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Published on Jun 28, 2024 Updated 0 Hours ago

नारीवादी विदेश नीति का नज़रिया अपनाकर और कूटनीति में महिलाओं को शामिल करने को प्राथमिकता देकर भारत को उदाहरण पेश करना चाहिए.

#Diplomacy: दुनिया को चलाने के कूटनीतिक उपक्रम में महिलाओं की भूमिका!

सतत विकास और लैंगिक (जेंडर) समानता को बढ़ावा देना मौजूदा समय में एक निर्णायक रवैया बन गया है. वास्तव में जेंडर पर बढ़ती बातचीत और जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी सार्थक रूप से एक महत्वपूर्ण तथ्य को उजागर करती है: लैंगिक समानता के बिना स्थिरता फल-फूल नहीं सकती है. सतत विकास और लैंगिक समानता के बीच मज़बूती से तालमेल एक न्यायसंगत,समावेशी और समृद्ध भविष्य वाली वास्तविकता को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है. 

असल में निर्णय लेने और नीतिगत बहस को आकार देने की दिशा में कूटनीति के क्षेत्र में महिलाओं की मौजूदगी बहुपक्षीय एजेंडा को तैयार करने या लागू करने के लिए महत्वपूर्ण है. 2022 में आयोजित संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र के दौरान सदस्यों ने एजेंडा 2030 की पुष्टि करने में महिलाओं के प्रयासों को स्वीकार करने के लिए सामूहिक रूप से हर साल 24 जनवरी को कूटनीति में महिला दिवस के तौर पर मनाने का फैसला लिया. हालांकि, ऐतिहासिक रूप से और मौजूदा समय में भी कूटनीति में पुरुषों का दबदबा बना हुआ है. 

कूटनीति में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी की चर्चा के बावजूद 2023 के आंकड़ों के मुताबिक एंबैसडर या राजनयिक के रूप में नियुक्त अधिकारियों में महज़ 20.54 प्रतिशत महिलाएं हैं (रेखाचित्र 1).इसके अलावा कुछ क्षेत्रों जैसे कि नॉर्डिक में महिला राजदूतों का हिस्सा लगभग आधा है (यानी 2019 में 42 प्रतिशत). वहीं दुनिया के दूसरे हिस्से काफी पीछे हैं (मध्य एशिया में 11 प्रतिशत और एशिया में 13 प्रतिशत). 

कूटनीति में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी की चर्चा के बावजूद 2023 के आंकड़ों के मुताबिक एंबैसडर या राजनयिक के रूप में नियुक्त अधिकारियों में महज़ 20.54 प्रतिशत महिलाएं हैं

रेखाचित्र 1: सभी देशों के द्वारा तैनात महिला राजदूतों का वैश्विक प्रतिशत (1968-2021)



स्रोत: बरगिट्टा निकलसन और एन ई. टाउंस, 2023, जेनडिप डेटासेट

भारतीय विदेश सेवा (IFS) के कैडर के लिए 2014 से 2022 के बीच नौ वर्षों की अवधि में महिला राजनयिकों में 6.6 प्रतिशत की महत्वपूर्ण बढ़ोतरी हुई है. उदाहरण के लिए 2014 में IFS कैडर में 31.2 प्रतिशत महिलाएं थीं (यानी 32 में से 10) जबकि 2022 में ये आंकड़ा बढ़कर 37.8 प्रतिशत हो गया (यानी 37 में से 14). (रेखाचित्र 2)

रेखाचित्र : IFS में महिला राजनयिकों का प्रतिशत (2014-2022)

Source: ThePrint

कूटनीति में महिलाओं के लिए सिस्टम में सुधार करना 

भारत के हिसाब से बड़ी तस्वीर पर नज़र डालें तो 140 करोड़ की आबादी वाले देश में IFS में महिलाओं का प्रतिनिधित्व महज़ 800 है. उनमें भी सिर्फ़ 14 महिलाओं को आगे बढ़ने का मौका मिला. निश्चित रूप से ये कोई अच्छी तस्वीर नहीं है. वास्तव में कूटनीति की कला, जिसके तहत संघर्ष के समाधान के लिए बातचीत आयोजित करना,तालमेल बनाना,अलग-अलग देशों के बीच साझेदारी कायम करना और दीर्घकालीन लक्ष्यों के लिए विकास से जुड़े उद्देश्यों को मज़बूत करना शामिल हैं, में ऐसे तत्व शामिल हैं जिनका स्वरूप पूरी तरह लैंगिक रूप से तटस्थ है. इस अर्थ में कूटनीति में लैंगिक समानता की चर्चा करने की ज़रूरत अपने-आप में काफी गलत है. कूटनीति को सफल बनाने के लिए उसे पद के अनुक्रम (हाइआर्की) और वर्चस्ववाद की अवधारणाओं से दूर रहना चाहिए और इसके बदले सभी क्षेत्रों की विविधता को अपनाना चाहिए. 

भारत के हिसाब से बड़ी तस्वीर पर नज़र डालें तो 140 करोड़ की आबादी वाले देश में IFS में महिलाओं का प्रतिनिधित्व महज़ 800 है. उनमें भी सिर्फ़ 14 महिलाओं को आगे बढ़ने का मौका मिला. निश्चित रूप से ये कोई अच्छी तस्वीर नहीं है. 

