Author : Manish Vaid

Expert Speak India Matters
Published on Apr 03, 2024 Updated 0 Hours ago

क्रांतिकारी प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना की पहल, जो भारत की रूफटॉप सोलर (RTS) की क्षमता का और अधिक विस्तार करेगी, 2070 तक भारत के नेट-ज़ीरो टारगेट को हासिल करने में मदद कर सकती है.

सोलर (सौर ऊर्जा) समाधान: छतों का हरित ऊर्जा के केंद्र के रूप में क्रांतिकारी कायापलट!

एक ऐसी दुनिया की कल्पना कीजिए जहां के घर सूरज की प्रचुर ऊर्जा से जगमग हैं, जहां ग्रिड पर निर्भरता कम हो जाती है और जहां हर छत परिवर्तन के लिए एक औजार बन जाती है. कल्पना अपने बिजली बिल में कमी, स्थिरता (सस्टेनेबिलिटी) को अपनाने और अपनी इलेक्ट्रिक गाड़ी को चलाने की भी कीजिए और इन सभी के लिए पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना को धन्यवाद दीजिए. लेकिन इस साहसिक सोच के बीच कई सवाल बने हुए हैं: क्या रूफटॉप सोलर (RTS) वास्तव में हमारे ऊर्जा परिदृश्य में क्रांति ला सकती है? क्या चुनौतियों के मुताबिक फायदे हैं? ये लेख इस क्रांतिकारी पहल के वादों और नुकसान की विस्तार से जानकारी देता है और एक उज्ज्वल, हरित भविष्य के रास्ते को रोशन करता है. 

29 फरवरी 2024 को कैबिनेट ने पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना को मंज़ूरी दी. ये एक क्रांतिकारी पहल है जिसका मक़सद 75,021 करोड़ रुपये की कुल लागत से एक करोड़ घरों में RTS पैनल की स्थापना (इन्स्टॉलेशन) के ज़रिए हर महीने 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली मुहैया कराना है.

29 फरवरी 2024 को कैबिनेट ने पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना को मंज़ूरी दी. ये एक क्रांतिकारी पहल है जिसका मक़सद 75,021 करोड़ रुपये की कुल लागत से एक करोड़ घरों में RTS पैनल की स्थापना (इन्स्टॉलेशन) के ज़रिए हर महीने 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली मुहैया कराना है. 13 फरवरी 2024 को प्रधानमंत्री के द्वारा शुरू की गई ये योजना सीधे लोगों के बैंक खातों में सम्मानजनक सब्सिडी प्रदान करेगी और लोगों पर बोझ को दूर रखने को सुनिश्चित करने के लिए काफी रियायती दर पर बैंक कर्ज़ की पेशकश करेगी. इसका नतीजा हर साल 15,000-18,000 रुपये की बचत के रूप में निकलेगा. 

ये दूरदर्शी पहल भारत के द्वारा 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित 500 गीगावॉट (GW) ऊर्जा उत्पादन के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने से मिलती है. इस तरह इसे नवीकरणीय ऊर्जा में बढ़ोतरी की दुनिया की सबसे बड़ी योजना कहा जा रहा है. ये बिना किसी बाधा के पिछले कुछ वर्षों में भारत के सौर ऊर्जा के क्षेत्र में देखी गई उल्लेखनीय वृद्धि से मेल खाती है. 

भारत के सोलर एनर्जी सेक्टर ने अच्छी बढ़ोतरी देखी है और पिछले सात वर्षों में स्थापित क्षमता 2.63 GW से बढ़कर 49 GW हो गई है. सौर ऊर्जा की क्षमता के मामले में भारत दुनिया में चौथे पायदान पर है. पिछले नौ वर्षों में इसमें 30 गुना बढ़ोतरी हुई है और जनवरी 2024 में ये 74.30 GW पर पहुंच गई है. भारत की अनुमानित सौर ऊर्जा क्षमता प्रभावशाली 748 GW है. कुल मिलाकर भारत का सोलर एनर्जी सेक्टर देश के सतत ऊर्जा के लक्ष्यों में एक अहम भूमिका निभाता है. 

