यह लेख रायसीना फाइल्स 2023 जर्नल का एक अध्याय है.
विश्व के हर क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पहले से ही महसूस किए जा रहे हैं, लेकिन कम आय वाले देशों में इसका असर कुछ ज़्यादा ही दिखाई दे रहा है.[1] इतना ही नहीं इन देशों में विनाशकारी मौसमी घटनाएं भी लगातार बढ़ रही हैं और उनकी तीव्रता में भी बढ़ोतरी दर्ज़ की जा रही है. इस वजह से बड़ी संख्या में वहां रहने वाले लोगों का जिंगदी और आजीविका भी ख़तरे में पड़ रही है.[2]
वास्तविकता में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए और मानवता के अस्तित्व को बचाने के लिए ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन (GHG) को कम करना बेहद ज़रूरी है और अनिवार्य भी. डी-कार्बनाइज़ेशन की गतिविधियों को तेज़ी से संचालित करने की तरह ही जलवायु परिवर्तन के जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का सामना करने वाले व्यक्तियों और समुदायों की मदद के लिए अनुकूलन पहलें भी बहुत महत्त्वपूर्ण हैं. कम आय वाले देशों में यह ख़ास तौर पर ज़रूरी है, जो कि देखा जाए तो लगातार मौसम संबंधी विनाशकारी घटनाओं का मुक़ाबला कर रहे हैं. इसकी वजह से इन देशों को आय एवं उपभोग, सेहत एवं संरक्षा और भोजन, स्वास्थ्य व सुरक्षा तक पहुंच के लिए तुलनात्मक रूप से अधिक दबावों का सामना करना पड़ता है.
यह लेख लैंगिक दृष्टिकोण के मुताबिक़ बाढ़ की विभीषिका को कम करने, इससे निपटने की तैयारी, त्वरित प्रतिक्रिया और नुक़सान की भरपाई के लिए डिजिटल तकनीकों के बढ़ते उपयोग की विस्तार से छान-बीन करता है.
यह लेख लैंगिक दृष्टिकोण के मुताबिक़ बाढ़ की विभीषिका को कम करने, इससे निपटने की तैयारी, त्वरित प्रतिक्रिया और नुक़सान की भरपाई के लिए डिजिटल तकनीकों के बढ़ते उपयोग की विस्तार से छान-बीन करता है. आज पूरी दुनिया में लगभग 1.8 बिलियन लोगों को बाढ़ का गंभीर ख़तरा है,[3]उनमें से ज़्यादातर कम इनकम वाले देशों में रहते हैं.[4] अकेले पिछले दो दशकों में ही देखा जाए, तो 43 प्रतिशत जलवायु आपदाओं के लिए बाढ़ ज़िम्मेदार है और इसने कम से कम 2 बिलियन लोगों को प्रभावित किया है.[5]
देखा जाए तो एक के बाद एक राष्ट्रीय और स्थानीय सरकारों, समुदायों एवं व्यक्तियों द्वारा बाढ़ की घटनाओं को कम करने, उससे निपटने की तैयारी करने और उससे उबरने के लिए डिजिटल तकनीकों व उपकरणों का सहारा लिया जा रहा है. जिस प्रकार से इन सभी टेक्नोलॉजी को डिज़ाइन किया गया है और इनका उपयोग, कार्यान्वयन और मूल्यांकन किया गया है, लैंगिक समानता के लिहाज़ से उस सबके बहुत अहम निहितार्थ हैं.
जेंडर और बाढ़
बाढ़ जैसी जलवायु परिवर्तन की घटनाएं लोगों पर विभिन्न तरीक़ों से असर डालती हैं और मौज़ूदा लैंगिक असमानताओं को बढ़ा सकती हैं.[6] अक्सर देखा जाता है कि महिलाओं और लड़कियों को ऐसी विपरीत परिस्थितियों में ज़्यादा दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता है.[7] इसके कई कारण हैं, जैसे कि समाज का पुरुष प्रधान तानाबाना, सूचना और प्रौद्योगिकियों तक उनकी पहुंच को सीमित करने वाले सामाजिक मानदंड, वित्त एवं संपत्तियों पर असमान नियंत्रण और श्रम बाज़ार व आय की परिस्थितियां.[8] स्वाभाविक रूप से महिलाएं न तो कमज़ोर होती हैं और न ही ज़्यादा असुरक्षित होती हैं, बल्कि, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हालात ऐसे होते हैं, जो उन्हें अक्सर ऐसा बना देती हैं. कई अन्य तरह की पहचान भी हैं, जैसे कि जाति, आयु, योग्यता और विस्थापन, जो कि लैंगिक स्थिति को प्रदर्शित करती हैं और यह सभी अलग-अलग प्रकार की कमज़ोरियों को सामने लाती हैं. इसलिए, इसकी पहचान बहेद ज़रूरी है कि ये विभिन्न प्रकार की असमानताएं महिलाओं के ज़ोख़िम, कमज़ोरी और उनका सामना करने के तंत्र को किस प्रकार से आकार देते हैं. इनकी पहचान यह सुनिश्चित करने के लिए भी बहेद आवश्यक है कि अनुकूलन के प्रयास महिलाओं के अलग-अलग अनुभवों का पर्याप्त रूप से जवाब देते हैं या नहीं.
