Author : Angad Singh

Published on Mar 26, 2021 Updated 0 Hours ago

लंबे इंतज़ार के बाद किए गए हल्के लड़ाकू विमान तेजस के Mk.1A के सौदे को समझने की कोशिश

हल्के लड़ाकू विमान ‘तेजस’ की धमाकेदार वापसी

13 जनवरी 2021 को, सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने आख़िरकर 73 हल्के लड़ाकू विमान ख़रीदने को हरी झंडी दे दी. ये स्वदेशी तेजस विमान के बेहतर स्वरूप Mk.1A विमान होंगे. कैबिनेट समिति ने इनके साथ ही दस हल्के लड़ाकू विमान Mk.1 को प्रशिक्षण के लिए ख़रीदने को हरी झंडी दिखाई है. इस सौदे को सरकार की मंज़ूरी मिलने का लंबे समय से इंतज़ार किया जा रहा था. क़रीब 45,696 करोड़ रुपए (6.25 अरब डॉलर) का ये सौदा, हल्के स्वदेशी लड़ाकू विमान कार्यक्रम के लिए जश्न का दुर्लभ क्षण है. क्योंकि, तेजस विमान के विकास और उत्पादन में बार-बार देरी हुई है. भारतीय वायुसेना ने वर्ष 2005 में तेजस विमान ख़रीदने की प्रतिबद्धता जताई थी. लेकिन, उसके बाद से तेजस को अब तक ख़रीद का कोई ऑर्डर नहीं मिला था.

तेजस का मार्क 1A वैरिएंट, वर्ष 2015 में पेश किया गया था, जब हल्के लड़ाकू विमान विकसित करने के कार्यक्रम से नाख़ुश भारतीय वायुसेना ने अपग्रेड किए गए, तेजस को ख़रीदने पर सहमति जताई थी. इसकी शर्त ये थी कि LCA Mk.1 में सुधार किया जाएगा. उस समय तक तेजस के इस वैरिएंट को शुरुआती ऑपरेटिंग क्षमता (IOC) ही प्राप्त हो सकी थी. तब इस विमान में नया इलेक्ट्रॉनिक स्कैनिंग करने वाला एक्टिव रडार, नए एवियॉनिक्सन और इलेक्ट्रॉनिक युद्धक क्षमताएं जोड़ी गई थीं. वैसे विमान की संरचना में कोई ख़ास बदलाव नहीं किया गया था. लेकिन, इन सुधारों से कम से कम काग़ज़ पर तो तेजस विमान को बड़ी तेज़ी से, सस्ती दरों पर वायुसेना को उपलब्ध कराया जा सका था. वरना, अगर इस विमान की डिज़ाइन एक नए इंजन और एरो-डायनामिक समीकरण के साथ, नए सिरे से तैयार की जाती, तो बिल्कुल नया ही विमान (LCA Mk.2) तैयार होता. तेजस के मार्क 1A के कार्यक्रम को रक्षा मंत्रालय की रक्षा ख़रीद परिषद (DAC) ने नवंबर 2016 में औपचारिक रूप से हरी झंडी दे दी थी. तब इसकी लागत का अनुमान लगभग 50 हज़ार करोड़ था. ये विमान बनाने के वास्तविक ठेका देने की दिशा में उठा पहला क़दम था.

मार्च 2020 में रक्षा ख़रीद परिषद ने 83 तेजस मार्क 1A विमान ख़रीदने की लागत में परिवर्तन करके ये सौदा 37 हज़ार करोड़ रुपए (5.05 अरब डॉलर) का बताया था.

जब वर्ष 2019 में हल्के लड़ाकू विमान के मार्क 1 ने कुछ शर्तों में छूट के साथ फाइनल ऑपरेटिंग कैपेबिलिटी (FOC) हासिल कर ली, तो ये लगभग तय हो गया था कि अब सरकार ये विमान ख़रीदने के ठेके को मंज़ूरी दे देगी. मार्च 2020 में रक्षा ख़रीद परिषद ने 83 तेजस मार्क 1A विमान ख़रीदने की लागत में परिवर्तन करके ये सौदा 37 हज़ार करोड़ रुपए (5.05 अरब डॉलर) का बताया था.

