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आंध्र प्रदेश के कोथापलेम में चट्टानी लैंडस्केप में बिखरे छोट-छोटे खेतों का मनमोहक नज़ारा बेहद आकर्षक दिखाई देता है. कोथापलेम लगभग 1,000 लोगों की आबादी वाला एक छोटा सा गांव है. इस गांव ने ब्रॉडबैंड क्रांति में खुद को शामिल करते हुए मोबाइल इंटरनेट उपयोग के क्षेत्र में तेज़ी से अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराई है. क़रीब एक दशक पहले कोथापलेम उस समय एक नए रास्ते पर आगे बढ़ने लगा था, जब गांव में रहने वाली 38 वर्षीय तुलसी यरवेडा नाम की एक सीमांत महिला किसान अपनी परिवर्तनकारी यात्रा की सफलता की इबारत लिख रही थी.
गांव के सम्मानित किसान माता-पिता की चार बेटियों में से एक तुलसी ने पूरे जोश और उत्साह के साथ शिक्षा ग्रहण की. कोथापलेम गांव के स्कूल में प्राथमिक स्तर तक शिक्षा की व्यवस्था थी, ऐसे में पांचवीं कक्षा के बाद अपनी स्कूली शिक्षा जारी रखने के लिए तुलसी रोज़ाना चार किलोमीटर दूर धूल भरे रास्तों पर चलकर अपने विद्यालय तक जाती थीं. 1990 के दशक में जब तुलसी की स्कूली शिक्षा ख़त्म हुई तो एक हिसाब से उन्होंने बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की थी, क्योंकि उस समय उनके समुदाय की कई लड़कियों को शिक्षा का ऐसा अवसर उपलब्ध नहीं था. तुलसी एक शिक्षिका बनना चाहती थीं, लेकिन इसके बाजए उनकी महज 15 वर्ष की आयु में शादी कर दी गई. तुलसी का वैवाहिक जीवन दो साल का ही रहा और इस दौरान 18 वर्ष की आयु में वह दो बच्चों की सिंगल मदर बन चुकी थीं.
1990 के दशक में जब तुलसी की स्कूली शिक्षा ख़त्म हुई तो एक हिसाब से उन्होंने बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की थी, क्योंकि उस समय उनके समुदाय की कई लड़कियों को शिक्षा का ऐसा अवसर उपलब्ध नहीं था. तुलसी एक शिक्षिका बनना चाहती थीं, लेकिन इसके बाजए उनकी महज 15 वर्ष की आयु में शादी कर दी गई. तुलसी का वैवाहिक जीवन दो साल का ही रहा और इस दौरान 18 वर्ष की आयु में वह दो बच्चों की सिंगल मदर बन चुकी थीं.
अपने परिवार की बढ़ती ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए तुलसी अपने दो एकड़ के खेत में काम करने के लिए अपने माता-पिता के घर लौट आईं. बचपन में तुलसी स्कूल से आने के बाद अपने माता-पिता की खेती-बड़ी के कार्य में मदद करती थीं, इसलिए वह इस कार्य में निपुण थीं और मेहनत के बल पर अच्छी फसल उगाती थीं. उनका इलाका अपनी उपजाऊ भूमि के लिए जाना जाता है. हालांकि, उन्हें जिस चीज़ की जानकारी नहीं थी और जिसके लिए वह बिलकुल भी तैयार नहीं थीं, वह थी बदलती जलवायु के कारण पैदावार में होने वाली गिरावट. इसके अलावा ज़्यादा हैरानी वाली बात थी, लगातार खेती करने के उसके प्रयासों को लेकर ग्रामीणों की प्रतिक्रियाएं और उनकी सलाह.