कई महिलाओं के लिए मौसम की उथल-पुथल से होने वाली घटनाओं के दौरान और उनके बाद सुरक्षा का मुद्दा भी एक बहुत बड़ी चिंता है. जैसे कि आपदा की स्थिति में महिलाओं को कब और कौन सी जगह खाली करना है, इसके बारे में समुचित जानकारी देना, जो कि उन्हें नहीं मिल पाती है.
हिंद महासागर में वर्ष 2004 में आई सूनामी के दौरान भारत, इंडोनेशिया और श्रीलंका में पुरुषों की तुलना में चार गुना अधिक महिलाओं की मौत हुई थी.[9] महिलाओं की उच्च मृत्यु दर का आंशिक रूप से एक कारण यह भी था कि महिलाएं संभावित रूप से बच्चों और परिवार के दूसरे लोगों की देखभाल कर रही थीं और जब सूनामी आई उस वक़्त ज़्यादातर महिलाएं घर पर या समुद्र के पास थीं और इन्हें तैरना भी नहीं आता था.[10] इसी प्रकार सोमोआ और टोंगा में वर्ष 2007 में आई सुनामी के दौरान मरने वाले वयस्कों में 70 प्रतिशत महिलाएं थीं.[11] हालांकि, यह सुनिश्चित करने के लिए कि ये हमेशा नहीं होगा, लैंगिक असमानता पारस्परिक तौर पर अन्य कारकों जैसे कि आय, संसाधन और दुर्बलता निर्धारित करने के अवसरों पर भी निर्भर करती है.[12]
कई महिलाओं के लिए मौसम की उथल-पुथल से होने वाली घटनाओं के दौरान और उनके बाद सुरक्षा का मुद्दा भी एक बहुत बड़ी चिंता है. जैसे कि आपदा की स्थिति में महिलाओं को कब और कौन सी जगह खाली करना है, इसके बारे में समुचित जानकारी देना, जो कि उन्हें नहीं मिल पाती है. उदाहरण के लिए, जून 2022 में उत्तर पूर्व बांग्लादेश में बाढ़ के दौरान प्रभावित हुए 7.2 मिलियन लोगों में से कुछ के आश्रण स्थलों में अलग से WASH (वॉटर, सेनिटेशन और हाइजीन) सुविधाएं मौज़ूद नहीं थीं. इन स्थलों पर महिलाओं और लड़कियों के लिए ऐसी कोई जगह नहीं थी, जहां उन्हें सुरक्षा और संरक्षण मिल सके.[13] ऐसे सार्वजनिक स्थानों में सुरक्षा के इंतज़ामों के बारे में समुचित जानकारी महिलाओं के लिए इस बारे में फ़ैसला लेने के लिए आवश्यक हैं कि उन्हें किस स्थान पर आश्रय लेना सुरक्षित है. इसके अतिरिक्त, संकट के दौरान लिंग आधारित हिंसा महिलाओं के लिए विशेष रूप से ख़तरा पैदा करती है.[14] शोधकर्ताओं ने 19 देशों में अपनी रिसर्च के दौरान पाया है कि अकाल की स्थिति में महिलाओं को अपने घरों में ही हिंसा का सामना करना पड़ा.[15] टाफिया, वानुअतु में दो चक्रवातों के बाद, घरेलू हिंसा के मामलों में 300 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज़ की गई.[16] अमेरिका में कैटरीना समुद्री तूफान से पहले और बाद में इंटर-पार्टनर वायलेंस यानी घरेलू हिंसा को लेकर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि तूफान के बाद महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा की घटनाएं लगभग दोगुनी यानी 4.2 प्रतिशत से बढ़कर 8.3 प्रतिशत हो गईं थीं.[17]
बाढ़ से प्रभावित इलाक़ों के बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है. यहां तक कि जब बाढ़ का असर कम हो जाता है, तब भी अक्सर बच्चे अपने परिवारों की बाढ़ के प्रभाव से उबरने में मदद करने के लिए स्कूल नहीं जाते हैं. इतना ही नहीं प्रभावित इलाकों में स्कूल या तो क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, या फिर उन्हें आश्रय स्थल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. वानुअतू में वर्ष 2015 में पाम चक्रवात की वजह से आधे स्कूल एक महीने के लिए बंद कर दिए गए थे.[18] उसी साल, म्यांमार में कोमेन चक्रवात के दौरान 4,000 से अधिक स्कूल क्षतिग्रस्त हो गए थे, जबकि 600 से अधिक स्कूल पूरी तरह से तबाह हो गए थे.[19] कुछ साल पहले, वर्ष 2010 में पाकिस्तान में विनाशकारी बाढ़ के कारण 8,000 स्कूल बंद कर दिए गए थे. इसके अलावा 5,000 स्कूलों को आश्रय स्थलों में तब्दील कर दिया गया था.[20]
परिवार की आय पर बाढ़ के असर का अर्थ यह भी हो सकता है कि बच्चों के स्कूल जाने के लिए कम संसाधन उपलब्ध हों. इन हालातों में लड़कों के स्कूल लौटने की संभावना अमूमन लड़कियों की तुलना में अधिक होती है.
