एशिया-प्रशांत क्षेत्र में विविध स्तरों वाले देश रहते हैं, जिनके आर्थिक विकास का स्तर अलग-अलग है. इन देशों ने सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) पर ध्यान देने को लेकर मिश्रित रिस्पॉंस दिया है. इस इलाके में दुनिया की आधे से ज़्यादा आबादी रहती है. ऐसे में SDGs को लेकर एजेंडा 2030 को लागू करने को लेकर इस इलाके में होने वाली प्रगति न केवल असंतुलित है बल्कि यह अपर्याप्त भी है. इस इलाके में चल रहे काम को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि 17 SDGs को लेकर हो रही प्रगति चिंताजनक रूप से धीमी है. लगभग आधे देशों में यह न्यूनतम दिखाई देती है, जबकि एक-तिहाई से ज़्यादा में यह पूर्णत: थम गई है.
एक अनुमान के अनुसार वर्तमान SDGs को 2062 से पहले हासिल नहीं किया जा सकेगा. अर्थात यह अपनी निर्धारित अवधि से 32 वर्ष बाद पूर्ण होंगे. 2023 की बात करें तो सभी 17 SDGs को हासिल करने की दिशा में 2017 में जहां औसत प्रगति की दर 4.4 प्रतिशत थी, तो यह 2023 में बढ़कर 17 प्रतिशत हो गई थी. 2015 से अब तक इस इलाके में सबसे ज़्यादा प्रगति गरीबी उन्मूलन (SDG 1) के साथ सतत उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढांचे को पुख़्ता करने (SDG 9) में देखी गई. हालांकि यहां भी प्रगति की गति 2030 की निर्धारित समय सीमा को प्राप्त करने के लिए अपर्याप्त है.
एक अनुमान के अनुसार वर्तमान SDGs को 2062 से पहले हासिल नहीं किया जा सकेगा. अर्थात यह अपनी निर्धारित अवधि से 32 वर्ष बाद पूर्ण होंगे.
एशिया-प्रशांत में स्थित स्मॉल आइलैंड डेवलपिंग स्टेट्स (SIDS) के सामने SDGs को हासिल करने की सबसे कड़ी चुनौती खड़ी है क्योंकि इन देशों की अपनी अनूठी कमज़ोरियां अथवा कमियां है. उदाहरण के लिए मालदीव, फ़िजी और तुवालू जलवायु परिवर्तन, सीमित प्राकृतिक संसाधन, भौगोलिक एकाकीपन अथवा अलगाव जैसी चुनौतियों के साथ-साथ आर्थिक प्रगति के लिए उद्योगों के एक सीमित स्रोत पर आश्रित हैं. इन देशों में मुख़्य उद्योग पर्यटन का ही कहा जा सकता है. उपरोक्त बातों को लेकर ये देश संवेदनशील हैं. समोआ जैसे कुछ देशों ने अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता तथा स्थानीय मजबूत कृषि के दम पर मजबूती का प्रदर्शन किया है. इसके बावजूद SIDS में प्रगति की कुल रफ़्तार अपर्याप्त ही है. यहां 2015 से SDG के प्रगति की दर केवल 5.9 प्रतिशत ही रही है. यह रफ़्तार इसी इलाके के भूमिबद्ध विकासशील देशों (LLDCs) की ओर से दिखाई जा रही प्रगति के ठीक विपरीत दिखाई देती है. LLDCs ने यहां 13 प्रतिशत की सापेक्ष प्रगति दिखाई है.
