Author : Soumya Awasthi

Expert Speak Raisina Debates
Published on Apr 02, 2024 Updated 0 Hours ago

आतंकवादी हमलों के लिए अब जिस तरह तकनीकी का इस्तेमाल हो रहा है, उसे देखते हुए इस चीज़ की बहुत ज़रूरत महसूस हो रही है कि आतंकवाद का मुकाबला करने के जो रणनीतियां बनाई जा रही हैं, उनमें भी उसी हिसाब से और तेज़ी से बदलाव लाया जाए. 

तकनीक पर आधारित आतंकवाद का मुकाबला करने की क्या हो रणनीति?

दुनियाभर में इज़रायल अपनी मजबूत और अत्याधुनिक सुरक्षा प्रणाली को लेकर मशहूर है. इसके बावजूद 7 अक्टूबर को उससे सुरक्षा में चूक हो गई. हमास ने उस पर सुनियोजित हमला कर दिया. हमास के इस हमले ने इज़रायली खुफिया तंत्र की कमियों को उजागर करने के साथ ही उसकी निगरानी की पूरी प्रणाली को ध्वस्त भी कर दिया. हमास ने इन हमलों के लिए गैर परंपरागत तरीकों को चुना, जिससे अत्याधुनिक मानी जाने वाली इज़रायल की सेना भी हैरान रह गई. इज़रायल-गाज़ा सीमा पर सेंसर, कैमरे, थर्मल इमेजिंग डिवाइसेज और नियमित गश्त होने के बावजूद ये सारे उपाय नाकाम साबित हुए. 

 

कुछ ऐसे ही तरीकों का इस्तेमाल हूती विद्रोहियों ने 2021 में सऊदी अरब के एयर डिफेंस सिस्टम के ख़िलाफ ड्रोन अटैक में किया. हिजबुल्लाह ने सीरिया में, तुर्की समर्थित विद्रोहियों ने सीरिया में रूस के सैन्य शिविरों पर ‘स्वार्मिंग अटैक’ में भी अपारम्पिक तरीकों का इस्तेमाल किया. 2023 में अज़रबैजान और अर्मेनिया के बीच हुए संघर्ष ने भी ये दिखा दिया कि हमलों को लेकर रणनीति काफी बदल चुकी है. इन हमलों ने ये संदेश दिया कि कमज़ोर और सैन्य रूप से कम विकसित माने जाने वाले संगठन भी ऐसे गंभीर ख़तरे पैदा कर सकते हैं, जिनके बारे में पहले सोचा भी नहीं जा सकता था. आईएसआईएल, तालिबान, हमास और सीरिया के विद्रोही गुटों के अलावा करीब 65 आतंकी संगठनों के पास हमले के लिए इस वक्त मानव रहित वायु प्रणाली है. इससे लोकतांत्रिक देशों के सामने सुरक्षा को लेकर गंभीर चुनौती खड़ी हो गई है. 

इस लेख का मकसद आतंकवाद विरोधी रणनीति में वैश्विक सहयोग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के इस्तेमाल पर ज़ोर देना है. तकनीक और आतंकवाद के मेल से जो ख़तरा पैदा हुआ है, उसका मुकाबला करने के लिए सभी देशों को AI के दोहरे इस्तेमाल की मदद लेनी होगी. आतंकवादी अब साइबर युद्ध का ज्यादा इस्तेमाल करने लगे हैं, जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा और महत्वपूर्ण समझे जाने वाले बुनियादी ढांचे को लेकर बड़ी चुनौती पेश कर दी है. आतंकवाद के खिलाफ कोई भी रणनीति बनाने से पहले ये समझना ज़रूरी है कि आतंकवादी किस तरह हमला करने के लिए तकनीकी का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसे समझने के बाद ही हम आतंकी हमलों को नाकाम करने में सफल हो सकते हैं. 

तकनीक और आतंकवाद के मेल से जो ख़तरा पैदा हुआ है, उसका मुकाबला करने के लिए सभी देशों को AI के दोहरे इस्तेमाल की मदद लेनी होगी. आतंकवादी अब साइबर युद्ध का ज्यादा इस्तेमाल करने लगे हैं, जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा और महत्वपूर्ण समझे जाने वाले बुनियादी ढांचे को लेकर बड़ी चुनौती पेश कर दी है.

आतंकवाद विरोधी रणनीति में क्या चूक हुई?

 

तकनीकी के व्यापक प्रचार-प्रसार और इसके अलग-अलग रूपों ने सरकारों के सामने आतंकवाद की एक नई चुनौती पेश की है. हम अभी तक पूरी तरह ये नहीं समझ पाए हैं कि तकनीकी क्षेत्र में ख़तरा कितना बड़ा है. यही वजह है कि हमारी सुरक्षा की योजना उस स्तर पर नहीं बन पा रही हैं. हम अभी उन्हीं ख़तरों से निपटने की रणनीति बना रहे हैं, जिनके बारे में हम जानते हैं. ऐसे में जब नए तरह के हमले होंगे तो हम अपनी सुरक्षा करने में नाकाम होंगे. 

