बाइडेन की चुनावी जीत के समय से सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस द्विपक्षीय संबंधों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं और हताश होकर छोटी-छोटी दया देकर ख़ुद को स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं.
बाइडेन मोहम्मद बिन सलमान या एमबीएस, जैसा कि उन्हें विदेश नीति के समुदाय में कहा जाता है, के आलोचक रहे हैं और उन्होंने सऊदी साम्राज्य को “ख़ारिज” किया था. बाइडेन ने कहा था कि वो सऊदी राजघराने को मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में आरोपों से मुक्त नहीं होने देंगे और वो हथियार बेचना बंद करेंगे जो सऊदी अरब यमन में गिराता है. बाइडेन ने ये भी एलान किया है कि वो सऊदी अरब के दुश्मन ईरान के साथ परमाणु समझौता फिर से करेंगे.
यमन के युद्ध में सऊदी अरब के दखल को, जो उसके लिए त्रासदी साबित हुआ, व्यापक तौर पर एमबीएस की ग़लती माना जाता है. सऊदी साम्राज्य का मानवाधिकार रिकॉर्ड भी बद से बदतर हुआ है क्योंकि एमबीएस ने महिला मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी का आदेश दिया और उन पर असंतुष्ट पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या का आदेश देने का भी आरोप है. बाइडेन सीआईए की उस रिपोर्ट को भी सार्वजनिक कर सकते हैं जिसमें ख़ाशोज्जी की हत्या के लिए एमबीएस को दोषी पाया गया है.
बाइडेन ने ये भी एलान किया है कि वो सऊदी अरब के दुश्मन ईरान के साथ परमाणु समझौता फिर से करेंगे.
बाइडेन की जीत के बाद, सऊदी साम्राज्य को लेकर बाइडेन के नज़रिए में सख़्ती को देखते हुए, एमबीएस ने नये अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ अच्छे संबंध बनाने के लिए कई क़दम उठाए हैं.
सऊदी साम्राज्य का बदलता रुख़
सबसे पहले, सऊदी की आतंक निरोधी अदालत ने जिस महिला अधिकार कार्यकर्ता लुजैन अल-हथलौल को पांच साल आठ महीने क़ैद की सज़ा सुनाई थी, उनकी क़रीब आधी सज़ा को निलंबित कर दिया गया. फरवरी महीने में उन्हें जेल से रिहा भी कर दिया गया. हालांकि लुजैन को अभी भी तीन साल पाबंदियों में रहना होगा जिस दौरान उन्हें किसी भी “कथित ग़ैर-क़ानूनी” गतिविधि के लिए गिरफ़्तार किया जा सकता है. उन पर 5 साल की यात्रा पाबंदी भी रहेगी.
अमेरिकी-सऊदी डॉक्टर वलीद अल-फ़ितैही की सज़ा भी आधी कर दी गई है. उन्हें 2017 में एमबीएस के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के तहत हिरासत में लिया गया था और छह साल जेल की सज़ा दी गई थी. सऊदी हुकूमत ने वलीद पर मुस्लिम ब्रदरहुड से हमदर्दी का आरोप लगाया था. मुस्लिम ब्रदरहुड को सऊदी राजघराना आतंकी संगठन मानता है.
2013 से ईएसओएचआर सऊदी अरब में मौत की सज़ा पर नज़र रख रहा है. उस वक़्त से ये मौत की सज़ा का सबसे कम आंकड़ा है. 2019 में 180 से ज़्यादा लोगों को मौत की सज़ा दी गई थी.
इसके अलावा सऊदी सरकार के मानवाधिकार उल्लंघन पर नज़र रखने वाले कार्यकर्ताओं के समूह ने ये पाया है कि देश में मौत की सज़ा में कमी आई है. मानवाधिकार के लिए यूरोपीय-सऊदी संगठन (ईएसओएचआर) के मुताबिक़ सऊदी सरकार ने 2020 में 27 लोगों को मौत की सज़ा दी. 2013 से ईएसओएचआर सऊदी अरब में मौत की सज़ा पर नज़र रख रहा है. उस वक़्त से ये मौत की सज़ा का सबसे कम आंकड़ा है. 2019 में 180 से ज़्यादा लोगों को मौत की सज़ा दी गई थी.
क़तर के मुद्दे पर भी एमबीएस ने दी ढील
क़तर के मुद्दे पर भी एमबीएस ने ढील दी. जुलाई 2017 में सऊदी अरब ने अपने सहयोगी संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ मिलकर क़तर से राजनयिक संबंध तोड़ लिए. ऐसा करके क़तर को ईरान के साथ संबंध गहरा करने और कथित तौर पर मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन करने की सज़ा दी गई. दिसंबर 2020 में यूएई की आपत्ति के बावजूद सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस क़तर के साथ विवाद के समाधान और व्यापार और यात्रा को खोलने के लिए तैयार हो गए. क़तर के साथ विवाद के समाधान की शुरुआत को एमबीएस की तरफ़ से बाइडेन को ये दिखाने की कोशिश माना जा रहा है कि वो अब अनुभवी हो गए हैं और मतभेदों का निपटारा परिपक्व तरीक़े से कर सकते हैं.
