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सुबिक की खाड़ी में वाशिंगटन का वापस लौटना दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी रणनीति को फिर से संतुलित करने का संकेत है. यह चीन की बढ़ती समुद्री आक्रामकता का जवाब देने के लिए शीत युद्ध की विरासत को फिर से जिंदा करना जैसा है.
Image Source: Wikipedia
साल 2025 की पिछली तिमाही में, बाहा सा लुनेटा में चल रहे विरोध-प्रदर्शन के अलावा मनीला की धरती पर एक और घटनाक्रम चुपचाप आकार ले रहा था जो था- अमेरिका द्वारा फ़िलीपींस के सुबिक नौसैनिक अड्डे को फिर से खोलने की इच्छा जताना. फ़िलीपींस के इस ऐतिहासिक शीत युद्धकालीन अड्डे को फिर से सक्रिय करने का प्रयास वास्तव में वाशिंगटन द्वारा दक्षिण-पूर्व एशिया के क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे में होने वाली उथल-पुथल और अपनी पहली द्वीप श्रृंखला के संदर्भ में कूटनीतिक सुरक्षा को मज़बूत करना है. फ़िलीपींस इस द्वीप श्रृंखला का महत्वपूर्ण हिस्सा है.
इस अड्डे को शुरू करने का निर्णय अमेरिका के उस फैसले में छिपा है जिसमें उसने उपनिवेशीकरण के माध्यम से द्वीप समूह को अपने नियंत्रण में लेना तय किया था. इससे अमेरिका को मौका मिला कि वह अपने एडमिरल अल्फ्रेड थायर महान के सिद्धांतों के अनुरूप, पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में महत्वपूर्ण वैश्विक समुद्री मार्गों पर सैन्य अड्डा बनाए. यह मार्ग चीन के व्यापार का एक माध्यम माना गया था. अग्रिम तैनाती और सुरक्षा के लिए रणनीतिक व सामरिक केंद्र के रूप में फ़िलीपींस के महत्व को अमेरिका दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत से पहले ही समझने लगा था. कोरिया, फारस की खाड़ी और वियतनाम में हुए संघर्षों ने उसकी इस सोच को और मजबूती दी. हालांकि, फ़िलीपींस 1946 में आजाद हो गया पर इस अड्डे पर अमेरिका का नियंत्रण बना रहा.
अग्रिम तैनाती और सुरक्षा के लिए रणनीतिक व सामरिक केंद्र के रूप में फ़िलीपींस के महत्व को अमेरिका दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत से पहले ही समझने लगा था.
फ़िलीपींस में अमेरिका के दो अड्डे थे- सुबिक नौसैनिक अड्डा और क्लार्क हवाई अड्डा. इनसे जुड़ी अन्य सुविधाएं भी वहीं थी. इन ठिकानों से अमेरिका को सामरिक हवाई नियंत्रण, संचार, चेतावनी तंत्र और अन्य तरह की सुविधाएं मिली हुई थी. यहां अमेरिका का सातवां बेड़ा भी तैनात रखा गया था और इसे दक्षिण-पूर्व एशिया में अमेरिकी नौसैनिक अभियानों को आगे बढ़ाने का एक आवागमन केंद्र माना गया था. सुबिक नौसैनिक अड्डा पर जहाज़ों की मरम्मत के लिए फ्लोटिंग (पानी के भीतर) के साथ-साथ ड्राई डॉकिंग सुविधाएं (जहाज़ को पानी से बाहर निकालकर मरम्मत आदि करना) भी थीं. इसके साथ ही, अमेरिका के सबसे बड़े विमानवाहक जहाज़ के ठहरने और डिपो सुविधाएं भी यहां विकसित की गई थी. क्लार्क हवाई अड्डे ने अमेरिका की वायु शक्ति को मज़बूत किया. इन दोनों ठिकानों ने दक्षिण-पूर्व एशिया, हिंद महासागर और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी तैनाती और संचालन को लंबे समय तक बनाए रखने में मदद की.