टैक्स का क़हर

जैसे ही रक्षा मंत्रालय ने तेजस ख़रीदने के फ़ैसले की घोषणा की, इसके हिसाब-किताब में एक कमी की चर्चा शुरू हो गई. असल में कैबिनेट की रक्षा मामलों की समिति ने सौदे की जो क़ीमत बताई थी और जिसे रक्षा ख़रीद परिषद ने पिछले साल मंज़ूरी दी थी, उन दोनों रक़मों में लगभग 8600 करोड़ रुपयों (1.17 अरब डॉलर) का अंतर था. जिस क़ीमत को सुर्ख़ियां बनाया गया, जानकार उस पर फ़ौरन ही अविश्वास जताने लगे. क्योंकि सौदे की नई रक़म के अनुसार, एक तेजस विमान का औसत मूल्य लगभग 548 करोड़ रुपए (7.5 करोड़ डॉलर) था. इससे, अधिक सक्षम और लगभग इसी क़ीमत वाले सुखोई जैसे लड़ाकू विमानों से तेजस की बेवजह की तुलना शुरू हो गई. रक्षा व्यय में पारदर्शिता के अभाव के चलते, संस्थागत विश्वसनीयता को ही क्षति पहुंचती है. इससे अन्य देशों को ये हल्का लड़ाकू विमान बेचने की संभावनाओं को भी नुक़सान पहुंचता है.

मार्च 2020 के दाम में अचानक दिखने वाली इस वृद्धि का प्रमुख कारण, विदेशी मुद्रा के परिवर्तन मूल्य के साथ इस पर लगने वाला 18 प्रतिशत कर है.

इस मामले में जो बात शुरू से ही स्पष्ट कर देनी चाहिए थी, वो ये थी कि इस ठेके की कुल रक़म का एक बड़ा हिस्सा तय क़ीमत का था. इसमें विमान के विकास में किया गया व्यय और परफॉर्मेंस आधारित लॉजिस्टिक (PBL) का समझौता भी शामिल है. मौजूदा समझौते के अंतर्गत, तेजस (LCA) के एक मार्क-1A विमान की क़ीमत लगभग 348 करोड़ रुपयों (5.25 करोड़ डॉलर) के आस-पास ठहरती है. मार्च 2020 के दाम में अचानक दिखने वाली इस वृद्धि का प्रमुख कारण, विदेशी मुद्रा के परिवर्तन मूल्य के साथ इस पर लगने वाला 18 प्रतिशत कर है.

हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) का नुक़सान

अपनी घोषणा में रक्षा मंत्रालय इस बात को बार-बार दोहरा रहा था कि ये सौदा भारत द्वारा भारत में ही डिज़ाइन किए गए, विकसित किए गए और निर्मित किए गए हथियारों का पहला सौदा था. इस विमान में शुरुआत में 50 प्रतिशत कल-पुर्ज़े स्वदेशी हैं, जो इस कार्यक्रम की मियाद पूरी होने तक बढ़ाकर 60 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है. सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटिड को इस सौदे से आर्थिक मदद तो मिलेगी ही. इसके अलावा रक्षा मंत्रालय का ये भी कहना था कि तेजस की ख़रीद से ‘लगभग 500 अन्य भारतीय कंपनियों को भी लाभ’ होगा. इनमें सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे में आने वाली कंपनियां भी हैं, जो तेजस मार्क 1A के औद्योगिक इकोसिस्टम का हिस्सा हैं.

बरसों तक कभी खुलकर तो कभी दबे शब्दों में ऐसी बातें चलती रही थीं कि, भारतीय वायुसेना स्वदेशी तेजस कार्यक्रम को लेकर प्रतिबद्धता से पीछे हट रही है. लेकिन, तेजस ख़रीदने का सौदा, वायुसेना के पिछले तीस साल में आधुनिक लड़ाकू विमान ख़रीदने का सबसे बड़ा सौदा है. उम्मीद है कि इससे तेजस और वायुसेना को लेकर चलने वाली खुसर-पुसर भी ख़त्म होगी. यहां तक कि इस समय भारतीय वायुसेना में जिस सुखोई लड़ाकू विमान (Su-30MKI) की सबसे अधिक संख्या (कुल 272 सुखोई विमान) है, उसे भी 30-40 की किस्तों में ही ख़रीदा गया था.

उम्मीद है कि इससे तेजस और वायुसेना को लेकर चलने वाली खुसर-पुसर भी ख़त्म होगी.

