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भारत को इस मौक़े का इस्तेमाल अमेरिका के साथ अपनी साझेदारी मज़बूत करने में करना चाहिए. ये साझेदारी हाल के वर्षों में तेज़ी से बढ़ी है.
दिसंबर के पहले हफ़्ते में अमेरिका के कस्टम्स एंड बॉर्डर प्रोटेक्शन (सीबीपी) के कर्मियों ने शिनजियांग प्रोडक्शन एंड कंस्ट्रक्शन कॉर्प्स (एक्सपीसीसी) के द्वारा बनाए गए सूती कपड़ों को ज़ब्त करने का आदेश जारी किया. सीबीपी के आदेश में दावे के साथ कहा गया कि एक्सपीसीसी द्वारा सूती कपड़े बनाने में जेल के क़ैदियों से ज़बरन काम कराया जाता है जिनमें सज़ायाफ्त़ा क़ैदी भी शामिल हैं. चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के मुताबिक़, शिनजियांग में देश के कुल सूती कपड़ों का 85 प्रतिशत उत्पादन होता है. ऐसे में शिनजियांग और एक्सपीसीसी के सूती कपड़ों पर हाल की पाबंदी का असर अमेरिका को सूती कपड़े बेचने वाली दुनिया भर की कंपनियों पर तो होगा ही, साथ ही इस अर्धसैन्य संगठन की अर्थव्यवस्था पर भी होगा.
इससे पहले जुलाई में अमेरिकी विदेश विभाग, अमेरिकी ट्रेज़री विभाग, अमेरिकी वाणिज्य विभाग और अमेरिकी होमलैंड सुरक्षा विभाग ने उद्योगों को चीन, ख़ास तौर पर शिनजियांग वीगर स्वायत्त क्षेत्र में उनके सप्लाई चेन संबंधों को लेकर आगाह किया था. अमेरिका की एजेंसियों ने चेतावनी दी कि चीन की उत्पादन प्रक्रिया ज़बरन श्रम, मानवाधिकार उल्लंघन में डूबी हुई है. चेतावनी के बाद एक्सपीसीसी पर पाबंदी लगा दी गई और चीन के कई उत्पादकों को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया. हाल की पाबंदी निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन के दृष्टिकोण के मुताबिक़ है जिन्होंने अतीत में अक्सर इस बात पर ज़ोर दिया कि चीन के साथ अमेरिकी की भागीदारी में मानवाधिकार एक प्रमुख विषय होना चाहिए. ख़ास तौर पर ये देखते हुए कि शिनजियांग में 10 लाख से ज़्यादा वीगर आबादी को नज़रबंद कर दिया गया है. बाइडेन ने पहले ही वादा कर रखा है कि वो अमेरिका के सहयोगियों के साथ मिलकर मानवाधिकार उल्लंघन और व्यापार में ग़लत तरीक़ों के इस्तेमाल को लेकर चीन पर दबाव डालेंगे.
शिनजियांग और एक्सपीसीसी के सूती कपड़ों पर हाल की पाबंदी का असर अमेरिका को सूती कपड़े बेचने वाली दुनिया भर की कंपनियों पर तो होगा ही, साथ ही इस अर्धसैन्य संगठन की अर्थव्यवस्था पर भी होगा.
