Author : Vinitha Revi

Published on Jan 27, 2021 Updated 0 Hours ago

भारत को मॉरीशस का ऐसा साझीदार बनना होगा, जिससे मॉरीशस का भला हो सके. इससे भविष्य में मॉरीशस भी भारत की ज़रूरत के वक़्त उसका साझीदार बन सकेगा.

मॉरीशस औमॉरीशस और भारत के रिश्ते: आपसी समझ और सहयोग बढ़ाने के अवसरर भारत के रिश्ते: आपसी समझ और सहयोग बढ़ाने के अवसर

मॉरीशस, बड़ी तेज़ी से भारत की समुद्री कूटनीति के लक्ष्यों का अभिन्न अंग बनता जा रहा है. हालांकि, भारत और मॉरीशस के बहुआयामी रिश्तों की अक्सर दोनों देश चर्चा भी करते हैं, और इनकी महत्ता को स्वीकार भी करते हैं. ये बात हाल के दिनों में दोनों देशों के नेताओं के बीच नियमित रूप से ऑनलाइन संवाद के माध्यम से भी ज़ाहिर होती रही है. फिर भी ये सवाल उठता है कि क्या भारत और मॉरीशस ने आपस में वास्तविक सहयोग की सभी संभावनाओं को साकार कर लिया है? इसके बाद सवाल ये खड़ा होता है कि ऐसे कौन से तरीक़े हैं, जिनके ज़रिए भारत, मॉरीशस के बारे में अपनी समझ और इसकी फौरी चिंताओं को लेकर संवेदनशीलता बढ़ा सकता है?

जुलाई 2020 में मॉरीशस टाइम्स में छपे एक संपादकीय में मॉरीशस के सुप्रीम कोर्ट की नई इमारत, जिसे भारत के सहयोग सहयोग से बनाया गया था और जिसका एक वर्चुअल कार्यक्रम में उद्घाटन किया गया था, के बारे में लिखा था कि ये ‘दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग की लंबी फ़ेहरिस्त में मील का एक और पत्थर’ है. इस संपादकीय में आगे मॉरीशस में मूलभूत ढांचे के विकास के अन्य कई ऐसे प्रोजेक्ट का हवाला भी दिया गया था, जो भारत के सहयोग से चलाए जा रहे हैं. इनमें मेट्रो एक्सप्रेस प्रोजेक्ट, एक ENT अस्पताल और सामाजिक आवासीय और स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी योजनाएं शामिल है. सबसे महत्वपूर्ण तो ये है कि, भारत और मॉरीशस के बीच सहयोग की अहमियत बताने के साथ साथ, इस संपादकीय में ये भी कहा गया था कि, ‘हिंद महासागर (IO) क्षेत्र में तेज़ी से बदल रहे जियोपॉलिटिकल परिदृश्य ने हिंद महासागर क्षेत्र और इसके किनारों पर स्थित देशों के सामने अगर नई चुनौतियां खड़ी की हैं, तो ये चुनौतियां अपने साथ नए अवसर भी लेकर आई हैं.’ मॉरीशस टाइम्स ने लिखा था कि आज हिंद महासागर, सामरिक मुक़ाबले का सबसे बड़ा अखाड़ा बनता जा रहा है और यही कारण है कि, ‘भारत इस क्षेत्र में स्थित द्वीपीय देशों के साथ लगातार विकास और सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ा रहा है.’ अख़बार ने अपने संपादकीय के निष्कर्ष में ये लिखा था कि, ‘हमें भारत के साथ अपने रिश्तों को नई परिस्थिति के नज़रिए से देखना और आंकना होगा.

मॉरीशस टाइम्स ने लिखा था कि आज हिंद महासागर, सामरिक मुक़ाबले का सबसे बड़ा अखाड़ा बनता जा रहा है और यही कारण है कि, ‘भारत इस क्षेत्र में स्थित द्वीपीय देशों के साथ लगातार विकास और सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ा रहा है.’ अख़बार ने अपने संपादकीय के निष्कर्ष में ये लिखा था कि, ‘हमें भारत के साथ अपने रिश्तों को नई परिस्थिति के नज़रिए से देखना और आंकना होगा.