देखा जाए, तो जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली आपदाओं के दौरान लड़कों की तुलना में लड़कियों की शिक्षा अक्सर ज़्यादा वक़्त तक प्रभावित रहती है. इसके अलावा स्कूलों की तबाही, परिवहन इंफ्रास्ट्रक्चर की बर्बादी, आपदा के कारण परिवार पर पड़ने वाले वित्तीय बोझ और स्कूलों में दोबारा स्थापित की गईं WASH सुविधाओं की ग़ैरमौज़ूदगी जैसी तमाम दिक़्क़तें हैं, जो बच्चों यानी लड़कों और लड़कियों को समान रूप से प्रभावित नहीं करती हैं.[21] उदाहरण के लिए, वर्ष 2022 में पाकिस्तान में आई बाढ़ के बाद, एक तिहाई माता-पिता ने बताया कि उनके लिए अपनी बच्चियों को दोबारा स्कूल भेजना बेहद मुश्किल होगा.[22] ऐसा इसलिए है क्योंकि लड़कियां अक्सर अपने घरों में देखभाल की ज़िम्मेदारियों का अधिक बोझ उठाती हैं, वो भी मुफ्त में. ज़ाहिर है कि बाढ़ या अन्य मौसम संबंधी आपदाओं के दौरान और उसके बाद लड़कियों पर यह बोझ बढ़ सकता है. परिवार की आय पर बाढ़ के असर का अर्थ यह भी हो सकता है कि बच्चों के स्कूल जाने के लिए कम संसाधन उपलब्ध हों. इन हालातों में लड़कों के स्कूल लौटने की संभावना अमूमन लड़कियों की तुलना में अधिक होती है.
इतना ही नहीं, ऐसे देशों में जहां आर्थिक विकास में बहुत असमानता होती है, वहां महिलाओं को अक्सर बाढ़ जैसी घटनाओं के पहले, बाढ़ के दौरान और उसके बाद व्यवसाय, आय और तुलनात्मक रूप से परिवार की वित्तीय संपत्तियों पर स्वामित्व की कमी जैसे कारणों की वजह से विशेष तौर पर असुरक्षा का सामना करना पड़ता है.[23] उदाहरण के तौर पर, एक आपदा के दौरान, आवश्यक वस्तुओं का इंतज़ाम सुनिश्चित करने के लिए बचत के रूप में जोड़ी गई रकम अक्सर बेहद अहम होती है.[24] हालांकि, पुरुषों की तुलना में महिलाओं के पास बचत की राशि कम होती है.[25] उनके पास बैंक खाते के बजाय गहने, महंगे कपड़े या नकदी के रूप में ठोस और वास्तविक संपत्ति अधिक होती है. ज़ाहिर है कि बाढ़ जैसी आपदा के वक़्त महिलाओं की इस संपत्ति पर सबसे अधिक ख़तरा होता है.[26]
आपदा के ज़ोख़िम को कम करने और प्रबंधन के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी
लोगों और समुदायों को बाढ़ की घटनाओं के बढ़ते ज़ोख़िमों के प्रति सक्षम बनाने में मदद हेतु कई डिजिटल तकनीकों और उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है. सरकारें और संगठन भू-स्थानिक मैपिंग से लेकर IoT-सक्षम स्मार्ट इंफ्रास्ट्रक्चर, एआई-आधारित पूर्वानुमान और डिजिटल कम्युनिकेशन एवं सोशल मीडिया तक कई तकनीकी इनोवेशन्स का उपयोग करके लचीलापन बढ़ाने के लिए कार्य कर रहे हैं. अगर इस कार्य को अच्छी तरह से नहीं किया जाता है, तो विकसित एवं विकासशील दोनों तरह के देशों में ऐसी तकनीकों की योजना बनाना, डिज़ाइन तैयार करना और उपयोग करना लैंगिक असमानताओं को और ज़्यादा बढ़ाने का ज़ोख़िम पैदा करता है.