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दुनिया की आधी से अधिक आबादी शहरों में रहती है, जो 50 प्रतिशत वैश्विक कचरे का उत्पादन करती है और दो तिहाई वैश्विक ऊर्जा की खपत करती है. शहरों द्वारा 80 फीसदी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन किया जाता है; जो उन्हें हीटवेव (गर्मी की लहरें), बाढ़ और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं जैसी जलवायु ख़तरों के केंद्र में खड़ा कर देता है. इसके अलावा, वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन की सालाना लागत का 80 फीसदी से ज्यादा भाग शहरों द्वारा वहन किए जाने का अनुमान है.
जैसे-जैसे शहर कोरोना महामारी के आर्थिक दुष्प्रभाव से उबर रहे हैं, जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीले और कम उत्सर्जन वाले शहरी ढांचे के निर्माण के लिए निवेश जुटाने पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया गया है.
वैश्विक दक्षिण में ये चिंताएं बढ़ती जा रही हैं, जहां जलवायु लक्ष्यों और स्थिरता की बजाय शहरों की बढ़ती जनसंख्या की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने प्राथमिकता दी जाती है जबकि उनके पास संसाधन बेहद सीमित हैं और मौजूदा स्थिति ही राजनीतिक पूंजीकेंद्र में है. ऐसी सौदेबाजी विशेष रूप से अफ्रीकी और दक्षिण एशियाई शहरों में प्रचलन में है. ऐसे में संसाधनों अंतराल के कारण शहरी चक्रीयता और हरित ढांचे के निर्माण में बाधाएं पैदा होती हैं. शहर किस प्रकार क्लीन-टेक आधारित नियोजन दृष्टिकोणों और विकास पहलों को अपनाने के लिए प्रशासकों और योजनाकारों को प्रेरित और प्रोत्साहित कर सकते हैं जबकि इसके विकास में अक्सर संसाधनों की उपलब्धता और पहुंच अड़चनें पैदा करती हैं.
जैसे-जैसे शहर कोरोना महामारी के आर्थिक दुष्प्रभाव से उबर रहे हैं, जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीले और कम उत्सर्जन वाले शहरी ढांचे के निर्माण के लिए निवेश जुटाने पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया गया है. केवल उभरते बाजारों में छह क्षेत्रों (अपशिष्ट, जल, नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन, सार्वजनिक परिवहन और हरित भवन) में 2030 तक सालाना 25 खरब अमेरिकी डॉलर निवेश के अवसर मौजूद हैं. हालांकि, शहरी स्थानीय निकायों को, विशेष रूप से विकासशील देशों में, इनके कार्यान्वयन के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों तक पहुंचने में अक्सर बाधाओं का सामना करना पड़ता है. उन्हें या तो राज्य या केंद्रीय सरकारों से मिलने वाली वित्तीय सहायता पर भरोसा करना चाहिए या स्थानीय ज़रूरतों को प्राथमिकता देने वाले कठिन विकल्प चुनने चाहिए.
स्थानीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के शमन, पुनर्प्राप्ति रणनीतियों या ग्रीनहाउस गैसों की सूची बनाने जैसे मुद्दों पर विस्तृत अध्ययनों के अभाव के कारण भी शहरी स्थानीय निकायों के लिए जलवायु निवेश को एकीकृत करना मुश्किल हो जाता है.
1992 में भारत ने 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम (74वें संशोधन) के माध्यम से नगर पालिकाओं या शहरी स्थानीय सरकारों के विकेंद्रीकरण और शहरी स्वशासन को प्राथमिकता दी. फिर भी, भारत के शहरी स्थानीय निकाय वैश्विक स्तर पर सबसे कमज़ोर संस्थाओं में से एक हैं. बुनियादी ढांचे की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए राजस्व की अपर्याप्तता और वित्तीय निर्भरता के कारण पूंजी जुटाने में असमर्थता ने शहरी स्थानीय निकायों को कमज़ोर और कुछ हद तक अकुशल बना दिया है. पूंजी के अभाव में उन्हें और अधिक अक्षम और अप्रभावी बना दिया गया है.