जून 2023 तक रिहायशी सेक्टर में लगभग 2.73 GW (रेखाचित्र 1) की स्थापित क्षमता के साथ भारत RTS बिजली की अपनी भारी क्षमता का इस्तेमाल कर रहा है जिसका अनुमान 25 करोड़ घरों में 637 GW बताया गया था. वित्तीय वर्ष 2023 के अंत तक कुल 11 GW की क्षमता में भारत की रिहायशी RTS क्षमता करीब 2.7 GW पर पहुंच गई जो कि वित्तीय वर्ष 2022 के 2 GW की तुलना में अच्छी वृद्धि है. 

पिछले 5 वर्षों के दौरान भारत में रिहायशी RTS स्थापना में लगातार सुधार देखा गया है. कंसल्टेंट कंपनी ब्रिज टू इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार वित्तीय वर्ष 2020 तक 100-200 MW की लगभग स्थिर सालाना बढ़ोतरी के बाद घरेलू RTS सेक्टर ने महत्वपूर्ण बढ़ोतरी का अनुभव किया है. वित्तीय वर्ष 2022 से 2023 तक रिहायशी RTS क्षमता में साल-दर-साल लगभग 60 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई जिसके पीछे लागत बचाने की बढ़ती मांग, उपभोक्ताओं के बीच बढ़ती जागरूकता और सरकार का मज़बूत समर्थन जैसे कारण हैं. 

रेखाचित्र 1: जून 2023 में सेक्टर के हिसाब से भारत की सोलर रूफटॉप की स्थापित क्षमता (MW में) 

स्रोत: स्टैटिस्टा 2024

इससे पहले 2010 में शुरू भारत के जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सोलर मिशन ने 2022 तक 100 GW सौर ऊर्जा के उत्पादन का लक्ष्य बनाया था. इसमें से 60 GW का लक्ष्य यूटिलिटी-स्केल (प्लांट या उपकरण) के लिए था जबकि 40 GW रूफटॉप सोलर के लिए. 

ध्यान देने की बात है कि RTS कार्यक्रम के पहले चरण की शुरुआत 30 दिसंबर 2015 को हुई जिसके तहत रिहायशी, संस्थागत और सामाजिक क्षेत्रों के लिए प्रोत्साहन और सब्सिडी की पेशकश की गई. इसके अलावा लक्ष्य हासिल करने से जुड़े इन्सेंटिव का विस्तार सरकारी क्षेत्र तक किया गया. इसके बाद फरवरी 2019 में रूफटॉप फेज़-II की शुरुआत की गई जिसके तहत 2022 तक कुल मिलाकर 40 GW की क्षमता का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया गया. हालांकि दिसंबर 2023 तक RTS की कुल स्थापित क्षमता महज 10.5 GW तक ही पहुंची. इसके बावजूद ये 31 मार्च 2019 के 1.8 GW की तुलना में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी थी. 

वैसे तो रूफटॉप सोलर फेज-II ने अलग-अलग क्षेत्रों के लिए इन्सेंटिव और सब्सिडी प्रदान की है लेकिन इसने सभी घरों के लिए बिजली की उपलब्धता और कम लागत के मुद्दे का पूरी तरह समाधान नहीं किया है. इस तरह पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना और अधिक घरों को सौर ऊर्जा का लाभ पहुंचाना चाहती है, ख़ास तौर पर बिजली की उपलब्धता और किफायत के मामले में. 

2026 तक रिहायशी सेक्टर के लिए 4 GW के लक्ष्य की क्षमता के साथ फेज़-II कार्यक्रम ने अलग-अलग सरकारी एजेंसियों को लगभग 3.57 GW की क्षमता का आवंटन किया है. कार्यक्रम के तहत उन एजेंसियों को 2,917.59 करोड़ की रकम बांटी गई है जिससे अभी तक 4.3 लाख लाभार्थियों को फायदा हुआ है. 

वैसे तो रूफटॉप सोलर फेज-II ने अलग-अलग क्षेत्रों के लिए इन्सेंटिव और सब्सिडी प्रदान की है लेकिन इसने सभी घरों के लिए बिजली की उपलब्धता और कम लागत के मुद्दे का पूरी तरह समाधान नहीं किया है. इस तरह पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना और अधिक घरों को सौर ऊर्जा का लाभ पहुंचाना चाहती है, ख़ास तौर पर बिजली की उपलब्धता और किफायत के मामले में. 