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि डिजिटल प्रौद्योगिकियां संभावित तौर पर अधिक प्रभावी और आपदा ज़ोख़िम को वक़्त रहते कम करने एवं उससे निपटने के लिए क़दम उठाने के लिए बेहतर साधन उपलब्ध कराती हैं. लेकिन यह प्रौद्योगिकियां लड़कियों और महिलाओं के लिए और ज़्यादा संकट भी पैदा कर सकती हैं. ऐसा उन हालातों में ज़्यादा संभव है, जब इन्हें समावेशी और बराबर की भागीदारी वाले नज़रिए के मुताबिक़ डिज़ाइन नहीं किया गया हो, यानी लिंग विशेष, ख़ासकर महिलाओं से मिले अनुभवों, उनकी ज़रूरतों और धारणाओं के अनुरूप डिज़ाइन नहीं किया गया हो. इसके अलावा, महिलाओं तक सूचना और संचार प्रौद्योगिकी की पहुंच की कमी अहम जानकारी, सेवाओं और समर्थन तक उनकी पहुंच में अवरोध पैदा करती है. ऐसे में यह सुनिश्चित करना बेहद अहम है कि DRM यानी डिजास्टर रिस्क मैनेजमेंट में डिजिटल तकनीकों का उपयोग लैंगिक रूप से समावेशी हो और महिलाओं व लड़कियों एवं हाशिए पर पड़ी दूसरी आबादी द्वारा सामना की जाने वाली दिक़्क़तों को दूर करने वाला हो. टेबल -1 बाढ़ डीआरएम के विभिन्न चरणों में उपयोग में लाई जाने वाली डिजिटल प्रौद्योगिकियों के उदाहरण प्रस्तुत करती है.
टेबल 1: बाढ़ में डीआरएम के लिए प्रमुख प्रौद्योगिकियां
स्रोत: स्वयं लेखक के और विभिन्न ओपन सोर्सेज के माध्यम से
डिजिटल तकनीकों के इनोवेशन्स और नए-नए तरह के उपयोगों से बाढ़ के दुष्प्रभाव को कम करने और इससे निपटने की तैयारी और उबरने की कोशिशों में बहुत बड़ा बदलाव आ रहा है. उदाहरण के लिए, आपदाओं से तात्कालिक और दीर्घकालिक दोनों तरह की खाद्य असुरक्षा यानी खाने-पीने की चीज़ों की किल्लत पैदा कर सकती हैं. ऐसे में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (WFP) ने एक मोबाइल वल्नेरेबिलिटी एनालिसिस एंड मैपिंग (mVAM) कार्यक्रम विकसित किया है, जो उन्हें फोन कॉल, एसएमएस और वॉयस रिस्पॉन्स के माध्यम से खाद्य सुरक्षा के हालातों पर परिवार सर्वेक्षण आंकड़ा एकत्र करने की सुविधा प्रदान करता है.[27] परिवार खाद्य सुरक्षा आंकड़े को हंगरमैप (HungerMap) वेबसाइट पर अपलोड किया जाता है, जो इस कार्यक्रम और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रयासों को सूचित करने हेतु रियल टाइम जानकारी प्रदान करता है.[28]
डिजिटल प्रौद्योगिकियां संभावित तौर पर अधिक प्रभावी और आपदा ज़ोख़िम को वक़्त रहते कम करने एवं उससे निपटने के लिए क़दम उठाने के लिए बेहतर साधन उपलब्ध कराती हैं. लेकिन यह प्रौद्योगिकियां लड़कियों और महिलाओं के लिए और ज़्यादा संकट भी पैदा कर सकती हैं.