अपने अन्य छोटे द्वीपीय पड़ोसियों के साथ, मॉरीशस भी अपनी समुद्री पहचान और जियोस्ट्रैटेजिक मूल्यों को समझता है. उन्हें ये बात तो ख़ास तौर से पता है कि इन बातों की उनके बड़े पड़ोसी देश भारत के लिए क्या अहमियत है. शायद, जैसा कि मॉरीशस टाइम्स ने अपने संपादकीय में लिखा था कि, ‘अब ऐतिहासिक और भारतवंशियों के संबंधों के आधार पर ही द्वीपीय देशों से संवाद करना पर्याप्त नहीं होगा.’ ये बेहद महत्वपूर्ण बात है, जिस पर ध्यान देने की ज़रूरत है. हमारी कूटनीतिक परिचर्चाओं में भारत और मॉरीशस के बीच, क़रीबी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भारतीय मूल के लोगों से संबंध की बारंबार चर्चा होती है. आधिकारिक बयानों और दस्तावेज़ों में इनकी अहमियत हो सकती है. लेकिन, हिंद महासागर के ताज़ा हालात और तेज़ी से बदलती जियोपॉलिटिक्स को देखते हुए, बस इन्हीं बातों के बूते, दोनों देशों के रिश्तों को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है. मॉरीशस के साथ सहयोग को और आगे बढ़ाने के लिए भारत को ऐसे द्वीपीय देशों के वास्तविक हितों और उनकी चिंताओं को नए सिरे से समझने की ज़रूरत है. ऐसा करने का सबसे अच्छा तरीक़ा ये हो सकता है कि हम मॉरीशस को उसी नज़रिए से देखें, जिस दृष्टि से वो ख़ुद को देखता है.

प्राथमिक तौर पर मॉरीशस ख़ुद को एक छोटा विकासशील द्वीपीय देश (Small Island Developing State-SIDS) मानता है. SIDS को पहली बार एक अलग वर्ग के रूप में, ब्राज़ील के रियो डि जेनेरियो में 1992 में हुए पृथ्वी शिखर सम्मेलन (Earth Summit) मान्यता दी गई थी. मॉरीशस के सामने आज कितनी व्यापक चुनौतियां खड़ी हैं, उसका अंदाज़ा लगाने के लिए हमें इन्हें कुछ टुकड़ों में बांटकर बारीक़ी से देखना होगा. तभी हम समझ पाएंगे कि इन पेचीदा मसलों के पीछे कौन सी चुनौतियां खड़ी हैं.

छोटा आकार: छोटे देशों की कई कमज़ोरियां होती हैं. ये राजनीतिक और आर्थिक रूप से कई ऐसी मुश्किलों के शिकार होते हैं, जिनका बड़े देशों को सामना नहीं करना पड़ता. छोटे आकार के कारण, द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों में इन देशों के अंदर असुरक्षा का भाव पैदा हो जाता है. उन्हें लगता है कि अंतरराष्ट्रीय एजेंडे पर वो अपना कोई प्रभाव नहीं डाल पाएंगे. वैश्विक माहौल पर भी उनके नज़रिए का कोई असर नहीं होगा. अपने वाह्य माहौल में स्थिरता बनाने के लिए-ऐसे छोटे देश, वैश्विक मामलों में टांग अड़ाने के बजाय, अपने आस-पास की परिस्थितियों पर अधिक ध्यान देते हैं. इन छोटे देशों का ज़ोर ये सुनिश्चित करने पर होता है कि कोई एक बड़ी महाशक्ति, उनके आस-पास के क्षेत्र पर हावी न हो जाए. इसी वजह से आज मॉरीशस भी हिंद महासागर क्षेत्र के बदलते हुए शक्ति संतुलन पर क़रीबी नज़र बनाए हुए है, जिससे कि वो बदलती परिस्थितियों से पैदा हुई चुनौतियों और अवसरों का सही आकलन कर सके 