ग्लोबल साउथ के ‘संघर्ष’
महामारी के कारण उपजे आर्थिक संकट ने SDG एजेंडा 2030 हासिल करने की पूरे विश्व की राह में रोड़ा अटकाया है. लेकिन वैश्विक दक्षिण, विशेषकर एशिया-प्रशांत में विकासशील और उभरते देशों के सामने यह चुनौती और भी मुश्किल हो गई है. वैश्विक दक्षिण के अनेक क्षेत्रों में लगातार विकास के बावजूद इस क्षेत्र के सामने अंदरुनी असमानता, राजनीतिक अस्थिरता और वैश्विक उत्तर की आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता जैसी विविध चुनौतियां खड़ी हैं. विश्व बैंक के अनुसार ब्याज की दरों में वृद्धि से कर्ज़ का बोझ बढ़ता है. ऐसे में शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे में होने वाला निवेश प्रभावित होता है. इसके चलते विकासशील विश्व में सामाजिक विकास पर असर पड़ता है. इसके साथ ही संसाधनों की कमी के कारण ऊर्जा संक्रमण प्रभावित होता है. इस वजह से जलवायु लक्ष्यों पर ख़तरा मंडराने लगता है. एक अनुमान है कि विकासशील देशों के सामने SDG वित्त पोषण को लेकर 1.7 ट्रिलियन अमेरिकी डालर की वार्षिक कमी देखी जा रही है. इसी प्रकार दुनिया के समक्ष SDGs को हासिल करने के लिए सालाना 4 ट्रिलियन अमेरिकी डालर की अतिरिक्त कमी भी देखी जा रही है.
वैश्विक दक्षिण के अनेक क्षेत्रों में लगातार विकास के बावजूद इस क्षेत्र के सामने अंदरुनी असमानता, राजनीतिक अस्थिरता और वैश्विक उत्तर की आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता जैसी विविध चुनौतियां खड़ी हैं.
इन चुनौतियों के अलावा 2030 एजेंडा लागू करने की राह में डाटा यानी जानकारी की अनुपलब्धता एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. यह बात विशेषत: वैश्विक दक्षिण पर लागू होती है. ESCAP सदस्य देशों के अनुसार औसतन केवल 52 फ़ीसदी इंडिकेटर्स यानी संकेतकों में दो अथवा अधिक डाटा प्वाइंट है, जबकि एक तिहाई से ज़्यादा संकेतकों में डाटा का संपूर्णत: अभाव देखा जाता है. डाटा की उपलब्धता में इज़ाफ़े के सकारात्मक रुझान के बावजूद इसमें होने वाली प्रगति की रफ़्तार कम ही हुई है. यह देखा गया है कि बेहतर स्वास्थ्य और वेल-बिइंग (Goal 3), किफ़ायती एवं साफ़ ऊर्जा (Goal 7), लाइफ ऑन लैंड (Goal 15) को लेकर डाटा उपलब्धता में वृद्धि दर्ज़ की गई. यह वर्तमान SDG संकेतकों के हिसाब से 70 प्रतिशत तक हो गई थी. इसके विपरीत लिंग समानता (Goal 5) और शांति, न्याय और मजबूत संगठन (Goal 16) को लेकर बेहद कम डाटा उपलब्ध है. इसी वजह से एशिया-प्रशांत क्षेत्र में SDGs हासिल करने के लिए राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर डाटा साझा करने के लिए समन्वय करना ज़रूरी हो गया है.
चित्र1: एशिया-प्रशांत क्षेत्र में डाटा उपलब्धता में असमानता
स्रोत: एशिया एंड द पसिफ़िक SDG प्रोग्रेस रिपोर्ट 2024, UN इकोनॉमिक एंड सोशल कमीशन फॉर एशिया एंड द पसिफ़िक (ESCAP)
भारत और क्षेत्रीय विकास
अपनी रणनीतिक भौगोलिक स्थिति, बढ़ती अर्थव्यवस्था और मजबूत उभरती विदेश नीति के साथ इस गतिशील क्षेत्र में भारत सतत विकास का महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनकर उभरा है. भारत ने SDGs हासिल करने में अहम प्रगति कर ली है. यह बात विशेषत: गरीबी उन्मूलन, उचित काम उपलब्ध करवाने, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, जलवायु कार्रवाई और भूमि पर जीवन के मामले में लागू होती है. लक्षित सरकारी हस्तक्षेप जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला, स्वच्छ भारत, जनधन, आयुष्मान भारत- PMJAY, आयुष्मान आरोग्य मंदिर, PM-मुद्रा योजना, सौभाग्य और स्टार्ट अप इंडिया ने प्रगति की रफ़्तार को तेज किया है.
