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पश्चिम बंगाल के नादिया ज़िले का माझेर चार गांव. सुबह की पहली किरण फूटते ही जैसे इंसानी शक्ल में एक छोटा दरिया गांव से बाहर निकल पड़ता है. सबकी मंज़िल गांव से तीन किमी कल्याणी शहर है. खुली वैन में सवार महिलाओं का जत्था रंगबिरंगी छटा बिखेरता चलता है. ये तमाम महिलाएं कल्याणी में घरेलू सहायिकाओं के तौर पर काम करती हैं. दिहाड़ी मज़दूरी करने वाले यहां के ज़्यादातर मर्द साइकिल से निर्माण स्थलों और कारखानों तक का सफ़र तय करते हैं. बाक़ी बचे लोग ज़िले भर में फैले तमाम कार्यस्थलों तक पहुंचने के लिए कल्याणी से तड़के निकलने वाली ट्रेनों का सहारा लेते हैं.
दिन चढ़ते-चढ़ते गांव के ज़्यादातर इलाक़े ख़ामोशी की चादर ओढ़ लेते हैं. बहरहाल, 27 वर्षीय तनुश्री दास के घर पर लोगों का तांता लग जाता है. हाथों में मोबाइल फ़ोन और तमाम तरह के दस्तावेज़ थामे इन सभी लोगों को किसी न किसी बात की जल्दबाज़ी होती है, जो साफ़ दिखाई देती है. धीरे-धीरे ज़्यादा से ज़्यादा गांववाले स्मार्टफ़ोन के ज़रिए बैंक खातों का संचालन, डिजिटल भुगतान, सार्वजनिक सेवाओं का लाभ उठाना और बाक़ी तमाम कामकाज सीख रहे हैं. गांव में ऐसे लोगों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है और इनके मददगार के तौर पर पहला (और अक्सर इकलौता) नाम तनुश्री का होता है.
अपने परिवार की ज़िद पर तनुश्री ने 2016 में मनोरंजन दास से शादी कर ली, जो एक दिहाड़ी मज़दूर हैं. हालांकि उन्होंने वित्तीय रूप से स्वतंत्र बनने की कोशिश में हार नहीं मानी. अगले ही साल वो एक स्वयं-सहायता समूह (SHG) से जुड़ गई. उन्होंने एक सिलाई मशीन ख़रीदकर घर पर ही छोटा सा कारोबार शुरू कर लिया. अभी उन्हें स्वयं-सहायता समूह से जुड़े पहला साल ही बीता था कि उद्यमी के तौर पर उनके जज़्बे से प्रभावित होकर उनके साथियों ने उनसे समूह की अगुवाई करने को कह दिया.
तनुश्री के पिता खेतिहर मज़दूर हैं और उनकी मां लोगों के घरों में काम करती हैं. अपने शुरुआती दिनों के बारे में तनुश्री बताती हैं, “शिक्षा हमेशा से मेरे लिए मायने रखती रही है, आज भी मैं जितना हो सके सीखने की कोशिश करती हूं.” बहरहाल, परिवार ने तनुश्री को 10वीं से आगे पढ़ने की इजाज़त नहीं दी, और बोर्ड परीक्षाओं के बाद उन्होंने औपचारिक शिक्षा छोड़ दी. ये कोई असामान्य बात नहीं है. नदिया में 15 से 49 साल की उम्र वाली 30 फ़ीसदी से भी कम महिलाएं 10 साल या उससे ज़्यादा की स्कूली शिक्षा पूरी कर पाई हैं.[i] अपने परिवार की ज़िद पर तनुश्री ने 2016 में मनोरंजन दास से शादी कर ली, जो एक दिहाड़ी मज़दूर हैं. हालांकि उन्होंने वित्तीय रूप से स्वतंत्र बनने की कोशिश में हार नहीं मानी. अगले ही साल वो एक स्वयं-सहायता समूह (SHG)[1] से जुड़ गई. उन्होंने एक सिलाई मशीन ख़रीदकर घर पर ही छोटा सा कारोबार शुरू कर लिया. अभी उन्हें स्वयं-सहायता समूह से जुड़े पहला साल ही बीता था कि उद्यमी के तौर पर उनके जज़्बे से प्रभावित होकर उनके साथियों ने उनसे समूह की अगुवाई करने को कह दिया.