बाढ़ के ज़ोख़िम और ख़तरे वाले ऑनलाइन नक्शे ऐसे फ़ैसलों को लेने के महत्त्वपूर्ण साबित हो सकते हैं, जैसे कि प्रभावित आबादी को कहां विस्थापित करना है और कहां पर राहत और बचाव कार्य शुरू करना है. कई भू-स्थानिक मैपिंग टूल्स, जैसे कि ArcGIS और OpenStreetMap, का उपयोग डेटा एकत्र करने और बाढ़ जैसे ख़तरों की सटीक जगह के बारे में जानकारी प्रसारित करने के लिए किया जाता है.[29] एक उदाहरण Nusaflood भी एक डिजिटल टूल है, जिसे इंडोनेशिया में महिलाओं की अगुवाई वाली टीम द्वारा बनाया गया है. Nusaflood एक आसानी से सुलभ स्थानीय विज़ुअलाइज़ेशन टूल उपलब्ध कराता है, जो भविष्य में आने वाली बाढ़ों के संभावित ज़ोख़िमों का ख़ाका तैयार करता है. इस उपकरण को इंडोनेशिया के लोगों की मदद करने के लिए डिज़ाइन किया गया था (यहां तक कि डिजिटल प्रौद्योगिकी की सीमित जानकारी रखने वालों के लिए भी) कि भविष्य में किन-किन जगहों पर बाढ़ का ख़तरा हो सकता है, ताकि उन्हें इसके बारे में निर्णय लेने में आसानी हो कि उन्हें कहां रहना है, कहां निवेश करना और कहां काम करना है.[30]
मौसम में परिवर्तन की वजह से आने वाली किसी आपदा के दौरान मौसम और तूफान से संबंधित रियल टाइम जानकारी जैसे कि मौसम पूर्वानुमान, गंभीर मौसम-प्रभावित क्षेत्र और सकुशल निकासी मार्ग के बारे में बताने वाली वेबसाइटें और ऐप्स, योजना बनाने और निर्णय लेने के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं. स्थानीय और राष्ट्रीय सरकारें भी ऐसी मौसमी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने और निगरानी करने के लिए विभिन्न हाइड्रोलॉजिकल और मेट्रोलॉजिकल निगरानी इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं प्रणालियों में निवेश कर रही हैं.[31] ऐसी कई प्रणालियों में रिमोट सेंसर, IoT से जुड़ी डिवाइसें और पूर्वानुमान के लिए उपयोग किए जाने वाले एआई-आधारित मौसम मॉडल शामिल हैं.
बाढ़ की शुरुआत में ही अर्ली वॉर्निंग सिस्टम यानी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (EWS) जैसे सिस्टम बेहद अहम होते हैं, क्योंकि इनके माध्यम से प्रभावित होने वाली आबादी को सूचना प्रसारित करना आसान होता है और कारगर भी. EWS ख़तरे की सूचनाएं और चेतावनियों को भेजने के लिए एप्लिकेशन्स और टेक्स्ट मैसेजिंग का उपयोग करते हैं. EWS से मिली जानकारी को उचित तरीक़े से, समय पर एकत्र और प्रसारित किया जाना चाहिए, इतना ही नहीं इस जानकारी को ज़ल्द से ज़ल्द आपदा से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले लोगों एवं समुदायों तक पहुंचाना जाना चाहिए.[32] जब अर्ली वॉर्निंग सिस्टम्स को ऐसे लोगों को ध्यान में रख कर डिज़ाइन नहीं किया जाता है, जिन्हें इसकी सबसे अधिक ज़रूरत होती है, विशेष रूप से सबसे कमज़ोर और प्रभावित तबके को ध्यान में रखकर तो, यह बाढ़ के ख़तरों बढ़ाने का काम करते हैं. उदाहरण के लिए, वर्ष 2010 में पाकिस्तान में आई बाढ़ के बाद, सरकार ने लाई बेसिन में एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित की थी.[33] हालांकि, इस EWS के एक आकलन में पाया गया कि यह ज़रूरतमंद समुदायों को अपने डिज़ाइन में शामिल करने में विफल रहा. साथ ही यह भी पाया गया कि यह कि इसके माध्यम से जो प्रमुख ज़ोख़िम से जुड़े संदेश प्रसारित किए गए थे, उन्हें और अधिक आसानी से समझने योग्य बनाने, साथ ही उन्हें आबादी के बीच बाढ़ के ख़तरों की विभिन्न धारणाओं के साथ जोड़ने की ज़रूरत थी.[34] इसके अलावा, अर्ली वॉर्निंग प्रणालियां अक्सर उन चैनलों के माध्यम से सूचना प्रसारित करती हैं, जो पुरुषों के लिए अधिक सुलभ होते हैं,[35] इस वजह से उस जानकारी के महिलाओं तक पहुंचने में देरी होती है.
बाढ़ की शुरुआत में ही अर्ली वॉर्निंग सिस्टम यानी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (EWS) जैसे सिस्टम बेहद अहम होते हैं, क्योंकि इनके माध्यम से प्रभावित होने वाली आबादी को सूचना प्रसारित करना आसान होता है और कारगर भी.
