Author : Ankita Dutta

Published on Aug 01, 2022 Updated 0 Hours ago

वागनर का विद्रोह राष्ट्रपति पुतिन के नियंत्रण को लेकर कुछ असहज सवाल खड़ा करता है.

रूस: व्लादिमीर पुतिन को वागनर से मिली चुनौती के पीछे के ‘खेल’ की पड़ताल!

पिछले कुछ दिनों के दौरान रूस में हुए घटनाक्रम को लेकर कई तरह की राय इस तरह के संकेत देती हैं कि वागनर बगावत ने राष्ट्रपति पुतिन को कमजोर किया है और विद्रोह का नतीजा ये निकला है कि राष्ट्रपति पुतिन ने 25 साल के दौरान अजेय होने की जो अपनी छवि बनाई थी वो ध्वस्त हो गई है. अगर नज़दीक से देखें तो इस विद्रोह ने यूक्रेन युद्ध को लेकर वागनर ग्रुप और रूस के रक्षा मंत्रालय के बीच खराब होते संबंधों को उजागर किया है. 23-24 जून 2023 के बीच जो घटनाएं हुईं उन्होंने कई सवाल खड़े किए हैं जो विद्रोह के कारणों से लेकर रूसी नेतृत्व की प्रतिक्रिया और यूक्रेन संकट पर इसके असर को लेकर हैं. ये लेख उन पांच प्रमुख सवालों पर नज़र डालता है जो रूस में इन घटनाक्रमों से उभरे हैं. 

 दरअसल, दोनों के बीच पिछले कुछ समय से कई मुद्दों को लेकर मतभेद बढ़ रहे थे, इनमें यूक्रेन युद्ध के औचित्य के साथ-साथ मिलिट्री लीडरशिप से वागनर ग्रुप के लिए समर्थन की कमी शामिल हैं.

वागनर की चुनौती की व्याख्या

पहला सवाल ये है कि वागनर ग्रुप और रूस के सैन्य नेतृत्व के बीच तनाव की वजह क्या है? दरअसल, दोनों के बीच पिछले कुछ समय से कई मुद्दों को लेकर मतभेद बढ़ रहे थे, इनमें यूक्रेन युद्ध के औचित्य के साथ-साथ मिलिट्री लीडरशिप से वागनर ग्रुप के लिए समर्थन की कमी शामिल हैं. ‘मार्च फॉर जस्टिस’- जो नाम वागनर ग्रुप के प्रमुख येवगेनी प्रिगोज़िन ने अपने विद्रोह को दिया- के ठीक पहले दो घटनाएं हुईं- पहली घटना थी वागनर ग्रुप को हथियार और गोला-बारूद मुहैया कराने में रूस के सैन्य नेतृत्व की पूरी तरह नाकामी जिसकी वजह से वागनर ग्रुप के लड़ाकों की बड़ी संख्या में मौत हुई. ये आरोप इस तथ्य से और भी गंभीर हुआ कि प्रिगोज़िन ने रूस की सेना पर यूक्रेन में वागनर के अड्डों पर हमले का आरोप लगाया. दूसरी घटना थी वागनर ग्रुप को रूसी मिलिट्री कमांड के सीधे नियंत्रण में लाने के मकसद से बनाई गई योजना. 

राष्ट्रपति पुतिन ने रक्षा मंत्रालय के द्वारा यूक्रेन में मौजूद भाड़े के सैनिकों वाले संगठनों के द्वारा 1 जुलाई 2023 से पहले मंत्रालय के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर करने के आदेश का समर्थन किया था. इस आदेश से ये सभी संगठन रक्षा मंत्रालय की कमान संरचना के तहत आ जाते और इसका वागनर ग्रुप के प्रमुख ने ज़ोरदार विरोध किया क्योंकि ऐसा होने पर ग्रुप के भीतर प्रिगोज़िन का असर कम हो जाता. तनाव में और ज़्यादा बढ़ोतरी 23 जून 2023 को हुई जब प्रिगोज़िन ने बयान दिया कि रक्षा मंत्रालय “लोगों और राष्ट्रपति से विश्वासघात करने की कोशिश कर रहा था और ये कहानी बना रहा था कि यूक्रेन की तरफ से एक तरह के पागलपन वाली आक्रामकता की गई है और वो पूरे नेटो गुट के साथ मिलकर हम पर हमला करने की योजना बना रहा था”. इसकी वजह से प्रिगोज़िन ने कसम खाई कि वो सैन्य नेतृत्व को गिराने के लिए “हर मुमकिन कोशिश” करेंगे. लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में एक बात जो अलग है वो ये कि येवगेनी प्रिगोज़िन ने कभी ये दावा नहीं किया कि वो राष्ट्रपति पुतिन को पद से हटाएंगे बल्कि उनके गुस्से के निशाने पर रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु और रूस की सेना के चीफ ऑफ जनरल स्टाफ वालेरी गेरासिमोव थे जिन पर उन्होंने वागनर ग्रुप को धोखा देने का आरोप लगाया. इसलिए लगता है कि ये वो बिंदु था जहां प्रिगोज़िन के हितों की रक्षा के लिए वागनर ग्रुप और रक्षा मंत्रालय के बीच सबसे ज़्यादा तनाव की स्थिति बनी. 