एक्सपीसीसी प्राथमिक तौर पर चीन का एक अर्धसैन्य संगठन है जिसकी स्थापना 1954 में चेयरमैन माओत्से तुंग के निर्देश पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने की थी. अशांत शिनजियांग क्षेत्र में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के मक़सद से स्थापित एक्सपीसीसी को हान समुदाय को बसाने का काम सौंपा गया ताकि वीगर समुदाय के दबदबे वाले चीन के पश्चिमी दूरदराज इलाक़े को उपनिवेश बनाकर मिलाया जा सके. इस इलाक़े में पहली बार हान समुदाय को उस वक़्त बसाया गया जब सेना से अलग किए गए 1,03,000 सैनिकों को यहां लाया गया. इन सैनिकों के बारे में अक्सर बताया जाता था कि “उनके एक हाथ में बंदूक़ है और दूसरा हाथ में कुदाल.” एक्सपीसीसी ने हरी-भरी जगह के बाहर और वीगर के दबदबे वाले इलाक़े के खेतों से दूर जहां कहीं भी संभव देखा वहां भूमि सुधार के साथ अपना काम शुरू किया. लेकिन एक्सपीसीसी सीधे बीजिंग के नियंत्रण वाला अर्धसैनिक संगठन बना रहा. 14 डिवीज़न के साथ एक्सपीसीसी को “देश के भीतर एक देश” कहा जाता है जो 8,00,000 वर्ग किलोमीटर इलाक़े में 24 लाख 30 हज़ार की आबादी पर नियंत्रण रखता है. आज की तारीख़ में दुनिया के 147 देशों में एक्सपीसीसी के 8,62,000 प्रत्यक्ष और परोक्ष जोत क्षेत्र हैं. सार्वजनिक तौर पर लिस्टेड एक्सपीसीसी के कुछ डिवीज़न कृषि, उद्योग, निर्माण और सेवा उद्योग से जुड़े हुए हैं. ये संगठन प्रचार के लिए स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, अख़बार, टेलीविज़न और रेडियो स्टेशन भी चलाता है. 2019 में 247.707 अरब युआन के वार्षिक सकल उत्पादन के साथ एक्सपीसीसी हान समुदाय को बसाने में मदद करता है. साथ ही ये उन कैंप की भी देखभाल करता है जहां लाखों वीगर क़ैद हैं.
शिनजियांग में कम्युनिस्ट सत्ता स्थापित होने के बाद कपास की खेती के लिए ज़मीन को ज़बरदस्ती बढ़ाना शुरू कर दिया गया. 1949 में कपास की खेती के लिए 8 प्रतिशत ज़मीन थी जिसे 1984 में बढ़ाकर 19 प्रतिशत कर दिया गया और 2001 में इसे और बढ़ाकर 31 प्रतिशत किया गया. इस ज़बरन कपास की खेती के लिए चीन की सरकार ने एक्सपीसीसी के ज़रिए 1998 से 2004 के बीच 11.5 अरब युआन भेजे. साथ ही स्थानीय वीगरों को मज़बूर किया कि वो अपने खेतों में अनाज की उपज कम करें. अनाज की उपज वाले इलाक़े को 1984 के 71 प्रतिशत से घटाकर 2000 में 43 प्रतिशत से भी कम कर दिया गया. वीगर समुदाय के किसानों को मज़बूर किया गया कि वो कपास का उत्पादन करें जिसे सरकार कम क़ीमत पर ख़रीदती थी. कम क़ीमत की वजह से वीगर समुदाय का सरकार से संघर्ष हुआ और यहां तक कि उन्होंने बग़ावत भी की. अशांत शिनजियांग प्रांत का भू-सामरिक और भू-आर्थिक महत्व बढ़ने के साथ 2017 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने शिनजियांग और बीआरआई की रक्षा के लिए “लोहे की दीवार” बनाने की बात कही. इस एलान के बाद 15 लाख से ज़्यादा वीगरों- और शिनजियांग में रहने वाले कज़ाक, किरगिज़ और उज़्बेक मूल के लोगों- को “दोबारा शिक्षा के कैंप” में भेज दिया गया और उन्हें मज़बूर किया गया कि वो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से वफ़ादारी का संकल्प लें, मैंडरिन सीखें और इस्लाम और अपनी संस्कृति को ग़लत ठहराएं. एक्सपीसीसी की भूमिका दोबारा शिक्षा के इन कैंप को चलाना और इनकी निगरानी करना था. साथ ही एक्सपीसीसी इन नज़रबंद स्थानीय लोगों से कपास की खेती कराती थी और अपने कपड़े के कारख़ानों में काम कराती थी.
अमेरिका की एजेंसियों ने चेतावनी दी कि चीन की उत्पादन प्रक्रिया ज़बरन श्रम, मानवाधिकार उल्लंघन में डूबी हुई है. चेतावनी के बादएक्सपीसीसी पर पाबंदी लगा दी गई और चीन के कई उत्पादकों को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया.