प्रस्तावित योजना का उद्देश्य रिहायशी सेक्टर में रूफटॉप सोलर की क्षमता में 30 GW जोड़ना है और इस तरह 1,000 BU (बिलियन यूनिट) बिजली का उत्पादन और अगले 25 वर्षों में 720 मिलियन टन के बराबर कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के उत्सर्जन को कम करना है. ये योजना एक दूरदर्शी पहल है जिसका उद्देश्य 2025 तक रूफटॉप सोलर पैनल के माध्यम से एक करोड़ घरों को मुफ्त बिजली प्रदान करना है और इसने भारत में सौर ऊर्जा को व्यापक रूप से अपनाने की राह में बाधा बन रही चुनौतियों को स्वीकार किया है. इस योजना ने निम्नलिखित चुनौतियों का समाधान करने के लिए कदम उठाए हैं: 

1. उपभोक्ताओं के बीच कम जागरूकता: सरकार सौर ऊर्जा के फायदों और योजना की विशेषताओं के बारे में उपभोक्ताओं को शिक्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चला रही है. सरकार योजना के बारे में व्यापक जानकारी मुहैया करा रही है जिनमें आवेदन के लिए चरण-दर-चरण की प्रक्रिया शामिल है. 

2. नेट मीटरिंग को मंज़ूरी और व्यवस्था में बाधाएं: इस योजना ने राज्यों के नेट-मीटरिंग रेगुलेशन के बारे में कई चिंताओं का भी समाधान किया है. ये योजना उपभोक्ताओं के लिए प्रक्रिया को आसान बनाते हुए नेट-मीटरिंग की मंज़ूरी को सुव्यवस्थित करती है. एक बार सोलर प्लांट की स्थापना होते ही नेट-मीटरिंग के लिए आवेदन करना सरल है. इससे डिस्कॉम (डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी) के निरीक्षण के बाद शुरू करने का सर्टिफिकेट मिल जाता है. राज्यों के कुछ ख़ास रेगुलेशन से हटकर ये योजना न्यूनतम kW की कोई पाबंदी नहीं लगाती है. इस तरह अधिक घरों तक उपलब्धता बढ़ाती है. इसके अलावा इस योजना में सरप्लस बिजली वितरण कंपनियों को बेचने का प्रावधान है जो खपत एवं योगदान में सुधार करके लोगों के लिए उचित लाभ और बिजली बिल में कमी सुनिश्चित करेगी.  

3. केंद्र और राज्य के द्वारा सब्सिडी के वितरण में देरी: इस योजना ने सब्सिडी वितरण को भी सुव्यवस्थित किया है. सौर ऊर्जा का उत्पादन शुरू होने की रिपोर्ट मिलने के बाद उपभोक्ता आसानी से पोर्टल के ज़रिए अपने बैंक खाते की जानकारी और एक कैंसल्ड चेक जमा कर सकते हैं. उम्मीद की जाती है कि सब्सिडी 30 दिनों के अंदर बैंक खाते में जमा कर दी जाएगी. 

4. आकर्षक वित्त मुहैया कराने के विकल्पों की सीमा: योजना के तहत रूफटॉप सोलर लगाने के लिए केंद्र सरकार 60 प्रतिशत सब्सिडी (तालिका 1) की पेशकश करेगी. बाकी 40 प्रतिशत राशि कर्ज़ के ज़रिए प्रदान की जाएगी जिसे 10 साल में चुकाना होगा. ये कर्ज़ सरप्लस बिजली की बिक्री के ज़रिए भी चुकाया जा सकता है. कर्ज़ चुकाने के बाद रूफटॉप सोलर वाले घर बिजली की बिक्री से अतिरिक्त आमदनी कमा सकते हैं. राज्यों में योजना के कार्यान्वयन पर मंत्रालय के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग) की नज़र रहेगी. इसके लिए वो संभवत: सहायक/विशेष उद्देश्य की कंपनी (स्पेशल पर्पस व्हीकल) का सहारा लेंगे. ये वित्तीय समर्थन संभावित उपभोक्ताओं के लिए योजना को अधिक आकर्षक बनाता है. 

