-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
आने वाले महीनों के दौरान अफ़ग़ानिस्तान में रूस अपने सुरक्षा और सामरिक हितों को संतुलित करेगा. इसके साथ ही वो अपना आर्थिक असर बढ़ाने की कोशिश करेगा.
अगस्त 2021 में काबुल पर तालिबान के कब्ज़े के बाद अफ़ग़ानिस्तान में पश्चिमी देशों का असर ख़त्म होने और चीन एवं रूस के लिए ‘ग्रेवयार्ड ऑफ एंपायर्स’ (साम्राज्यों के कब्रिस्तान) में एक अवसर को लेकर चर्चा शुरू हो गई. तालिबान की जीत के फौरन बाद अफ़ग़ानिस्तान के दूसरे पड़ोसियों के विपरीत रूस ने काबुल में अपने दूतावास को बंद नहीं किया और रूस के कई अधिकारियों ने अफ़ग़ानिस्तान के साथ-साथ रूस के लिए तालिबान के शासन के बारे में एक पॉज़िटिव सोच बनाये रखी.
इस्लामिक एमिरेट ऑफ अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्रालय के उप प्रवक्ता के मुताबिक रूस के एम्बेसडर ने मुत्ताक़ी को आने वाले समय में मॉस्को फॉर्मेट कंसल्टेशन के बारे में जानकारी दी और उन्हें इस बैठक के लिए न्योता दिया.
वैसे तो अतीत और वर्तमान, यानी मौजूदा यूक्रेन संकट, के बोझ का असर अफ़ग़ानिस्तान को लेकर किसी भी तरह की रूसी सोच पर भारी पड़ेगा लेकिन आने वाले महीनों में रूस इस इलाके में अपने सुरक्षा एवं सामरिक हितों को संतुलित करने के साथ-साथ अपने आर्थिक प्रभाव का विस्तार करने की कोशिश करेगा.
जुलाई 2023 में अफ़ग़ानिस्तान में रूस के राजदूत दिमित्री झिरनोव ने इस्लामिक एमिरेट ऑफ अफ़ग़ानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्ताक़ी से मुलाकात की. इस्लामिक एमिरेट ऑफ अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्रालय के उप प्रवक्ता के मुताबिक रूस के एम्बेसडर ने मुत्ताक़ी को आने वाले समय में मॉस्को फॉर्मेट कंसल्टेशन के बारे में जानकारी दी और उन्हें इस बैठक के लिए न्योता दिया. रूस की सरकारी न्यूज़ एजेंसी तास ने कंसल्टेशन के आने वाले चरण के दौरान तालिबान को न्योता देने की बात का ज़िक्र नहीं किया और केवल इतना कहा कि दोनों पक्षों के बीच मॉस्को फॉर्मेट को लेकर ‘सिर्फ चर्चा’ हुई.
काबुल पर तालिबान के कब्ज़े के कुछ महीनों के बाद रूस ने अक्टूबर 2021 में मॉस्को फॉर्मेट कंसल्टेशन के तीसरे एडिशन का आयोजन किया था. इसमें 10 क्षेत्रीय देशों ने भागीदारी की और अफ़ग़ानिस्तान की नुमाइंदगी के लिए तालिबान की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल आया. नवंबर 2022 में आयोजित कंसल्टेशन के अगले एडिशन के दौरान तालिबान को न्योता नहीं दिया गया था. सभी भागीदार देशों ने तालिबान पर इस बात के लिए दबाव डाला कि वो एक समावेशी सरकार बनाये और मानवाधिकार का सम्मान करे. इन देशों ने आतंकवाद से मुकाबले के लिए क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला. इस तरह की कूटनीतिक बैठकों के दौरान क्षेत्र के लिए एक नेतृत्व करने वाले देश के रूप में रूस के हितों को मज़बूत किया जाता है. अमेरिका या किसी भी पश्चिमी देश को इस बातचीत से साफ तौर पर अलग रखने का मक़सद संकट को लेकर एक अधिक क्षेत्रीय दृष्टिकोण को मज़बूत करना है. इस साल की बातचीत को लेकर रूस से न्योता मिलने के बारे में तालिबान के प्रवक्ता के दावे का उद्देश्य पहले से ही बैठक में अपनी जगह सुरक्षित करना हो सकता है.