2018 में तनुश्री की बेटी कृतिका का जन्म हुआ. उसके पैदा होने के चार महीनों के भीतर ही ये पता चला कि बच्ची को थैलेसीमिया नाम की गंभीर बीमारी है. इस खुलासे ने जैसे सबकुछ बदलकर रख दिया. शुरू में कल्याणी और फिर कोलकाता में बच्ची पांच महीनों तक अस्पताल में भर्ती रही और उसका इलाज चलता रहा. तमाम चुनौतियों से भरे उन दिनों को याद कर तनुश्री कहती हैं, “इस दौरान मेरे पति और मैं ये समझने की कोशिश करते रहे कि थैलेसीमिया है क्या, ब्लड ट्रांसफ़्यूज़न होता क्या है और उनकी बेटी का भविष्य क्या हो सकता है.”
पश्चिम बंगाल में महिलाओं (15-49 साल की उम्र वाली) का प्रौद्योगिकीय सशक्तिकरण |
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महिलाएं जिनके पास ख़ुद के इस्तेमाल के लिए मोबाइल फ़ोन है |
50.1% |
मोबाइल फ़ोन रखने वाली महिलाओं में वो महिलाएं जो SMS संदेश पढ़ सकती हैं |
64.0% |
वित्तीय लेन-देन के लिए मोबाइल का प्रयोग करने वाली महिलाएं |
12.8% |
इंटरनेट का इस्तेमाल कर चुकी महिलाएं |
25.5% |
स्रोत: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2019-21[ii]
बहरहाल, तकलीफ़ों भरे उस दौर का एक अप्रत्याशित नतीजा सामने आया. तनुश्री बताती हैं, “पहली बार मुझे समझ आया कि हमारा मोबाइल फ़ोन कितना अहम है. इसके ज़रिए मैं डॉक्टरों और अस्पतालों के साथ अपॉइंटमेंट्स लेती, टेलीकंसल्टेशंस के लिए वक़्त ले पाती, और कई बार तो ब्लड डोनर्स के साथ सीधे बात कर पाती थी. मोबाइल फ़ोन के बग़ैर ये सारे काम बेइंतेहां मुश्किल हो जाते.” उस वक़्त उनके परिवार के पास परंपरागत मोबाइल फ़ोन था. कीपैड वाले इस फ़ोन से कॉल करने और संदेश भेजने के अलावा शायद ही कोई और काम मुमकिन था. तात्कालिक तौर पर ज़रूरत पड़ने पर तनुश्री इस फ़ोन का इस्तेमाल करती, लेकिन बाक़ी वक़्त फ़ोन तक उसकी पहुंच सीमित ही रहती थी.
कृतिका की हालत स्थिर होने के बाद तनुश्री ने अपने स्वयं-सहायता समूह के कामकाज के लिए अपने पारिवारिक फ़ोन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. उन्होंने अपने साथियों को भी उनके मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल करने को प्रेरित किया. “हमारे स्वयं-सहायता समूह की उत्पादकता में काफ़ी बढ़ोतरी हो गई. पहले हमें एक झुंड में घूमना होता था या ज़रूरी जानकारियां साझा करने के लिए एक-दूसरे से मिलने जाना होता था. लेकिन अब हम अलग-अलग जगहों से काम कर पा रहे थे, आपस में नोट्स बना पा रहे थे और पहले से कहीं बड़े इलाक़े तक पहुंच बना पा रहे थे. नतीजतन हम पहले से ज़्यादा तादाद में ज़रूरतमंद लोगों को ऋण मुहैया करवाने में कामयाब हो रहे थे.”
