का ही हिस्सा था. पाकिस्तान की कमज़ोर नब्ज़ को दबाने वाली और उस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने वाली भारतीय कार्रवाई की इस रणनीति ने देखा जाए तो पाकिस्तानी आतंकी संगठनों और पाक आर्मी दोनों को ही सख़्त संदेश देने का काम किया. इसमें सिंधु जल समझौते को स्थगित करने जैसे कड़े कूटनीतिक फैसले ने भी अहम भूमिका निभाई. भारत की ओर से दुश्मन को झांसे में रखने के लिए पूरे देश में युद्ध से पहले होने वाली मॉक ड्रिक भी ऑपरेशन अभ्यास के तहत आयोजित की गई और इसके ज़रिए नागरिकों को युद्ध की परिस्थितियों के लिए तैयार रहने का अभ्यास कराया गया. मॉक ड्रिल का मकसद युद्ध के लिए भारत की तैयारियों का संदेश देना था और मॉक ड्रिल को ऑपरेशन सिंदूर के पहले किया गया, ताकि सभी को लगे भी भारत जंग में उतर सकता है और हर प्रकार के हालात का सामना करने के लिए तैयार है. इसके अलावा, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) की तरफ से नोटिस टू एयरमैन (NOTAM) भी जारी किया गया था और पश्चिमी मोर्चे पर सीमावर्ती राज्यों में इसके जरिए हवाई अलर्ट किया गया. भारतीय वायु सेना (IAF) ने इसी NOTAM की आड़ में युद्ध की तैयारी के लिए अभ्यास किया. इसके अलावा वायु सेना ने 7-8 मई, 2025 की मध्यरात्रि को इसी के ज़रिए पाकिस्तान के आतंकी अड्डों पर सटीक हमलों को अंज़ाम दिया. इतना ही नहीं, भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तानी वायु सीमा में प्रवेश किए बगैर अपने क्षेत्र में रहकर ही पाकिस्तानी धरती पर मौज़ूद आतंकी अड्डों पर हमला किया और इसके लिए अपने स्टैंड-ऑफ हथियारों यानी दूर से ही दुश्मन के ठिकानों पर हमला करने वाले हथियारों का इस्तेमाल किया. ज़ाहिर है कि ऐसा करके भारत ने हमले के दौरान चालाकी दिखाई, जिससे पाकिस्तान को संभलने का मौक़ा ही नहीं मिला और उसके आतंकवादी ठिकानों व आतंकी प्रशिक्षण शिविरों को सफलतापूर्वक तबाह कर दिया गया.
भारत के इस सैन्य ऑपरेशन में देखा जाए तो सामूहिकता यानी सेनाओं के बीच तालमेल, संसाधनों का बेहतर उपयोग, आक्रामकता और सैन्य बलों की सुरक्षा जैसे सैन्य सिद्धांतों का बेहतर तरीक़े से पालन किया गया था.
भारत के इस सैन्य ऑपरेशन में देखा जाए तो सामूहिकता यानी सेनाओं के बीच तालमेल, संसाधनों का बेहतर उपयोग, आक्रामकता और सैन्य बलों की सुरक्षा जैसे सैन्य सिद्धांतों का बेहतर तरीक़े से पालन किया गया था. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने जिस प्रकार से अपनी बहुस्तरीय वायु रक्षा प्रणाली के साथ लक्ष्य भेदी हथियारों यानी मिसाइलों और ड्रोन्स का उपयोग किया, उसने हमले के मकसद को हासिल करने में कामयाबी दिलाई, साथ ही साथ दुश्मन के हमलों को भी नाक़ाम कर दिया. भारतीय सेना ने अपनी इस समन्वित सैन्य रणनीति के ज़रिए न केवल पाकिस्तान की वायु रक्षा प्रणाली को नुक़सान (SEAD) पहुंचाने में सफलता हासिल की, बल्कि इससे IAF को पाकिस्तान वायु सेना (PAF) के तमाम ठिकानों और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर भी सटीक हमले करने में मदद मिली. भारतीय सेनाओं की इस रणनीति से भारत के नागरिक और सैन्य ठिकानों की सुरक्षा अभेद रही और अगर कहीं नुक़सान भी हुआ तो वो बेहद मामूली था. हालांकि, पाकिस्तानी सेना ने सीजफायर का उल्लंघन किया और भारतीय सीमा में गोलीबारी की, जिसमें कई नागरिक ज़रूर हताहत हुए.
