Author : Preeti Kapuria

Published on Jun 17, 2021 Updated 0 Hours ago

अमेरिका का ऐतराज़ भारत द्वारा निर्यात को बढ़ावा देने वाले पांच प्रोत्साहनों को लेकर था. अमेरिका का आरोप था कि भारत द्वारा निर्यात को बढ़ावा देने की ये योजनाएं, SCM से जुड़े समझौते का उल्लंघन थीं.

भारत में विशेष इकॉनमिक जोन: डब्ल्यूटीओ के तहत शामिल पक्षों को लेकर विवाद

अक्टूबर 2019 की एक रिपोर्ट में विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने अमेरिका के साथ एक विवाद पर भारत के ख़िलाफ़ आदेश दिया था. ये विवाद निर्यात पर कुछ सब्सिडी को लेकर था, जो भारत अपने उत्पादकों को दे रहा था. अमेरिका का ऐतराज़ भारत द्वारा निर्यात को बढ़ावा देने वाले पांच प्रोत्साहनों को लेकर था. अमेरिका का आरोप था कि भारत द्वारा निर्यात को बढ़ावा देने की ये योजनाएं, विश्व व्यापार संगठन के सब्सिडी और प्रतिकारी शुल्क (SCM) से जुड़े समझौते का उल्लंघन थीं. अमेरिका ने जिन पांच भारतीय निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं पर ऐतराज़ जताया था, उनमें से एक योजना विशेष आर्थिक ज़ोन (SEZ) से जुड़ी हुई है. भारत की मौजूदा व्यवस्था के अंतर्गत, देश के विशेष आर्थिक क्षेत्रों में स्थित शुद्ध विदेश मुद्रा (NFE का आकलन कुल निर्यात के मूल्य में से स्पेशल इकॉनमिक ज़ोन में स्थित किसी औद्योगिक इकाई द्वारा किए जाने वाले कुल आयात से घटाने के बाद होने वाली विदेशी मुद्रा के रूप में किया जाता है) कमाने वाली इकाइयों को कई तरह के लाभ मिलते हैं. इन लाभों में बिक्री कर, सेवा कर और आयात पर सीमा शुल्क से छूट जैसी रियायतें शामिल हैं. इन औद्योगिक इकाइयों को अपने कारोबार के पहले पांच वर्षों तक आयकर से भी छूट मिलती है.

ख़ालिस विदेशी मुद्रा कमाने वाली इन इकाइयों को टैक्स में छूट और अन्य सब्सिडी के लिए जो शर्तें तय की गई थीं, वो ही अमेरिका और भारत के बीच इस विवाद की जड़ में थीं. विश्व व्यापार संगठन का सब्सिडी और काउंटरवेलिंग मेज़रमेंट (SCM) समझौता ऐसी किसी भी सब्सिडी को प्रतिबंधित करता है, जो निर्यात की उपलब्धियों पर निर्भर करता हो. विश्व व्यापार संगठन ने भारत से कहा कि उसकी रिपोर्ट स्वीकार करने के 180 दिनों के अंदर वो विशेष आर्थिक क्षेत्र स्थित इकाइयों को दी जाने वाली ऐसी सभी प्रतिबंधित सब्सिडी की सुविधा ख़त्म करे. भारत ने विश्व व्यापार संगठन के इस निर्णय के ख़िलाफ़ अपील की है. जब तक विश्व व्यापार संगठन की अपीलीय संस्था इस पर अपना अंतिम फ़ैसला नहीं सुना देती, तब तक भारत को ये आदेश लागू करने की कोई बाध्यता नहीं है. हालांकि, अमेरिका के व्यवहार से ये बात बिल्कुल साफ़ है कि, अगर भारत विशेष आर्थिक क्षेत्रों द्वारा निर्यात को सब्सिडी देने की अपनी मौजूदा रणनीति में बदलाव नहीं करता है, तब तक इसे भविष्य में भी चुनौती दिए जाने की आशंका बनी रहेगी.

ख़ालिस विदेशी मुद्रा कमाने वाली इन इकाइयों को टैक्स में छूट और अन्य सब्सिडी के लिए जो शर्तें तय की गई थीं, वो ही अमेरिका और भारत के बीच इस विवाद की जड़ में थीं. 