मौसम की घटनाओं जुड़ी जानकारी को लेकर इस अंतर को दूर करने के लिए फ़िलहाल कुछ पहलें चल रही हैं. उदाहरण के लिए, फिजी में वर्ष 2004 की बाढ़ के बाद वूमेंस वेदर वॉच (WWW) की स्थापना की गई थी.[36] WWW ने मौसम से जुड़ी घटनाओं के बारे में रियल टाइम एवं आसानी से समझने योग्य जानकारी का प्रसार करने के लिए एक विस्तृत एसएमएस सिस्टम, रेडियो स्टेशन, सोशल मीडिया पेज और मैसेजिंग ऐप शुरू किए.[37]WWW का लक्ष्य विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं को जानकारी उपलब्ध कराना है.[38]
इसी प्रकार से ट्रिलॉजी इमरजेंसी रिस्पांस एप्लिकेशन (TERA) जैसे दूसरे एप्लीकेशन प्रभावित लोगों और उनकी मदद करने वालों के बीच दो-तरफा संचार की सुविधा प्रदान करते हैं.[39] इस बीच, WFP ने Mila नाम का AI-आधारित चैटबोट बनाया है, जो लीबिया में लोगों को मानवीय सेवाओं के बारे में जानकारी प्रदान करता है.[40], [41]
आख़िर में, रिकवरी में भी डिजिटल रूप से सक्षम प्लेटफॉर्म्स और ऐप्स का इस्तेमाल किया जाता है. उदाहरण के लिए, डिजिटल रूप से सक्षम ट्रांसफर सिस्टम ज़रूरतमंद लोगों की तेज़ी से पहचान और नगद हस्तांतरण सुनिश्चित करते हैं.[42] बाढ़ के बाद और इसके दुष्प्रभाव से उबरने के दौरान, मोबाइल प्रौद्योगिकियां वित्तीय संसाधनों और अहम डिजिटल दस्तावेज़ों, जैसे कि पहचान, अभिलेख, स्वास्थ्य रिकॉर्ड या वीजा के प्रमाणों तक आसान पहुंच के लिए अहम हो सकती हैं.
यह बेहद अहम हो जाता है कि प्रौद्योगिकी फर्म, अंतर्राष्ट्रीय संगठन, सरकारें, मानवतावादी संगठन और समुदाय आपदा का सामना करने वाली योजनाओं को तैयार करते वक़्त असमान लैंगिक मानकों के दृष्टिकोण को ध्यान में रखें.
ऐसे में जबकि बाढ़ की घटनाओं से निपटने के लिए योजना बनाने और उनसे उबरने के लिए डिजिटल तकनीकों को विकसित करने एवं उन्हें लागू करने में उल्लेखनीय प्रगति हुई है, तब यह लैंगिक तौर पर लचीला नज़रिया बेहद महत्त्वपूर्ण है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मौज़ूदा असमानताओं को न तो दोहराया जा सके और न ही उसे गहरा किया जा सके. इस मकसद को पूरा करने के लिए आवश्यक रणनीतियों में निम्नलिखित बातें शामिल हो सकती हैं:
प्रौद्योगिकी डिज़ाइन, योजना, कार्यान्वयन और मूल्यांकन के सभी चरणों में महिलाओं और लड़कियों की भागीदारी सुनिश्चित करना.
स्मार्टफोन जैसे डिजिटल उपकरणों की पहुंच और स्वामित्व को बढ़ाना, साथ ही महिलाओं और लड़कियों के बीच इंटरनेट की पहुंच व उपयोग में बढ़ोतरी करना.
यह सुनिश्चित करना कि अर्ली वॉर्निंग सिस्टम आने वाले ख़तरों, संदेश, निर्णय लेने और सामाजिक मानकों में लैंगिक अंतर को लेकर पूरी तरह से जवाबदेह हों.
जिन जगहों पर ज़रूरत हों, वहां लो-टेक समाधानों के उपयोग को बढ़ावा देना. ज़ाहिर है कि डिजिटल और विकसित प्रौद्योगिकी समाधान अक्सर बहुत कारगर होते हैं, ऐसे में यह पता लगाना अहम है कि लो-टेक समाधान कब अधिक प्रभावी और सक्षम होते हैं.
अलग-अलग वर्ग समूह एवं विभिन्न परेशानियों में घिरी महिलाओं की प्राथमिकताओं, ज़रूरतों और क्षमताओं की पहचान करना और उसके मुताबिक़ क़दम उठाना.
महिलाओं के बीच सामाजिक सुरक्षा, बीमा, डिजिटल दस्तावेज़ों और डिजिटल बैंकिंग तक पहुंच बढ़ाने के लिए जहां कहीं भी आवश्यकता हो, वहां डिजिटल समाधानों का लाभ उठाना.
नई डिजिटल तकनीकों और उपकरणों के बारे में अलग-अलग लैंगिक समूह के लोगों से जुड़े साक्ष्य एकत्र करना और उनका विश्लेषण करना, ताकि उनका असमान लैंगिक मानदंडों से जुड़े डिजास्टर रिस्क मैनेजमेंट पर प्रभाव का आकलन किया जा सके.
राहत, बचाव और निर्माण से जुड़े कार्यों को इस बात को ध्यान में रखकर अंज़ाम देना कि वे लैंगिक रूप से समावेशी हों, यानी उनमें महिलाओं की ज़रूरतों और दिक़्क़तों का समुचित ध्यान रखा जाए. साथ ही हर क्षेत्र में लैंगिक समानता का समर्थन करना.