पुतिन ने कहा कि रूस व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं और हितों की वजह से “राजद्रोह” का सामना कर रहा है और “जिन्होंने जानबूझ कर विश्वासघात का रास्ता चुना है, उन्हें निश्चित तौर पर सज़ा दी जाएगी”.

दूसरा सवाल 24 और 26 जून 2023 को राष्ट्रपति पुतिन के द्वारा रूस के नागरिकों को दो संबोधन के असली मतलब को समझने के बारे में है. अपने दो संबोधनों में रूस के राष्ट्रपति वागनर ग्रुप के द्वारा सशस्त्र विद्रोह को कुचलने की प्रतीज्ञा से लेकर वागनर ग्रुप के ज़्यादातर सैनिकों और कमांडरों को देशभक्त और वफ़ादार कहने के बीच झूलते रहे. हालांकि इस बात का ध्यान रखने की ज़रूरत है कि राष्ट्रपति पुतिन ने एक बार भी प्रिगोज़िन के नाम का ज़िक्र तक नहीं लिया. अपने पहले भाषण में पुतिन ने कहा कि रूस व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं और हितों की वजह से “राजद्रोह” का सामना कर रहा है और “जिन्होंने जानबूझ कर विश्वासघात का रास्ता चुना है, उन्हें निश्चित तौर पर सज़ा दी जाएगी”. पुतिन ने बगावत को एक “जानलेवा गलती” बताया. हालांकि उनके दूसरे भाषण का लहज़ा पूरी तरह से अलग था. राष्ट्रपति पुतिन ने अपने सीधे निर्देश को दोहराया कि “खून-खराबे से परहेज़ करने के लिए कदम उठाए गए” और वागनर ग्रुप के सैनिकों को दो विकल्पों की पेशकश की- पहला, रक्षा मंत्रालय या दूसरी कानूनी या सुरक्षा एजेंसियों के कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर करें या घर लौट जाएं और दूसरा, बेलारूस में निर्वासन. अपने रुख़ पर फिर से ज़ोर देते हुए उन्होंने अपने वादे को निभाने का संकल्प लिया और ये जोड़ा कि क्या रास्ता चुनना है इसको लेकर “हर कोई अपनी मर्ज़ी के हिसाब से चुनने के लिए स्वतंत्र” है. दोनों भाषण पुतिन के द्वारा अपनी ताकत को साबित करने और नैरेटिव पर कंट्रोल करने की कोशिश की तरह दिख रहे थे. उन्होंने अपने भाषणों में इस बात की तरफ ध्यान दिलाया कि हालात से निपटने में वो सबसे आगे थे जिसके बेकाबू होने की पूरी आशंका थी. 