इस संदर्भ में हम ये कह सकते हैं कि छोटे देश, बड़ी ताक़तों के साथ अपने संबंध में या तो संतुलन बनाने की कोशिश करते हैं, या फिर किसी एक महाशक्ति के पाले में चले जाते हैं. लेकिन, यहां ये बात याद रखना महत्वपूर्ण है कि छोटे देश, सिर्फ़ ऐसी ही रणनीतियां नहीं अपनाते. हां, ये बात ज़रूर सच है कि छोटे देशों के ऐसे कूटनीतिक प्रयासों को अधिक तवज्जो दी जाती है. अपनी सीमित क्षमताओं के बावजूद, छोटे देश अपने आप को सुरक्षित और अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखना चाहते हैं. इसके लिए वो नए नए तरीक़े अपनाकर अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में अपनी स्थिति को मज़बूत बनाने का प्रयास करते हैं. बड़ी शक्तियों के साथ गठबंधन करने और सहयोग बढ़ाने के अलावा, ये छोटे देश अपने जैसे आकार वाले उन देशों के साथ भी रिश्तों का एक मज़बूत नेटवर्क बनाने की कोशिश करते हैं, जिनके हित और चुनौतियां उनके जैसी ही होती हैं. SIDS के देशों का समूह इसकी मिसाल है. तमाम अध्ययनों में पाया गया है कि छोटे देश, बड़े क्षेत्रीय संगठनों का हिस्सा बनने को तरज़ीह देते हैं, जिससे कि वो अपने विकल्पों की संख्या बढ़ा सकें.

द्वीप देश: द्वीपीय देशों की मूल रूप से दो तरह की प्राथमिकताएं होती हैं. उनकी प्राथमिक और सबसे ज़रूरी चिंता अपने पर्यावरण को लेकर होती है. वहीं, उनकी दूसरी चिंता अपने समुद्री विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के प्रबंधन को लेकर होती है.

अगस्त 2020 में मॉरीशस को पर्यावरण के आपातकाल का एलान करना पड़ा था. इसकी वजह उसके उस समुद्री क्षेत्र में तेल फैल जाना थी, जिसे मॉरीशस की सरकार ‘बेहद संवेदनशील’ कहती है. फ्रांस, जिसे अक्सर मॉरीशस के विकास का सबसे पुराना साझीदार कहा जाता है, ने मॉरीशस के इस संकट में उसकी मदद के लिए तुरंत हाथ बढ़ाया था. फ्रांस ने समुद्र में तेल फैलने की चुनौती से निपटने में मॉरीशस की मदद के लिए, पास ही स्थित रियूनियन द्वीप समूह से अपनी टीमें और संसाधन भेजे थे. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युअल मैक्रों ने ट्विटर पर लिखा था कि, ‘आज जब जैव विविधता पर संकट आ गया है और तुरंत क़दम उठाने की ज़रूरत है, तो फ्रांस हमेशा की तरह मॉरीशस के लोगों के साथ खड़ा है.’ भारत ने भी इस संकट से निपटने के लिए मॉरीशस को तीस टन तकनीकी उपकरण भेजे थे, जिससे कि समुद्र में फैले तेल से नुक़सान को सीमित किया जा सके और बचाव अभियान चलाए जा सकें.