उनका फ़ोन कई दूसरे तरीक़ों से भी अनमोल साबित हुआ. तनुश्री बताती हैं, “स्थानीय प्रशासन हमसे समय-समय पर घर-घर जाकर ज़िला स्तर पर चलाए जा रहे कार्यक्रमों के बारे में सर्वेक्षण करने को कहता था. मैं अपने स्वंय-सहायता समूह के सदस्यों को अलग-अलग इलाक़ों की ज़िम्मेदारी दिया करती. मैं दिन भर ये सुनिश्चित करने की कोशिश करती कि सर्वेक्षण में शामिल परिवारों और पूरे किए गए लक्ष्यों के बारे में हम फ़ोन पर सारी सूचनाएं साझा करते रहें. साफ़ तौर पर फ़ोन हमारी कार्यकुशलता को बढ़ा रहे थे.” इसके साथ ही वो अपने समुदाय के सदस्यों की मदद के लिए भी बेहद सक्रिय रही हैं. इसमें ख़ासतौर से वित्तीय समावेशन से जुड़ी सरकार की अहम स्कीम[iii] प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत सीधे हस्तांतरण की सुविधा के लिए बैंक खाते खुलवाने का काम शामिल है.3 2020 में महामारी की मार के चलते समुदाय के सदस्यों के लिए स्थानीय बैंक जाना नामुमकिन हो गया. उस वक़्त तनुश्री ने गांववालों की मदद के लिए अथक परिश्रम किया. उन्होंने अपने मोबाइल फ़ोन के ज़रिए बैंक और माझेर चार निवासियों के बीच संपर्क करवाकर नए खाते खुलवाने में भारी सहायता की. वो बताती हैं, “इनमें से लगभग सभी लोग पहली बार बैंक के साथ इस तरह का संपर्क बना रहे थे. ये उनके लिए डरावना अनुभव हो सकता था. मुझे गर्व है कि उस वक़्त मैं उनकी मदद कर पाई.”
तनुश्री बताती हैं, “स्थानीय प्रशासन हमसे समय-समय पर घर-घर जाकर ज़िला स्तर पर चलाए जा रहे कार्यक्रमों के बारे में सर्वेक्षण करने को कहता था. मैं अपने स्वंय-सहायता समूह के सदस्यों को अलग-अलग इलाक़ों की ज़िम्मेदारी दिया करती. मैं दिन भर ये सुनिश्चित करने की कोशिश करती कि सर्वेक्षण में शामिल परिवारों और पूरे किए गए लक्ष्यों के बारे में हम फ़ोन पर सारी सूचनाएं साझा करते रहें. साफ़ तौर पर फ़ोन हमारी कार्यकुशलता को बढ़ा रहे थे.”
2021 का अंत होते-होते तनुश्री स्मार्टफ़ोन[2] ख़रीदने का मन बना चुकी थीं. हालांकि उन्हें ये समझ नहीं आ रहा था कि स्मार्टफ़ोन का बेहतर ढंग से इस्तेमाल करना उन्हें कौन सिखाएगा. वो कहती हैं, “स्वयं-सहायता समूह से कर्ज़ लेकर स्मार्टफ़ोन ख़रीदने का फ़ैसला मेरे जीवन का अहम मोड़ था.” ख़ुशक़िस्मती से 2022 के शुरुआती दिनों में सिविल सोसाइटी संगठन अनुदीप फ़ाउंडेशन ने समुदाय की महिला कार्यकर्ताओं को एंड्रॉयड स्मार्टफ़ोनों के प्रयोग का प्रशिक्षण देने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया. इस प्रशिक्षण कार्यक्रम को रिलायंस फ़ाउंडेशन और USAID की साझा पहल द वूमेनकनेक्ट चैलेंज इंडिया द्वारा दिए गए अनुदान की मदद से चलाया जा रहा था. इसका लक्ष्य ‘लैंगिक डिजिटल भेद’ को कम करना और भारत में महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देना है. अनुदीप से मिले प्रशिक्षण के दायरे में डिजिटल वित्तीय साक्षरता पर ज़ोर, ऑनलाइन बैंकिंग और दूसरी सेवाओं के लिए मोबाइल ऐप्स का इस्तेमाल और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों का प्रयोग शामिल है. तनुश्री को तो जैसी इसी मौक़े की तलाश थी.
तनुश्री के इस नए-नवेले हुनर का प्रभाव तत्काल और ज़बरदस्त रहा. इसके फ़ौरन बाद वो अपने स्वंय-सहायता समूह के कुछ सदस्यों को भी स्मार्टफ़ोन ख़रीदने के लिए प्रोत्साहित करने लगीं. आगे चलकर उन्होंने अपने समूह के लिए एक व्हाट्सऐप ग्रुप बना लिया. “इसने हमारी गतिविधियों का रूप ही बदल दिया. अब जब भी हमारे वार्ड ऑफ़िस से नई परियोजनाओं के बारे में सूचनाएं भेजी जाती हैं, हम तुरंत उसपर कार्रवाई कर सकते हैं. इस तरह हम पहले के मुक़ाबले सामुदायिक विकास की और ज़्यादा परियोजनाओं को हाथ में ले पा रहे हैं.” तनुश्री के नक़्शेक़दम पर चलते हुए स्थानीय स्तर पर सक्रिय दूसरे स्वयं-सहायता समूहों ने भी तमाम किरदारों से जुड़ने के लिए व्हाट्सऐप का इस्तेमाल शुरू कर दिया है.
