Author : Chaitanya Giri

Expert Speak Space Tracker
Published on Mar 24, 2025 Updated 5 Hours ago

 एक अच्छा मॉडल एक अन्य रणनीतिक क्षेत्र, वाणिज्यिक परमाणु क्षेत्र, के निजीकरण के काम आ सकता है. इस क्षेत्र की देश में शुरुआत हो चुकी है.

रेगुलेटर - प्रमोटर की भूमिका के अलग होने से अंतरिक्ष ‘स्पेस’ पर कानूनी युद्ध टलने की उम्मीद

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यह लेख रायसीना एडिट - 2025 सीरीज़ का हिस्सा है.


भू-आर्थिक स्तर पर मजाकिया लहजे में एक बात कही जाती है कि, ' यूनाइटेड स्टेट्स इन्नोवेट करता है, चीन मैन्युफैक्चर करता है और यूरोपीय यूनियन (EU) रेगुलेट यानी विनियमन करता है'. हाल ही में दो अमेरिकन कंपनियों गूगल एवं मेटा ने यह शिकायत की है कि EU के प्रस्तावित आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक्ट और जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (GDPR) उनके नवाचार का गला घोंटकर यूरोप में उनके उत्पादों के रोलआउट को प्रभावित कर रहे हैं. एक्सेसिव एवं प्रीमेच्योर रेगुलेशंस यानी अत्यधिक एवं असामयिक विनियमन की वजह से यूरोप की हाई टेक इनोवेशन कैपेसिटी प्रभावित हुई है. ऐसे में ये विनियमन ट्रांस अटलांटिक इकोनामिक रिलेशंस में चिंता का एक कारण बने हुए हैं. हाल ही में हुए भू-राजनीतिक परिवर्तनों के बीच भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की कोशिश कर रहा है. ऐसे में उसे इन बातों से सबक लेकर सीखना चाहिए. भारत अब केवल चीन की तर्ज़ पर लंबे समय तक केवल मैन्युफैक्चरिंग पावर बनकर नहीं रह सकता. उसे अब इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी पावर बनना होगा. इसके लिए यह ज़रूरी है कि वह साइंटिफिक इन्नोवेशंस एंड टेक्नोलॉजी को विनियमित करने वाले रास्ते पर सावधानीपूर्वक आगे बढ़ते हुए इन्हें प्रोत्साहित करें.

वर्तमान में IN-SPACe अंतरिक्ष गतिविधियों को किसी आदेश, परिपत्र या अध्यादेश के कारण मिले अधिकार के तहत आधिकारिक अनुमति नहीं देती. बल्कि वह प्राइवेट स्पेस एंटरप्राइज यानी निजी अंतरिक्ष इकाई के साथ अनुबंध करते हुए उसकी गतिविधियों को आधिकारिक अनुमति देती है.

डिपार्टमेंट ऑफ़ स्पेस के तहत इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड ऑथराइजेशन सेंटर (IN-SPACe) यानी भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र नामक एक नई संस्था का गठन किया गया है. इस संस्था ने अक्टूबर 2024 में 1000 करोड़ रुपए के स्टार्टअप वेंचर कैपिटल फंड स्थापित करने की घोषणा की थी. इसी प्रकार फरवरी 2025 में इसकी ओर से 500 करोड़ रुपए के टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट फंड को स्थापित करने की घोषणा की गई. काफ़ी कम अंतराल में की गई इन घोषणाओं के बाद सरकार के भीतर और गैर सरकारी हल्कों में दबी आवाज में यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या IN-SPACe जैसी विनियामक संस्था नवाचार को वित्तपोषित कर सकती है? यदि हां तो वह कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट यानी हितों के टकराव का शिकार होने से कैसे बच सकेगी क्योंकि जिस स्टार्टअप को उसने वित्तपोषित किया है, क्या वह उसके ख़िलाफ़ नियमों का कड़ाई से पालन करने के लिए दबाव डाल सकेगी? वह अपने ही वित्तपोषित और गैर वित्तपोषित स्टार्टअप में भेदभाव कैसे करेगी? IN-SPACe की ओर से फिलहाल इस नाजुक धारणा या गलत धारणा को लेकर सफाई आनी बाकी है.