विशेष आर्थिक ज़ोन की इकाइयों को निर्यात पर दी जा रही विवादित सब्सिडी का विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुरूप विकल्प तलाशने के लिए भारत के वाणिज्य मंत्रालय ने पहले ही एक कमेटी का गठन कर दिया है. इस समस्या के जिन समाधानों पर विचार हो रहा है, उनमें से एक ये भी है कि विशेष आर्थिक क्षेत्रों में अनुबंधित निर्माण इकाइयों की योजना को अंगीकार करने और लागू करने का भी विकल्प शामिल है. इस व्यवस्था को सबसे पहले सीमा शुल्क विभाग ने वर्ष 2019 में लागू किया था. अनुबंधित योजना के अंतर्गत निर्यात वाले उत्पादों का निर्माण करने वाली इकाइयों को विदेश से कच्चा माल और पूंजीगत सामान मंगाने पर आयात शुल्क नहीं देना पड़ता है. ये व्यवस्था, विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुकूल है. क्योंकि, इस योजना के तहत आयातित कच्चे माल और पूंजीगत सामान पर निर्यात की उपलब्धियों के आधार पर रियायतें नहीं दी जाती हैं. जबकि पहले की व्यवस्था के तहत शुद्ध विदेशी मुद्रा कमाने वालों को लाभ का पात्र माना जाता था.

सब्सिडी को लेकर विवाद

भारत को चाहिए कि वो विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुकूल कुछ ‘स्मार्ट’ सब्सिडी को भी लागू करे. ऐसे विकल्प चीन और वियतनाम जैसे कई देशों ने लागू कर रखे हैं. इन स्मार्ट योजनाओं के अंतर्गत, सरकार द्वारा दिए जाने वाले प्रोत्साहन को, विशेष आर्थिक क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास और रोज़गार सृजन से जोड़ा जा सकता है, न कि विदेशी मुद्रा कमाने से. ऐसी सब्सिडी को ‘स्मार्ट’ माना जाता है. क्योंकि, हो सकता है कि विश्व व्यापार संगठन के नियमों के तहत इन पर कार्रवाई हो. लेकिन, इन्हें विवादों में घसीटे जाने की आशंका कम होती है. इसकी वजह ये है कि ये साबित कर पाना बेहद मुश्किल होता है कि ये सब्सिडी विश्व व्यापार संगठन के SCM समझौते का उल्लंघन करती हैं, या किसी अन्य देश की प्रतिद्वंदिता करने की शक्ति को चोट पहुंचाती हैं. इसके अलावा एक और विकल्प ये हो सकता है कि सब्सिडी को वाणिज्य विभाग के माध्यम से दिया जाए, न कि विदेशी व्यापार के महानिदेशालय जैसी व्यापार से जुड़ी विशेष संस्थाओं के माध्यम से सब्सिडी दी जाए. इससे भी इन योजनाओं के व्यापार से सीधे तौर पर जुड़े होने के आरोप से बचा जा सकता है. फिर इन्हें विश्व व्यापार संगठन के नियमों के तहत चुनौती देना भी आसान नहीं होगा.

स्मार्ट योजनाओं के अंतर्गत, सरकार द्वारा दिए जाने वाले प्रोत्साहन को, विशेष आर्थिक क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास और रोज़गार सृजन से जोड़ा जा सकता है, न कि विदेशी मुद्रा कमाने से. ऐसी सब्सिडी को ‘स्मार्ट’ माना जाता है.

भारत के लिए एक और विकल्प ये हो सकता है कि वो सेवाओं के लिए सब्सिडी उपलब्ध कराए. क्योंकि, विश्व व्यापार संगठन ने इस संदर्भ में अब तक कोई प्रतिबंध नहीं निर्धारित किए हैं. ऐसी सब्सिडी को कामगारों के कौशल विकास, प्रचार के विज्ञापन की लागत कम करने और परिवहन की लागत कम करने के मद में दिया जा सकता है. मिसाल के तौर पर, वियतनाम ने ऐसा ही रास्ता अख़्तियार किया है. वियतनाम अपनी राष्ट्रीय व्यापार प्रोत्साहन योजना के तहत, कारोबारियों को निर्यात की मार्केटिंग को व्यापार मेलों और प्रदर्शनियों की सुविधाएं प्रदान करता है. इसी तरह चीन भी, अपने विदेशी व्यापार विकास फंड और ब्रैंड के विकास के विशेष फंड की योजनाओं के माध्यम से अपने निर्यात की ब्रैंडिंग और उनका प्रचार करता है.

