हिंद महासागर में मालदीव की सामरिक स्थिति ने उसे पिछले कुछ दशकों में चीन के लिए एक केंद्र बिंदु (फोकल प्वाइंट) बना दिया है. चीन अपनी ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति का पालन करते हुए हिंद महासागर में संचार की लाइन को मज़बूत करना चाहता है और इसमें मालदीव को एक महत्वपूर्ण तत्व मानता है. ये चीन के उस मक़सद से मेल खाता है जिसके तहत वो इस क्षेत्र में भारत की मौजूदगी को सीमित करना चाहता है और अपने ऊर्जा आयात को सुरक्षित करने के लिए एक अड्डा मज़बूत करना चाहता है. इसकी वजह ये है कि चीन अपने 80 प्रतिशत से ज़्यादा तेल के नौवहन (शिपमेंट) के लिए हिंद महासागर पर निर्भर है. 2023 में निर्वाचित मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने चीन के साथ संबंधों को मज़बूत बनाने और भारत के असर को कम करने का संकल्प लिया है. ये भारत-मालदीव के संबंधों में संभावित रूप से एक अनिश्चित मोड़ है, ख़ास तौर पर चीन-मालदीव फ्री ट्रेड एग्रीमेंट की बहाली के बाद.
राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू के द्वारा मालदीव-चीन के संबंधों को बढ़ाने पर ज़ोर देने के साथ इस बात की मज़बूत संभावना है कि कुछ बदलावों के साथ FTA को मंज़ूर किया जा सकता है.
जनवरी 2024 में राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दोनों देशों के बीच संबंध का स्तर बढ़ाते हुए 20 महत्वपूर्ण संधियों पर हस्ताक्षर के माध्यम से इसे व्यापक सामरिक सहयोग साझेदारी का दर्जा दिया. ये समझौते पर्यटन, आपदा जोख़िम प्रबंधन, समुद्री अर्थव्यवस्था और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव जैसे क्षेत्रों में हुए. इस बैठक ने 2014 में हुए फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) को सक्रिय करने के लिए उनकी निष्ठा पर ज़ोर दिया और इस तरह द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने में इसकी भूमिका को उजागर किया. इसमें मालदीव से चीन को मछली का निर्यात बढ़ाने का विशेष योगदान रहेगा.
राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू के द्वारा मालदीव-चीन के संबंधों को बढ़ाने पर ज़ोर देने के साथ इस बात की मज़बूत संभावना है कि कुछ बदलावों के साथ FTA को मंज़ूर किया जा सकता है. एक FTA आम तौर पर हस्ताक्षर करने वाले देशों के बीच व्यापार के लिए सभी टैरिफ और बाधाओं को दूर करता है जब तक कि इसमें छूट का प्रावधान न हो. ये व्यापार की शर्तों के बारे में भी बताता है और केवल द्विपक्षीय व्यापार के आगे सहयोग को बढ़ावा देता है जैसे कि तकनीक, विशेषज्ञता और दूसरे संसाधनों को साझा करना.
2019 तक की स्थिति के अनुसार मालदीव के आयात में चीन का सबसे बड़ा हिस्सा था और सरकार की आमदनी में इसका बहुत बड़ा योगदान था. लेकिन टैरिफ ख़त्म होने पर न सिर्फ़ चीन से मालदीव की आमदनी कम होगी बल्कि उन देशों से भी कम राजस्व मिलेगा जो चीनी सामान का फिर से निर्यात करते हैं. कुल मिलाकर इससे सरकारी कर्ज़ बढ़ेगा और इस तरह सरकार को बाहरी कर्ज़ बढ़ाने या अपना घरेलू कर राजस्व बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. इन दोनों ही परिस्थितियों का घरेलू खर्च पर गंभीर असर पड़ेगा और इससे अर्थव्यवस्था मंदी की तरफ बढ़ेगी.
चीन: भारी-भरकम सार्वजनिक कर्ज़
टेबल 1: मालदीव के बाहरी कर्ज़ की संरचना
वर्ष
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GDP के % के रूप में बाहरी कर्ज़ का बकाया
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कुल बाहरी कर्ज़ का बकाया
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केंद्र सरकार और सार्वजनिक रूप से गारंटी
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केंद्र सरकार
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सार्वजनिक रूप से गारंटी
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अन्य डिपॉज़टरी कॉरपोरेशन
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2016
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22.6
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20.7
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17.6
|
3.1
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1.9
|
2017
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26.1
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23.8
|
22.8
|
1.1
|
2.2
|
2018
|
38.5
|
37.2
|
24.7
|
12.4
|
1.3
|
2019
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41.4
|
39.6
|
25.1
|
14.5
|
1.8
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2020
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86.8
|
77.2
|
43.7
|
33.5
|
9.7
|
2021
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59.1
|
51.3
|
36.6
|
14.7
|
7.8
|
2022
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58.1
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51.4
|
34.9
|
16.5
|
6.6
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स्रोत: MMA
मालदीव में GDP की तुलना में बाहरी कर्ज़ का अनुपात काफी बढ़ गया है जो कर्ज़ के जाल में फंसने की इसकी कमज़ोरी के बारे में बताता है. कर्ज़ का बढ़ता बोझ अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए सरकार पर दबाव बढ़ाता है और उसे लगातार कर्ज़ लेने के दुष्चक्र, सार्वजनिक संसाधनों के कुप्रबंधन और अंत में बेकाबू महंगाई की तरफ ले जाता है. कर्ज़ से प्रेरित निवेश (डेट फंडेड इन्वेस्टमेंट) की उत्पादकता कर्ज़ के बोझ को बढ़ाने में एक बड़ी भूमिका निभाती है. जब क्षमता निर्माण और कर्ज़ पर ब्याज की तुलना में ज़्यादा लाभ वाली परियोजनाओं की तरफ निवेश किया जाता है, तभी कर्ज़ स्थिर (सस्टेनेबल) बनता है. ये देश में जोख़िम के सूचक (इंडिकेटर) के तौर पर भी काम करता है और भविष्य में अंतर्राष्ट्रीय फंड के आने पर असर डालता है.