तालिका 1: घरों के लिए रूफटॉप सोलर प्लांट की उचित क्षमता 

औसत मासिक बिजली की खपत 

(यूनिट में) 

रूफटॉप सोलर प्लांट की उचित क्षमता (Kw में) 

सब्सिडी समर्थन

(रु. में) 

0-150

1-2

30,000/- से 60,000/-

150-300

2-3

60,000/- से 78,000/-

> 300

3 से अधिक

78,000/-

स्रोत: पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना, GoI

ये सब्सिडी सौर ऊर्जा स्थापित करने की लागत (पूंजी खर्च) में 27.86 प्रतिशत से लेकर 42.86 प्रतिशत तक कमी करेगी जिसे तालिका 2 में अलग-अलग खपत के स्तर में दिखाया गया है. 

तालिका 2:  मासिक खपत के आधार पर सौर ऊर्जा स्थापना की लागत पर सब्सिडी का असर

मासिक खपत

सोलर प्लांट की क्षमता (kW में)

सब्सिडी (रु. में) 

काल्पनिक स्थापित करने की लागत (पूंजी खर्च) (रु. में) 

लागत में कमी

(% में) 

0-150 यूनिट

1

 30,000

   70,000

42.86

150-300 यूनिट

3

 78,000

2,10,000

37.14

>300 यूनिट

4

 78,000

2,80,000

27.86

 

5. घरों में सौर ऊर्जा लगाने में गुणवत्ता की चिंताएं: ये योजना पूरी तरह से रजिस्टर्ड वेंडर्स के द्वारा रूफटॉप सोलर लगाने की इजाज़त देकर गुणवत्ता के मानक को बरकरार रखती है. वो डिवीज़न/सर्कल के स्तर पर आवेदन कर सकते हैं और आवेदन देने की तारीख़ से एक महीने के भीतर पैनल की सूची में उनको शामिल करने की पुष्टि हो जाएगी. 

वैसे तो ये योजना कई चिंताओं का समाधान करती है लेकिन इसके बाद भी कई समस्याएं हो सकती हैं. फिर भी इस योजना में उन चिंताओं का समाधान करने के लिए संरचनात्मक व्यवस्था शामिल है:

1. सरकार के समर्थन पर निर्भरता: ये योजना मज़बूती के लिए सरकारी सब्सिडी पर बहुत ज़्यादा निर्भर है और अगर सब्सिडी में कटौती होती है तो इसके भविष्य को लेकर अनिश्चितता है. हालांकि ये उम्मीद के मुताबिक तकनीकी प्रगति और ज़्यादा उत्पादन की स्थिति में कम लागत की वजह से सब्सिडी पर निर्भरता में कमी के साथ सौर ऊर्जा को अपनाने को बढ़ावा देती है. इसके अलावा ग्रिड को सरप्लस बिजली की बिक्री को प्रोत्साहन देने से सब्सिडी हो या न हो लेकिन आमदनी होती है. बिना किसी परेशानी के सब्सिडी की व्यवस्था में बदलाव को सुनिश्चित करने के लिए सब्सिडी में धीरे-धीरे कमी, स्पष्ट जानकारी और रूफटॉप सोलर लगाने की लागत में कमी एवं उपलब्धता बढ़ाने के लिए चल रही मौजूदा रिसर्च में निवेश होना चाहिए. 

2. ग्रिड को जोड़ने में चुनौतियां: ये योजना रूफटॉप सोलर सिस्टम में आधुनिक इन्वर्टर के माध्यम से ग्रिड के सामर्थ्य को बढ़ाती है, साथ ही समान मात्रा में उत्पादन (डिस्ट्रीब्यूटेड जेनरेशन), चरम मांग प्रबंधन (पीक डिमांड मैनेजमेंट), कम ट्रांसमिशन और ग्रिड समर्थन सेवा के हिसाब से भी ठीक है. लेकिन इसमें जोड़ने की भी चुनौतियां हैं. इन चुनौतियों में सौर ऊर्जा का उतार-चढ़ाव, दो-तरफा प्रवाह (बाइडायरेक्शनल फ्लो) के लिए अपर्याप्त ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर, वोल्टेज रेगुलेशन में तकनीकी बाधाएं और सरप्लस बिजली की बिक्री के दाम में रेगुलेटरी जटिलताएं शामिल हैं. इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए सफल सौर एकीकरण के उद्देश्य से लगातार निगरानी और तकनीकी प्रगति के साथ ग्रिड में बेहतरी, आधुनिक प्रबंधन की रणनीतियां और निष्पक्ष नियमों की आवश्यकता है. 

