Author : Kabir Taneja

Published on Jan 22, 2021 Updated 0 Hours ago

जनरल नवरणे का दौरा इसलिए भी बेहद अहम माना जा रहा है क्योंकि इससे पहले अब तक किसी भी भारतीय सेना प्रमुख ने खाड़ी देशों का दौरा नहीं किया था.

खाड़ी देश में भारतीय सेना प्रमुख़ के दौरे का सामरिक महत्व

भारतीय सेना प्रमुख एम एम नरवणे पिछले महीने चार दिनों की सऊदी अरब और यूएई के दौरे पर गए थे. खाड़ी देशों के साथ संबंधों को नई गति देने की यह दूसरी कोशिश है जो नई दिल्ली द्वारा की जा रही है जिससे खाड़ी क्षेत्र के मुल्क़ों के साथ रणनीतिक सहयोग की एक नई पारी की शुरुआत की जा सके. जनरल नरवणे के आधिकारिक दौरे में रियाद और अबू धाबी में उनके रुकने की योजना थी तो साथ ही सऊदी अरब के नेशनल डिफ़ेंस यूनिवर्सिटी में उन्होंने एक वक्तव्य भी दिया. सेना प्रमुख का यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है जबकि हाल ही में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बहरीन और यूएई का दौरा समाप्त किया है और इसके साथ ही क़तर, क़ुवैत, और ओमान में भारत के वरिष्ठ राजदूतों ने दौरा कर इस दौरे से पहले एक सकारात्मक माहौल तैयार करने का काम किया है.

सेना प्रमुख का यह दौरा पिछले दो वर्षों से जारी पश्चिम एशिया और ख़ासकर खाड़ी देशों के मुल्क़ों के साथ भारत की आक्रामक कूटनीतिक प्रयासों का नतीज़ा और उसकी अगली कड़ी ही है. अक्टूबर 2019 में भारत और सऊदी अरब ने मार्च 2020 में दोनों देशों के बीच होने वाले पहले साझा नौसैनिक युद्धाभ्यास की घोषणा की थी. यहां तक कि मार्च 2018 में भारत और यूएई ने गल्फ़ स्टार 1 के नाम से पहला नौसैनिक युद्धाभ्यास किया जिसका मक़सद दोनों देशों के बीच रणनीतिक सहयोग को और विस्तार देना था.

जनरल नवरणे का दौरा इसलिए भी बेहद अहम माना जा रहा है क्योंकि इससे पहले अब तक किसी भी भारतीय सेना प्रमुख ने खाड़ी देशों का दौरा नहीं किया था. यह वास्तव में रक्षा सहयोग से लेकर साझा युद्धाभ्यास, ज़मीनी युद्ध के लिए ट्रेनिंग मुहैया कराने और ख़ासकर आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में क़रीबी सहयोग को बढ़ाने के लिए बेहद अहम है. हालांकि, यूएई, बहरीन और इज़रायल के बीच अब्राहम संधि के वज़ूद में आने के बाद यह और भी आसान हो चुका है क्योंकि सीमित मायने में ही सही लेकिन सऊदी अरब ने भी अब इस संधि को मान्यता देनी शुरू कर दी है. खाड़ी देशों के साथ ज़्यादातर रक्षा सहयोग को बढाने में देश का नेतृत्व भारतीय नौसेना ने किया है जिसके तहत साल 2017, 2018, और 2019 में इन मुल्क़ों का विशेष दौरा शामिल है. साल 2015 की शुरुआत में भारतीय वायु सेना की एक टुकड़ी ने ब्रिटेन जाने से पहले तैफ़ में सऊदी के किंग फ़ाद एयर बेस पर सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान, सी-17, सी-130 जे ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट, आईएल-78 टैंकर्स और 110 सैनिकों के साथ पहली बार दौरा किया था. उसी वर्ष तत्कालीन भारतीय वायुसेना प्रमुख अरूप राहा ने यूएई और ओमान का दौरा किया था और साल 2016 में भारत और यूएई ने साझा युद्धाभ्यास किया था. इसके बाद से ही निरंतर इन संस्थाओं ने लगातार विस्तार किया है.