हालांकि, 1991 में फ़िलीपींस के सीनेटरों ने उस प्रावधान को ख़त्म करने के पक्ष में मत डाले जिससे अमेरिकी सेनाओं को उनकी धरती पर ठहरने का अधिकार मिला हुआ था. बाद में, इसे एक आर्थिक क्षेत्र में बदल दिया गया. यहां एक शिपयार्ड है जिसका प्रबंधन अब एचडी हुंडई हेवी इंडस्ट्रीज कर रही है. शुरुआत में, इसका निर्माण दक्षिण कोरिया के हानजिन हेवी इंडस्ट्री ने किया था. चीन ने वाशिंगटन की वापसी से पैदा हुए खालीपन का लाभ उठाया और दक्षिण चीन सागर में अपने कदम धीरे-धीरे बढ़ाने शुरू किए. उसने कृत्रिम द्वीप समूह बनाकर अपनी मौजूदगी बढ़ाई और स्प्रैटली द्वीप समूह के पूर्व में स्थित मिसचीफ रीफ पर क़ब्ज़ा कर लिया. साल 1998 में, अमेरिका और फिलीपींस ने विजिटिंग फ़ोर्सेज़ समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता को देखते हुए बाद में इस समझौते को और सार्थक बनाया गया और 2014 में संवर्धित रक्षा सहयोग समझौता किया गया. इससे फ़िलीपींस के सैन्य अड्डे पर अमेरिका को अपनी पारंपरिक सेना की तैनाती और रोटेशन की सुविधा मिल गई. यह सुबिक अड्डे पर अमेरिकी नौसेना के जहाज़ों को फिर से सक्रिय करने जैसा था. इन समझौतों के दो मतलब निकाले जा सकते हैं. पहला, दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों ने शीत युद्ध के दौरान जो परमाणु-मुक्त, स्वतंत्रता आधारित निरपेक्ष क्षेत्र संबंधी रवैया अपनाया था, उसने उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा पर नकारात्मक असर डाला है जिसका नतीजा यह निकला कि राष्ट्रीय सुरक्षा व रक्षा के लिए उनकी दूसरे देशों (जैसे अमेरिका) पर निर्भरता बढ़ी है. दूसरा, चीन के आक्रामक क्षेत्रीय रवैये से जो निर्भरता पैदा हुई, उसने एक उपनिवेश को दूसरे भौगोलिक क्षेत्र के उपनिवेशक से सुरक्षा के लिए राह तलाशने को मजबूर किया है.
इस क्षेत्र में तेल और हाइड्रोकार्बन के भंडार होने की भी संभावना है, जिसका अर्थ है कि अमेरिका और फ़िलीपींस संयुक्त रूप से यहां खोजबीन कर सकते हैं, जो चीन के हितों के विपरीत है.
सुबिक की खाड़ी में फिर से अमेरिकी मौजूदगी बढ़ने का पता अमेरिकी निवेश कंपनी सेर्बेरस कैपिटल मैनेजमेंट से लगता है, जिसने हानजिन के पतन के बाद 2022 में बोली लगाकर अपने चीनी समकक्ष के ख़िलाफ़ जीत हासिल की थी. इसने अमेरिका, दक्षिण कोरिया और फ़िलीपींस की भागीदारी वाली त्रिपक्षीय व्यवस्था के माध्यम से सुबिक पर जहाज़ निर्माण से जुड़े बुनियादी ढांचों को फिर से तैयार किया. इससे अमेरिका के लिए अपनी क्षेत्रीय उपस्थिति को फिर से अस्थायी रूप से बहाल करने का मौका मिल गया है. यह पहल फ़िलीपींस के रवैये में एक बड़े बदलाव का भी संकेत है, जो अमेरिका से रोटेशनल ट्रेनिंग पाने से लेकर द्वीप समूह में उसकी पर्याप्त मौजूदगी के रूप में देखा जा सकता है. इस क्षेत्र में तेल और हाइड्रोकार्बन के भंडार होने की भी संभावना है, जिसका अर्थ है कि अमेरिका और फ़िलीपींस संयुक्त रूप से यहां खोजबीन कर सकते हैं, जो चीन के हितों के विपरीत है. इसने अमेरिका को पश्चिमी फ़िलीपींस में अपनी मौजदूगी फिर से बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है.