शुरुआत से ही एक्सपीसीसी ने चीन के लिए कई भू-सामरिक और भू-राजनीतिक भूमिकाएं भी निभाई हैं. शिनजियांग पर चीन के नियंत्रण को आसान बनाने के लिए एक्सपीसीसी ने कई सड़कें और रेल लाइन भी बनाई जिनके ज़रिए शिनजियांग को चीन के भीतरी हिस्से से जोड़ा गया. इसका मक़सद मध्य एशिया में स्थित सोवियत संघ से अलग देशों का शिनजियांग में असर कम करना था. एक्सपीसीसी और शिनजियांग में बसे हान समुदाय के लोगों ने शिनजियांग-शिज़ांग हाईवे को बनाया. ये इंजीनियरिंग के दृष्टिकोण से बड़ी कामयाबी है क्योंकि ये हाईवे समुद्र तल से 4,000 मीटर ऊंचे इलाक़े से गुज़रता है. हाईवे को पहली पंचवर्षीय योजना में पूरा किया गया और 1958 तक ये 6,000 मील में फैल गया. एक्सपीसीसी ने शिनजियांग के प्राकृतिक संसाधनों का भी शोषण किया है और इस विस्फोटक प्रांत में हान समुदाय के लाखों लोगों को बसाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. एक्सपीसीसी ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के लिए खुफ़िया सूचना इकट्ठा करने का भी काम किया और ये शिनजियांग की राजनीति और अर्थव्यवस्था में एक मज़बूत फ़ैक्टर बना हुआ है.
अशांत शिनजियांग प्रांत पहले से ही मानवाधिकार और ज़बरन मज़दूरी को लेकर पश्चिमी देशों की नज़र में है, ऐसे में चीन के अपने अंदरुनी मामलों में उलझने से भारत को न सिर्फ़ एलएसी पर सामरिक बढ़त मिल सकती है बल्कि सीपीईसी में भी जो बीआरआई स्कीम के तहत राष्ट्रपति शी जिनपिंग की प्रमुख परियोजना है.
एक्सपीसीसी का अपने कामगारों, पैसों और दूसरे उपक्रमों के ज़रिए ज़रूरत से ज़्यादा प्रचारित, विवादित और संवेदनशील चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) में भी हिस्सा है. अपने 14 डिविज़न के ज़रिए एक्सपीसीसी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के लिए बुनियादी ढांचे की सुविधाएं मुहैया कराने और दूसरे महत्वपूर्ण इंतज़ाम में प्रमुख भूमिका निभाती है. जिस वक़्त पीएलए एलएसी पर, ख़ास तौर पर पूर्वी लद्दाख में घुसपैठ की कोशिश कर रही है जहां उसका सामने भारतीय सेना है, उस वक़्त एक्सपीसीसी पर अमेरिका की पाबंदी को अवसर के तौर पर लेना चाहिए. भारत को इस मौक़े का इस्तेमाल अमेरिका के साथ अपनी साझेदारी मज़बूत करने में करना चाहिए. ये साझेदारी हाल के वर्षों में दोनों लोकतांत्रिक देशों के बीच सालाना 2+2 डायलॉग के ज़रिए तेज़ी से बढ़ी है. निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन चीन, ख़ास तौर पर एक्सपीसीसी की आलोचना में मुखर हैं. ऐसे में बाइडेन प्रशासन के तहत एक्सपीसीसी के लिए आने वाले महीने मुश्किल भरे होंगे. भारत एक्सपीसीसी पर पाबंदी का इस्तेमाल न सिर्फ़ अमेरिका के साथ और ज़्यादा मेल-जोल के लिए कर सकता है बल्कि शिनजियांग में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को आर्थिक चोट भी पहुंचा सकता है. अशांत शिनजियांग प्रांत पहले से ही मानवाधिकार और ज़बरन मज़दूरी को लेकर पश्चिमी देशों की नज़र में है, ऐसे में चीन के अपने अंदरुनी मामलों में उलझने से भारत को न सिर्फ़ एलएसी पर सामरिक बढ़त मिल सकती है बल्कि सीपीईसी में भी जो बीआरआई स्कीम के तहत राष्ट्रपति शी जिनपिंग की प्रमुख परियोजना है. जुलाई 2020 में एक्सपीसीसी पर आर्थिक पाबंदी ने चीन को पहले ही सीपीईसी परियोजना रोकने के लिए मज़बूर कर दिया है.
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Ayjaz Wani (Phd) is a Fellow in the Strategic Studies Programme at ORF. Based out of Mumbai, he tracks China’s relations with Central Asia, Pakistan and ...
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