3. रखरखाव और मरम्मत: लंबे समय तक रूफटॉप सोलर पैनल के काम करने और उसके प्रदर्शन के लिए समय-समय पर रखरखाव महत्वपूर्ण है. लेकिन आशंका जताई जाती है कि घर के मालिक उतने जागरूक नहीं होते. योजना में वेंडर की ट्रेनिंग पर ज़ोर दिया गया है और अच्छी तरह से रूफटॉप सोलर पैनल लगाने और उसकी मरम्मत के लिए रजिस्टर्ड वेंडर के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया है. उपभोक्ताओं को जागरूक करने वाली पहल को रखरखाव के महत्व पर प्रकाश डालना चाहिए. फीडबैक का तौर-तरीका लंबे समय तक घरों को फायदा पहुंचाने के लिए घटिया ढंग से रूफटॉप सोलर पैनल लगाने की पहचान करने और इसे दुरुस्त करने में मदद कर सकता है जबकि लगातार निगरानी इन्स्टॉलेशन से जुड़ी क्वालिटी सुनिश्चित करती है. 

वैसे तो रूफटॉप सोलर एनर्जी पर्यावरण के अनुकूल है लेकिन ये पैनल के उत्पादन, उसके निराकरण (डिस्पोज़ल) और रिसाइक्लिंग के बारे में चिंता पैदा करती है. ये योजना वेंडर के रजिस्ट्रेशन और ट्रेनिंग पर ज़ोर देती है ताकि पर्यावरण से जुड़े मानकों के पालन को सुनिश्चित किया जा सके.

4. पर्यावरण से जुड़ी चिंताएं: वैसे तो रूफटॉप सोलर एनर्जी पर्यावरण के अनुकूल है लेकिन ये पैनल के उत्पादन, उसके निराकरण (डिस्पोज़ल) और रिसाइक्लिंग के बारे में चिंता पैदा करती है. ये योजना वेंडर के रजिस्ट्रेशन और ट्रेनिंग पर ज़ोर देती है ताकि पर्यावरण से जुड़े मानकों के पालन को सुनिश्चित किया जा सके. वैसे तो योजना में सीधे तरीके से रिसाइक्लिंग और डिस्पोज़ल का समाधान नहीं किया गया है लेकिन ये उसके महत्व को स्वीकार करती है. वैसे तो उपभोक्ता जागरूकता की कोशिशें पर्यावरण की स्थिरता को बढ़ावा देती हैं लेकिन इस मामले में राष्ट्रीय नीतियां उचित तरीके से डिस्पोज़ल के बारे में मार्गदर्शन कर सकती हैं. पर्यावरण पर सोलर पैनल के असर को कम करने के लिए लगातार निगरानी और तकनीकी प्रगति का लक्ष्य तय किया जा सकता है. 

इस तरह RTS 2070 तक नेट-ज़ीरो के लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत की रणनीति में एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है. जनवरी 2024 तक 74.30 GW की सौर ऊर्जा की क्षमता के साथ भारत दुनिया में चौथे पायदान पर है. योजना के तहत रूफटॉप सोलर की क्षमता में 30 GW जोड़ना है जिसका उद्देश्य 1,000 BU (बिलियन यूनिट) बिजली का उत्पादन और अगले 25 वर्षों में 720 मिलियन टन के बराबर कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के उत्सर्जन को कम करना है. सब्सिडी पर निर्भरता और ग्रिड को जोड़ने जैसी चुनौतियां बनी हुई हैं लेकिन जागरूकता अभियानों और सुव्यवस्थित प्रक्रियाओं के माध्यम से उनका समाधान किया जा रहा है. बाधाओं के बावजूद एक स्वच्छ, सतत ऊर्जा वाले भविष्य की तरफ भारत के बदलाव के हिसाब से RTS निर्णायक है. 

मनीष वैद ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में जूनियर फेलो हैं.

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