एक और मुश्किल ये है कि तकनीकी का तो बहुत तेज़ी से विकास हो रहा है लेकिन उसके नियमन के लिए दिशानिर्देश बनाने की रफ्तार धीमी है. इस वजह से भी तकनीकी हमलों के खिलाफ रणनीति नहीं बन पा रही है. नई तकनीकी का सही इस्तेमाल करने और इसके दुरुपयोग को रोकने के बीच संतुलन बनाना बहुत जटिल काम है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि तकनीकी के दुरुपयोग को रोकने के लिए वो कानूनी एजेंसियों को मजबूत बनाए और इस काम में निजी क्षेत्र की भी मदद ले. 

तकनीकी क्षेत्र में तेज़ विकास और उससे निपटने के लिए बनाई रणनीति जिस तरह पुरानी पड़ने लगती है, उसकी वजह से भी इस क्षेत्र में सीमित सफलता मिली है. सुरक्षा में चूक की एक वजह ये भी होती है कि तकनीक को लेकर हमारे अंदर एक तरह की थकावट भी पैदा हो जाती है. इस बात का जिक्र 2019 के बर्लिन मेमोरेंडम में भी किया गया है. लगातार होते छोटे-छोटे आतंकी हमले कानूनी एजेंसियों में एक तरह से आत्म संतुष्टि का भाव ले आते हैं. वो इन्हें ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते. ऐसे में आतंकी संगठन जिस तरह हमलों के लिए तकनीक की मदद ले रहे हैं, वैसे में सरकारों के लिए ज़रूरी हो जाता है कि वो इसका प्रभावी तौर पर मुकाबला करने की रणनीति बनाएं. 

 

आतंकवादी विरोधी कार्रवाई में तकनीकी का इस्तेमाल

 

अगर दुनियाभर में इस दिशा में हुए काम को देखा जाए तो ये स्पष्ट है कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने आतंकवाद का मुकाबला करने की दिशा में काफी काम किया है. आतंकवादी संगठनों द्वारा नई तकनीकी की मदद से किए जा रहे हमलों को रोकने के लिए कई कदम उठाए गए हैं. आतंकवाद विरोधी रणनीति बनाने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए जा सकते हैं, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत किया जा सके. 

यूरोपियन यूनियन की आर्थिक मदद से चलाई जा रही रेड अलर्ट और मूनशूट जैसी एआई से चलने वाली परियोजनाएं भी आतंकवाद विरोधी रणनीति में अहम भूमिका निभा रही हैं.

  1. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल : भविष्य में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए ये ज़रूरी है कि हम एआई के दोहरे इस्तेमाल के चरित्र को समझें. सीमा की सुरक्षा के लिए एआई उपकरणों का फायदा उठाएं जैसे यूरोपियन यूनियन ने यूरोपियन ट्रेवल इंफॉर्मेशन ऑथराइजेशन सिस्टम (ETIAS) का इस्तेमाल करना शुरू किया है. भारत भी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल, भारत-नेपाल बॉर्डर और भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर इसका इस्तेमाल कर सकता है. इसी तरह आतंकवादियों के ऑनलाइन व्यवहार का एआई की मदद से विश्लेषण किया जा सकता है. यूरोपियन यूनियन की आर्थिक मदद से चलाई जा रही रेड अलर्ट और मूनशूट जैसी एआई से चलने वाली परियोजनाएं भी आतंकवाद विरोधी रणनीति में अहम भूमिका निभा रही हैं. इस काम में सिविल सोसायटी की भी मदद ली जा सकती है.

  1. सुरक्षा के वैश्विक द्विपक्षीय साझेदारी वाले मॉडल को अपनाना : आतंकवाद के खिलाफ रणनीति बनाने के लिए वैश्विक साझेदारों से मदद ली जा सकती है. नाटो की DEXTER (डिटेक्शन ऑफ एक्सप्लोसिव एंड फायर आर्म्स टू काउंटर टेररिज्म) और यूनाइटेड अरब अमीरात ने अपने हवाई क्षेत्र में अनधिकृत विमान के प्रवेश की पहचान करने की जो तकनीकी अपनाई है, वो इस काम में बहुत उपयोगी साबित हो सकती है. ये दोनों मॉडल खास तरह के ख़तरों से निपटने में बहुत कारगर हैं.

  1. यूनाइटेड नेशन टेररिस्ट ट्रेवल प्रोग्राम : आतंकियों द्वारा हमले के लिए तकनीकी के इस्तेमाल को रोकने की दिशा में दुनियाभर के देश अपने-अपने स्तर पर काम कर रहे हैं. इस दिशा में एक अहम पहल यूनाइटेड नेशन टेररिस्ट ट्रेवल प्रोग्राम (UNTPP) है. 2019 में यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑफ काउंटर टेररिज्म ने (UNOCT) इसकी शुरुआत की थी. ये प्रोग्राम यूएन के सदस्य देशों के सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का पालन करने में मदद करता है. खासकर फॉरेन टेररिस्ट फाइटर्स (FTFs) की पहचान करने में. 