ज़ाहिर है कि जलवायु परिवर्तन से जुड़ी घटनाओं के साथ ही इसके प्रभावों की आवृत्ति और तीव्रता में जिस प्रकार से बढ़ोतरी हो रही है, ऐसे में इससे निपटने और उबरने के प्रयास बेहद अहम हैं. दुनिया भर के लोगों और समुदायों के लिए बाढ़ एक गंभीर ख़तरा पैदा करती है और जिस तरह से विभिन्न देश, शहर एवं समुदाय बाढ़ की घटनाओं को कम करने एवं इसका सामना करने के लिए तैयारी में जुटे हुए हैं, उसमें डिजिटल प्रौद्योगिकियां अपार क्षमता उपलब्ध कराती हैं. हालांकि, ये भी हो सकता है कि यह बाढ़ की घटनाओं के गंभीर प्रभावों से निजात दिलाने के बजाए महिलाओं और लड़कियों को अधिक ज़ोख़िम में डालकर लैंगिक असमानताओं को और बढ़ा दें. ऐसे में यह बेहद अहम हो जाता है कि प्रौद्योगिकी फर्म, अंतर्राष्ट्रीय संगठन, सरकारें, मानवतावादी संगठन और समुदाय आपदा का सामना करने वाली योजनाओं को तैयार करते वक़्त असमान लैंगिक मानकों के दृष्टिकोण को ध्यान में रखें. ऐसा करना ना सिर्फ़ महिलाओं और लड़कियों के एक समान समावेशन को सुनिश्चित करेगा, बल्कि आपदा राहत से संबंधित निर्णय लेने, योजना बनाने और उससे निपटने की तैयारी करने में उनकी पूरी भागीदारी को भी सुनिश्चित करेगा.
Endnotes
[1] H.-O. Pörtner, et al., Climate Change 2022: Impacts, Adaptation, and Vulnerability. Contribution of Working Group II to the Sixth Assessment Report of the Intergovernmental Panel on Climate Change Cambridge University Press. Cambridge University Press, Cambridge, UK and New York, NY, USA, 3056 pp., doi:10.1017/9781009325844.
[2] Pörtner, et al., Climate Change 2022: Impacts, Adaptation, and Vulnerability
[3] Jun Rentschler, Melda Salhab, and Bramka Arga Jafino, “Flood Exposure and Poverty in 188 Countries,” Nature Communications 13, no. 1 (June 28, 2022): 3527, https://doi.org/10.1038/s41467-022-30727-4.
[4] McDermott, Thomas K. J. “Global Exposure to Flood Risk and Poverty,” Nature Communications 13 (June 28, 2022): 3529. https://doi.org/10.1038/s41467-022-30725-6.
[5] Pascaline Wallemacq and Rowena House, Economic Losses, Poverty & Disasters: 1998-2017, UNDRR, 2018. https://www.undrr.org/publication/economic-losses-poverty-disasters-1998-2017.
[6] United Nations, World Economic and Social Survey 2016: Climate Change Resilience: An Opportunity for Reducing Inequalities, United Nations, 2016.
[7] UN Women, “Explainer: How Gender Inequality and Climate Change are Interconnected,” UN Women, 2022.
[8] Sonja Ayeb-Karlsson, “When the Disaster Strikes: Gendered (Im)Mobility in Bangladesh,” Climate Risk Management 29 (January 1, 2020): 100237, https://doi.org/10.1016/j.crm.2020.100237.
[9] Rhona MacDonald, “How Women Were Affected by the Tsunami: A Perspective from Oxfam,” PLoS Medicine 2, no. 6 (June 2005): e178, https://doi.org/10.1371/journal.pmed.0020178.
[10] Oxfam, The Tsunami’s Impact on Women, Oxfam, 2005, .https://oxfamilibrary.openrepository.com/bitstream/handle/10546/115038/bn-tsunami-impact-on-women-250305-en.pdf
[11] Kate Morioka, Time to Act on Gender, Climate Change and Disaster Risk Reduction, UN Women (Bangkok, Thailand), 2016, p.23.
[12] Eric Neumayer and Thomas Plümper, “The Gendered Nature of Natural Disasters: The Impact of Catastrophic Events on the Gender Gap in Life Expectancy, 1981–2002,” Annals of the Association of American Geographers 97, no. 3 (September 1, 2007): 551–66. https://doi.org/10.1111/j.1467-8306.2007.00563.x.
[13] U.N. Women, Rapid Gender Analysis of Flood Situation in North and North-Eastern Bangladesh: Gender in Humanitarian Action Working Group, U.N. Women, June 2022, https://asiapacific.unwomen.org/sites/default/files/2022-07/bd-Rapid-gender-analysis-north-northeaster-flood-2022.pdf
[14] Kim Robin van Daalen et al., “Extreme Events and Gender-Based Violence: A Mixed-Methods Systematic Review,” The Lancet Planetary Health 6, no. 6 (June 1, 2022): e504–23, https://doi.org/10.1016/S2542-5196(22)00088-2.