टेबल1: बैकडेटेड SDG इंडिकेटर्स इंडेक्स स्कोर्स
Year |
India |
World |
|
SDG Score |
Percentage Change |
SDG Score |
Percentage Change |
2000 |
52.19 |
|
57.77 |
|
2001 |
52.41 |
0.43 |
58.04 |
0.47 |
2002 |
52.27 |
-0.26 |
58.25 |
0.36 |
2003 |
52.67 |
0.75 |
58.47 |
0.38 |
2004 |
52.66 |
-0.01 |
58.75 |
0.47 |
2005 |
53.12 |
0.88 |
59.20 |
0.77 |
2006 |
53.43 |
0.59 |
59.49 |
0.49 |
2007 |
53.88 |
0.83 |
59.95 |
0.78 |
2008 |
53.97 |
0.17 |
60.20 |
0.42 |
2009 |
53.77 |
-0.37 |
60.55 |
0.57 |
2010 |
54.81 |
1.94 |
61.12 |
0.95 |
2011 |
55.78 |
1.77 |
61.54 |
0.68 |
2012 |
56.26 |
0.86 |
61.96 |
0.69 |
2013 |
56.63 |
0.65 |
62.35 |
0.63 |
2014 |
57.87 |
2.19 |
63.14 |
1.27 |
2015 |
58.45 |
0.99 |
63.51 |
0.57 |
2016 |
58.89 |
0.76 |
63.82 |
0.49 |
2017 |
59.80 |
1.54 |
64.35 |
0.83 |
2018 |
60.53 |
1.23 |
64.77 |
0.66 |
2019 |
61.57 |
1.72 |
65.30 |
0.81 |
2020 |
62.28 |
1.15 |
65.69 |
0.60 |
2021 |
62.86 |
0.93 |
65.87 |
0.26 |
2022 |
63.57 |
1.13 |
66.15 |
0.44 |
2023 |
63.99 |
0.65 |
66.30 |
0.22 |
Average |
56.82 |
23 percent increase from 2000 to 2023 |
61.94 |
15 percent increase from 2000 to 2023 |
स्रोत: सस्टेनेबल डेवलपमेंट रिपोर्ट 2024, सस्टेनेबल डेवलपमेंट सोल्यूशंस नेटवर्क (SDSN)
कूटनीतिक स्तर पर भारत ने बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्नीकल एंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन (BIMSTEC), ASEAN रीजनल फोरम (ARF) तथा इंडियन ओशियन रिम एसोसिएशन (IORA) जैसे क्षेत्रीय मंचों के साथ बातचीत की तैयारी दर्शायी है ताकि इस क्षेत्र के समक्ष मौजूद चुनौतियों का मिलकर विस्तार से मुकाबला किया जा सके. इसके अलावा भारत ने द्विपक्षीय तथा बहुराष्ट्रीय कारोबार समझौते करते हुए एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक एकीकरण और विकास सहयोग को मजबूत करने की दिशा में काम किया है. घरेलू क्षमता वृद्धि के लिए सूचना प्रौद्योगिकी को साझा करना, डिजिटल सोल्यूशंस पर मिलकर काम करना भारत की प्राथमिकताओं में शामिल है. हिंद महासागर में भारत ब्लू इकोनॉमी तथा स्थिरता के लिए चुनौती बनने वाली पर्यावरणीय चिंताओं से निपटने के लिए समुद्री स्तर पर भी लगातार सक्रिय है.
अंतत: एशिया-प्रशांत के कुछ देशों ने लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में अपनी प्रतिबद्धता जताई है. उनकी प्रगति ही डाटा की बढ़ी हुई गुणवत्ता और बेहतर डाटा प्रबंधन की ओर इशारा करते हैं. इसी वजह से नीति पर अमल करना सुगम हो रहा है. इस जटिल परिदृश्य में विशेष लक्ष्यों को क्रमबद्ध करना आवश्यक है. ये लक्ष्य देश विशेष को ध्यान में रखकर तय किए जाने चाहिए. इसके बाद इन्हें हासिल करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए. इसके लिए विशेष रणनीति, सीमा-पार समन्वय और तकनीकी नवाचार का उपयोग करना ज़रूरी हो जाता है.
(सौम्या भौमिक, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.)
(तनिशा पॉल, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं.)
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