वह कहती हैं, “मुझे गांव में अक्सर पर्यावरण में होने वाले बदलावों के मद्देनज़र खेती के टिकाऊ और किफ़ायती तरीक़े अपनाने की सलाह दी जाती थी, लेकिन मैंने वर्ष 2016 तक इस पर कोई ध्यान नहीं दिया. जब मेरी मिर्च की फसल अधिक बारिश और उसके बाद कीटों के प्रकोप से प्रभावित हुई, तब मेरा ध्यान इस तरफ गया. फसल बर्बाद होने पर कुछ कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन (सीआरपी) फसल को बचाने में मेरी मदद करने के लिए आए थे, जबकि तमाम दूसरे किसानों की तरफ से मुझे नए सिरे से फसल बोने की सलाह दी जा रही थी. उस वर्ष, मैंने सीआरपी द्वारा सुझाए गए नुकसान को रोकने और कम से कम करने के लिए जैविक उपायों को अपनाया और दो क्विंटल फसल की पैदावार की. गांव वालों को इसकी जरा सी भी उम्मीद नहीं थी.”
दरअसल, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने वर्ष 2050 तक चावल की पैदावार में 2.5 प्रतिशत से 7 प्रतिशत के बीच गिरावट का अनुमान लगाया है, जबकि वर्ष 2100 तक गेहूं की पैदावार में 6 प्रतिशत से 25 प्रतिशत तक गिरावट का अनुमान लगाया है.[1]
आंध्र प्रदेश में महिलाओं का तकनीकी सशक्तिकरण(15-49 वर्ष की आयु) |
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वे महिलाएं जिनके पास मोबाइल फोन है और खुद उपयोग भी करती हैं |
48.9% |
जो महिलाएं अपने मोबाइल फोन में एसएमएस मैसेज पढ़ सकती हैं |
61.4% |
जो महिलाएं वित्तीय लेन-देन के लिए मोबाइल का उपयोग करती हैं |
21.4% |
जिन महिलाओं ने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है |
21% |
स्रोत: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2019-21[2]
तुलसी ने अपने गांव में जलवायु से होने वाले जो बदलाव देखे, उससे जैविक खेती को पूरी तरह से अपनाने के उनके संकल्प को काफ़ी बल मिला. लेकिन गांव के पुराने और ज़्यादा अनुभवी किसानों ने इसके लिए उनका मज़ाक उड़ाया. तुलसी का खेती के सबसे मुश्किल तरीक़े को अपनाना उन्हें बेमतलब सा लग रहा था, वो भी ऐसे में जब उनके द्वारा तमाम नई तकनीकों और साधनों का उपयोग करने के बावजूद पैदावार में लगातार गिरावट दर्ज़ की जा रही थी.
तुलसी कहती हैं, “गांव के चौक बाज़ार में मुझे ना सिर्फ़ ताने मारे गए, बल्कि चुनौती भी दी गई. मुझसे कहा गया कि इस प्रकार क्या मैं एक बोरी धान या एक क्विंटल मिर्च का उत्पादन कर पाऊंगी. मुझे ऑर्गेनिक खेती के अपने नए विचार को लेकर ज़्यादा समर्थन नहीं मिला.”
तुलसी इस तरह के तानों से आहत तो ज़रूर हुईं, लेकिन उन्होंने किसी को पलटकर कभी कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि जैविक खेती की तकनीक को सीखना जारी रखा और सीआरपी द्वारा बताई गई बातों पर अमल करती रहीं. उन्होंने मुख्य रूप से छोटे प्रोजेक्टर और मोबाइल फोन पर दिखाए गए वीडियो के माध्यम से बहुत कुछ सीखा. अगले तीन वर्षों के दौरान उन्होंने अपने खेतों को ऑर्गेनिक फार्मिंग के अनुकूल बनाने के लिए कड़ी मेहनत की.
वह कहती हैं, “जब मैंने ऑर्गेनिक फार्मिंग शुरू की, तो पहले साल में 15 बोरी चावल और 17 क्विंटल मिर्च का उत्पादन किया. यह अन्य किसानों द्वारा किए गए उत्पादन का लगभग आधा था. मुझे इस पर बहुत गर्व था. जैविक खेती की तरफ मुड़ने के तीन साल बाद मैंने अन्य किसानों की तरह फसल की पैदावार करना शुरू कर दिया. ज़ाहिर है कि भूमि को खेती के नए तरीक़ों के मुताबिक़ ढालने में समय लगता है.”