शहरी और क्षेत्रीय स्तर पर नियामक ढांचे और कर नीतियों को लेकर अनिश्चितता, परियोजना विकास में विशेषज्ञता का अभाव, संसाधनों पर नियंत्रण की कमी, ख़राब बुनियादी ढांचा योजना, उच्च संचालन लागत और प्रभावी वित्त पोषण मॉडल की कमी शहरी स्थानीय निकायों की कुशलता और कार्यात्मक लचीलेपन को और भी ज्यादा नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं. इसलिए, स्थायी हरित निवेश तंत्र स्थापित करने के लिए शहरों को वित्तीय चुनौतियों से पार पाना होगा. हालांकि, शहरी और क्षेत्रीय स्तर पर नियामक ढांचे और कर नीतियों को लेकर अनिश्चितता, परियोजना विकास में विशेषज्ञता का अभाव, संसाधनों पर नियंत्रण की कमी, ख़राब बुनियादी ढांचा योजना, उच्च संचालन लागत और प्रभावी वित्त पोषण मॉडल की कमी इन प्रयासों की जटिलता को बढ़ावा देती हैं.
भारत में, मंगलोर और कोलार शहर ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए जलवायु परिवर्तन की पहचान और कार्य योजनाओं को तैयार करने में गैप फंड की सहायता ले रहे हैं.
नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति पर भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट शहरी जलवायु वित्त से संबंधित प्रौद्योगिक आवश्यकताएं और क्षमता में बड़े अंतर को दर्शाती है, जो अनुमानित रूप से अरबों डॉलर है. इन अंतरालों के कारण शहरों को नेट ज़ीरो कार्बन लक्ष्य से जुड़ी जलवायु कार्य योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू करने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है. उदाहरण के लिए, मुंबई की जलवायु कार्य योजना को प्रभावी सिद्ध होना बाकी है क्योंकि अभी भी स्थायी सार्वजनिक अवसरंचना में निवेश को सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं दी गई है. इसके अलावा, हरित परियोजना से जुड़े विचार आगे बढ़ने में अक्सर असफल रह जाते हैं क्योंकि स्थानीय स्तर पर प्रारंभिक अध्ययन ठीक से नहीं करवाए जाते. इस संदर्भ में महाराष्ट्र सरकार की 5,000 से अधिक इलेक्ट्रिक बसों को तैनात करने की योजना का उदाहरण दिया जा सकता है जो सभी तरह के रास्तों के लिए अव्यावहारिक होने के कारण नुकसान का सौदा साबित हो सकती हैं. यहां तक कि स्थानीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के शमन, पुनर्प्राप्ति रणनीतियों या ग्रीनहाउस गैसों की सूची बनाने जैसे मुद्दों पर विस्तृत अध्ययनों के अभाव के कारण भी शहरी स्थानीय निकायों के लिए जलवायु निवेश को एकीकृत करना मुश्किल हो जाता है.
सिटीज़ क्लाइमेट फाइनेंस लीडरशिप एलायंस द्वारा 2014 के जलवायु शिखर सम्मेलन में शहरी जलवायु वित्त पर नज़र रखने के लिए प्रारंभिक व्यापक रूपरेखाओं में से एक का शुभारंभ किया गया. रूपरेखा का उद्देश्य निवेश अंतराल को पाटते हुए शहरों में कम उत्सर्जन वाले और जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीले बुनियादी ढांचे में निवेश में तेज़ी लाना है. इस रूपरेखा में शमन और अनुकूलन रणनीतियों के माध्यम से परियोजना-स्तरीय आंकड़ों और क्षेत्र विशेष में पूंजीगत व्यय के आधार पर हरित निवेश का आकलन करने के लिए व्यावहारिक तरीकों और साधनों का प्रस्ताव किया गया है.