[15] Adrienne Epstein et al., “Drought and Intimate Partner Violence towards Women in 19 Countries in Sub-Saharan Africa during 2011-2018: A Population-Based Study,” ed. Lawrence Palinkas, PLOS Medicine 17, no. 3 (March 19, 2020): e1003064, https://doi.org/10.1371/journal.pmed.1003064.
[16] Morioka, Time to Act on Gender, Climate Change and Disaster Risk Reduction
[17] Julie A. Schumacher, et al., “Intimate Partner Violence and Hurricane Katrina: Predictors and Associated Mental Health Outcomes,” Violence and Victims 25, no. 5 (2010): 588–603.
[18] UNICEF, It is Getting Hot: Call for Education Systems to Respond to the Climate Crisis, UNICEF (Bangkok), 2019.
[19] UNICEF, It is Getting Hot: Call for Education Systems to Respond to the Climate Crisis
[20] Zeina Khodr, “Floods Damage Schools,” Al Jazeera, August 29, 2010, https://www.aljazeera.com/news/2010/8/29/pakistan-floods-damage-schools
[21] Kate Sims, Education, Girls’ Education and Climate Change, Knowledge, Evidence and Learning for Development, March 2021.
[22] Freya Perry, Izza Farrakh, and Elena Roseo, “Invest in Human Capital, Protect Pakistan’s Future,” World Bank Blogs, January 26, 2023, https://blogs.worldbank.org/endpovertyinsouthasia/invest-human-capital-protect-pakistans-future.
[23] Morioka, Time to Act on Gender, Climate Change and Disaster Risk Reduction
[24] World Bank, Gender Equality and Women’s Empowerment in Disaster Recovery, World Bank, Washington, DC, 2020, https://doi.org/10.1596/33684.
[25] Alvina Erman et al., Gender Dimensions of Disaster Risk and Resilience: Existing Evidence, World Bank, 2021, https://doi.org/10.1596/35202.
[26] Alvina Erman, et al., Gender Dimensions of Disaster Risk and Resilience: Existing Evidence
[27] World Food Program, Vulnerability Analysis and Management: Food Security Analysis at the World Food Program, World Food Program, 2018, https://docs.wfp.org/api/documents/WFP-0000040024/download/
[28] World Food Program, “Women as Shock Absorbers: Measuring Intra-Household Gender Inequality,” World Food Program MVAM The Blog, 2022. https://mvam.org/
[29] Ian McCallum et al., “Technologies to Support Community Flood Disaster Risk Reduction,” International Journal of Disaster Risk Science 7, no. 2 (June 1, 2016): 198–204, https://doi.org/10.1007/s13753-016-0086-5.
[30] Sarah Brown, et al., “Gender Transformative Early Warning Systems: Experiences from Nepal and Peru,” Practical Action, 2019, https://wrd.unwomen.org/sites/default/files/2021-11/GENDER~1_1.PDF
[31] Asian Disaster Reduction Center, “Total Disaster Risk Management: Good Practices”.
[32] Brown, et al., “Gender Transformative Early Warning Systems: Experiences from Nepal and Peru”
[33] Daanish Mustafa et al., “Gendering Flood Early Warning Systems: The Case of Pakistan,” Environmental Hazards 14, no. 4 (October 2, 2015): 312–28, https://doi.org/10.1080/17477891.2015.1075859.
[34] Mustafa et al., “Gendering Flood Early Warning Systems: The Case of Pakistan”
[35] Intergovernmental Authority on Development, “Regional Strategy and Action Plan for Mainstreaming Gender in Disaster Risk Management and Climate Change Adaptation,” IGAD, 2020, P.5.
[36] ActionAid, “Innovation Station: Women’s Weather Watch, Fiji,” ActionAid, https://actionaid.org.au/articles/innovation-station-womens-weather-watch-fiji/
[37] ActionAid, “Innovation Station: Women’s Weather Watch, Fiji”
[38] “Women and ICT Access: Bridging the Digital Divide for Disaster Resilience,” Data-Pop Alliance, November 13, 2022, https://datapopalliance.org/women-and-ict-access-bridging-the-digitial-divide-for-disaster-resilience/.
[39] South East Asia’s Road to Resilience, “Trilogy Emergency Response Application”.
[40] World Food Program, Vulnerability Analysis and Management: Food Security Analysis at the World Food Program
[41] Suzanne Fenton, “A Chatbot Named Mila: Answers the Call for People in Lybia,” The World Food Program, 2021.
[42] IMF, Digital Solutions for Direct Cash Transfers in Emergencies, IMF, Washington, DC.
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