 

इंडियन स्पेस पॉलिसी की भूमिका

इंडियन स्पेस पॉलिसी 2023 (ISP, 2023) यानी भारतीय अंतरिक्ष नीति में सरकार ने कहा था कि, "वह IN-SPACe के माध्यम से स्पेस सेक्टर यानी अंतरिक्ष क्षेत्र में गैर सरकारी इकाइयों को समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए एक स्थाई और प्रिडिक्टेबल यानी पूर्वानुमानित रेगुलेटरी फ्रेमवर्क उपलब्ध कराएगी." इसी दस्तावेज़ में कहा गया है कि IN-SPACe की ओर से दिशा-निर्देश और विनियमन निर्धारित किए जाएंगे. ISP, 2023 के तहत IN-SPACe द्वारा किए जाने वाले कार्य तथा ऑथोराइजेशन ऑफ स्पेस एक्टिविटीज (NGP) यानी अंतरिक्ष गतिविधियों के प्राधिकरण के संदर्भ में ISP, 2023 में दिए गए नॉर्म्स, गाइडलाइंस एंड प्रोसीजर्स अर्थात मापदंड, दिशा निर्देशों और प्रक्रियाओं में नियामक के अनेक महत्वपूर्ण पहलू मौजूद हैं. IN-SPACe’s का संगठनात्मक मॉडल रचनात्मक रूप से अनूठा है जिसमें एक ही संगठनात्मक छत के नीचे प्रमोशन यानी प्रोत्साहन, हैंड-होल्डिंग अर्थात सहायता, गाइडिंग मतलब मार्गदर्शन तथा प्राधिकारी जवाबदेही उपलब्ध है.

 IN -SPACe की भविष्य में क्या भूमिका होगी यह फ़ैसला तो सरकार की ही तरफ से सोच समझ कर लिया जाएगा. लेकिन भारत को अपने इतिहास से सबक लेना चाहिए.

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि आमतौर पर किसी संस्था को नियामक का दर्ज़ा देने के लिए 'संसद में कानून पारित' करना पड़ता है. वर्तमान में IN-SPACe अंतरिक्ष गतिविधियों को किसी आदेश, परिपत्र या अध्यादेश के कारण मिले अधिकार के तहत आधिकारिक अनुमति नहीं देती. बल्कि वह प्राइवेट स्पेस एंटरप्राइज यानी निजी अंतरिक्ष इकाई के साथ अनुबंध करते हुए उसकी गतिविधियों को आधिकारिक अनुमति देती है. ऐसे में जब तक अनुबंध करने के लिए आवश्यक संवैधानिक बातों या प्रक्रियाओं का पालन किया जा रहा है तब तक के इस तरह की व्यवस्था को पूर्ण रूप से गलत नहीं कहा जा सकता. इसके बावजूद अनेक सवाल बिना जवाब के रह जाते हैं. मसलन क्या ऐसी स्थिति में अनुबंध को डिटर्मिननेबल यानी निर्धारणीय माना जाएगा या नहीं? क्या प्राधिकार का उल्लंघन करने पर लगाया जाने वाला जुर्माना, इंडियन कांट्रेक्ट एक्ट के सेक्शन यानी धारा 73 और 74 के दायरे में नुक़सान साबित करने संबंधी कड़ी परीक्षा पर ख़रा उतरेगा?

 

ऊपर के सटीक लेकिन वैध कानूनी सवालों के अलावा यह सवाल भी उठता है कि सरकार वाणिज्यिक अंतरिक्ष क्षेत्र में निवेश क्यों करने जा रही है? यह फ़ैसला अभी क्यों लिया जा रहा है? विदेशी पूंजी निवेश कहां है? क्या घरेलू संस्थागत निवेशक अब भी हाई- रिस्क इन्वेस्टमेंट के साथ जाना या जुड़ना नहीं चाहते? निश्चित रूप से ये चुनौतियां अभी मौजूद हैं.

 

IN-SPACe का पर्यवेक्षण करने वाले प्राइम मिनिस्टर्स ऑफिस (PMO) यानी प्रधानमंत्री कार्यालय ने बड़ी तत्परता के साथ भविष्य में वैश्विक अर्थव्यवस्था में तैयार हो रही आर्थिक उथल पुथल को देख लिया है. इसके अलावा PMO ने समूचे पश्चिम के भीतर भू-राजनीतिक तथा भू-आर्थिक मतभेदों को भी पहचान लिया है. समूचा पश्चिम ही भारतीय वाणिज्यिक अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र के लिए पूंजी, व्यापार और तकनीक का महत्वपूर्ण स्त्रोत है. इसके अलावा PMO टैरिफ युद्ध की शक्ल में उभर रही अंतरराष्ट्रीय टेक्नो पॉलिटिकल मल्टीपालैरिटी का अंदाजा भी लगा चुका है. इन सभी बातों की वजह से वैश्विक स्तर पर सीमा पार निवेश की गति धीमी होगी. इसके अलावा विदेशी वेंचर कैपिटल पर टेक्नो पॉलिटिकल जटिलताओं के कारण भरोसा नहीं किया जा सकता. यह बात विशेष रूप से उन निवेशों पर लागू होती है जिनकी मलकीयत का लाभ पाने वाले लोगों में संदिग्ध निवेशक जुड़े हुए हैं.