स्टेट ऑफ़ सिटीज़ क्लाइमेट फाइनेंस रिपोर्ट, 2021 में शहरी जलवायु निवेश और चुनौतियों पर काबू पाने के लिए उठाए गए कदमों और आने वाली बाधाओं की जांच की गई है. राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर ऐसे विस्तृत मूल्यांकन उपायों की निरंतरता से शहरी स्थानीय निकायों को शहरी हरित निवेश के लिए लिए बजट बनाने और उसे दिशा देने में मदद मिलेगी. उदाहरण के लिए, सिटीज़ क्लाइमेट फाइनेंस लीडरशिप एलायंस ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर सार्वजनिक और निजी स्रोतों से हरित वित्त की उगाही के लिए हैदराबाद और कोलकाता में शहरी हरित वित्त की स्थिति का ख़ाका तैयार किया.
इसी शृंखला में सिटी क्लाइमेट फाइनेंस गैप फंड का भी उदाहरण दिया जा सकता है, जो एक पारस्परिक सहयोग आधारित अनोखा मॉडल है और शहरी समूहों और नेटवर्कों के साथ सीधे जुड़कर काम करता है, जिससे स्थायी रूप से शहरी नवीकरण के लिए आवश्यक विशेषज्ञता और वित्तपोषण के अवसर प्राप्त होते हैं. इस तरह के वैकल्पिक वित्तीय संसाधन शहरी स्थानीय निकायों को शहरों के भीतर और बाहर परियोजनाओं को लागू करने के लिए आवश्यक निवेश के नए अवसर प्रदान कर सकते हैं.
शहर एक देश का विकास इंजन होते हैं, और हरित निवेश संवादों को स्थानीय शहरी आवश्यकताओं के प्रति अधिक संवेदनशील होना होगा
सेनेगल की राजधानी डकार जैसे मामले इसके सटीक उदाहरण हैं, जहां गैप फंड की मदद से किफायती दामों में हरित आवास की योजना बनाने और निर्माण में विकासकर्ताओं को तकनीकी सहायता प्राप्त होती है. इसी तरह, इथोपिया के आदिस अबाबा में, गैप फंड की मदद से शहरी विकास और क्लाइमेट स्मार्ट कैपिटल इन्वेस्टमेंट योजनाओं को एकीकृत किया गया है. भारत में, मंगलोर और कोलार शहर ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए जलवायु परिवर्तन की पहचान और कार्य योजनाओं को तैयार करने में गैप फंड की सहायता ले रहे हैं. अहमदाबाद में, इसकी सहायता से स्थानीय सरकार को लचीली शहरी अवसंरचना के विकास में मदद मिल रही है. हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद, शहरी स्थानीय निकायों को शहरों में परिवर्तनकारी हरित तंत्र स्थापित करने और स्वच्छ अभ्यासों की नींव डालने के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधन जुटाने में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
नवाचारी वित्तीय उपकरण एवं वैकल्पिक वित्तीय संसाधन शहरों को अपनी बुनियादी ढांचागत आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद कर सकते हैं और शहरी स्थानीय निकायों को, विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण में जलवायु कार्ययोजना से जुड़ी महत्त्वाकांक्षाओं को हासिल करने का अवसर प्रदान कर सकते हैं.
सतत विकास के लिए शहरी स्थानीय निकायों को आत्म-निर्भर और उत्तरदायी बनाने के लिए उसके वित्तीय स्वास्थ्य और विशेषज्ञता को केंद्र में रखना होगा. शहर एक देश का विकास इंजन होते हैं, और हरित निवेश संवादों को स्थानीय शहरी आवश्यकताओं के प्रति अधिक संवेदनशील होना होगा और एक अनोखे और विविध हरित वित्त प्रवाह तंत्र की स्थापना के लिए बहु-हितधारक दृष्टिकोण को अपनाना ज़रूरी है. ऐसे परिसंघों को स्थापित किए जाने की आवश्यकता है, जो शहरी स्थानीय निकायों को भारत की क्लीन-टेक प्रणाली में प्रभावी एवं जोरदार ढंग से योगदान देने के अवसर प्रदान करें ताकि भविष्य के शहरों को समावेशी, स्वच्छ और स्वास्थ्यपरक बनाया जा सके.
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Anusha is Senior Fellow at ORF’s Centre for Economy and Growth. Her research interests span areas of Urban Transformation, Spaces and Habitats. Her work is centred ...
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