ये लेख हमारी- रायसीना एडिट 2024 सीरीज़ का एक भाग है
पश्चिमी देशों द्वारा अभूतपूर्व ढंग से अलग थलग किए जाने से मजबूर होकर रूस ने विकासशील देशों (ग्लोबल साउथ) के साथ संपर्क बढ़ाने के सफ़र की शुरुआत की है. दक्षिण एशिया ऐसा क्षेत्र है, जहां रूस लंबे समय तक एक बेहद कम सक्रिय देश रहा था, और इससे पहले उसने भारत के अलावा किसी अन्य क्षेत्रीय साझीदार के साथ अपने रिश्ते विकसित करने में ज़रा भी दिलचस्पी नहीं दिखाई थी. हालांकि, अब ये हालात बदल रहे हैं क्योंकि अब रूस, दक्षिण एशिया को अपने भू-सामरिक और आर्थिक हितों के लिहाज़ से अहम मानने लगा है. इसलिए, भारत के क़रीबी पड़ोसी देशों के साथ रूस की बढ़ती भागीदारी की और पड़ताल करने की ज़रूरत है.
यूक्रेन में युद्ध के परिणाम
दक्षिणी एशियाई देशों पर रूस और यूक्रेन युद्ध का कई तरह से असर देखने को मिला है. इसमें भू-राजनीतिक चुनौतियों से लेकर आर्थिक मुश्किलें तक शामिल हैं. इसका नतीजा ये हुआ है कि दक्षिण एशियाई देश ख़ुद को पश्चिम और रूस के बीच फंसा हुआ पा रहे हैं. हालांकि, आम तौर पर यहां के देशों ने बीच का रास्ता निकाला है. दोनों पक्षों के बीच संतुलन बिठाने का नाज़ुक काम भारत ने तो बख़ूबी किया है. लेकिन, दक्षिण एशिया में भारत के पड़ोसी देश बाहरी दबाव के आगे काफ़ी कमज़ोर स्थिति में रहे हैं, और इसीलिए उन्होंने अपनी निरपेक्षता को अलग अलग तरीक़ों से प्रदर्शित किया है.
अब ये हालात बदल रहे हैं क्योंकि अब रूस, दक्षिण एशिया को अपने भू-सामरिक और आर्थिक हितों के लिहाज़ से अहम मानने लगा है. इसलिए, भारत के क़रीबी पड़ोसी देशों के साथ रूस की बढ़ती भागीदारी की और पड़ताल करने की ज़रूरत है.
बांग्लादेश ने यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र (UN) के दो प्रस्तावों का समर्थन किया था और उसने रूस पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का बड़ी सख़्ती से पालन किया है. नेपाल ने यूक्रेन में रूस के ‘विशेष सैन्य अभियान’ की निंदा की है और उसने रूस के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र के ज़्यादातर प्रस्तावों का समर्थन भी किया है. जब नेपाल के सैनिकों के रूस और यूक्रेन, दोनों की तरफ़ से लड़ने की ख़बरें आईं, तो उसे अपने नागरिकों को रूस और यूक्रेन जाने के लेबर परमिट जारी करना रोकने को मजबूर होना पड़ा था. वैसे तो यूक्रेन में युद्ध का श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पर नाटकीय प्रभाव पड़ा था. फिर भी, उसने किसी का भी पक्ष लेने से मना कर दिया. इस संघर्ष को लेकर अन्य क्षेत्रीय देशों की तुलना में पाकिस्तान का रवैया ज़्यादा विवादास्पद रहा है. ‘सख़्त निरपेक्षता’ का पालन करने के लिए पाकिस्तान ने विश्व स्तर पर इन मसलों पर लगातार अनुपस्थित रहने की नीति अपनाई है. लेकिन, ख़बरों के मुताबिक़ पाकिस्तानी फ़ौज ने यूक्रेन को गोला बारूद मुहैया कराया है.
यूक्रेन में अपने युद्ध को लेकर रूस को पूरे दक्षिण एशिया से अलग अलग तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं. लेकिन, हाल के दिनों में उसने इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को बढ़ाया है. ये बात आधिकारिक दौरों और आर्थिक रिश्तों को दोबारा जीवित करने के प्रयासों से ज़ाहिर होती है.
राजनीतिक व्यवस्थाएं
2023 में रूस और दक्षिणी एशिया के बीच उच्च स्तर के कई दौरे हुए थे, जो रूस के ख़ास दिलचस्पी वाले देशों को दर्शाते हैं. चूंकि 2023 में भारत, G20 और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की अध्यक्षता कर रहा था, इसलिए वो रूस के मंत्रियों और सांसदों के दौरे का एक महत्वपूर्ण ठिकाना बना रहा. मिसाल के तौर पर रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने 2023 में तीन बार भारत का दौरा किया था और इसके जवाब में भारत के विदेश मंत्री डॉक्टर एस. जयशंकर भी पांच दिनों के लिए रूस के दौरे पर गए. सितंबर 2023 में सर्गेई लावरोव बांग्लादेश के दौरे पर जाने वाले रूस के पहले विदेश मंत्री बने. इस दौरे से दोनों देशों के रिश्तों में स्थायित्व और बांग्लादेश के साथ सहयोग को और आगे बढ़ाने के रूस के प्रयास ज़ाहिर होते हैं.
