Author : Harsh V. Pant

Published on Sep 21, 2023 Updated 0 Hours ago

जब तक ट्रूडो की सरकार है, तब तक वह हालात में किसी तरह की बेहतरी की कोई उम्मीद नहीं कर सकती.

ट्रूडो के PM रहते नहीं सुधरेंगे कनाडा से रिश्ते

यह तो होना ही था. बरसों से भारत और कनाडा के बीच न केवल अंदर ही अंदर तनाव बढ़ता जा रहा था बल्कि दोनों तरफ के राजनीतिक नेतृत्व में भी एक-दूसरे के प्रति बेरुखी बनी हुई थी. कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत पर खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाकर दोनों देशों के संबंधों को ऐसी अतल गहराइयों में पहुंचा दिया है, जहां से उबरना आसान नहीं होगा. भारत ने इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित और बेतुका बताते हुए खारिज कर दिया है. दोनों तरफ से राजनयिकों का निष्कासन भी हुआ. भारत ने जवाब में खालिस्तानी आतंकवादियों को शरण देने का आरोप लगाते हुए कनाडा सरकार से वहां सक्रिय सभी भारत विरोधी तत्वों के खिलाफ तत्काल कारगर कानूनी कदम उठाने की मांग की है.

कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत पर खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाकर दोनों देशों के संबंधों को ऐसी अतल गहराइयों में पहुंचा दिया है, जहां से उबरना आसान नहीं होगा.

गहरा अविश्वास

पिछले दिनों G20 शिखर बैठक के दौरान नई दिल्ली में ट्रूडो का रूखा स्वागत भी इस बात का संकेत था कि उनकी सरकार के कार्यकाल में दोनों देशों के बीच रिश्तों में कितना गहरा अविश्वास आ गया है.

  • शिखर बैठक में मोदी और ट्रूडो के बीच कोई द्विपक्षीय बातचीत नहीं हुई. जो थोड़ा-बहुत संवाद दोनों के बीच हुआ, उसमें भी मोदी ने यह बात उठाई कि कनाडा में भारत विरोधी आतंकवादी तत्वों की नकेल कसने के लिए कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की जा रही.
  • ट्रूडो कई लिहाज से दोनों देशों के रिश्तों फलते-फूलते रिश्तों में आई गड़बड़ियों के प्रतीक बन चुके हैं.
  • 2016 में नाकाम हुई अपनी पहली यात्रा के बाद वह कभी भी भारत के साथ तालमेल बनाने में कामयाब नहीं हो पाए. 

उनका यह ताजा बयान भी कि ‘सुरक्षा एजेंसियां कनाडियाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या से भारत सरकार के एजेंटों के संभावित जुड़ाव संबंधी विश्वसनीय आरोपों की तत्परता से जांच कर रही हैं’ जल्दबाजी में दिया गया लग रहा है. ऐसा लगता है कि इसके पीछे वैश्विक मंचों पर अनदेखी और घरेलू मोर्चे पर पैदा हुए तमाम संकटों के बीच खुद को एक विश्वसनीय नेता के रूप में पेश करने की मंशा ज्यादा है. वरना ट्रूडो जांच एजेंसियों के किसी ठोस नतीजे तक पहुंचने का इंतजार तो कर ही सकते थे. लेकिन उन्होंने ‘संभावित जुड़ाव’ और ‘आरोपों’ के ही सहारे भारत पर हल्ला बोल दिया.

ऐसा लगता है कि इसके पीछे वैश्विक मंचों पर अनदेखी और घरेलू मोर्चे पर पैदा हुए तमाम संकटों के बीच खुद को एक विश्वसनीय नेता के रूप में पेश करने की मंशा ज्यादा है. वरना ट्रूडो जांच एजेंसियों के किसी ठोस नतीजे तक पहुंचने का इंतजार तो कर ही सकते थे.

भारत के लिए कनाडा के 1,70,000 से भी ज्यादा बड़ी प्रवासी सिख आबादी में बढ़ता अतिवाद लंबे समय से चिंता का विषय रहा है. भारत ने इसे कनाडा सरकार के सामने समय-समय पर उठाया भी है. लेकिन ट्रूडो सरकार के साथ दिक्कत यह रही है कि भारत के साथ उसका रुख घरेलू राजनीति के अजेंडे से तय हो रहा है. इसके पीछे ठोस कारण भी हैं.