तनुश्री अपने गांव में कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए सरकार द्वारा जारी पहचान पत्रों और डिजिटल पहचान का इस्तेमाल किए जाने की मज़बूत पैरोकार बनकर उभरी हैं. वो डिजिटल राशन कार्डों के लिए समुदाय के सदस्यों का अपने स्मार्टफ़ोन के ज़रिए निबंधन करती हैं, ताकि उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके.[iv] उन्होंने तक़रीबन 200 गांववालों की आयुष्मान भारत ई-कार्ड हासिल करने में भी मदद की है. इससे इन लोगों को स्वास्थ्य-सेवाओं से जुड़े कई लाभ हासिल करने में सहूलियत होगी.[v] इसके अलावा ई-श्रम कार्डों से असंगठित क्षेत्र के कामगारों को सामाजिक और डिजिटल कल्याण के दायरे में लाया जा सकेगा.[vi] तनुश्री कहती हैं, “मैं नियमित रूप से लोगों को उनके आधार कार्डों को उनके मोबाइल फ़ोन से लिंक करने में मदद करती रहती हूं और उन्हें ऐसे करने के फ़ायदे भी बताती हूं.”
शायद तनुश्री का सबसे प्रभावी योगदान मोबाइल बैंकिंग और डिजिटल भुगतानों को लोकप्रिय बनाना ही रहा है. वो कहती हैं, “पहले मैं लोगों को बैंक खाते खुलवाने में मदद करती थी, स्वाभाविक रूप से ये उसी मदद का विस्तार है. अब मैं अपने समुदाय के सदस्यों को मोबाइल ऐप्स के ज़रिए उनके बैंक खातों का संचालन करना सिखाती हूं, लोग भी इसमें भरपूर उत्साह दिखा रहे हैं.” वो हंसते हुए कहती हैं कि लोगों में ये जांचने की बड़ी बेताबी रहती है कि सरकारी योजनाओं के लाभ और नक़द सब्सिडियां उनके खातों में समय से पहुंच रही हैं या नहीं. तनुश्री ने अपने समुदाय के सदस्यों के बैंक खातों को पेमेंट प्लेटफ़ॉर्मों (जैसे GPay, PhonePe और भारत इंटरफ़ेस फ़ॉर मनी[3]) से लिंक करने में भी मदद की है. तनुश्री ने ही गांववालों को डिजिटल भुगतान के तौर-तरीक़े सिखाए हैं. ये उनके ही प्रयासों का नतीजा है कि माझेर चार गांव में ऑनलाइन भुगतान की व्यवस्था बेहद लोकप्रिय हो गई है. अब गांव के कई निवासी नियमित रूप से बिजली बिल चुकाने, मोबाइल फ़ोन का रिचार्ज कराने और धन के हस्तांतरण के लिए इसी प्रणाली का सहारा लेने लगे हैं. अब भी गांव में ऐसे लोगों की एक बड़ी तादाद मौजूद है जिनके पास ख़ुद का फ़ोन नहीं है. ऐसे गांववाले तनुश्री से ही इस तरह के भुगतान करने को कहते हैं और उन्हें इसके बदले नक़द रकम चुका देते हैं.