अब गेंद HAL के पाले में है कि वो वादे के अनुसार समय पर वायुसेना को तेजस विमानों की खेप सौंप दे. यहां ये बात भी ध्यान देने योग्य है कि रक्षा क्षेत्र की सरकारी कंपनी HAL की ऑर्डर बुक में अभी तेजस बनाने का ही सौदा है. पिछले महीने तक HAL को तेजस Mk-1 के दो बैच ही तैयार करने का ऑर्डर था. इनमें से एक बैच के तहत उसे 16 सिंगल सीटर लड़ाकू विमान और चार ट्रेनर विमान बनाने थे. वहीं, दूसरे सौदे के तहत फाइनल ऑपरेशनल कैपेबिलिटी (FOC) वाले 16 लड़ाकू विमान और चार ट्रेनर विमान बनाने हैं. अलग अलग कारणों के चलते लड़ाकू विमानों की ये खेप एक के बाद एक तैयार की जा रही है. इसके बाद, दोनों सौदों के लिए आठ प्रशिक्षण विमान एक साथ तैयार किए जाएंगे. इन्हें एक ही मानक (FOC) के तहत बनाया जाएगा. जो 16 लड़ाकू विमान अंतरिम ऑपरेशनल क्षमता (IOC) के साथ बनाए जा रहे हैं, उन्होंने पहली उड़ान अक्टूबर 2014 से मार्च 2019 के बीच भरी थी. इससे जो औसत निकलता है, उसके मुताबिक़ हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटिड एक साल में लगभग 3.5 विमान बना सकती है. हालांकि, तकनीकी रूप से देखें तो वर्ष 2015 में एक भी तेजस ने उड़ान नहीं भरी थी. जबकि वर्ष 2018 में 6 विमान बनाए गए थे. जब IOC क्षमता वाले विमान ने आख़िरी उड़ान भरी थी, उसके एक साल बाद जाकर फुल ऑपरेशनल क्षमता (FOC) वाले पहले तेजस ने मार्च 2020 में उड़ान भरी थी. इससे हल्के लड़ाकू विमान के दूसरे स्क्वाड्रन को बनाकर उसे संसाधनों को साझा करने के विकल्प के साथ, पहली खेप के आस-पास ही तैनात किया जा सकता था. बाक़ी के वर्ष 2020 में कोरोना वायरस की महामारी और लॉकडाउन के चलते पहले ही कई मुश्किलें खड़ी हो चुकी थीं. महामारी के कारण निर्माण की रफ़्तार कम होने की समस्या से परे, HAL को तेज़ी से अपने विमान उत्पादन की क्षमता के रोड़े हटाने होंगे. इनका संबंध एयरफ्रेम की डिज़ाइन और उत्पादन से है.

आठ से 12 विमान प्रति वर्ष बनाने की क्षमता होते हुए भी HAL ने कभी भी तेजस का निर्माण अपनी अधिकतम क्षमता से नहीं किया है. इससे पहले 40 विमान बनाने और उससे जुड़ी आपूर्ति श्रृंखला को सुनिश्चित करने की चुनौती का हवाला देकर ही विमान निर्माण की धीमी रफ़्तार को वाजिब ठहराया जाता रहा है. लेकिन, ये सारे तर्क इसलिए बेमानी हैं, क्योंकि विमानों की आपूर्ति की दर ठेके के वक़्त ही तय होती है. वर्ष 2018 में ख़ुद HAL के प्रदर्शन से साबित होता है कि विमानों के उत्पादन की रफ़्तार बढ़ाई जा सकती है. मसला बस नियमित रूप से तेज़ उत्पादन की दर बनाए रखने का है.

वर्ष 2018 में ख़ुद HAL के प्रदर्शन से साबित होता है कि विमानों के उत्पादन की रफ़्तार बढ़ाई जा सकती है. मसला बस नियमित रूप से तेज़ उत्पादन की दर बनाए रखने का है.

लेकिन, अब ये सब तर्क काम नहीं आने वाले हैं. HAL के तेजस विमान के उत्पादन की प्रतिबद्धताएं बढ़ती जा रही हैं. उसे अब इसके तमाम वैरिएंट को कुल मिलाकर 105 विमान बनाने हैं. इनमें 14 फुल ऑपरेशनल क्षमता वाले हैं. पहले ऑर्डर के आठ प्रशिक्षण विमान हैं. दस सबसे हालिया सौदे के हैं. HAL को इस विमान के मार्क 1A के 73 विमान भी बनाकर देने हैं. सच तो ये है कि मार्क 1A का ऑर्डर अपने आप में HAL को उत्पादन करने का काफ़ी समय देता है. क्योंकि इसमें से दस तो प्रशिक्षण विमान होंगे. ये विमान, उन आठ प्रशिक्षण विमानों जैसे ही होंगे, जिनके उत्पादन का ठेका पहले ही मिला हुआ है. ऐसे में इन विमानों के उत्पादन की योजना इस तरह बनाई जा सकती है कि पहले प्रशिक्षण विमान बनाकर दे दिए जाएं. भले ही इसका अर्थ ये हो कि वास्तविक Mk.1A विमानों के उत्पादन में थोड़ी देर हो जाए. इससे विमानों के विकास में लगने वाले समय को कम से कम किया जा सकेगा. इससे HAL के पास भी इतना समय होगा कि वो उच्च दर पर विमान का उत्पादन कर सके, जिससे हर साल 16 विमान बनाए जा सकें. चूंकि, पहले मार्क-1A विमान को 2024-25 में तैयार करके देना है, तो उससे पहले विमान उत्पादन की सुस्त गति को दुरुस्त करने का समय होगा. इससे बाद में हर वर्ष 16 विमान बनाकर दिए जा सकें. अनुमान है कि आख़िरी तेजस Mk.1A विमान वर्ष 2029-30 तक बनाकर दिया जाएगा.

