Published on Nov 24, 2021 Updated 0 Hours ago

जबतक की भारत मे, सड़क संबंधी अद्वितीय मुद्दों से निपटने के लिए सख्त सड़क अधिनियम लागू नहीं किए जाए, उसके उपरांत ही, भारतीय सड़क पर स्पीड सीमा की पुनर्विवेचना की जानी चाहिए

भारतीय एक्सप्रेस हाईवे पर स्पीड लिमिट

अधिकारियों के साथ हुई हालिए मीटिंग मे, पथ परिवहन और हाईवे के लिए नियुक्त केन्द्रीय मंत्री, श्री नितिन गडकरी, ने विभिन्न एक्प्रेससवे पर (नियंत्रित पहुँच आधारित हाइवै) पर वाहनों की गति सीमा को प्रति घंटे 20 किलोमीटर तक बढ़ाए जाने का प्रस्ताव रखा. उन्होंने भारतीय हाइवै की गुणवत्ता में आई यथोचित बेहतरी और सुधार के आधार पर ये बात कही, जो पहले की तुलना में अब ज्यादा तेज गति  से यात्रा करने की अनुमति प्रदान करता है. वर्तमान मे, कारों के लिए एक्सप्रेस वे पर ज्यादा से ज्यादा गति सीमा 120 किलोमीटर प्रति घंटा है और राष्ट्रीय हाइवे पर उनकी अधिकतम गति सीमा 100 किलोमीटर प्रति घंटा है. 

मंत्री महोदय का मानना है कि भारतीय मानसिकता अब भी तीव्र गति की पक्षधर नहीं है, कारण कि गति की वजह से ज्यादातर दुर्घटनाएं होती है.

वाहनों की गति को लेकर मौजूदा तर्क 

मंत्री महोदय का मानना है कि भारतीय मानसिकता अब भी तीव्र गति की पक्षधर नहीं है, कारण कि गति की वजह से ज्यादातर दुर्घटनाएं होती है. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव 2021 में हालांकि, मिनिस्टर महोदय ने अपने विश्वास को पुनः दोहराया. उन्होंने कहा,” मेरी व्यक्तिगत राय यही है कि एक्स्प्रेसवे पर वाहनों की गति सीमा को बढ़ा कर 140 किलोमीटर प्रति घंटा कर दिया जाना चाहिए.” गडकरी ने साथ ही ये भी कहा कि राष्ट्रीय हाइवै के फोर लेन रोड पर गति सीमा कम से कम 100 किलोमीटर प्रतिघंटे, और साथ ही टू लेन रोड और शहरी रोड पर गति 80 किलोमीटर/घंटे और 75 किलोमीटर प्रति घंटे की होनी चाहिए.  

मंत्री महोदय ने हालांकि कुछ न्यायिक निर्णयों में गति को एक बड़ी चुनौती भी पाया है. उन्होंने आगे  कहा, “सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट द्वारा कार की गति संबंधी कुछ निर्णय दिए गए है, जिसकी वजह से हम कुछ भी कर पाने में असमर्थ है” इस मुद्दे से संबंधित हाल ही में 18 अगस्त 2021 को मद्रास हाई कोर्ट का एक और फैसला आया है. उन्होंने भारत सरकार  द्वारा पारित एक नोटीफिकेशन को खारिज कर दिया जिसमें हाइवै और एक्सप्रेस वे में गति सीमा को बढ़ाया गया था. उस अधिनियम में एम1श्रेणी में आने वाले वाहनों की गति सीमा निर्धारित की गई थी –अधिनियम के अंतर्गत, ड्राइवर सहित 8 या उसके बराबर सवारी ढोने वाले वाले मोटर वाहनों की गति – एक्सप्रेस वे पर गति सीमा 120 किलोमीटर प्रति घंटे, राष्ट्रीय हाइवै पर 100 किलोमीटर प्रति घंटे और बाकी अन्य सड़कों  पर 60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से निर्धारित की गई थी. उच्च न्यायालय ने अपने निरीक्षण में पाया कि ये जानने के बावजूद की ज्यादातर होने वाले दुर्घटनाएं , और उनसे होनेवाली मौत सिर्फ निर्धारित से भी तीव्र गति से वाहन चलाने की वजह से है, परंतु विभिन्न कारणों से, खासकर कॉमर्शियल अथवा व्यावसायिक वजहों से भी गति सीमा को बढ़ाया गया है जिसकी वजह से  ज्यादातर मौतें हुई है. 

वाहन चालकों को लापरवाहपूर्वक निर्गत की जाने वाली ड्राइवर लाइसेन्स और टेस्टिंग और वाहन चालान में उचित टेस्टिंग और अपग्रेडेशन का अभाव. भारत मे, ड्राइवर के टेस्ट के लिए नियोजित किये गए संसाधन और मानवश्रम शक्ति, अंतरराष्ट्रीय मानक से काफी नीचे है. 

