Author : Kanchan Gupta

Published on Jun 14, 2019 Updated 0 Hours ago

मोदी ने कैबिनेट से उन लोगों को बाहर कर दिया है, जिनका काम उनके पहले टर्म में अच्छा नहीं था. वह इंफ्रास्ट्रक्चर, एनर्जी, रेलवे और एमएसएमई सेक्टर के लिए बेस्ट टैलेंट लेकर आए हैं.

टीम मोदी: ये पांच सितारे दिखाएंगे रास्ता

देश में अब एक नई सरकार है. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जो रसूख है, वह बेमिसाल है. आम चुनाव में मिली हैरतंगेज जीत से उनका कद और भी बड़ा हो गया है. वह 2014 के मोदी नहीं हैं. तब वह प्रधानमंत्री कार्यालय में हवा के रथ पर सवार होकर आए थे और लुटियंस दिल्ली में खलबली मचा दी थी. पहले टर्म में और खासतौर पर शुरुआती वर्षों में उन्होंने सावधानी से कदम बढ़ाए थे. इस बार वह पांच साल के कार्यकाल की शुरुआत ‘सर्वशक्तिमान’ नेता के रूप में कर रहे हैं. उनके पास असीमित ताकत है और इसे लेकर वह सहज हैं.

लोकसभा चुनाव के बाद के एक विश्लेषण में इस बदलाव को ‘मोदी जी’ से ‘मोदी शी’ का नाम दिया गया. मोदी 1.o में सरकार ने निर्णायक ढंग से काम किया था, जिसके बाद देश को ऐसे ही ताकतवर नेता की जरूरत थी. यानि पिछली सरकार अगर मोदी जी की थी, तो नई सरकार मोदी शी की है. यह सरकार इकोनॉमिक ग्रोथ और समावेशी विकास, देश के अंदर अमन-चैन और बाहरी देशों से संपर्क बढ़ाकर दुनिया में भारत का सम्मान बढ़ाने के लिए बेताब है. जिन लोगों ने मोदी को वोट दिया है, वे जुझारू सरकार की उम्मीद कर रहे थे. मोदी शी से उनकी यह उम्मीद पूरी हो गई है.

जो बड़े बदलाव हुए हैं, वे मोदी का ट्रैक रिकॉर्ड देखते हुए स्वाभाविक लगते हैं. वह बीच-बीच में ऐसे ‘डिसरप्शन’ लाते रहते हैं, जिससे देश के सुस्त गवर्नेंस वाली व्यवस्था में खलबली मच जाती है. वैसे ये बदलाव ‘नए’ भारत की हसरतों से भी मेल खाते हैं, जिसके पास गुज़रे जमाने के वियना कांग्रेस (बीजेपी के एक बड़े नेता ने इसके बारे में कहा कि यह सिर्फ नाचना, नाचना लेकिन आगे न बढ़ने जैसा था) के लिए धैर्य नहीं है. वह चाहता है कि सरकार बड़ी बाज़ी खेले, भले ही उसमें जोखिम अधिक हो.

मोदी जी चतुर राजनेता हैं. अपनी टीम चुनते हुए उन्होंने जोखिम से बचने के उपाय जरूर किए होंगे, पर मोदी शी ने बिल्कुल अलग सरकार बनाई है. मंत्रियों के चुनाव और मंत्रालयों के बंटवारे में यह बात साफ दिखती है. इसका संदेश भी साफ है. मोदी दूसरे कार्यकाल में पहले टर्म से दोगुना रिजल्ट चाहते हैं.

किंग चार्ल्स द्वितीय के पास एक ‘कबाल’ यानि अपनी टोली थी, जिसके साथ वह एक ‘कैबिनेट’ के अंदर मीटिंग करते थे. यह कैबिनेट लकड़ियों से बना एक कमरा था. इसकी दीवारें इतनी मोटी थीं कि अंदर की आवाज बाहर नहीं जा सकती थी. किंग अपनी टीम के साथ राजकाज से जुड़े मामलों पर इसी कमरे में चर्चा करते थे. भारत के प्रधानमंत्रियों के पास इस तरह की अपनी टोलियां और कैबिनेट रही हैं, लेकिन इतिहास बताता है कि इनमें से बहुत कम के पास अपना क्लिफोर्ड, आर्लिंग्टन, बकिंघम, एश्ले और लॉडरडेल चुनने की आजादी और ताकत थी. उनकी कैबिनेट जहां बैठती थी, उसकी दीवारें कागज़ी थीं. उनसे न सिर्फ़ शब्द बल्कि दस्तावेजों का पूरा बंडल लीक हो जाता था. इंदिरा गांधी को ‘उनकी कैबिनेट में इकलौता पुरुष’ कहा जाता था, लेकिन उन्हें भी पार्टी के असंतुष्ट गुट को खुश रखना पड़ता था. इस गुट ने इंदिरा का नेतृत्व सिर्फ इसलिए स्वीकार किया था ताकि पार्टी में टूट न हो, लेकिन उसने उन्हें‘सर्वशक्तिमान’ नेता कभी नहीं माना.