स्किल इंडिया कार्यक्रम से उम्मीद

जहां तक कामगारों के कौशल विकास, प्रशिक्षण से उत्पादकता के फ़ायदों की बात है, तो इनसे भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र में निर्यात के उत्पाद बनाने वाले निर्माताओं को अपनी लागत कम करने और अधिक कार्यकुशलता लाने में मदद मिलने की काफ़ी संभावना है. इससे वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुक़ाबला करने की और बेहतर स्थिति में होंगे. इस संदर्भ में सरकार का ‘स्किल इंडिया’ कार्यक्रम एक उम्मीदों से भरा अभ्यर्थी हो सकता है. इस कार्यक्रम को स्पेशल इकॉनमिक ज़ोन (SEZ) के साथ जोड़कर और उद्योगों के साथ सलाह मशविरा करके प्रशिक्षण के कार्यक्रमों पर ध्यान देने से ऐसे हुनरमंद कामगारों की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकेगी, जो उद्योगों की ज़रूरतें पूरी कर सकेंगे. भारत में कपड़ा उद्योग के लिए एकीकृत कौशल विकास योजना (ISDS) मौजूद है, जिससे प्रेरणा ली जा सकती है. इस वक़्त भारत विशेष आर्थिक क्षेत्रों में रोज़गार को प्रोत्साहन देने को लेकर टैक्स में कोई रियायत नहीं देता है. इस मामले में भारत एक बार फिर से वियतनाम से सबक़ ले सकता है और उसके जैसे उपाय अपना सकता है. इससे भारत को ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित विशेष आर्थिक क्षेत्रों में ग्रामीण रोज़गार को प्रोत्साहन देने में मदद मिलेगी.

विश्व व्यापार संगठन की अपीलीय संस्था को भारत की अर्ज़ी पर विचार करने से पहले बाक़ी की अपीलों का निपटारा करना होगा. तब तक भारत पर इस बात की कोई बाध्यता नहीं है कि वो सब्सिडी हटाने के फ़ैसले को लागू करे.

विश्व व्यापार संगठन के फ़ैसले के ख़िलाफ़ भारत की अपील ऐसी ही दस अन्य अपीलों की क़तार का हिस्सा बन गई है. ये अपीलें जुलाई 2018 के बाद से दाख़िल की गई हैं. विश्व व्यापार संगठन की अपीलीय संस्था को भारत की अर्ज़ी पर विचार करने से पहले बाक़ी की अपीलों का निपटारा करना होगा. तब तक भारत पर इस बात की कोई बाध्यता नहीं है कि वो सब्सिडी हटाने के फ़ैसले को लागू करे. हालांकि, इस बात की संभावना कम ही है कि निकट भविष्य में इन अपीलों पर सुनवाई होगी. इसकी वजह ये है कि विश्व व्यापार संगठन की अपीलीय संस्था का काम दिसंबर 2019 के बाद से ही ठप पड़ा है, क्योंकि अमेरिका ने इसमें नए सदस्यों की नियुक्ति पर अड़ंगा लगा रखा है. हो सकता है कि अमेरिका जान-बूझकर विश्व व्यापार संगठन की नियामक शक्तियों को कमज़ोर करना चाहता हो. इससे अमेरिका को व्यापार के मसलों पर सीधे असर डालने का अधिक मौक़ा मिल सकेगा. अपील की किसी भी स्थिति में भारत को चाहिए कि वो इन विषयों पर ज़रूरी क़दम उठाए, क्योंकि अमेरिका ने पहले ही अपना रुख़ स्पष्ट कर दिया है और अगर भारत उसके ऐतराज़ों को दूर करने के लिए आवश्यक क़दम नहीं उठाता है, तो अमेरिका अन्य मंचों के माध्यम से भारत पर दबाव डाल सकता है. हालांकि, पूर्ववर्ती ट्रंप प्रशासन की तुलना में व्यापार के मसलों पर जो बाइडेन प्रशासन का रवैया थोड़ा नरम रह सकता है. लेकिन, अभी ये बात स्पष्ट नहीं है कि निर्यात पर सब्सिडी जैसे व्यापार से जुड़े विषयों पर उनका क्या रुख़ रहने वाला है. ऐसे में भारत के लिए बेहतर यही होगा कि वो विशेष आर्थिक क्षेत्रों से निर्यात को प्रोत्साहन देने की नई रणनीतियां अपना ले. ये नीतियां इस बात को ध्यान में रखकर बनाई जानी चाहिए, कि अगर इन्हें विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुसार भविष्य में चुनौती दी जाए, तो उनका सामना किया जा सके.

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