इस मुद्दे पर हालांकि गडकरीजी की खुद की अपनी अलग राय थी. आगे जोड़ते हुए उन्होंने कहा की, आज देश के भीतर ऐसे एक्स्प्रेसवे बनाए गए है, जहां एक कुत्ता भी इन सड़कों पर नहीं आ सकता है इसलिए की सड़क के दोनों ओर बेहतर तरीके से बेरिकेडिंग की गई है. उन्होंने कहा कि, “उन्होंने विभिन्न श्रेणी की सड़कों पर दौड़ने वाले वाहनों की गति सीमा को संशोधित करने के लिए एक फाइल तैयार की है.” “प्रजातन्त्र  मे, हमें कानून बनाने का अधिकार है और न्यायाधीश को कानून की व्याख्या करने का अधिकार है .. शीघ्र ही संसद में एक नया संशोधन बिल पेश किया जाएगा जो भारतीय सड़कों पर गति सीमा को नए तरीके से तय करेगा.”  गति सीमा को परंपरागत तरीके से गतिशीलता और सुरक्षा आदि का विचार करके निर्धारण किया गया है और हरसंभव कोशिश की गई है कि दोनों को ही समान रूप से महत्व दिया जा सके. बाद मे, वातावरण भी एक अलग ही विचार का विषय बन गया, खासकर तापमान और वायु प्रदूषण के पहलू और शोर. एक तरफ उपरोक्त सारे मुद्दे चिंतनीय है, देश कई दफे इन कारकों के बीच इष्टतम संतुलन की तलाश में कभी कभी इनकी खोज में भिन्नता होती है. स्वाभाविक रूप से स्थानीय परिस्थिति भी प्राथमिकता में अंतर तय करती है. किसी खास सड़क केलिए, एक उपयुक्त गति सीमा निर्धारित करने के लिए एक सामान्य दृष्टिकोण को नियोजित किया गया है ताकि गति सीमा को  व्ही85 के निर्धारित पेरामीटर पर स्थिर किया जा सके. व्ही85-गति, वो गति है जो वाहनों में 85 प्रतिशत से ज्यादा नहीं जाती है. ये सब यह देखने के लिए है कि लोगों के बीच एक उचित ड्राइविंग अभ्यास का सृजन हो और उसके फलस्वरूप वे आम सहमति से एक उचित वाहन गति सीमा निर्धारित कर सके जो ज्यादातर वाहनचालकों को स्वीकार्य हो. ये साफ है कि एक ऐसी गति निर्धारित करना जो अनावश्यक रूप से गति सीमा उल्लंघन का कारण हो, पूर्णतया अव्यावहारिक समझौता समान होगा. 

विश्व के अन्य देशों की स्थितियां

सड़क की स्थिति के आधार पर विश्व के विभिन्न देशों ने अपने यहाँ भिन्न भिन्न गति सीमा निर्धारित की हुई है. हेवी ड्यूटी वाहन, बसें, कोच आदि के लिए धीमी गति सीमा निर्धारित की गई है. यूरोप, स्पेन और पुर्तगाल ने हाइवै पर गति सीमा 120 किलोमीटर, दोहरी सड़कों के लिए 100km/घंटे, सिंगल रोडवेस के लिए 90 kmph और निर्माण ज़ोन के लिए 50 km/घंटे तय की है. जर्मनी मे, ज्यादातर जर्मन ऑटोबान गति सीमा मुक्त है,हालांकि उनमें से कुछ जरूर इस निर्धारित गति सीमा का पालन करते है. यूनाइटेड किंगडम (ग्रेट ब्रिटेन) और संयुक्त राष्ट्र अमेरिका (USA) ऐसे देश है जिन्होंने इस गति सीमा संबंधी मेट्रिक सिस्टम को नहीं अपनाया है और ड्राइविंग स्पीड को किलोमीटर प्रति घंटे के गति सीमा में बंधन नहीं चाहती है. यूके मे, हाइवै और दोहरी सड़कों की गति सीमा 70 km/घंटा निर्धारित है; सिंगल रोडवेज  पर गति सीमा 60एमपीएच और निर्माण ज़ोन पर 30 एमपीएच तय है. संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में विभिन्न राज्यों की गति सीमा अलग अलग है , जो कि हाइवै पर 60 और 80 mph के बीच होती है. 

दुर्गम मौसम की स्थिति मे, जैसे की भारी बारिश या फिर जब गहन कोहरा छाया हुआ हो, तब दृश्यता काफी कम हो जाती है. इसलिए उस वक्त गाड़ियों की गति काफी कम हो जाती है. ऐसा ही, सर्दी के मौसम और बर्फबारी के दौरान भी होता है, जब सड़क पर वाहन चालान परिस्थितिवश दुर्गम हो जाती है और मजबूरन गति सीमा काफी कम हो जाती है. गरम मौसम भी उच्च गति सीमा में वाहन चालान के अनुकूल नहीं होती है. फ़्रांस जैसे कुछ देश भी अपने यहाँ गर्मी के मौसम में वायुप्रदूषण और स्माग से निपटने की प्रक्रिया में कुछ वक्त तक के लिए वाहन गति सीमा को कम करने का निर्देश देती है. निदरलैंड मे, मोटोरवे अनुभागों की बढ़ती संख्या के वजह से रिहायशी क्षेत्रों के आसपास बढ़ते वायुप्रदूषण और शोर को कम करने के लिए,  स्थायी निचली गति सीमा लागू कर रखी है.  