तुलसी ने मोबाइल टेक्नोलॉजी का उपयोग ना केवल इंटरनेट बैंकिंग और ग्रामीण संगठन के बिल भुगतान के लिए किया, बल्कि इसके ज़रिए सामाजिक सुरक्षा पेंशन, अपने बेटे की उच्च शिक्षा के लिए फ़ीस का भुगतान पाने और आंध्र प्रदेश सरकार के मौद्रिक किसान सहायता कार्यक्रम ‘रायथू भरोसा’ जैसी सरकारी योजनाओं का लाभ उठाना शुरू किया. एक सीआरपी के रूप में उन्होंने खेती से संबंधित वीडियो का प्रसार करने के लिए भी अपने फोन का उपयोग किया.
तुलसी ने छोटे किसानों को टेक्नोलॉजी का लाभ उठाने में मदद करने वाले संगठन, डिजिटल ग्रीन से वर्ष 2016 में सीआरपी के रूप में प्रशिक्षण हासिल करने के बाद, अन्य किसानों के बीच ऑर्गेनिक फार्मिंग को बढ़ावा देने शुरू कर दिया. सीआरपी बनने के बाद उन्हें महिला समूहों में अपनी बात रखने में भी मदद मिली.
वह बताती हैं, “जब मैं बड़ी हो रही थी, उस समय लड़कियों के लिए अपने घरों से बाहर निकलना और अपने दोस्तों के अलावा अन्य किसी से मिलना-जुलना आसान नहीं था. वर्ष 2012 में मैंने सामाजिक रूप से सक्रिय होने और अन्य लोगों की मदद करने के लिए एक गंभीर प्रयास किया. मैं इसलिए ग्राम संगठन में शामिल हो गई.[a] वहां मैं कुछ ऐसे चुनिंदा सदस्यों में एक थी, जो पढ़े-लिखे थे, इसलिए मेरी सेवाएं मददगार थीं.”
तुलसी ने उसी साल पहली बार मोबाइल फोन का उपयोग किया था. किसी ऐसे शख्स के लिए जो, ऐसे घर से हो, जिसका घर गांव के लिए एक तरह से ‘संचार का केंद्र’ रहा है, कोथापलेम गांव में जिसका ऐसा पहला घर हो, जहां टीवी और लैंडलाइन फोन आया हो, उस घर की बेटी तुलसी ने मोबाइल तकनीक के बारे में जानने और उसे अपनाने में काफ़ी देरी कर दी, लेकिन वह ज़ल्द इसके बारे में पूरी तरह से जान-समझ गईं. तुलसी ने मोबाइल टेक्नोलॉजी का उपयोग ना केवल इंटरनेट बैंकिंग और ग्रामीण संगठन के बिल भुगतान के लिए किया, बल्कि इसके ज़रिए सामाजिक सुरक्षा पेंशन, अपने बेटे की उच्च शिक्षा के लिए फ़ीस का भुगतान पाने और आंध्र प्रदेश सरकार के मौद्रिक किसान सहायता कार्यक्रम ‘रायथू भरोसा’ जैसी सरकारी योजनाओं का लाभ उठाना शुरू किया. एक सीआरपी के रूप में उन्होंने खेती से संबंधित वीडियो का प्रसार करने के लिए भी अपने फोन का उपयोग किया. इन वीडियो में कुछ ऐसे भी थे, जिनमें तुलसी ने ऑर्गेनिक फार्मिंग को लेकर अपने अनुभव साझा किए थे.