इसके अलावा कूटनीति में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए अधिक सुधार लाने की मांग तेज़ होती जा रही है. शीर्ष सेवाओं (चाहे वो अंतर्राष्ट्रीय संगठन हो या उच्च-स्तरीय एंबैसडर के रूप में नियुक्ति) में महिलाओं को अधिक पदों की पेशकश; महिला राजनयिकों को बाल कल्याण या लैंगिक मुद्दों जैसे कोमलविभागों तक सीमित करने के बदले रक्षा या सुरक्षा जैसे सख्त़विभागों में भी तैनात करना; शीर्ष नेतृत्व तक महिलाओं की पहुंच न केवल संकट के समय बल्कि बार-बार प्रदान करना; उन्हें काम और जीवन का संतुलन बरकरार रखने की जगह देना; और संस्थानों के भीतर असमान पदानुक्रमों और लैंगिक रूप से शक्ति का संबंध तोड़ना कुछ प्रमुख मुद्दे हैं. 

कूटनीति को लैंगिक रूप से तटस्थ दृष्टिकोण से देखने के महत्व को दोहराना अहम है. फिर भी व्यापक नैरेटिव के लिए महिलाओं को शामिल करने पर स्पष्ट रूप से ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है. बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य के बीच अलग-अलग देश कूटनीति में महिलाओं की भागीदारी को फिर से परिभाषित करने का प्रयास कर रहे हैं. इस अर्थ में नारीवादी विदेश नीति (FFP) को अपनाना एक सही रणनीति के रूप में उभरता है. 

नारीवादी विदेश नीति का नज़रिया अपनाना

FFP को दूसरे किरदारों के के संबंध को परिभाषित करने की पद्धति के रूप में समझा जा सकता है जहां जेंडर एक प्रमुख विचार साथ किसी देश है. ये दृष्टिकोण पारंपरिक सत्ता की संरचनाओं पर फिर से विचार करने, समावेशी एवं न्यायसंगत निर्णय लेने की शक्ति को बढ़ावा देने के साथ-साथ महिलाओं के लिए लाभदायक नीतिगत नतीजों जैसे कि विकास से जुड़ी साझेदारी,व्यापार समझौतों और जलवायु नीतियों को प्राथमिकता देने में नीचे से ऊपर का दृष्टिकोण (बॉटम-अप अप्रोच) अपनाता है.   

भारत का अपना कोई FFP नहीं है लेकिन इसके बावजूद लैंगिक समानता को लेकर इसकी प्रतिबद्धता में समय के साथ सकारात्मक बढ़ोतरी हुई है. भारत की G20 की अध्यक्षता के दौरान महिला केंद्रित विकासको बढ़ावा देते हुए महिलाओं को महज़ सहायता प्राप्त करने वाली के तौर पर न देखकर बदलाव के एक सक्रिय एजेंट के तौर पर देखा गया, घरेलू स्तर पर महिलाओं के लिए सकारात्मक विकास तेज़ करने की मांग की गई. इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विकास से जुड़ी साझेदारी में भारत की अहम भूमिका एक महत्वपूर्ण विचार के रूप में जेंडर को काफी उजागर करती है. 

कूटनीति की भूमिकाओं में अधिक महिलाओं को शामिल करने से काफी फायदे मिलते हैं जैसे कि अलग-अलग पहलुओं और अनुभवों के साथ बातचीत को समृद्ध करना,व्यापक दृष्टिकोण और इनोवेटिव समाधान मुहैया कराके बेहतर निर्णय लेने की प्रक्रिया को बढ़ावा देना. अध्ययनों से ये भी पता चला है कि शांति की तरफ और संघर्षों के समाधान को लेकर कूटनीतिक संवादों में महिलाएं सकारात्मक भूमिका निभाती हैं. इसके अलावा कूटनीति में महिलाओं का एक दूरगामी प्रभाव (डोमिनो इफेक्ट) पाया जाता है क्योंकि वो लैंगिक समानता की महत्वपूर्ण समर्थक भी बन जाती हैं.  

इसलिए भारत के लिए एक FFP नज़रिये का इस्तेमाल न सिर्फ़ नीति निर्माण और कूटनीति में महिलाओं के लिए अधिक अवसर पैदा करने की दिशा में उपयोगी होगा बल्कि SDG (सतत विकास लक्ष्य) 5 को हासिल करने के अपने लक्ष्य को आगे बढ़ाने में भी.  

कूटनीति में महिलाओं को शामिल करने को प्राथमिकता देने से भारत की अंतर्राष्ट्रीय पहुंच भी बढ़ेगी,उसकी सॉफ्ट पावर मज़बूत होगी,वैश्विक साझेदारी को बढ़ावा मिलेगा और आर्थिक विकास में तेज़ी आएगी. 

G20 की अध्यक्षता के एक उल्लेखनीय कार्यकाल और ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) की आवाज़ के रूप में उभरने के बाद FFP दृष्टिकोण को अपनाकर भारत वैश्विक स्तर पर समावेशी कूटनीति को बढ़ावा देने का उदाहरण पेश कर सकता है. कूटनीति में महिलाओं को शामिल करने को प्राथमिकता देने से भारत की अंतर्राष्ट्रीय पहुंच भी बढ़ेगी,उसकी सॉफ्ट पावर मज़बूत होगी,वैश्विक साझेदारी को बढ़ावा मिलेगा और आर्थिक विकास में तेज़ी आएगी. इस तरह वैश्विक शांति और विकास में भारत योगदान दे पायेगा. 


स्वाति प्रभु ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी (CNED) में एसोसिएट फेलो हैं.

शैरॉन सारा थवानी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन, कोलकाता के डायरेक्टर की एग्ज़ीक्यूटिव असिस्टेंट हैं.

 

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