दिसंबर 2023 में रूस की सुरक्षा परिषद के सचिन निकोलाय पत्रुशेव ने श्रीलंका का दौरा किया और देश के नेतृत्व के साथ राजनीतिक, सुरक्षा, रक्षा और आर्थिक विषयों पर बातचीत की. रूस और श्रीलंका के बीच सुरक्षा के मसले पर सलाह मशविरा अब एक नियमित बात बन चुका है
पाकिस्तान में सियासी उलझाव और यूक्रेन को पाकिस्तान की फ़ौज के समर्थन के बावजूद, रूस और पाकिस्तान की आपसी बातचीत जारी है और हाल ही में मास्को में सामरिक स्थिरता को लेकर उच्च स्तरीय वार्ता हुई थी और रूसी फेडरेशन की काउंसिल (रूसी संसद के उच्च सदन) के एक प्रतिनिधिमंडल ने पाकिस्तान का दौरा भी किया था.
इस क्षेत्र को लेकर रूस की नीति का एक पहलू, पाकिस्तान के साथ उसका संबंध है, जो पूरी तरह से समझ में नहीं आता. तमाम दिक़्क़तों के बावजूद दोनों देशों के रिश्ते लगातार आगे बढ़ रहे हैं. पाकिस्तान में सियासी उलझाव और यूक्रेन को पाकिस्तान की फ़ौज के समर्थन के बावजूद, रूस और पाकिस्तान की आपसी बातचीत जारी है और हाल ही में मास्को में सामरिक स्थिरता को लेकर उच्च स्तरीय वार्ता हुई थी और रूसी फेडरेशन की काउंसिल (रूसी संसद के उच्च सदन) के एक प्रतिनिधिमंडल ने पाकिस्तान का दौरा भी किया था. इस प्रतिनिधि मंडल ने पाकिस्तान की सीनेट और कार्यवाहक सरकार के सदस्यों के से मुलाक़ात के साथ साथ, 8 फ़रवरी को पाकिस्तान में हुए आम चुनावों में अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक के तौर पर भी शामिल हुए थे.
घटनाओं में आए दिलचस्प बदलावों के तहत अब रूस इस क्षेत्र के नाज़ुक लोकतंत्रों को बाहरी आलोचना से बचाने के कवच के तौर पर प्रचारित कर रहा है. जहां बांग्लादेश और पाकिस्तान के पश्चिमी साझीदारों ने दोनों देशों में हुए चुनावों को लेकर आशंकाएं ज़ाहिर की थीं. वहीं, रूस ने दोनों देशों के चुनावों का समर्थन किया था. ऐसा लगता है कि इस रूख़ के ज़रिए रूस एक साथ दो मक़सद साधना चाहता है: पहला तो ‘बाहरी दख़लंदाज़ी’ का विरोध करना और आलोचना के शिकार देश और पश्चिमी जगत के बीच दरार पैदा करना और दूसरा भविष्य में रूस में होने वाले चुनावों के लिए इस क्षेत्र का समर्थन हासिल करना.
नए आर्थिक संबंध
दक्षिणी एशिया में रूस आयात और निर्यात के नए अवसरों की तलाश कर रहा है. ख़ास तौर से पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए सख़्त प्रतिबंधों और आपूर्ति श्रृंखलाओं की कमज़ोरी से पार पाने के लिए. यूक्रेन में अपने युद्ध के प्रभावों को कम करने के लिए रूस ने इस क्षेत्र के देशों को कई वस्तुएं उपलब्ध कराने का प्रस्ताव दिया है. इनमें मुख्य रूप से ऊर्जा के संसाधन, उर्वरक, अनाज और सूरजमुखी का तेल शामिल हैं.
ऊर्जा क्षेत्र, रूस की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख हिस्सा है और वो अन्य देशों के साथ उसके संबंधों में अहम भूमिका निभाता है. इस समय भारत, रूस से कच्चे तेल का सबसे बड़ा ख़रीदार है और उसकी कुल आपूर्ति का 40 प्रतिशत अकेले रूस से आ रहा है. वैसे तो रूस, बांग्लादेश और श्रीलंका को भी अपने कच्चे तेल के आयातक देशों में शामिल करने की संभावनाएं तलाश रहा है. लेकिन, अपनी रिफाइनरियों की तकनीकी कमज़ोरियों की वजह से श्रीलंका और बांग्लादेश रूस का कच्चा तेल मुख्य रूप से भारत या फिर पश्चिमी एशिया के ज़रिए हासिल करते हैं.
व्यापक बातचीत के बाद पाकिस्तान ने भी कारोबारी आधार पर रूस से कच्चा तेल ख़रीदने का समझौता कर लिया है. अब तक पाकिस्तान को रूस से बहुत कम कच्चा तेल हासिल हो रहा था और दोनों पक्षों के बीच लंबी अवधि का कोई समझौता अनिश्चितता के अंधेरे में है. इसकी बड़ी वजह पाकिस्तान के बंदरगाहों की सीमित क्षमता है, जो आपूर्ति से जुड़े मामलों और क़ीमत तय करने की प्रक्रिया को और जटिल बना देती है.