सद्दाम हुसैन के दौर से मधुर रिश्ते

भारत और खाड़ी देशों के बीच रक्षा सहयोग एक ऐसा आयाम है जिसे शू्न्य से खड़ा किया गया है. ऐतिहासिक तौर पर देखें तो भारत इस क्षेत्र के भूराजनीतिक और रक्षा माहौल से कभी भी अलग नहीं रहा है. साल 1958 और 1989 के बीच भारत ने तिरकित में इराक़ी वायु सेना के जवानों को ऑपरेशन और हमले की ट्रेनिंग मिग लड़ाकू विमानों – जिसे अभी भी भारत भारी तादाद में इस्तेमाल में लाता है – के साथ (पायलट अटैक इंस्ट्रक्टर (पीएआई) की तैनाती कर) मुहैया कराई. सद्दाम हुसैन के सत्ता के दौरान भारत और इराक़ के बीच रिश्तों की जो मधुरता देखी गई वह बहुत हद तक भारत के तेल आपूर्ति के हितों से जुड़ी हुई थी. लेकिन आज खाड़ी क्षेत्र के मुल्क़ों के साथ संबंधों को नया विस्तार देने के पीछे विचार यह है कि भारत एशिया में एक बड़ी आर्थिक शक्ति के तौर पर ख़ुद की पहचान बनाने में जुटा है लिहाज़ा भारत सिर्फ़ सस्ते मजदूरों को मुहैया कराने और तेल के बड़े बाज़ार के रूप में पहचाने भर से संतुष्ट नहीं है बल्कि भारत वैश्विक मामलों में सहयोग और अपना हस्तक्षेप का विस्तार करना चाहता है.

भारत और खाड़ी देशों के बीच रक्षा सहयोग एक ऐसा आयाम है जिसे शू्न्य से खड़ा किया गया है. ऐतिहासिक तौर पर देखें तो भारत इस क्षेत्र के भूराजनीतिक और रक्षा माहौल से कभी भी अलग नहीं रहा है. 

नए रक्षा सहयोग दरअसल भारत और खाड़ी देशों के बीच जारी मुद्दों की विरासत से दूरी बनाने और उभरती नई भूराजनीति और भू-आर्थिक सहयोग की नई वास्तविकता है. तेज़ी से बदलती हुई वैश्विक सियासत की वास्तविकताओं के आलोक में आज खाड़ी मुल्कों के साथ संबंधों का विस्तार बेहद अहम है. भारत खाड़ी देशों को रक्षा तकनीक, तकनीकी विशेषज्ञता और नए तकनीक इकोसिस्टम के लिए मंच प्रदान करने के साथ ही सऊदी अरब के लिए तेल आधारित अर्थव्यवस्था के नए आयाम को विस्तार देने की कोशिश में है. हालांकि इससे ज़्यादा महत्वपूर्ण यह है कि सऊदी और यूएई के साथ रिश्तों को विस्तार देकर भारत अपनी सुरक्षा के नियंत्रण को लेकर संतुष्ट तो होगा ही साथ में इससे अमेरिका आधारित सुरक्षा घेरे की निर्भरता को भी कम किया जा सकेगा. यह इस उदाहरण से भी साफ़ हो जाता है कि जब अमेरिका ने एमक्यू 9 रीपर ड्रोन को बेचने से इंकार कर दिया था तब यूएई ने सैन्य इस्तेमाल के लिए चीन के ड्रोन का चुनाव किया था. इसका आशय साफ़ था कि अबू धाबी की सैन्य ज़रूरतें अगर उसके परंपरागत सहयोगियों से पूरी नहीं हो पाती है तो वह दूसरे देशों से इसे पूरा करने को इच्छुक है.

सऊदी के लिए पाकिस्तान लंबे समय से अहम सुरक्षा कवच प्रदान करता रहा है और यहां तक कि माना जा रहा है कि जब कभी भी रियाद को कम वक़्त में परमाणु शक्ति की ज़रूरत महसूस होगी तो पाकिस्तान उसे यह हासिल करने में मददगार होगा. 

जनरल नरवणे के इस दौरे को लेकर पहले से जो रिपोर्ट आ रही हैं उसके तहत अबू धाबी और रियाद दोनों को ही ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम बेचे जाने की संभावना जताई जा रही है जिसे लोकर दोनों ही देशों ने अपनी दिलचस्पी दिखाई है. यही नहीं विकसित किए जा रहे एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (एटीएजीएस) समेत कई दूसरे इसी प्रकार के प्रोजेक्ट को संभावित निर्यात की नई क़ामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है जो खाड़ी देशों के लिए नया और लाभप्रद बाज़ार भी मुहैया कराएगा. रक्षा उपकरणों के इस संभावित बाज़ार के वज़ूद में आने से भारत में विकसित किए गए स्वदेशी हथियारों की बिक्री की ही संभावनाएं नहीं बढेंगी बल्कि सऊदी और यूएई भारत के सार्वजनिक और निजी सेक्टर के साथ मिलकर ना सिर्फ ख़ुद के इ्तेमाल के लिए बल्कि निर्यात के लिए हथियारों का साझा उत्पादन करने की सोच सकेंगे. ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में जिस प्रकार भारत और यूएई के बीच सहयोग देखा जाता है उसी तरह हथियारों के उत्पादन में भी इस सहयोग को बढ़ाया जा सकता है.