तनुश्री अब सोशल मीडिया का इस्तेमाल भी बख़ूबी करने लगी हैं. अपनी बेटी के मासिक ब्लड ट्रांसफ़्यूज़न के लिए मदद जुटाने के लिए उन्होंने कृतिका को समर्पित एक फ़ेसबुक ग्रुप भी तैयार किया है. इसमें कृतिका की तस्वीरों के साथ-साथ उसकी सेहत से जुड़ी जानकारियां मौजूद हैं. तनुश्री कहती हैं, “मैं संभावित ब्लड डोनर्स से जुड़ने और अगले कुछ महीनों तक डोनर्स जुटाने के लिए इस ग्रुप का इस्तेमाल करती हूं.” हाल ही में उन्हें पता चला कि उनके गांव के एक और व्यक्ति को थैलेसीमिया की बीमारी है. अब तनुश्री उनके लिए भी डोनर्स जुटाने के काम में जुट गई हैं. बहरहाल अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद तनुश्री ने अपनी पुरानी भरोसेमंद सिलाई मशीन से कपड़े सिलने का काम जारी रखा हुआ है. यही नहीं, उनका कारोबार और फैल गया है. अब वो नए डिज़ाइन सीखने और कढ़ाई की तकनीक जानने के लिए यूट्यूब का सहारा लेने लगी हैं.
आज एक सामुदायिक कार्यकर्ता के तौर पर तनुश्री माझेर चार से बाहर भी मशहूर हो गई हैं. उनके डिजिटल कौशल में लोगों की दिलचस्पी बढ़ गई है. उनके पास ज़िले के दूसरे स्वयं-सहायता समूहों को प्रशिक्षित करने के लिए भी अनुरोध आने लगे हैं. वो मुस्कुराते हुए कहती हैं, “यहां भी टेक्नोलॉजी ही मेरा सहारा बन रही है, जब मुझे दूरदराज़ के अनजान गांवों में जाना होता है तो मैं वहां पहुंचने के लिए गूगल मैप्स का इस्तेमाल करती हूं.”
तनुश्री अब सोशल मीडिया का इस्तेमाल भी बख़ूबी करने लगी हैं. अपनी बेटी के मासिक ब्लड ट्रांसफ़्यूज़न के लिए मदद जुटाने के लिए उन्होंने कृतिका को समर्पित एक फ़ेसबुक ग्रुप भी तैयार किया है. इसमें कृतिका की तस्वीरों के साथ-साथ उसकी सेहत से जुड़ी जानकारियां मौजूद हैं. तनुश्री कहती हैं, “मैं संभावित ब्लड डोनर्स से जुड़ने और अगले कुछ महीनों तक डोनर्स जुटाने के लिए इस ग्रुप का इस्तेमाल करती हूं.”
गांव में तनुश्री एक नामी हस्ती बन गई हैं. वो मानती हैं कि, “सबसे अहम बात है लोगों के साथ धीरज से पेश आना, उनको उदारता से अपना समय देना और किसी भी ज़रूरतमंद को खाली हाथ नहीं लौटाना.” यही वजह है कि जब भी वो घर पर होती हैं, वहां गांववालों का तांता लगा रहता है. गांववाले डिजिटल दुनिया में आगे बढ़ने के लिए उनकी मदद पर निर्भर रहते हैं. कोविड-19 टीकों के लिए कोविन प्लेटफ़ॉर्म[4] पर लोगों के निबंधन से लेकर ऐप के ज़रिए ट्रेन टिकटों की बुकिंग तक करके तनुश्री अपने समुदाय के लोगों का जीवन आसान बना रही हैं.
अपने परिवार में भी तनुश्री की हैसियत बदल गई है. तनुश्री को अब बराबरी का दर्जा मिल रहा है, वैसी इज़्ज़त मिल रही है, जो पहले हमेशा नहीं मिलती थी. चमकीली आंखों वाली कृतिका अब चार साल की हो गई है. वो एक बड़े से टेडीबियर के साथ पूरे घर में धमाचौकड़ी मचाती रहती है. उसे निहारते हुए तनुश्री कहती हैं, “स्वतंत्रता सशक्तिकरण की बुनियाद है. मैं अपनी बेटी के लिए भी यही चाहती हूं. सभी महिलाओं के लिए मेरी यही तमन्ना है.”
चित्र1. पश्चिम बंगाल में महिलाओं के सशक्तिकरण के मानक में बदलाव (अलग-अलग पैमानों पर)
स्रोत: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 और 5[vii]
चित्र.2 पश्चिम बंगाल में इंटरनेट का इस्तेमाल, 2019-21
स्रोत: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5,[viii]
प्रमुख सबक
- मोबाइल बैंकिंग, डिजटल भुगतान और ई-सेवाओं की ग्रामीण क्षेत्रों में ज़बरदस्त मांग है. प्रौद्योगिकी से जुड़ी इन सेवाओं के बारे में जज़्बा पैदा करने के लिए ज़मीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की फ़ौज को प्रशिक्षित किया जा सकता है. समाज के आख़िरी पायदान तक इन सेवाओं का विस्तार करने के लिए समुदायों तक उपकरणों और ऐप्लिकेशंस की पहुंच सुनिश्चित किए जाने की ज़रूरत है.