तुलसी ने बताया, ‘किसानों को समझाना आसान काम नहीं है. किसान ऐसे किसी व्यक्ति की बात पर ज़ल्द भरोसा कर लेते हैं, जो महंगे तरीक़े बताता है, जबकि मुफ़्त में मिली जानकारी पर उन्हें हमेशा संदेह रहता है. किसानों को समस्याओं के मूल कारणों के बारे में जानकारी नहीं थी, जैसे कि किसानों को नहीं पता था कि उनकी फसलों में कीट प्रतिरोधकता की कमी है.”
वर्ष 2017 में कोथापलेम में मिर्च की फसल सफेद घुन द्वारा फैले जेमिनी वायरस से बर्बाद हो गई थी. यह वायरस पूरे खेतों को बंजर बनाने के लिए जाना जाता है. लेकिन तुलसी के लिए यह ख़ुशी का अवसर बन गया.
तुलसी कहती हैं, “हम उन वीडियो को दिखाने के लिए दूर-दूर तक गए, जो संक्रमण को रोकने और कीट प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण कर पौधे की रक्षा के लिए प्राकृतिक चीज़ों से बनाए गए थे और उसका प्रभावशाली असर प्रदर्शित करने वाले थे. मैंने किसानों को अपना खेत भी दिखाया. उस वर्ष फसल के कुल नुकसान को ना सिर्फ़ रोका गया, बल्कि गांव की लगभग आधी फसल बचाई भी गई.” वीडियो दिखाकर किसानों के साथ जुड़ना बहुत आसान था, क्योंकि इंटरनेट पर वीडियो देखने में इंटरनेट डेटा की खपत इसके शीर्ष पांच उपयोगों में से एक है. इतना ही नहीं वीडियो उपभोक्ताओं का बड़ा हिस्सा यानी इंटरनेट पर वीडियो देखने वाले लगभग 440 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में से 54 प्रतिशत भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में हैं.[3]
जैसे-जैसे संचार के नए तरीके सामने आए और इंटरनेट कनेक्टिविटी में सुधार हुआ, गांव में तुलसी की पहुंच बढ़ती गई. उन्होंने व्हाट्सएप पर चैटबॉट्स का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया और कई अन्य किसानों को भी इसका उपयोग करना सिखाया. डिजिटल ग्रीन ने आंध्र प्रदेश में कई सीआरपी और किसानों के लिए व्हाट्सएप पर चैटबॉट्स की शुरुआत की थी, ताकि उन्हें क्रॉप लाइफ साइकिल यानी फसल जीवन चक्र के विभिन्न चरणों में कई फसलों की जानकारी मिल सके. साथ ही कीट संबंधी विषयों और कृषि की बेहतर पद्धतियों की भी जानकारी मिल सके. कोविड-19 के पहले और फिर लॉकडाउन के दौरान गांव में चैटबॉट का उपयोग करने में काफ़ी तेज़ी देखी गई.
तुलसी कहती हैं, “लॉकडाउन के दौरान स्मार्टफोन एक जीवन रेखा की तरह था. चैटबॉट के माध्यम से किसानों तक जानकारी और सलाह पहुंची और उनकी समस्याओं व चिंताओं का निवारण भी किया गया. महामारी के बाद से स्मार्टफोन, इंटरनेट और अन्य ऐप का इस्तेमाल कई गुना बढ़ गया है. मैं अब व्हाट्सएप के माध्यम से अपनी उपज बेचती हूं.” उन्होंने आगे कहा कि कृषि विस्तार में वॉयसबॉट अगली बड़ी चीज़ होनी चाहिए, क्योंकि जो किसान पढ़-लिख नहीं पाते हैं, यानी साक्षर नहीं हैं, वे भी इसका आसानी से उपयोग कर सकते हैं.