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान युद्ध में सूचना संचार में सटीकता और स्पष्टता के सैन्य सिद्धांत का भी पूरी शिद्दत से पालन किया गया. भारत ने अपने देशवासियों और दुनियाभर के लोगों को ऑपरेशन से जुड़ी एक-एक बात बताई. इसके लिए सूचनाओं को व्यवस्थित तरीक़े से पेश किया गया और जानकारी को समन्वित रूप से सबके सामने रखा गया, ताकि कोई भ्रम न फैले. भारत के इन प्रयासों से पाकिस्तान द्वारा मल्टीमीडिया प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से फैलाई जा रही ग़लत सूचनाओं और फर्ज़ी ख़बरों को रोकने में और उनकी काट करने में मदद मिली. इसकी कमान खुद भारत के विदेश सचिव और सेना के तीनों अंगों यानी आर्मी, वायुसेना और नौसेना के प्रतिनिधियों ने अपने हाथों में ली और नियमित तौर पर प्रेस ब्रीफिंग के ज़रिए देश-दुनिया के सामने ऑपरेशन सिंदूर के तहत उठाए जाने वाले क़दमों, उनके कार्यान्वयन और उनकी सफलता के बारे में विस्तार से बताया. अंत में, भारत के ऑपरेशन सिंदूर की योजना बनाने के समय से ही सेना और राजनीतक नेतृत्व के बीच एकजुटता थी. यानी प्रधानमंत्री ने शुरू से ही सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी और उसके बाद रक्षा मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ और तीनों सेनाओं के प्रमुखों के साथ लगातार मंत्रणा करके रणनीतिक दिशा-निर्देश दिए, जिससे ऑपरेशन के दौरान कब क्या क़दम उठाने हैं, उसे लेकर कोई दुविधा नहीं थी और सब कुछ कुशलता के साथ आगे बढ़ता गया. इसके अलावा, सरकार की ओर से सेनाओं को इसके बारे में खुली छूट दी गई कि ऑपरेशन कैसा होगा, किस प्रकार उसे अंज़ाम दिया जाएगा, पाकिस्तान में कहां हमला किया जाएगा. साथ ही यह भी सेना पर ही छोड़ दिया गया कि अगर पाकिस्तान कोई जवाबी कार्रवाई करता है, तो उसके विरुद्ध ऐसी स्थिति में कैसी सैन्य कार्रवाई की जाएगी. इसने कहीं न कहीं भारत की तीनों सेनाओं के बीच बेहतर समन्वय बन पाया और सैन्य अधिकारियों ने आपस में मिलकर बगैर किसी बाधा के पूरे ऑपरेशन की पुख्ता योजना तैयार की. इसी का नतीज़ा था कि आर्मी ने पश्चिमी सीमाओं पर मोर्चा संभाला और बिना किसी चूक के दुश्मन से निपटने की पूरी तैयारी की. वायु सेना ने उन्नत तकनीक़ का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तान पर सटीक हमले किए, वहीं आर्मी और वायु सेना की एयर डिफेंस यूनिट्स ने पाकिस्तान की तरफ से किए गए मिसाइल और ड्रोन्स हमलों को नाक़ाम कर दिया. इतना ही नहीं, भारतीय नौ सेना ने अरब सागर में मोर्चा संभाला और पाकिस्तानी सेनाओं के तथाकथित मल्टी डोमेन संचालन पर पैनी नज़र रखी और उसे वहीं पर रोक दिया. अरब सागर में नौसेना के युद्धपोतों और पनडुब्बियों की इस तैयारी ने समुद्री क्षेत्र में पाकिस्तान के किसी भी हमले के ख़तरे को कम करने का काम किया. कुल मिलाकर, भारतीय सेनाओं की साझा योजनाओं और सैन्य संसाधनों के पारस्परिक उपयोग के कारण ही जोख़िम वाले सभी क्षेत्रों में सेनाएं समन्वित तरीक़े से दुश्मन के आगे कमर कसकर खड़ी थीं. भारतीय सेनाओं ने इसके ज़रिए दिखाया कि एकीकृत और सुव्यवस्थित प्रयासों से कैसे दमदार तरीक़े से दुश्मन के मंसूबों को नाक़ाम किया जा सकता है.