तालिबान की तरफ रूस की शुरुआती पहल न सिर्फ़ अफ़ग़ानिस्तान से 20 साल के बाद नेटो की वापसी को लेकर उसके उत्साह की वजह से की गई बल्कि इस कारण से भी की गई कि तालिबान के साथ रूस का काफी पुराना अनौपचारिक कूटनीतिक संबंध रहा है.
अफ़ग़ानिस्तान के भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारी बदलाव को लेकर रूस का नज़रिया नपा-तुला और व्यावहारिक था. काबुल में ज़्यादातर दूतावासों से हटकर रूस के कूटनीतिक मिशन को बंद नहीं किया गया. रूस ने नई तालिबान सरकार के स्वागत के लिए गर्मजोशी के शब्द भी बोले और रूस के राजदूत झिरनोव ने तालिबान के कब्ज़े के 48 घंटे के भीतर उसके एक नुमाइंदे के साथ बैठक के दौरान हिंसा में नाटकीय कमी को स्वीकार किया. इस तरह की शुरुआती भागीदारी से रूस के जवाब को पश्चिमी देशों से अलग करने का संकेत दिया गया, बताया गया कि रूस आर्थिक प्रतिबंध लगाने और नई सरकार को अलग-थलग करने के पश्चिमी देशों की राह पर नहीं चलेगा. रूस ने मज़बूती से दा अफ़ग़ानिस्तान बैंक (अफ़ग़ानिस्तान का सेंट्रल बैंक) की संपत्तियों को ज़ब्त करने की निंदा की और देश को स्थिर करने के लिए उन संपत्तियों को तुरंत जारी करने की मांग की. रूस ने अफगान नागरिकों को मुश्किल में धकेलने के लिए आर्थिक प्रतिबंधों की भी आलोचना की.
तालिबान की तरफ रूस की शुरुआती पहल न सिर्फ़ अफ़ग़ानिस्तान से 20 साल के बाद नेटो की वापसी को लेकर उसके उत्साह की वजह से की गई बल्कि इस कारण से भी की गई कि तालिबान के साथ रूस का काफी पुराना अनौपचारिक कूटनीतिक संबंध रहा है. 2011 तक रूस ने आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध में साजो-सामान और खुफिया समर्थन मुहैया कराया. तालिबान के साथ रूस का जुड़ाव भी उस समय तक बेहद सीमित था. 2011 में जब पश्चिमी देशों ने अफ़ग़ानिस्तान में अपनी भागीदारी को कम करने की इच्छा जताई तब जाकर रूस ने तालिबान के साथ भागीदारी पर विचार किया. ISKP (इस्लामिक स्टेट खोरासान प्रॉविंस) की क्षमता में बढ़ोतरी के पारस्परिक ख़तरे और आतंकवाद को लेकर अपनी चिंता की वजह से रूस ने 2015 में तालिबान के साथ बातचीत का तौर-तरीका स्थापित किया. अमेरिका की कुछ इंटेलिजेंस रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि ISIS और अल-क़ायदा से लड़ाई की आड़ में ताजिक सीमा के पार तालिबान तक रूस के हथियारों की तस्करी की गई.
मार्च 2023 में जारी अपनी विदेश नीति के डॉक्ट्रिन में रूस ने सहयोग के लिए अफ़ग़ानिस्तान को यूरेशिया के क्षेत्र में एकीकृत करने के अपने इरादे को जताया था. ये संदर्भ वैसे तो व्यापक था लेकिन अफ़ग़ानिस्तान को अपने रणनीतिक क्षेत्र में शामिल करने की रूस की इच्छा को उजागर करता है, साथ ही यूक्रेन संकट के बाद अफ़ग़ानिस्तान के बढ़े हुए महत्व के बारे में भी बताता है.
पश्चिम देशों के ऊर्जा बाज़ार पर रूस की बढ़ती निर्भरता ने उसे दूसरे देशों से जुड़ने और उन देशों के बाज़ार तक पहुंचने को मजबूर कर दिया है ताकि वो अपने प्रभाव क्षेत्र की मज़बूती सुनिश्चित कर सके.