- बेसिक स्मार्टफ़ोन स्वंय-सहायता समूहों के लिए भारी मददगार साबित हो सकते हैं. इनके ज़रिए समूह की आय-निर्माण क्षमताओं के दायरे, गहराई और संभावनाओं को ज़बरदस्त विस्तार दिया जा सकता है.
END NOTES
[1] स्वंय-सहायता समूह 10-20 लोगों का ऐसा समूह है जो आपसी मेल-जोल पर टिका होता है. आमतौर पर एक जैसी सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि वाली महिलाएं ऐसे समूह बनाती हैं. वो समर्थ लोगों से रकम इकट्ठा कर ज़रूरतमंदों सदस्यों को कर्ज़ के तौर पर देती हैं. सदस्य अपनी-अपनी बचतों से कोष बनाकर भी अपने सदस्यों को ऋण दिया करते हैं या गांव के दूसरे लोगों को भी ख़ास मक़सद से कर्ज़ दे सकते हैं. कई स्वयं-सहायता समूह बैंकों से भी जुड़े होते हैं और वो लघु-ऋण भी दे सकते हैं.
[2] स्मार्टफ़ोन एक ऐसा फ़ोन है जो मिनी कंप्यूटर के समान होता है, जिससे कॉल करने और मैसेज भेजने के अलावा अनेक दूसरे कार्य भी किए जा सकते हैं. इनमें इंटरनेट आधारित ऐप्स का इस्तेमाल, वेबसाइट्स सर्फ़ और विज़िट करना, ऑनलाइन लेन-देन करना, फ़ोन कैमरे का इस्तेमाल करना और मीडिया प्लेअर्स और जीपीएस नेविगेशन प्रणालियों का प्रयोग करना शामिल है.
[3] भारत इंटरफ़ेस फ़ॉर मनी या BHIM एक मोबाइल पेमेंट ऐप है जो भारत के यूनिफ़ाइड पेमेंट्स इंटरफ़ेस के इस्तेमाल के ज़रिए प्रयोगकर्ताओं को साधारण तरीक़े से और तेज़ रफ़्तार लेन-देन (सीधे बैंक भुगतानों और रकम का अनुरोध) करने का अवसर देता है. डिजिटल सशक्तिकरण और वित्तीय समावेशन के औज़ार के तौर पर BHIM ऐप को 2016 में लॉन्च किया गया था. इसे नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया ने तैयार किया है.
[4] कोविड-19 टीकाकरण के लिए नागरिकों द्वारा निबंधन कराने के लिए भारत सरकार द्वारा स्थापित ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म.
[i] National Family Health Survey 5 (2019-20), “District Fact Sheet: Nadia, West Bengal”, http://rchiips.org/nfhs/NFHS-5_FCTS/WB/Nadia.pdf http://rchiips.org/nfhs/NFHS-5Reports/NFHS-5_INDIA_REPORT.pdf
[ii] International Institute for Population Sciences, National Family Health Survey (NFHS-5), 2019–21: India: Volume 1, March 2022,
[iii] “About Pradhan Mantri Jan-Dhan Yojana”, Ministry of Finance, Government of India, https://pmjdy.gov.in/
[iv] India Filings, “West Bengal Digital Ration Card”, https://www.indiafilings.com/learn/west-bengal-digital-ration-card/
[v] e-Seva, “Aayushman Card”, https://e-seva.in/aayushman-card.php
[vi] Sunaina Kumar, “Women workforce and the e-Shram portal: An unexpected trend emerges”, Observer Research Foundation, April 14, 2022, https://www.orfonline.org/expert-speak/women-workforce-and-the-e-shram-portal/
[vii] National Family Health Surveys 4 and 5, http://rchiips.org/nfhs/
[viii] National Family Health Survey 5, http://rchiips.org/nfhs/
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