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और फ़िलीपींस के राष्ट्रपति मार्कोस जूनियर के बीच वाशिंगटन में एक शिखर सम्मेलन हुआ है, जिसमें ट्रंप ने साफ़ कर दिया कि फ़िलीपींस के पास किसी भी अन्य देशों की तुलना में ‘अधिक गोला-बारूद’ होगा, जिसमें कई तरह की मिसाइलें भी होंगी. अमेरिका इससे पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में अपनी नौसैन्य और हवाई मौजूदगी लगातार बनाए रखने में सफल हो सकेगा. अपनी अग्रिम तैनाती, गोला-बारूद उत्पादन, विश्वसनीय जवाबी कार्रवाई, स्प्रैटली द्वीप समूह के आसपास के क्षेत्र में ताक़त के प्रदर्शन और रसद क्षमता के माध्यम से ताइवान और हिंद-प्रशांत रणनीतियों को आगे बढ़ाने में यह अमेरिका की मदद करेगा. यह कदम नौवहन स्वतंत्रता को सुरक्षित करने और पूर्वी व दक्षिण-पूर्व एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के साथ व्यापार की सुरक्षा के लिए अमेरिका की स्वतंत्र, निष्पक्ष व खुले हिंद-प्रशांत नीति के अनुरूप है. फ़िलीपींस में एक सैन्य भंडारण सुविधा केंद्र बनाने की दिशा में भी अमेरिका आगे बढ़ना चाहता है. रही बात फ़िलीपींस की, तो अमेरिकी रक्षा निवेश से उसे अपनी सुरक्षा रणनीति को मज़बूत करने में मदद मिलेगी. यह रणनीति अमेरिका को आउटसोर्स करके आत्मनिर्भरता हासिल करने की सोच पर आधारित है, क्योंकि इस क्षेत्र में सुरक्षा व अखंडता बुनियादी मुद्दे हैं. हालांकि, फ़िलीपींस को रक्षा निवेश के मामले में अमेरिका की उपस्थिति और उसके बड़े विदेशी निवेशक चीन के बीच संतुलन भी बनाना होगा.
फ़िलीपींस को रक्षा निवेश के मामले में अमेरिका की उपस्थिति और उसके बड़े विदेशी निवेशक चीन के बीच संतुलन भी बनाना होगा.
हालांकि, अमेरिका ने मना किया है कि वह यहां के बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल गोला-बारूद के भंडारण और जहाज़ों की मरम्मत व भंडारण के लिए कर रहा है लेकिन भविष्य में इसके उपयोग को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता. यह दक्षिण-पूर्व एशिया के अस्थिर क्षेत्रों में अमेरिका व चीन के बीच चल रहे सुरक्षा उलझन को और बढ़ा सकता है. साफ़ है, अमेरिका की यह सक्रियता या तो क्षेत्र में मौजूदा स्थिति बनाए रखने या फिर सैन्य साजो-सामान की लागत व चुनौतियां बढ़ाकर चीन को 'ग्रे-जोन युद्ध'’ की रणनीति (पारंपरिक युद्ध से अलग रणनीति बनाकर परिस्थितियों का लाभ उठाना) अपनाने से रोकने और नियंत्रित करने की एक कोशिश मानी जा सकती है.
(इप्शिता चक्रवर्ती जादवपुर विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग में पीएचडी छात्रा हैं)
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Ipshita Chakravarty is at present a Ph.D. scholar in the Department of International Relations with Political Science at Jadavpur University, Kolkata. The broad research area ...
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