रूस के लिए अफ़ग़ानिस्तान की अहमियत भौगोलिक कारणों से भी है. चूंकि अफ़ग़ानिस्तान मध्य एशियाई गणराज्यों (CAR) के साथ अपनी सीमा साझा करता है और जिन्हें रूस अपने प्रभाव क्षेत्र के तहत मानता है, ऐसे में अफ़ग़ानिस्तान में किसी भी तरह की अस्थिरता का क्रेमलिन के लिए नकारात्मक नतीजे हो सकते हैं. रूस की मुख्य चिंता है मध्य एशियाई गणराज्यों के ज़रिये अफ़ग़ानिस्तान से आतंकवाद और ड्रग्स के ख़तरे की अपने क्षेत्र में घुसपैठ में बढ़ोतरी. साथ ही रूस के आर्थिक हित भी हैं क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान में तेल, सोना और दुर्लभ खनिज जैसे संसाधनों का अभी तक दोहन नहीं किया गया है. आर्थिक प्रतिबंधों से परेशान रूस अफ़ग़ानिस्तान को एक संभावित व्यापार साझेदार के तौर पर देखता है. तालिबान ने रूस के साथ पिछले साल एक अस्थायी व्यापार समझौता किया था. ये गैसोलीन, गैस और गेहूं पाने के लिए तालिबान का पहला बड़ा अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक समझौता था.
रूस की बात करें तो पिछले दो साल उसके लिए बेशुमार चुनौतियां लेकर आए हैं. तालिबान की वापसी ने जहां रूस के पूर्वी पड़ोस में हालात बदले वहीं यूक्रेन पर हमले ने यूरोप में यथास्थिति में परिवर्तन किया. रूस अपने हमले को लेकर उम्मीदों से परे नतीजों से निपटने की कोशिश कर रहा है लेकिन पश्चिमी देशों की पाबंदियों ने ऊर्जा से जुड़ी उसकी असुरक्षा को बढ़ा दिया है. पश्चिम देशों के ऊर्जा बाज़ार पर रूस की बढ़ती निर्भरता ने उसे दूसरे देशों से जुड़ने और उन देशों के बाज़ार तक पहुंचने को मजबूर कर दिया है ताकि वो अपने प्रभाव क्षेत्र की मज़बूती सुनिश्चित कर सके. जैसे-जैसे अमेरिका और रूस के बीच टकराव बढ़ रहा है, वैसे-वैसे ये रूस के लिए ज़रूरी होता जा रहा है.
अफ़ग़ानिस्तान के लिए रूस के विशेष दूत ज़मीर काबुलोव ने क्षेत्रीय ताकतों जैसे कि भारत, चीन, ईरान, पाकिस्तान और मध्य एशिया के देशों की अहमियत पर ज़ोर दिया. रूस के मुताबिक ये ऐसे देश हैं जो अमेरिका और उसके सहयोगियों के द्वारा सबको छोड़कर चलने की भूमिका के उलट समावेशी ढंग से संकट का समाधान करने में मदद करेंगे. ऊपर बताये गये देशों के साथ तालमेल से काम करने के इस संदर्भ को रूस के द्वारा कई बार दोहराया गया है. एक क्षेत्रीय दृष्टिकोण तैयार करने की सलाह के माध्यम से रूस अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के शासकों को अपनी बात मनवाने के लिए आम राय पर आधारित नज़रिये को प्राथमिकता देना चाहता है. रूस इन देशों के साथ मेज़बान या भागीदार के रूप में ज़्यादातर क्षेत्रीय विचार-विमर्श के मंचों पर काम कर रहा है जिनमें मॉस्को फॉर्मेट, शंघाई सहयोग संगठन (SCO), टुंशी इनिशिएटिव ऑफ नेबरिंग कंट्रीज़ ऑफ अफ़ग़ानिस्तान, इत्यादि शामिल हैं. सहयोग की ये आवश्यकता रूस के द्वारा अपने हितों को प्राप्त करने की दिशा में इन देशों के महत्व का एहसास होने की वजह से है.