मॉरीशस जैसे द्वीपीय देश अपने तटीय और समुद्री संसाधनों पर बहुत अधिक निर्भर होते हैं. पर्यावरण के ऐसे संकट, मॉरीशस के समाज और इसके आर्थिक विकास के हर पहलू पर प्रभाव डालते हैं, क्योंकि इनका असर पर्यटन, वन्य जीवन, खाद्य सुरक्षा और लोगों की सेहत ही नहीं, उनके रोज़ी रोटी के संसाधनों पर भी पड़ता है. ऐसे में द्वीपीय देशों के लिए आपदा के जोखिम को कम करने की क्षमता का विकास करना महत्वपूर्ण होता है. इसके अलावा, चूंकि मॉरीशस जलवायु परिवर्तन संबंधी जोखिमों और विशेष तौर पर निचले इलाक़ों में बार-बार आने वाली बाढ़, ऊंचे ज्वार और लगातार घटनी ज़मीन जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है, तो जैसा कि मॉरीशस के सामाजिक सुरक्षा, राष्ट्रीय एकता और स्थायी विकास मंत्रालय के स्थायी सचिव ने साफ़ तौर से कहा कि, ‘मॉरीशस को जलवायु परिवर्तन से निपट सकने और सुरक्षित देश बनाने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ओर से वित्तीय और तकनीकी मदद मिलना बेहद आवश्यक है.’

अब चूंकि, भारत विकास संबंधी अपनी सहायता ज़मीनी स्तर पर बढ़ावा देकर नए सिरे से परिभाषित कर रहा है , तो उसका ज़ोर मानवीय सशक्तिकरण और पर्यावरण का ध्यान रखने पर है. ये बात भारत के उन हालिया प्रयासों से ज़ाहिर होती है, जिनके तहत उसने मालदीव को जल और साफ़-सफ़ाई संबंधी सुविधाएं प्रदान की हैं, तो श्रीलंका को आपातकालीन एंबुलेस सेवाएं उपलब्ध कराई हैं. मॉरीशस में भी भारत किसी संकट में फौरी मदद पहुंचाने के प्रयासों से आगे बढ़कर दलदली वनों के संरक्षण और नए वन लगाने, समुद्र की निगरानी और सामुदायिक स्तर पर किसी परिस्थिति से लड़ने का प्रशिक्षण देने जैसी मदद दे सकता है. आगे चलकर, भारत एक दूसरे से हमदर्दी रखने वाले और एक जैसी चुनौतियां झेल रहे द्वीपों जैसे कि मालदीव और सेशेल्स के साथ मॉरीशस का नेटवर्क विकसित करने में मदद कर सकता है. बाढ़ प्रबंधन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं जैसे क्षेत्रों में क्षमता के निर्माण में भारत अपने साथ जापान को भी जोड़ सकता है, क्योंकि जापान के पास समुद्री तूफानों से निपटने का अच्छा अनुभव है. इस काम में भारत अपने आंध्र प्रदेश, ओडिशा तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुड्डुचेरी के केंद्र शासित प्रदेशों को भी जोड़ सकता है, जिन्हें अक्सर चक्रवातों का सामना करना पड़ता है.

विकासशील देश: वो विकासशील देश, जो द्वीपीय राष्ट्र हैं, वो अक्सर अपने कम संसाधनों और छोटे व सीमित घरेलू बाज़ार की चुनौतियों का सामना करते हैं. इसका मतलब ये होता है कि उनके उत्पादन में विविधता की कमी होती है और उन्हें कुछ ख़ास क्षेत्रों में ही विशेषज्ञता हासिल होती है. हालांकि, मॉरीशस ने अपने यहां चीनी से लेकर कपड़ा उद्योग तक को विकसित किया है और अब अपने देश की अर्थव्यवस्था को सर्विस सेक्टर आधारित इकॉनमी बनाने के लिए काम कर रहा है. पर, मॉरीशस की अर्थव्यवस्था की बनावट अन्य विकासशील द्वीपीय देशों जैसी ही है. विदेशी व्यापार पर बहुत अधिक निर्भरता (मॉरीशस की GDP में व्यापार की हिस्सेदारी 93 प्रतिशत है) होने के कारण, मॉरीशस को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में उठा-पटक का शिकार होने का डर बना रहता है.