  2. राष्ट्रीय साइबर सिक्योरिटी रणनीति : ब्रिटेन और यूरोपीयन यूनियन के कई देशों ने ये बात स्वीकार की है कि उनके परमाणु संस्थानों, स्वास्थ्य सेवाओं और ऊर्जा संस्थानों पर आतंकी हमले का ख़तरा है. इसलिए इनकी सुरक्षा के लिए खास तौर पर नेशनल साइबर सिक्योरिटी एजेंसीज (NCAs) बनाई गई हैं. इतना ही नहीं यूरोपियन यूनियन के नेटवर्क एंड इंफोर्मेशन सिक्योरिटी (NIS) जैसे सुरक्षा के मॉडल किसी खास देश को हो सकने वाले ख़तरों की पहचान कर उनका मुकाबला करने की रणनीति बनाते हैं. 

 

अब आगे क्या?

 

तकनीकी आधारित आतंकवाद से निपटने के लिए हर देश का अपना अलग तरीका है लेकिन कुछ खास रणनीतियां ऐसी हैं, जिनका इस्तेमाल आतंकवाद विरोधी अभियान में किया जा सकता है. 

 

  1. नियामक व्यवस्था की स्थापना हो : आतंकवाद विरोधी रणनीति कैसी हो, इसे लेकर कई बार नियामक संस्था और कानून लागू करने वाले संस्थाओं में विवाद हो जाता है. इसलिए ऐसी व्यवस्था बनाई जाए, जिससे नियमों का पालन सुनिश्चित किया जा सके.

  1. खुफिया सूचना एकत्र करने के स्रोतों में विविधता : खुफिया जानकारी एकत्र करने के जो पारंपरिक साधन हैं, उनके अलावा सरकार और निजी क्षेत्र में गोपनीय जानकारी तेज़ी से साझा करने व्यवस्था की जाए

  1. तेज़ी से प्रतिक्रिया देने की योजना विकसित हो : ये बात स्पष्ट तौर पर बताई जानी चाहिए कि साइबर हमले की किस घटना पर कौन सी सरकारी एजेंसी एक्शन लेगी. हर एजेंसी का रोल तय होना चाहिए, जो हालात की गंभीरता के हिसाब से तीव्र और सख्त फैसला करे.

  1. शिक्षण संस्थाओं का सहयोग : निजी विश्वविद्यालयों के कोर्स में साइबर सिक्योरिटी को शामिल किया जाए, जिससे इस क्षेत्र में काम करने के लिए उच्च योग्यता वाले लोग मिलें

  1. प्रशिक्षण के संसाधनों का केंद्रीकरण हो : अमेरिका के फेडरल वर्चुअल ट्रेनिंग इन्वायरोमेंट की तर्ज़ पर एक सेंट्रल ट्रेनिंग पोर्टल बनाया जाए. सरकारी कर्मचारियों को साइबर सिक्योरिटी की फ्री ऑनलाइन ट्रेनिंग दी जाए.

  1. निजी क्षेत्र को भी शामिल किया जाए : दुनियाभर में साइबर सिक्योरिटी की ट्रेनिंग देने वाली निजी क्षेत्र की कंपनियों को प्रोत्साहन दिया जाए, जिससे वो भारत में अपने प्रशिक्षण केंद्र खोलें और ट्रेनिंग दें.

  1. क्षेत्रीय दृष्टिकोण : आतंकी संगठनों की तकनीकी क्षमता को लेकर ज़मीन पर जाकर शोध करें. तभी क्षेत्र विशेष की चुनौतियां का सामना किया जा सकता है. आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी प्रतिक्रिया देने के लिए आपसी सहयोग बढ़ाया जाए. साउथ एशिया में आतंकवाद से निपटने के लिए तकनीकी और एआई का विकास और इस्तेमाल करते वक्त इस क्षेत्र की अलग-अलग संस्कृति और भाषाओं का भी ध्यान रखें. 

तकनीक से जुड़े आतंकवाद को रोकने में सबसे अहम भूमिका सरकारी एजेंसियों की ही होती है. इसलिए एक ऐसा तंत्र विकसित किया जाए, जिसमें कानूनी और संस्थागत पहलुओं के साथ-साथ उच्च तकनीक के इस्तेमाल का भी ख्याल रखा जाए.

कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि तकनीक से जुड़े आतंकवाद को रोकने में सबसे अहम भूमिका सरकारी एजेंसियों की ही होती है. इसलिए एक ऐसा तंत्र विकसित किया जाए, जिसमें कानूनी और संस्थागत पहलुओं के साथ-साथ उच्च तकनीक के इस्तेमाल का भी ख्याल रखा जाए. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार को सभी हिस्सेदारों को साथ लेकर चलना चाहिए.

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