सॉवरेन-गारंटीड ऋण के मामले में सरकार को ऋण का भुगतान करने के लिए एक अनिवार्य और निर्विवाद वादा करने की ज़रूरत होती है. चाइना डेवलपमेंट बैंक, इंडस्ट्रियल एंड कॉमर्शियल बैंक ऑफ चाइना और एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक ऑफ चाइना जैसे संस्थान 60 प्रतिशत से ज़्यादा इस गारंटीड कर्ज़ के लिए जवाबदेह हैं. इसकी वजह से चीन के फाइनेंसर को बहुत ज़्यादा ब्याज का भुगतान करना पड़ता है जो चीन को लेकर मालदीव के वित्तीय दायित्वों को बढ़ाता है. चूंकि FTA दो देशों के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ाता है, ऐसे में ये अंदाज़ा लगाया जाता है कि इस कर्ज़ में चीन का हिस्सा उस स्तर तक बढ़ सकता है जो मालदीव की सरकार के लिए अस्थिर (अनसस्टेनेबल) हो जाएगा. इस परिस्थिति को अक्सर “कर्ज़ के जाल की कूटनीति” कहा जाता है जो मालदीव को ऐसे हालात की तरफ ले जा सकती है जहां उसकी अर्थव्यवस्था तेज़ी से चीन के सामरिक हितों से प्रभावित होगी.
रेखाचित्र 1: लेनदार के द्वारा प्रत्यक्ष ऋण का वितरण
स्रोत: वित्त मंत्रालय, मालदीव
हालांकि सरकार की तरफ से सीधे जारी और वितरित किए गए कर्ज में सबसे बड़ा हिस्सा एक्सपोर्ट-इंपोर्ट (एग्ज़िम) बैंक ऑफ इंडिया का है. एग्ज़िम बैंक ने खेल से जुड़े बुनियादी ढांचे के विकास के लिए भारत सरकार की तरफ से मालदीव को 40 मिलियन अमेरिकी डॉलर के लाइन ऑफ क्रेडिट (LOC) की सुविधा प्रदान की. 2021 में इस LOC पर हस्ताक्षर के समय से एग्ज़िम बैंक ने दूसरे कामों के अलावा आवास परियोजनाओं, अड्डू की विकास परियोजना और ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट के लिए मालदीव को कुल 1.33 अरब अमेरिकी डॉलर मुहैया कराया है. दक्षिण एशिया के पड़ोसी देश में भारत के विकास सहयोग ने मालदीव को भी अच्छी जानकारी और संसाधनों की उपलब्धता प्रदान की है. वैसे तो मालदीव के कर्ज़ में एग्ज़िम बैंक ऑफ इंडिया की बढ़ती हिस्सेदारी लगती है लेकिन सरकार के बकाया बाहरी कर्ज़ में चीन के एग्ज़िम बैंक का हिस्सा लगभग दोगुना है.
भारत ने मालदीव सरकार को विकास से जुड़े अलग-अलग उद्देश्यों के साथ-साथ खेल और युवा विकास कार्यक्रमों के लिए कई अनुदान भी दिए हैं. वहीं चीन की सरकार ने एक ही अनुदान दिया है. ये अनुदान मालदीव सरकार और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के बीच 400 रेनमिनबी की लागत के आर्थिक और तकनीकी सहयोग के समझौते के लिए दिया गया है जिसका इस्तेमाल उन सामाजिक, रोज़गार और इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए किया जाएगा जिन पर दोनों देशों के बीच सहमति बनी है और हस्ताक्षर किए गए हैं. अनुदान की अस्पष्टता इसे संदेह का विषय बनाती है क्योंकि इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं का मतलब ऐसी परियोजनाओं से हो सकता है जो चीन की सरकार को हिंद महासागर के व्यापार के रास्तों तक ज़्यादा पहुंच मुहैया कराएगी.
अनुदान की अस्पष्टता इसे संदेह का विषय बनाती है क्योंकि इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं का मतलब ऐसी परियोजनाओं से हो सकता है जो चीन की सरकार को हिंद महासागर के व्यापार के रास्तों तक ज़्यादा पहुंच मुहैया कराएगी.
अंत में, भारत के साथ मालदीव का ऐतिहासिक संबंध है जिसके तहत सांस्कृतिक और आर्थिक रिश्तों के महत्व को स्वीकार किया गया है, वहीं बदलता समीकरण भू-राजनीतिक जटिलताओं से पार पाने में ज़रूरी नाज़ुक संतुलन पर ज़ोर देता है. मालदीव की ऋण संरचना में चीन और भारत की भूमिका की बारीक तुलना मौजूदा सामरिक सोच पर ज़ोर देती है. जैसे-जैसे मालदीव अपना आगे का रास्ता निर्धारित करता है, उसे वैश्विक बदलाव के बीच अपनी स्वायत्तता और स्थिरता को सुरक्षित रखने के लिए सतर्क आर्थिक प्रबंधन, सामर्थ्य के निर्माण और कूटनीतिक चालाकी की ज़रूरत होगी.
आर्य रॉय बर्धन ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
सौम्य भौमिक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में एसोसिएट फेलो हैं.
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