पांचवीं पीढ़ी के विमान की दुविधा

विमानों को सुपुर्द करने की ये समय सारणी, भारतीय वायुसेना की उस योजना पर सवाल खड़े करती है, जिसके तहत वो अगली पीढ़ी के लड़ाकू विमान हासिल करना चाहता है. वैसे तो दुनिया की कई बड़ी वायु सेनाएं अभी भी पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों का परीक्षण ही कर रही हैं और चौथी पीढ़ी के विमान ख़रीदने के सौदे कर रही हैं. इनमें फ्रांस, जर्मनी और यहां तक कि अमेरिका जैसा देश भी शामिल है. जिसने हाल ही में F-15EX विमानों के सुधारे हुए विकल्प का ऑर्डर दिया है. लेकिन, इन देशों की क्षमताएं और उनके सामने खड़े ख़तरे, भारत से बिल्कुल अलग हैं. यूरोपीय देशों की वायु सेनाओं के सामने किसी पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान से मुक़ाबला करने की चुनौती आने वाले समय में भी नहीं दिखती. अगर ऐसे हालात बनते भी हैं, तो नैटो (NATO) गठबंधन के पास F-35 विमान हैं ही. ये बात भी तय ही है कि यूरोपीय देशों की वायु सेनाएं एक-दूसरे के साथ तालमेल से ही दुश्मन का मुक़ाबला करेंगी. अमेरिका के सामने चीन है, जो बड़ी तेज़ी से अपनी क्षमता बढ़ा रहा है और वायु सेना का आधुनिकीकरण भी कर रहा है. आज चीन से मुक़ाबले के लिए अमेरिका के पास अपने पांचवीं पीढ़ी के F-22 और F-35 जैसे लड़ाकू विमान बड़ी तादाद में मौजूद हैं. इसके अलावा F-15EX और सुपर हॉर्नेट ब्लॉक III जैसे चौथी पीढ़ी के विमानों को भी अमेरिका अपनी वायुसेना में शामिल कर रहा है. यहां तक कि एशिया में भी जापान और कोरिया ने पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों को अपनी वायुसेना का हिस्सा बनाने में फ़ुर्ती दिखाई है. इन देशों ने अपनी दूरगामी ज़रूरतों के लिए घरेलू विमान निर्माण कार्यक्रमों को भी रफ़्तार दी है. इन देशों में से भारत ऐसा है, जिसके सामने बिल्कुल अलग तरह की चुनौतियां हैं. चीन की वायुसेना (PLAAF) अपने पांचवीं पीढ़ी के विमानों का परीक्षण कर रही है. इस चुनौती के बावजूद, भारत के पास चीन के मुक़ाबले में कोई ऐसा लड़ाकू विमान नहीं है, और न अगले एक दशक में उसके पास ऐसा कोई विमान होने की संभावना ही है.

देश में इस बात पर पहले ही बहस छिड़ी हुई है कि क्या तेजस Mk.1A और Mk.2 जैसे चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमान, वायुसेना को वर्ष 2030 में जाकर देने का कोई फ़ायदा है. चूंकि, चीन की वायुसेना को इस क्षेत्र में पहले ही बढ़त हासिल है, उसे देखते हुए ये सवाल उठाना तो बनता है

देश में इस बात पर पहले ही बहस छिड़ी हुई है कि क्या तेजस Mk.1A और Mk.2 जैसे चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमान, वायुसेना को वर्ष 2030 में जाकर देने का कोई फ़ायदा है. चूंकि, चीन की वायुसेना को इस क्षेत्र में पहले ही बढ़त हासिल है, उसे देखते हुए ये सवाल उठाना तो बनता है. इस बहस के बावजूद, चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमान जैसे कि तेजस Mk.1A और Mk. 2, आख़िरकार पांचवीं पीढ़ी के विमानों के विकास और इनकी क्षमता विकसित करने का मार्ग ही प्रशस्त करने वाले हैं. घरेलू मोर्चे पर विमानों के विकास में देरी के चलते, दुश्मनों की तुलना में भारतीय वायुसेना की क्षमता में कमी एक ऐसी हक़ीक़त है, जिसे स्वीकार करके उसी हिसाब से तैयारी करनी होगी. भारतीय वायुसेना को ऐसे क्रियात्मक समाधान तलाशने होंगे जिससे कि वो अपने पास पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान न होने की कमी से तब तक निपट सके, जब तक वो चीन की वायुसेना के ख़िलाफ़ कोई ठोस विकल्प हासिल न कर ले.

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