दक्षिणी एशिया में रूस की दिलचस्पी का एक और प्रमुख क्षेत्र असैन्य परमाणु ऊर्जा का है, क्योंकि रूस इस क्षेत्र में दो परमाणु बिजलीघर (NPP) बना रहा है और नए बाज़ारों की तलाश भी कर रहा है. भारत में रूस की सबसे बड़ी सरकारी कंपनी रोसाटोम ने कुदनकुलम के परमाणु बिजलीघर में दो इकाइयां निर्मित की हैं. 2014 में इन दोनों इकाइयों को बिजली ग्रिड से जोड़ दिया गया था और दोनों ही अपनी पूरी क्षमता से बिजली बनाने लगी थीं. रोसाटोम चार और इकाइयों का निर्माण पूरा करने के क़रीब है, बांग्लादेश में यही रूसी कंपनी रूपपुर में परमाणु बिजलीघर बना रही है और इसकी पहली इकाई के 2024 के अंत तक काम शुरू कर देने की संभावना है. हाल ही में रूस ने श्रीलंका में भी एक छोटा परमाणु बिजलीघर बनाने का प्रस्ताव रखा है. अभी इस मसले पर बातचीत चल रही है. एक विकल्प ज़मीन पर न्यूक्लियर प्लांट लगाने का है, तो दूसरा एक तैरता हुआ बिजलीघर बनाने का, या फिर दोनों ही विकल्प एक साथ लागू करने के हैं. जहां तक भारत की बात है, तो उसका बिजली क्षेत्र तुलनात्मक रूप से अधिक विविधता भरा है और परमाणु बिजली की हिस्सेदारी बहुत कम है. लेकिन, बांग्लादेश या फिर संभावित रूप से श्रीलंका में नए परमाणु बिजलीघरों के निर्माण से इन देशों में रूस की आर्थिक और यहां तक कि राजनीतिक हैसियत में भी काफ़ी इज़ाफ़ा हो जाएगा.
इस क्षेत्र को लेकर रूस की आर्थिक नीति का एक प्रमुख भाग कृषि क्षेत्र भी है. इस क्षेत्र के साथ रूस के कारोबार में उर्वरकों और कृषि उत्पादों की हिस्सेदारी अच्छी ख़ासी है. 2023/24 के पहले हिस्से में यूरेशियाई आर्थिक संघ (EEU) के बाहर बांग्लादेश, रूस से अनाज का तीसरा सबसे बड़ा आयातक देश रहा था. रूस से अनाजों का एक और बड़ा निर्यात पाकिस्तान भी है. अब दोनों देशों के कुल द्विपक्षीय व्यापार का 75 प्रतिशत हिस्सा अनाज का निर्यात आयात ही है.
चीन की शिरकत के बग़ैर दक्षिण एशिया के साथ रूस के रिश्ते बढ़ाने के प्रयासों का कामयाब होना नामुमकिन था.
वैसे तो ज़्यादातर देशों ने रूस के ख़िलाफ़ लगे प्रतिबंधों को लागू करने में बहुत सावधानी बरती है. लेकिन, ये देश रूस द्वारा पाबंदियों से पार पाने में भी सहायक साबित हुए हैं. मिसाल के तौर पर मई 2022 के बाद से रूस को सेमीकंडक्टर के निर्यात के लिए मालदीव एक बड़ा और महत्वपूर्ण केंद्र साबित हुआ है और इस मामले में वो चीन के बाद दूसरे स्थान पर है. चीन की शिरकत के बग़ैर दक्षिण एशिया के साथ रूस के रिश्ते बढ़ाने के प्रयासों का कामयाब होना नामुमकिन था: इस समय रूस की कंपनियों के साथ लेन-देन का एक बड़ा हिस्सा- फिर चाहे वो ऊर्जा हो या कृषि- वो युआन में होता है और चीन के सीमा पार के बैंकों के बीच भुगतान व्यवस्था (CIPS) के ज़रिए किया जाता है. ऐसा लगता है कि चीन के वित्तीय मूलभूत ढांचे का इस्तेमाल रूस के लिए इस क्षेत्र की आर्थिक परियोजनाओं की जीवन-रेखा भी साबित हुआ है और चीन की नेकनीयती का नतीजा भी है.
पूरे दक्षिणी एशिया के साथ रूस के संपर्क, क्षेत्रीय ताक़तों के साथ नियमित कूटनीतिक संवाद बनाए रखने के उसके इरादे की झलक दिखाते हैं. ऐसा लगता है कि विश्व स्तर पर अलग थलग पड़ने से बचने और नए ‘दोस्त देशों’ को अपने साथ जोड़ने के लिए रूस बेक़रार है. इसीलिए, यूक्रेन युद्ध को लेकर दक्षिण एशियाई देशों के मिले जुले रुख़ के मुताबिक़ रूस, उनको कुछ छूट देने के लिए भी तैयार है.
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