भारतीय सड़क: एक जटिल परिदृश्य 

भारतीय ड्राइविंग और सड़क परिदृश्य एक बहुत ही जटिल छवि प्रस्तुत करती है. भारतीय सड़कों के संदर्भ मे, ऐसे कई मुद्दे है जिन्हे जेहन में रखा जाना आवश्यक है. उनमें से एक है ड्राइवरों को होने वाली थकान. यूरोपियन यूनियन (ईयू) पॉलिसी के तहत, पहियों पर बिताए जाने वाले वक्त की न्यूनतम समय सीमा  – एक दिन में 9 घंटे या फिर हफ्ता भर में कुल 56 घंटों का वाहन चालान और हर साढ़े चार घंटों में 45 मिनट का एक ब्रेक निर्धारीत की गई है. भारतीय सड़कों पर ऐसी कोई दिशा निर्देश जारी नहीं की गई है. मल्टी एक्सल वाहन, ट्रक, टैक्सी और कंपनी कारें चलाने वाले समूह के ड्राइवर को ज्यादातर अधिक काम करते देखा गया है. इस वजह से, वाहन चालकों को होने वाली थकान की वजह से भी बढ़ी संख्या में दुर्घटना होती है. चालकों के मोबाईल फोन पर बात करने, सेटेलाइट नेवीगेशन मशीनों में व्यस्त होने या फिर रेडियो या सीडी प्लेयर देखने की वजह से ध्यान भटकने के कारण होने वाली दुर्घटनाओं ने भी एक्सीडेंट आदि में इजाफा ही किया है. दूसरी, वाहन चालकों को लापरवाहपूर्वक निर्गत की जाने वाली ड्राइवर लाइसेन्स और टेस्टिंग और वाहन चालान में उचित टेस्टिंग और अपग्रेडेशन का अभाव. भारत मे, ड्राइवर के टेस्ट के लिए नियोजित किये गए संसाधन और मानवश्रम शक्ति, अंतरराष्ट्रीय मानक से काफी नीचे है. 

भारतीय रोड के लिए दो सबसे जटिल समस्याओं को सबसे पहले हल किये जाने की आवश्यकता है – बेहतर शहरी सड़क अनुशासन और अधिकारियों द्वारा जारी ट्राफिक नियमों का सख्ती से पालन . 

इसके अलावे, भारतीय सड़कों पर ओवरलोडेड ट्रकों का चलना बिल्कुल ही आम बात है, जहां सड़कों के खराब होने के अलावा दुर्घटनाओं की संभावनाएं भी बढ़ती है. जहां की सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही विशेषरूप से ओवेरलोडिंग के खिलाफ अपना फैसला दिया है, दरअसल इस फैसले का खुले तौर पर उल्लंघन किया जा रहा है. इसलिए, किसी एक को तो इस बात को स्वीकारना ही होगा कि कई अन्य वजहों से, ज्यादातर सड़क कानून  व्यवहार में नहीं लाए जा रहे है. ये प्रवर्तन कमियाँ , अक्षम और खराब ड्राइविंग गुणवत्ता के साथ युग्मित भी है और बुरी वाहन चालान क्षमता की वजह से सम्पूर्ण विश्व में भारत, सबसे ज्यादा दुर्घटना-संभावित देश में शुमार माना जाता है. भारतीय सड़क पर सालाना करोड़ों लोगों की जान जाती है और करोड़ से भी ज्यादा लोग घायल होते है. 

हमें हालांकि, ये नहीं भूलना है कि मंत्री महोदय खासकर एक्सप्रेसवे पर होने वाली इन्ही दुर्घटनाओं के संदर्भ में बात कर रहे थे. एक्स्प्रेसवे काफी तीव्रगति से यात्रा करने हेतु है, और, इसलिए, एक्स्प्रेसवे पर धीमी गति से गाड़ी चलाने का कोई मतलब नहीं है. जर्मनी मे, ज्यादातर ऑटोबान के लिए किसी भी प्रकार की गति सीमा अनिवार्य नहीं किया गया है, के बावजूद, सुरक्षा संबंधी उनके रिकार्ड काफी बेहतर और उत्साहवर्धक है. इसलिए जरूरी नहीं कि तीव्र गति और दुर्घटनाएं अटूट रूप से एक दूसरे से संबंधित ही रहे. पहला तो, भले ही हम इस बात पर बहस करे की, क्या 40 प्रतिघंटा की स्पीड, सही गति सीमा है? यहाँ तक की ऑटोबान भी, बगैर को गतिचालान की निर्देशिका का अनुसरण किये हुए ही, गति सीमा 130 km/घंटा की सलाह देते है. हालांकि, भारतीय रोड के लिए दो सबसे जटिल समस्याओं को सबसे पहले हल किये जाने की आवश्यकता है – बेहतर शहरी सड़क अनुशासन और अधिकारियों द्वारा जारी ट्राफिक नियमों का सख्ती से पालन.

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