भारत को ऑपरेशन सिंदूर के दौरान संचालन और रणनीतिक स्तर पर कोई भारी क्षति नहीं उठानी पड़ी. फिर भी जो नुक़सान हुआ उसकी वजह मुख्य रूप से ऑपरेशन का एक बड़े दायरे में फैला होना, सेना के तीनों अंगों का इसमें शामिल होना और अलग-अलग क्षेत्रों यानी ज़मीन, समुद्र और आसमान में इसका विस्तार होना है. फिर भी कुल मिलाकर दुश्मन के परमाणु ताक़त से संपन्न होने और पाकिस्तान की ओर से जानबूझकर की गई आक्रामक सैन्य कार्रवाइयों के बावज़ूद भारत ने संयमित तरीक़े से अपने ऑपरेशन को अंज़ाम दिया और नई दिल्ली का इसके पीछे जो भी रणनीतिक उद्देश्य था, उसे सफलतापूर्वक हासिल किया.
यह आने वाला समय ही बताएगा कि इसके बाद भी आतंकवाद को लेकर इस्लामाबाद के नज़रिए में कोई बदलाव आता है या नहीं.
कुल मिलाकर, भारतीय सेनाओं ने ऑपरेशन सिंदूर के ज़रिए न केवल एक न्यू नॉर्मल यानी एक नया मापदंड स्थापित किया है, बल्कि दिखाया है कि सीमा पार आतंकवाद को कुचलने और आतंकवाद के प्रायोजक पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए किस स्तर तक जाकर सैन्य कार्रवाई को अंज़ाम दिया जा सकता है. जिस प्रकार से भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ हालिया युद्ध अनिश्चितिता से भरा हुआ था, यानी किस पल क्या होगा कुछ पता नहीं था, ऐसे में भारत ने अपनी रणनीतिक कुशलता से जहां एक ओर अपनी सुरक्षा पर आंच नहीं आने दी, वहीं दूसरी ओर दुश्मन को जंग के मैदान में भी धूल चटाई और उस पर मनोवैज्ञानिक रूप से भी दबाव बनाने में क़ामयाब रहा. युद्ध के दौरान सूचना का क्षेत्र बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है और सूचना युद्ध में जीत हासिल करने के लिए भारत को काफ़ी-कुछ करने की ज़रूरत है. यानी भारत को पाकिस्तान के दुष्प्रचार की हवा निकालने और हमेशा के लिए उसके ऐसे हथकंडों को समाप्त करने के लिए नैरेटिव गढ़ने की दिशा में लगातार कार्य करते रहना चाहिए. ऑपरेशन सिंदूर ने यह भी साबित किया है कि आज के दौर के युद्धों में तकनीक़ की भूमिका कितनी अहम है. ज़ाहिर है कि टेक्नोलॉजी की बदौलत ही दुश्मन के ठिकानों पर सटीक हमले किए जा सकते हैं और विजय हासिल की जा सकती है. समय के साथ-साथ जिस तरह से युद्ध के तौर-तरीक़े बदलते जा रहे हैं, उसमें भविष्य में जंग के मैदान पर सैन्य टेक्नोलॉजी की भूमिका और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाएगी. पाकिस्तान भी सैन्य तकनीक़ हासिल करने में जुटा है और उसकी ताक़त भी बढ़ रही है, ऐसे में नई दिल्ली को लगातार पाकिस्तान की सैन्य क्षमताओं का आकलन करते रहना चाहिए और उसकी सैन्य तैयारियों पर पैनी नज़र रखनी चाहिए. पारंपरिक रूप से देखा जाए तो पाकिस्तान की तुलना में भारत की सैन्य शक्ति काफ़ी ज़्यादा है, लेकिन वर्तमान में जो हालात है, उनमें पाकिस्तान के पास वो क्षमता मौज़ूद है, जिससे वह भारत के पक्ष में झुके इस सैन्य संतुलन को बिगाड़ सकता है. आखिर में, ऑपरेशन सिंदूर से आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले पाकिस्तान को जो गहरी चोट लगी है, उससे उबरने में उसे अभी काफ़ी वक़्त लगेगा, हालांकि यह आने वाला समय ही बताएगा कि इसके बाद भी आतंकवाद को लेकर इस्लामाबाद के नज़रिए में कोई बदलाव आता है या नहीं.
राहुल रावत ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के रणनीतिक अध्ययन कार्यक्रम में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
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Rahul Rawat is a Research Assistant with ORF’s Strategic Studies Programme (SSP). He also coordinates the SSP activities. His work focuses on strategic issues in the ...
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