भू-राजनीतिक, सामरिक महत्व

रक्षा सहयोग के अलावा नई दिल्ली, खाड़ी देशों के खेमे से नज़दीकी को बहुस्तरीय भू-राजनीतिक वज़हों से भी इस्तेमाल में ला रहा है. इसके अलावा भारत हाल के दिनों में सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में आई तल्ख़ी का भी फ़ायदा उठाने में जुटा है और सत्ता के विरासत को संभालने वाले मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) के साथ सऊदी की अर्थव्यवस्था और समाज को और खुला बनाने की वक़ालत कर सकता है.जिससे भारत मुस्लिम देशों के बीच कश्मीर जैसे मुद्दे पर समर्थन जुटा सके. वर्ष 2019 के फरवरी महीने में भारत में एमबीएस आए थे और एक राष्ट्र के प्रमुख़ का जिस अंदाज़ में स्वागत होता है उसी तरह उन्हें भी सम्मान दिया गया. हालांकि, एमबीएस का यह दौरा ऐसे वक्त में हुआ था जब उनका नाम पत्रकार ज़माल खाशोगी की हत्या में घसीटा जा रहा था जिसके चलते ज़्यादातर पश्चिम के देश उनका स्वागत करने में हिचक रहे थे. तब भारत ने इस चुनौती को एक मौक़े के रूप में लिया.

जनरल नरवणे के इस दौरे को लेकर पहले से जो रिपोर्ट आ रही हैं उसके तहत अबू धाबी और रियाद दोनों को ही ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम बेचे जाने की संभावना जताई जा रही है जिसे लोकर दोनों ही देशों ने अपनी दिलचस्पी दिखाई है. 

रक्षा परिप्रेक्ष्य में सऊदी-पाकिस्तान और यहां तक सऊदी-यूएई के बीच सहयोग दशकों से काफी अहम रहा है. सऊदी के लिए पाकिस्तान लंबे समय से अहम सुरक्षा कवच प्रदान करता रहा है और यहां तक कि माना जा रहा है कि जब कभी भी रियाद को कम वक़्त में परमाणु शक्ति की ज़रूरत महसूस होगी तो पाकिस्तान उसे यह हासिल करने में मददगार होगा. पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल राहिल शरीफ़ ने आतंकवाद के ख़िलाफ़ ज़ंग में सऊदी द्वारा बहुराष्ट्रीय गठबंधन का नेतृत्व किया. हालांकि, तभी से दोनों देशों के बीच रिश्तों में खटास आने लगी और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने यमन के ख़िलाफ़ रियाद के सैन्य ऑपरेशन के लिए सैनिकों को नहीं भेजने का फ़ैसला किया. जबकि पाकिस्तान के मौज़ूदा प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने मुस्लिम देशों के गठजोड़ से अलग हुए नए खेमे जिसमें तुर्की, मलेशिया और क़तर शामिल हैं उसके साथ जुड़ने की पूरज़ोर कोशिश की. लेकिन अफ़सोस कि पाकिस्तान को इन कदमों का कोई लाभ नहीं हुआ. यहां तक कि सऊदी के साथ ख़राब हो चुके रिश्तों को सामान्य कराने के लिए जब पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर बाज़वा और पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फ़ैज़ हामिद एमबीएस रियाद पहुंचे तो उन्हें भारी बेइज्ज़ती का सामना करना पड़ा और उनका यह दौरा पूरी तरह नाक़ाम रहा. इस बीच यूएई ने उन 13 देशों की सूची जारी की है जहां वह नए विज़िटर वीज़ा के मुद्दे को रद्द कर रहा है जिसमें पाकिस्तान भी शामिल है. इससे पहले यूएई ने सुरक्षा कारणों से पाकिस्तान के नागरिकों को वर्कर्स वीज़ा देने में भारी कटौती की लेकिन इसी दौरान भारतीय नागरिकों को वहां काम करने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा प्राथमिकता दी गई.

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