एनडीए 2 में प्रधानमंत्री बेशक सबसे बड़े नेता थे, लेकिन एनडीए 3 में वह सुप्रीम लीडर हैं. इस सरकार की कैबिनेट में कौन शामिल होगा, यह फ़ैसला उनका अपना है. इस पर दूसरे क्या सोचते हैं, उन्हें इसकी परवाह नहीं है. अरुण जेटली ने ख़राब सेहत की वजह से वित्तमंत्री बनने में असमर्थता ज़ाहिर की थी. इससे एक खालीपन का डर था. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के मंत्री न बनने से यह खाई और बड़ी हो गई थी, जिसे भरना करीब-करीब मुश्किल था. हालांकि, मोदी ने दिखा दिया कि चुनौतियों को किस तरह से अवसर में बदला जा सकता है. उन्होंने पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर को विदेश मंत्रालय की कमान सौंपी. किसी नेता के लिए ऐसा फैसला करना आसान नहीं होता. उस पर पार्टी के किसी सहयोगी को मंत्री बनाने का दबाव होता है. आमतौर पर साउथ ब्लॉक में प्रधानमंत्री अपने वफ़ादार को भेजते हैं, जो उनकी हां से हां मिला सके. वैसे यूपीए राज में यह ‘परंपरा’ भी टूट गई थी.

ऐसा भी नहीं है कि पहले फॉरेन सर्विस का कोई अधिकारी विदेश मंत्री नहीं बना है. कुंवर नटवर सिंह राजनयिक थे, जो बाद में विदेश मंत्री बने. सरकारी सेवा छोड़ने के काफी बाद उन्हें विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. इससे पहले नटवर सिंह कांग्रेस के दरबारी और ‘अंदर के आदमी’ बन चुके थे. जो आईएफएस बाद में सरकार में शामिल हुए, उनकी कहानी भी ऐसी ही थी. जयशंकर ऐसे नहीं हैं. वह ‘बाहरी’ शख्स़ हैं, जिन्हें मेरिट के आधार पर मंत्री बनाया गया है. उन्हें अब बीजेपी में शामिल होना पड़ेगा और संसद में पार्टी व्हिप पर अमल करना होगा, लेकिन यह भी सच है कि कैबिनेट में शामिल करने के लिए उनके सामने यह शर्त नहीं रखी गई थी.

भारत के सामने विदेश नीति को लेकर कई चुनौतियां हैं. अगर मोदी बिम्सटेक और बिना पाकिस्तान के सार्क को मज़बूत और सार्थक बनाना चाहते हैं तो उसके लिए बिल्कुल नई सोच की जरूरत पड़ेगी. भारत को ट्रेड वॉर पर आमादा अमेरिका को संभालना होगा. चीन के साथ चतुराई से डील करना होगा. चीन आज दुनिया पर दबदबा कायम करना चाहता है. हमें राष्ट्रहित के साथ संतुलन बनाते हुए उससे निपटना होगा. भारत को रूस के साथ रिश्तों को नया आयाम देना पड़ेगा. उससे दूरियां मिटानी होंगी और साझा हितों पर काम करना पड़ेगा.

जयशंकर अमेरिका और चीन दोनों के साथ काम कर चुके हैं. विदेश सचिव के तौर पर वह मोदी की नीतिगत प्राथमिकताओं को लेकर अपना राजनयिक कौशल दिखा चुके हैं. राजनीतिक मजबूरियों से आजाद मोदी ने उन्हें पेशेवर योग्यता के आधार पर चुना है. इसके साथ उन्होंने संकेत दिया है कि यह सरकार कुछ करके दिखाना चाहती है. अगर यह मान लें कि मोदी 2024 में भी चुनाव लड़ेंगे तो इस टर्म में डिलीवरी उनके लिए काफी अहमियत रखती है.

वैसे पाकिस्तान फिलहाल मोदी की प्राथमिकता में नहीं है. हालांकि, भारत को पड़ोसी देश के लिए मीडियम टर्म की पॉलिसी बनानी पड़ेगी. यह इस पर निर्भर करता है कि मोदी जम्मू-कश्मीर और हो-हल्ले वाली राजनीति से किस तरह से निपटने का फैसला करते हैं. राजनाथ सिंह (उनके पास गृह मंत्रालय का तजुर्बा है और माओवाद की समस्या को उन्होंने करीब-करीब खत्म कर दिया है) के सहयोग से अगर अमित शाह शांति और राजनीतिक स्थिरता कायम कर पाते हैं तो प्रधानमंत्री और उनके विदेश मंत्री के लिए पाकिस्तान से निपटना आसान हो जाएगा.