  • 2021 में जस्टिन ट्रूडो को बहुत कम अंतर से जीत मिली और उन्हें जगमीत सिंह ‘जिम्मी’ धालीवाल की अगुआई वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) का सहारा सरकार बनाने के लिए लेना पड़ा, जिसकी 24 सीटें हैं.
  • ट्रूडो राजनीतिक अनिश्चितताओं से घिरे हैं और ऐसे में कम से कम 2025 तक उनके लिए NDP का समर्थन बेहद अहम है.
  • किसान समर्थन से लेकर खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह के खिलाफ हुई पुलिस कार्रवाई तक ट्रूडो और सिंह के बयान भारत-कनाडा रिश्तों में कड़वाहट घोलते रहे हैं.
  • ट्रूडो की लिबरल पार्टी पर सिख ग्रुपों का प्रभाव इतना ज्यादा है कि 2018 में कनाडा के लिए आतंकवादी खतरों पर जारी की गई अपनी एक सार्वजनिक रिपोर्ट में सिख आतंकवाद और खालिस्तान का जिक्र करने के बाद पार्टी को इस रिपोर्ट की संशोधित प्रति छापनी पड़ी, जिसमें सिख आतंकवाद का कोई उल्लेख नहीं किया गया था. 

शायद यही वजहें हैं कि कनाडा में भारत विरोधी अतिवादी विचार दिख रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद ट्रूडो भारत की चिंताओं के प्रति पूरी उदासीनता बनाए हुए हैं.

ऐसे हालात में, दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों को मौजूदा तल्खी के प्रभावों से बचाने की भी कुछ कोशिशें हुई हैं. दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ रहा है. यही नहीं मुफ्त व्यापार समझौते पर मुहर लगाने की इच्छा भी दोनों तरफ है. लेकिन दोनों देशों के बीच तेज होते राजनीतिक मतभेदों के चलते व्यापार वार्ताएं भी स्थगित हो चुकी हैं.

  • भारतीय अधिकारियों की तस्वीरों वाले खालिस्तानी पोस्टर वहां लगाए गए थे.
  • भारतीय उच्चायोग परिसर पर हमला भी हो चुका है.
  • ऑपरेशन ब्लू स्टार की वर्षगांठ के मौके पर भारतीय प्रधानमंत्री की हत्या का दृश्य उकेरते हुए झांकियां निकाली गईं.
  • भारत के सर्वोच्च नेतृत्व के खिलाफ सिख आतंकवादियों की ओर से खुलेआम धमकियां दी जा रही हैं.

यहां तक कि जब भारत में G20 शिखर बैठक हो रही थी, तब भी सिख्स फॉर जस्टिस नाम का एक संगठन, जो भारत में बैन है, कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में खालिस्तान पर जनमतसंगह करवा रहा था. लेकिन भारत की लगातार अपील के बावजूद ट्रूडो सरकार अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इन सबकी अनदेखी करती रही. 

ऐसे हालात में, दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों को मौजूदा तल्खी के प्रभावों से बचाने की भी कुछ कोशिशें हुई हैं. दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ रहा है. यही नहीं मुफ्त व्यापार समझौते पर मुहर लगाने की इच्छा भी दोनों तरफ है. लेकिन दोनों देशों के बीच तेज होते राजनीतिक मतभेदों के चलते व्यापार वार्ताएं भी स्थगित हो चुकी हैं.

स्थायी नुकसान के आसार

ऐसा लगता है कि कनाडा की वैश्विक महत्वाकांक्षाएं उसकी घरेलू राजनीति की बंधक बन चुकी हैं. खतरा यह है कि हिंद-प्रशांत रणनीति का उसका पूरा महल ताश के पत्तों की तरह भहरा कर गिर सकता है. एक तरफ ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारत के साथ ऐसे ही मसले कहीं ज्यादा परिपक्व ढंग से निपटा रहे हैं तो दूसरी तरफ घरेलू चुनौतियों से निकलने की ट्रूडो की बेकरारी भारत-कनाडा रिश्तों को स्थायी नुकसान पहुंचा रही है. जहां तक भारत का सवाल है तो जब तक ट्रूडो की सरकार है, तब तक वह हालात में किसी तरह की बेहतरी की कोई उम्मीद नहीं कर सकती.

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