अफ़ग़ानिस्तान में रूस के दीर्घकालीन हित चीन और ईरान के साथ मिलते हों या नहीं लेकिन इन तीनों देशों का साझा लक्ष्य है इस क्षेत्र में अमेरिका के बचे हुए असर को कम करना. अफ़ग़ानिस्तान के हालात पर चर्चा करने के लिए पाकिस्तान को जोड़कर तीनों देश नियमित तौर पर बैठक कर रहे हैं. ये सभी देश अफ़ग़ानिस्तान से पैदा होने वाले आतंकवाद के ख़तरे को लेकर साझा चिंता रखते हैं. अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद चीन और रूस से उम्मीद की जा रही थी कि वो वहां की खाली जगह को भरेंगे. चीन ने भी अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे को हल करने में रूस को शामिल करने का स्वागत किया है. रूस और ईरान 2018 में शांति प्रक्रिया की शुरुआत के समय से सहयोग कर रहे हैं. ईरान और रूस एक व्यापक सहयोग समझौते पर दस्तखत करने के अंतिम चरण में भी हैं. रूस और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तालमेल का पता जून में दोनों देशों के बीच आयोजित बैठक से भी चलता है जहां आतंकवाद, ड्रग्स की तस्करी और संगठित अपराध के मुद्दों पर सहयोग के लिए प्रतिबद्धता जताई गई थी. रूस के उप विदेश मंत्री और पाकिस्तान की विदेश राज्य मंत्री एवं अफ़ग़ानिस्तान में उनके प्रतिनिधि के बीच हाल ही में आयोजित एक मीटिंग के दौरान दोनों पक्ष अफगान मुद्दे को हल करने में सहयोग के लिए भी सहमत हुए.
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल ने फरवरी में मॉस्को का दौरा किया जहां उन्होंने रूस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार निकोलाई पत्रुशेव के साथ-साथ रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की.
वैसे तो तालिबान के साथ भागीदारी की सीमा को लेकर मतभेद की वजह से भारत के साथ रूस के तालमेल पर असर पड़ सकता है लेकिन आतंकवाद को लेकर साझा चिंताओं से सहयोग में मदद मिलेगी. भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल ने फरवरी में मॉस्को का दौरा किया जहां उन्होंने रूस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार निकोलाई पत्रुशेव के साथ-साथ रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की. दोनों देश सहयोग के लिए सहमत हुए जिसमें आतंकी संगठनों से निपटने के लिए खुफिया और सुरक्षा तालमेल को बढ़ाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया. हाल ही में संपन्न SCO के वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान उन अवसरों और चुनौतियों के बारे में चर्चा हुई जिनका सामना क्षेत्र के देश आगे बढ़ने के दौरान करेंगे.
रूस के लिए अफ़ग़ानिस्तान निकट भविष्य में एक सामरिक दुविधा बना रहेगा. तालिबान के साथ रूस जहां अपने दोहरे नज़रिये को जारी रखेगा वहीं आतंकी ख़तरों को लेकर अपनी चिंता की वजह से वो सावधान भी रहेगा. वैसे तो बाकी देशों की तरह रूस भी तालिबान से अनुरोध कर रहा है कि वो जातीय रूप से समावेशी सरकार का गठन करे लेकिन वो तालिबान को मान्यता नहीं मिलने को उसके साथ व्यापक सहयोग की राह में रुकावट के तौर पर नहीं देखता है. क्षेत्र के दूसरे देशों के साथ सहयोग करने और तालिबान के कब्ज़े के बाद के हालात में अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका की किसी भी भागीदारी को दरकिनार करने की रूस की कोशिशें भी जारी रहेंगी लेकिन चूंकि क्षेत्र के अधिकतर देशों के हित काफी हद तक एक जैसे नहीं हैं, ऐसे में क्षेत्रीय सर्वसम्मति बनाना एक मुश्किल काम होगा. दूसरी तरफ तालिबान अपने बढ़ते अलगाव की वजह से रूस का साथ चाहेगा जो कि रूस के राजदूत और अफ़ग़ानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री की बैठक के दौरान दिखा भी था.
शिवम शेखावत ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज प्रोग्राम में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
भारतीय सिविल सेवा (2020 बैच) की अधिकारी अंजलि बिरला रेल मंत्रालय में काम कर रही हैं. अंजलि ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में ग्रैजुएशन किया है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Shivam Shekhawat is a Junior Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. Her research focuses primarily on India’s neighbourhood- particularly tracking the security, political and economic ...
Read More +Anjali Birla is an Indian Civil Services Officer(Batch 2020) working in the Ministry of Railways and has done her graduation in Political Science from Delhi ...
Read More +