राजनाथ और अमित शाह का काम करने का तरीका अलग है, लेकिन साउथ और नॉर्थ ब्लॉक के तालमेल से बेहतरीन अंदरूनी और बाह्य सुरक्षा नीतियों की संभावना बन सकती है.

मोदी कहते रहे हैं कि वह 3 लाख करोड़ डॉलर की भारतीय अर्थव्यवस्था को 2025 तक 5 लाख करोड़ डॉलर तक ले जाना चाहते हैं. यह तभी संभव है, जब डोमेस्टिक इकोनॉमी और एक्सपोर्ट के मामले में देश का प्रदर्शन अच्छा हो. अभी दोनों ही मोर्चों पर हालात ख़राब हैं. कंपनी मामलों, ट्रेड और रक्षा मंत्रालय में बेहतर रिकॉर्ड के बाद निर्मला सीतारमण देश की पहली महिला वित्तमंत्री बनी हैं. वह नौसिखिया नहीं हैं. उन्हें पता है कि ग्रोथ, रोज़गार और विकास को लेकर मोदी क्या चाहते हैं.

आम सोच के उलट वित्त मंत्रालय को राजनीतिक नेतृत्व की जरूरत पड़ती है, न कि ऐसे नेता की जो अर्थशास्त्री की भूमिका निभाए. वित्तमंत्री को पॉलिटिकल इकोनॉमी को सत्तारूढ़ पार्टी के लक्ष्य की तरफ ले जाना होता है. कॉमर्स और ट्रेड को लेकर हम पीयूष गोयल से नीतिगत मोर्चे पर ज़ोरदार पहल की उम्मीद कर सकते हैं, जबकि हरदीप सिंह पुरी व्यापार वार्ताओं में भारत के हितों को सुरक्षित रखने की ज़िम्मेदारी बखूबी निभाएंगे. उनके पास पहले से इस काम के लिए तज़ुर्बा है. विदेश और वित्तमंत्रालय के साथ मिलकर काम करने पर इसमें सफलता ज़रूर मिलेगी.

अगर आप आर्थिक मामलों के मंत्रालयों को देखें तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि- मोदी ने ख़राब प्रदर्शन करने वालों को बाहर कर दिया है और इंफ्रास्ट्रक्चर, एग्रीकल्चर, एनर्जी, रेलवे और एमएसएमई के लिए वह बेस्ट टैलेंट लेकर आए हैं. नितिन गडकरी ने पहले टर्म में शानदार प्रदर्शन किया था. उनके पास रोड और हाइवे मिनिस्ट्री बनी हुई है. गडकरी पर एमएसएमई की सेहत सुधारने की भी जिम्मेदारी डाली गई है. मोदी ने जल शक्ति नाम से नया मंत्रालय बनाया है. इसके साथ उन्होंने वॉटर मैनेजमेंट को विकास और सुरक्षा से जोड़ने की पहल की है. अगर स्वच्छ भारत एनडीए 2 का फ्लैगशिप प्रोग्राम था तो जनता तक पेयजल पहुंचाने के वादे के साथ वॉटर मैनेजमेंट एनडीए 3 के लिए ऐसी ही योजना साबित हो सकती है. इससे स्वास्थ्य में सुधार के साथ कृषि आय बढ़ाने में मदद मिलेगी. मोदी ने जो बदलाव शुरू किए हैं, रवि शंकर प्रसाद, पीयूष गोयल, धर्मेंद प्रधान और हरदीप सिंह पुरी दूसरों के साथ मिलकर उसे रफ्तार देंगे.

जनता से शानदार जनादेश मिलने के एक हफ्ते बाद प्रधानमंत्री ने देश को ‘टीम मोदी’ की सौगात दी है, जो काम करने को बेताब है. सावधानी से चुनी हुई इस टीम पर मोदी के आइडिया पर अमल की जिम्मेदारी होगी. इनमें से टॉप 5 राजनाथ सिंह, अमित शाह, निर्मला सीतारमण, एस जयशंकर और नितिन गडकरी मोदी जी के क्लिफोर्ड, आर्लिंग्टन, बकिंघम, एश्ले और लॉडरडेल हैं, जो अगले पांच साल में देश में अप्रत्याशित बदलाव के मोदी शी के ख्वाब को पूरा करने में मदद कर सकते हैं.

शायद ही किसी ने सोचा होगा कि एग्रेसिव और राष्ट्रवादी सरकार के पांच सितारों में से दो जेएनयू से होंगे, जो राइट ऑफ दी सेंटर इकनॉमिक और फॉरेन पॉलिसी लागू करेंगे? जरा सोचिए, अगर मोदी जी को मोदी शी के लिए जबरदस्त जनादेश न मिला होता तो क्या ऐसी कैबिनेट कभी बनाई जा सकती थी?

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