इसके फ़ौरन बाद क़तर ने सऊदी अरब और तुर्की के बीच मध्यस्थता की पेशकश की. तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के प्रस्ताव को “बेहद फ़ायदेमंद” बताया और यहां तक कि ये उम्मीद भी जताई कि इससे “सऊदी अरब और तुर्की के बीच मेल-मिलाप का रास्ता भी तैयार हो सकता है.” ख़बरों के मुताबिक़ अर्दोआन ने कहा कि “हम उम्मीद करते हैं कि खाड़ी सहयोग में हमारी स्थिति फिर से बहाल हो जाएगी. इससे खाड़ी सहयोग मज़बूत होगा.”
दो ताक़तों के बीच घनिष्ठता से इस क्षेत्र का भविष्य काफ़ी हद तक बदल जाएगा लेकिन इससे अमीरात अकेला पड़ जाएगा. फिलहाल तो ये वास्तविक नतीजे से ज़्यादा उम्मीद की तरह दिख रहा है. ऐसा नहीं लगता कि तुर्की के साथ सऊदी अरब दोस्ती करेगा क्योंकि तुर्की मुस्लिम ब्रदरहुड के राजनीतिक इस्लामाबाद का सबसे बड़ा समर्थक है और जिसे एमबीएस राजघराने के लिए अभिशाप मानते हैं.
दो ताक़तों के बीच घनिष्ठता से इस क्षेत्र का भविष्य काफ़ी हद तक बदल जाएगा लेकिन इससे अमीरात अकेला पड़ जाएगा.
कई लोगों को डर है कि मानवाधिकार पर सऊदी अरब की रियायत भी बस दिखावे के लिए है. हालांकि एमबीएस ने महत्वपूर्ण सामाजिक सुधार किए हैं जो नौजवानों को संगीत समारोहों का आनंद लेने और लड़के-लड़कियों को ज़्यादा खुले रूप से मिलने की इजाज़त देते हैं लेकिन असंतोष की जगह कम हो गई है. कई नौजवान सऊदी कार्यकर्ता उत्पीड़न के डर से देश छोड़कर चले गए हैं.
एमबीएस के उदय से पहले मानवाधिकार कार्यकर्ता दबी ज़ुबान में भी क़ानूनी सुधार की मांग करते थे. अब वो ऐसा नहीं कर सकते. एमबीएस के चाचा मोहम्मद बिन नायफ़, जो अल क़ायदा के ख़िलाफ़ सहयोग के मामले में पश्चिमी देशों के लिए प्रमुख व्यक्ति थे, अभी भी नज़रबंद हैं और उनके बारे में कई महीनों से कुछ सुना नहीं गया है.
सऊदी अरब के सामने बड़ी चुनौती
बाइडेन के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद उनके सामने एक बड़ी चुनौती है: कारोबार को नुक़सान पहुंचाए बिना सऊदी राजघराने से कैसे निपटें. कई अमेरिकी कंपनियां एमबीएस के सपनों के शहर नियोम में निवेश कर रही हैं जो उड़ते रोबोट, नक़ली चांद और रेगिस्तान में हरे-भरे शहर का वादा करता है.
ख़बरों के मुताबिक़ बाइडेन की टीम चाहेगी कि ईरान के साथ परमाणु समझौते पर अगली बातचीत में उन्हें भी शामिल किया जाए
ऐसा लगता है कि सऊदी और अमीरात ने पहले ही बहुत ज़्यादा रियायत दे दी है. ख़बरों के मुताबिक़ बाइडेन की टीम चाहेगी कि ईरान के साथ परमाणु समझौते पर अगली बातचीत में उन्हें भी शामिल किया जाए. (जब ओबामा ने ईरान के साथ गुप्त वार्ता की और सऊदी अरब और यूएई को इससे बाहर रखा था तो दोनों देश चिढ़ गए थे.)
बाइडेन के सत्ता संभालने के बाद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने अभियान चलाकर सऊदी अरब को दंडित करने और उसे अमेरिकी हथियार न बेचने की मांग बाइडेन से की. लेकिन अमेरिका की हथियार लॉबी कार्यकर्ताओं के मुक़ाबले काफ़ी मज़बूत है. ये देखा जाना बाक़ी है कि बाइडेन ने जो कहा वो करेंगे या वो ऐसा रास्ता चुनेंगे जो अमेरिकी कारोबार को ज़्यादा पसंद आता है.
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