पिछली बात से आगे बढ़ते हुए तीसरा प्रमुख सवाल है बेलारूस की तरफ से क्या समझौता कराया गया है. अभी तक की जानकारी के मुताबिक समझौता इस तरह से है- येवगेनी प्रिगोज़िन ने अपने सैनिकों को मॉस्को की तरफ मार्च को रोकने और उन्हें दक्षिण रूस में अपने अड्डे पर लौटने का आदेश दिया और बाद में बेलारूस जाने पर सहमति जताई. इसके बाद क्रेमलिन (रूस की सरकार) के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने एलान किया कि प्रिगोज़िन के रूस छोड़ते ही उनके ख़िलाफ़ आपराधिक आरोप हटा लिए जाएंगे. उन्होंने ये भी कहा कि रूस के लिए वागनर ग्रुप की सेवा पर विचार करते हुए मार्च में शामिल वागनर के सैनिकों के विरुद्ध कोई भी आरोप तय नहीं होगा. लेकिन जो बात नहीं बताई गई है वो ये कि प्रिगोज़िन के लिए क्या-क्या रियायतें बरती गई हैं. पहले ध्यान विद्रोह को कुचलने और खून-खराबे से परहेज करने पर था. ये प्राथमिकता राष्ट्रपति पुतिन के 26 जून 2023 के भाषण और समझौते के बाद प्रिगोज़िन के बयान– दोनों में थी. 

दिलचस्प बात है हालात का समाधान करने में बेलारूस के राष्ट्रपति एलेक्ज़ेंडर लूकाशेंको के द्वारा निभाई गई भूमिका. यूक्रेन में संघर्ष के दौरान लूकाशेंके राष्ट्रपति पुतिन के सबसे मज़बूत सहयोगी के तौर पर उभरे हैं, यहां तक कि उन्होंने रूस को बेलारूस में परमाणु हथियार रखने की अनुमति भी दी है. वागनर ग्रुप की बगावत के दौरान लूकाशेंके का दख़ल रूस में उनके असर को और बढ़ाता है. वागनर ग्रुप के साथ रूसी सरकार का समझौता कराने के पीछे बेलारूस के राष्ट्रपति के असली मक़सद का पता लगाना मुश्किल है, लेकिन हो सकता है कि वो 2020 में अपने कार्यकाल के दौरान बेलारूस में हुए प्रदर्शन, जब उन पर चुनाव में धांधली के आरोप लगे थे, के दौरान राष्ट्रपति पुतिन के समर्थन का एहसान अदा कर रहे थे. हालांकि, ये देखना अभी बाकी है कि नया समझौता बेलारूस के लिए क्या मायने रखता है. 

वागनर का भविष्य?

चौथा सवाल है विद्रोह के बाद वागनर ग्रुप का भविष्य क्या है? विदेशों में राष्ट्रपति पुतिन की ताकत को दिखाने में वागनर ग्रुप एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है. ये ग्रुप अफ्रीका के कई देशों, ख़ास तौर पर माली, लीबिया, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक और सूडान, में अभियान चला रहा है और सीरिया में असद सरकार को स्थिर करने में इसने काफी अहम रोल निभाया है. हालांकि, इसको सबसे बड़ी कामयाबी यूक्रेन में मिली है जहां इसने उन इलाकों में बढ़त हासिल की है जहां रूस के सैनिक कमजोर साबित हुए हैं. यूक्रेन में अपने आक्रमण के दौरान वागनर ग्रुप को काफी नुकसान झेलना पड़ा है. वागनर के लीडर का अनुमान है कि बाखमुत की लड़ाई में उनके 20,000 लड़ाके हताहत हुए हैं. “मार्च फॉर जस्टिस” के बाद वागनर ग्रुप का भविष्य नाजुक स्थिति में है. अभी तक प्रिगोज़िन ने ग्रुप को भंग करने का कोई इरादा नहीं जताया है और इस तरह के संकेत दिए हैं कि राष्ट्रपति लूकाशेंको उन्हें ये अनुमति दे रहे हैं कि वो बेलारूस में काम कर सकते हैं. ख़बरों के मुताबिक, वागनर ग्रुप अभी भी रूस के अलग-अलग शहरों से सक्रिय तौर पर लड़ाकों की भर्ती कर रहा है लेकिन यूक्रेन के बाहर जिन देशों में वो अभियान चला रहा है, वहां विद्रोह का असर देखा जाना अभी बाकी है. यहां ये ज़िक्र करना अहम है कि अफ्रीका और पश्चिम एशिया में भी वागनर ग्रुप अभियान चला रहा है. रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोफ ने जहां ये कहा कि वागनर ग्रुप को अलग-अलग देशों से वापस नहीं बुलाया जाएगा, वहीं इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि उन देशों में तैनात भाड़े के लड़ाकों ने रूस के घटनाक्रम को लेकर कैसी प्रतिक्रिया दी है या यूरोप के बाहर उनके व्यापक अभियान पर विद्रोह का क्या असर पड़ेगा.  