कोरोना वायरस की महामारी ने मॉरीशस की अर्थव्यवस्था पर बहुत गहरा असर डाला है और आगे भी इसका प्रभाव बना रहेगा, क्योंकि दुनिया भर में लॉकडाउन के चलते, मॉरीशस में पर्यटकों की आमद बेहद कम हो गई और उसके उत्पादों, विशेष तौर पर कपड़ा उद्योग के निर्यात की मांग भी लगातार घट रही है. इस समय अमेरिका ही मॉरीशस के निर्यात का सबसे बड़ा बाज़ार है, जो ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका से थोड़ा ही आगे है. दूर स्थित देशों के बाज़ारों पर मॉरीशस की निर्भरता का मतलब ये होता है कि उसे अपने उत्पादों के निर्यात में अधिक ऊर्जा लगानी पड़ती है और उनकी आवाजाही का ख़र्च भी बढ़ जाता है. द्वीपीय देश होने के कारण इससे मॉरीशस के मूलभूत ढांचे की लागत भी बढ़ जाती है. 2020 में समुद्री व्यापार की समीक्षा का आकलन था कि वैश्विक समुद्री व्यापार में 4.1 प्रतिशत की कमी आएगी. अपने व्यापार और पर्यटन पर पड़ने वाले विपरीत प्रभावों से निपटने और अपने यहां के निजी क्षेत्र में सीमित अवसरों को देखते हुए, मॉरीशस को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से विशेष सहयोग की ज़रूरत होगी. ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं, जहां भारत, मॉरीशस के साथ सहयोग कर सकता है. इसकी शुरुआत वो मॉरीशस के साथ व्यापक आर्थिक साझेदारी के समझौते (CECPA) पर हस्ताक्षर के साथ कर सकता है. विकास के बारे में एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए, भारत और मॉरीशस आपस में कई अन्य क्षेत्रों जैसे कि, नवीनीकरण योग्य ऊर्जा, स्मार्ट सिटी के विकास में मदद और वित्तीय तकनीकों के विकास संबंधी गतिविधियों में सहयोग बढ़ा सकते हैं. यहां पर भी भारत को सेशेल्स जैसे अन्य देशों के साथ मिलकर एक बड़ा नेटवर्क विकसित करने की पहल करनी चाहिए. इसकी वजह ये है कि सेशेल्स अपने यहां ब्लू इकॉनमी विकसित करने और स्थायी विकास के प्रोजेक्ट के लिए नए नए तरीक़ों से वित्तीय संसाधन जुटाने में सफल रहा है.

विकास के बारे में एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए, भारत और मॉरीशस आपस में कई अन्य क्षेत्रों जैसे कि, नवीनीकरण योग्य ऊर्जा, स्मार्ट सिटी के विकास में मदद और वित्तीय तकनीकों के विकास संबंधी गतिविधियों में सहयोग बढ़ा सकते हैं. 

जापान के विदेश मंत्री मोटेगी तोशिमित्सु के साथ हाल ही में एक वार्तालाप के दौरान, मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ ने तेल का फैलाव रोकने में जापान की मदद के लिए शुक्रिया कहा था. वहीं, जापान के विदेश मंत्री ने मॉरीशस के प्रधानमंत्री से कहा था कि वो उनके देश की अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने और उसके विकास को बढ़ावा देने में मदद करने का इच्छुक है. जापान के विदेश मंत्री ने इसके लिए पर्यटन, व्यापार एवं निवेश पर सेमिनार आयोजित करने का प्रस्ताव रखा था. भारत भी ऐसे प्रयासों में शामिल हो सकता है.

अब जबकि, बदलती हुई क्षेत्रीय परिस्थितियों में मॉरीशस अपनी विदेश नीति और अर्थव्यवस्था, दोनों को लेकर अपनी भविष्य की दशा-दिशा पर विचार मंथन कर रहा है, तो भारत के लिए उपयोगी होगा कि वो मॉरीशस की इन चिंताओं पर ध्यान दे और उसके एक विकासशील द्वीपीय देश होने की पहचान को अहमियत दे. भारत को मॉरीशस का ऐसा साझीदार बनना होगा, जिससे मॉरीशस का भला हो सके. इससे भविष्य में मॉरीशस भी भारत की ज़रूरत के वक़्त उसका साझीदार बन सकेगा.

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