पूरा गांव अब तुलसी से, उनके काम से और उन्हें मिली प्रशंसा से अच्छी तरह परिचित है. तुलसी को नई दिल्ली में वर्ष 2018 के किसान उन्नति मेले में अपने ज़िले के जैविक उत्पादों को प्रदर्शित करने का अवसर भी शामिल है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शामिल हुए थे. तुलसी ने कोथापलेम गांव में लगभग सभी महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों में नामांकन के लिए प्रोत्साहित करने और उन्हें सामूहिक रूप से प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए आवश्यक हुनर सिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. कहा जा सकता है कि ऐसा करके उन्होंने एक हिसाब से शिक्षक बनने की अपनी बचपन की महत्वाकांक्षा को पूरा किया है. अध्यापन की उनकी यात्रा पारंपरिक तो नहीं हो सकती है, लेकिन यह अत्यधिक प्रभावशाली रही है. तुलसी की विशेषज्ञता और ऑर्गेनिक खेती के बारे में उनकी जानकारी से आधे से अधिक गांव के लोग लाभान्वित हुए हैं.
ऑर्गेनिक फार्मिंग के सामने आने वाली कई चुनौतियों को रेखांकित करते हुए तुलसी कहती हैं, “कोथापलेम ने जैविक खेती से होने वाले फायदों को क़रीब से महसूस किया है और ऑर्गेनिक फार्मिंग के बारे में और अधिक सीखने का सिलसिला जारी रखा है. हालांकि अभी गांव के सभी किसानों ने इसे पूरी तरह से नहीं अपनाया है. सबसे पहले, इसमें सामान्य रूप से की जाने वाली खेती की तुलना में अधिक प्रयास और मेहनत की आवश्यकता होती है. दूसरा, ज़मीन को इसके अनुकूल बनाने में समय लगता है. तीसरा, कई किसान ऐसे हैं, जिनका खुद का खेत नहीं है और वो एक या दो सीजन के लिए खेत पट्टे पर लेते हैं. ऐसे में यह ज़रूरी नहीं है कि अगले साल वे उसी खेत में फसल उगाएंगे. आख़िर में, एक ऐसे बाज़ार की आवश्यकता है, जो किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए जैविक उत्पादों की क़ीमत को पहचानता हो.
लेकिन स्मार्टफोन रखने वाली तुलसी इस सभी चुनौतियों का डटकर मुक़बाला करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं.
चित्र 1: डिजिटल ग्रीन दृष्टिकोण
स्रोत: डिजिटल ग्रीन
प्रमुख सबक
- मोबाइल फोन ग्रामीण कृषक समुदायों में कृषि से जुड़ी जानकारी को लेकर एक बड़ी कमी को पूरा करने में मदद कर रहा है, खासकर उन जगहों पर जहां साक्षरता का स्तर कम है.
- कृषक समुदायों के लिए, साथी किसानों की सफलता को देखना बेहद महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह उनके नई तकनीक सीखने और उन्हें लागू करने के निर्णय में मददगार होता है. इसलिए, टिकाऊ पद्धतियों के बारे में जागरूकता पैदा करने के प्रयास आकर्षक और दिखाई देने वाले होने चाहिए. ज़ाहिर है कि डिजिटल टेक्नोलॉजी इसे आख़िरी छोर तक पहुचाने में बड़ी मदद कर सकती है.
- खेती के टिकाऊ तरीक़ों को पुरस्कृत करने वाले डिजिटल तौर पर सुलभ बाज़ार के ज़रिए भी किसानों और विशेष रूप से महिलाओं को नई तकनीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है.
END NOTES
[a] ग्राम संगठन, सेल्फ हेल्प ग्रुपों का एक समूह है.
[1] 1 Ministry of Agriculture & Farmers Welfare, Government of India, “Effect of Climate Change on Agriculture,” February 9, 2021, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1696468
[2] International Institute for Population Sciences, National Family Health Survey (NFHS-5), 2019–21: India: Volume 1, March 2022, http://rchiips.org/nfhs/NFHS-5Reports/NFHS-5_INDIA_REPORT.pdf
[3] “Nielsen’s Bharat 2.0 Study reveals a 45% growth in Active Internet Users in rural India since 2019,” Nielsen, May 2022, https://www.nielsen.com/news-center/2022/nielsens-bharat-2-0-study-reveals-a-45-growth-in-active-internet-users-in-rural-india-since-2019/
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