 ख़बरों के मुताबिक, वागनर ग्रुप अभी भी रूस के अलग-अलग शहरों से सक्रिय तौर पर लड़ाकों की भर्ती कर रहा है लेकिन यूक्रेन के बाहर जिन देशों में वो अभियान चला रहा है, वहां विद्रोह का असर देखा जाना अभी बाकी है.

 

आख़िरी सवाल ये है कि यूक्रेन के संघर्ष पर वागनर की बगावत का क्या असर पड़ेगा? मोर्चे पर लड़ाई से वागनर ग्रुप के वापस होने पर राय बनाने से पहले ये ध्यान रखना ज़रूरी है कि इसके लड़ाकों ने मई 2023 में ही बाखमुत से वापस होना शुरू कर दिया था और उनकी यूनिट की जगह रूसी सैनिकों ने ले ली थी. अभी तक यूक्रेन में उनके अभियान पर कोई ध्यान देने लायक असर नहीं पड़ा है बल्कि इसके बदले यूक्रेन के अलग-अलग शहरों पर ताबड़तोड़ मिसाइल हमले इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि यूक्रेन में उनके आक्रमण पर घरेलू उथल-पुथल का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. इसलिए इस बात की कम संभावना है कि आने वाले समय में युद्ध को लेकर उनके नज़रिए में कोई बदलाव आएगा. लेकिन मध्यम से लेकर दीर्घ काल में इस तरह के विद्रोह को रोकने के लिए घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय- दोनों स्तरों पर सुरक्षा की स्थिति काफी सख्त हो सकती है क्योंकि जिस तरह से वागनर ग्रुप विद्रोह शुरू करने और मॉस्को की तरफ आसानी से आगे बढ़ने में सफल रहा, उससे इस बगावत ने सुरक्षा से जुड़ी कमज़ोरियों को उजागर कर दिया है. 

निष्कर्ष

अभी तक ये साफ नहीं है कि वास्तव में क्या हुआ लेकिन जो चीज स्पष्ट है वो ये कि वागनर ग्रुप के द्वारा “मार्च फॉर जस्टिस” ने राष्ट्रपति पुतिन की 25 साल पुरानी सत्ता के सामने सबसे बड़ी चुनौती पेश की. यही बात उस समझौते के बारे में भी कही जा सकती है जो बेलारूस के राष्ट्रपति एलेक्ज़ेंडर लूकाशेंको ने कराया और जिसकी वजह से हालात शांत हुए और अंत में वागनर ग्रुप को पीछे हटना पड़ा. प्रिगोज़िन के द्वारा तेज़ी से आगे-पीछे होने- तुरंत मॉस्को की तरफ बढ़ने और फिर अचानक पीछे हटने- का नतीजा पूरे प्रकरण को लेकर उनके इरादों के बारे में कई सवालों के रूप में निकला है. क्या वो राष्ट्रपति पुतिन की ताकत को चुनौती देना चाहते थे? या वो सर्गेई शोइगु और वालेरी गेरासिमोव- जिनके ख़िलाफ़ उन्हें शिकायत थी- को बंधक बनाना चाहते थे? या फिर वो रक्षा बलों के भीतर वागनर ग्रुप के सैनिकों को शामिल करने के आदेश के विरोध में अपने असंतोष को दिखा रहे थे? संक्षेप में कहें तो ये रहस्य बना हुआ है कि उन्होंने जो किया वो क्यों किया और वो मॉस्को क्यों नहीं गए. वैसे तो वागनर ने सफाई दी है कि उनका इरादा कभी भी राष्ट्रपति पुतिन की सत्ता को चुनौती देना नहीं था लेकिन इरादा हो या नहीं हो, बाद के घटनाक्रमों ने राष्ट्रपति पुतिन के कंट्रोल के बारे में कुछ असहज सवाल खड़े किए हैं. वागनर विद्रोह का पूरा नतीजा अभी भी सुलझ नहीं पाया है लेकिन यूक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाई के साथ प्रिगोज़िन की दिक्कत और रूसी सेना के खराब प्रदर्शन के लिए कौन ज़िम्मेदार है- ये बातें रूसी नेतृत्व के भीतर निकट भविष्य में गूंजने वाली हैं.


अंकिता दत्ता ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज प्रोग्राम में फेलो हैं.

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