भारत ने अपने अंतरिक्ष क्षेत्र का निजीकरण कर दिया है. लेकिन उसके इस फ़ैसले से इस क्षेत्र के रणनीतिक महत्व अथवा राष्ट्रीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के साथ इसके संबंधों में कोई कमी नहीं आई है, उल्टे यह कई गुना बढ़ गई है. कमर्शियल स्पेस सेक्टर में उदारीकरण को प्रोत्साहन देकर सुरक्षा कवच मुहैया करवाने की आवश्यकता है. इसीलिए सरकार को घरेलू वित्त पोषण के माध्यम से ही सफ़लता की उड़ान भरने को तैयार इस निजी अंतरिक्ष क्षेत्र की सहायता करते हुए इसे टिकाए रखना होगा. पिछले 5-10 वर्षों में यह बार-बार देखा गया है कि घरेलू निजी निवेशक और बैंक अपने माध्यम से पैसा लगाने वाले निवेशकों को एक तकनीकी रूप से क्षमतावान और निष्पक्ष इकाई से मान्यता दिलाने चाहते हैं. IN-SPACe ही इसके लिए एक सक्षम इकाई है. भारतीय बैंको, जिसमें राष्ट्रीयकृत एवं निजी बैंक शामिल है, के पास अंतरिक्ष नवाचारों में होने वाले निवेश के कमर्शियल रिटर्न का मूल्यांकन करने की पूर्ण क्षमता मौजूद नहीं है. IN-SPACe ही ऐसा करने वाली सक्षम इकाई है. ऐसे में सरकार की ओर से कमर्शियल स्पेस सेक्टर के लिए 1,500 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया जाना उचित कदम है. अल्टरनेट इन्वेस्टमेंट फंड रूट यानी पर्यायी निवेश फंड का रास्ता अपनाने को एक अच्छी शुरुआत ही कहा जाएगा. आने वाले वर्षों में इस सेक्टर की भूख़ और बढ़ेगी. ऐसे में सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह विदेशी निवेश के ख़िलाफ़ घरेलू निवेश का अनुपात बेहतर बनाए रखें.

 

IN -SPACe की भविष्य में क्या भूमिका होगी यह फ़ैसला तो सरकार की ही तरफ से सोच समझ कर लिया जाएगा. लेकिन भारत को अपने इतिहास से सबक लेना चाहिए. उदाहरण के लिए 2008, 2011 तथा 2013 में बायोटेक्नोलॉजी क्षेत्र को विनियमित करने की अपरिपक्व कोशिश की गई थी. इसके लिए बायोटेक्नोलॉजी रेगुलेटरी ऑफ इंडिया बिल तैयार किया गया, लेकिन तीनों ही बार बात नहीं बन सकी. 2003 में भी एक औद्योगिक संगठन द एसोसिएशन ऑफ बायोटेक्नोलॉजी-लेड इंटरप्राइजेज की स्थापना की गई थी. लेकिन इस दौरान भी नियामक के रूप में सरकार और संगठन के माध्यम से उद्योगों के बीच सुगमता से काम नहीं चल पाया. अंततः डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी ने समझदारी दिखाई और 2012 में अपने और उद्योगों के बीच की मिसिंग यानी अनुपस्थित कड़ी की शिनाख़्त कर ली. इसी वजह से डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी ने अपनी फंडिंग यानी वित्तपोषण एवं प्रमोशन अर्थात प्रोत्साहन एजेंसी जिसका नाम है बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च अस्सिटेंस काउंसिल (BIRAC) की स्थापना की. BIRAC ही अब भारतीय बायो इकॉनमी सेक्टर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसका आकार 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है, लेकिन यह नियामक नहीं है.

 इस क्षेत्र की देश में शुरुआत हो चुकी है. IN-SPACe एक अनूठा और प्रभावी ऑपरेटिंग सैंडबॉक्स है जिसे एजेंसीज, नीति तथा लॉ फर्म्स काफ़ी बारीकी से देख रहे हैं. ऐसे में बेहतर होगा यदि यह अपने 'सेपरेशन ऑफ फंक्शन' यानी कार्य को अलग अलग करने की स्पष्ट व्याख्या करें. 

ठीक इसी प्रकार सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया का गठन टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया से पहले ही कर दिया गया था. यह एक फंडिंग सपोर्ट एजेंसी नहीं है बल्कि यह एक गैर सरकारी संगठन है. इसका उदय 1990 के दशक की शुरुआत में हुआ था जब पहली बार सिटी लेवल टेलीकॉम लाइसेंस यानी शहर स्तरीय लाइसेंस देने की घोषणा की गई. हालांकि यह 2014 की बात है जब टेलीकॉम स्टैंडर्ड्स डेवलपमेंट सोसाइटी ऑफ़ इंडिया की स्थापना की गई. इसे ही अब घरेलू स्तर पर 5Gi तथा 6G टेक्नोलॉजी में नवाचार के लिए ज़िम्मेदार माना जाता है. यह बात भारत में टेलीकम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के फर्स्ट फोर जनरेशंस में संभव नहीं हो सकी थी. इस मामले में भारत के टेलीकॉम सेक्टर में इनोवेशन और स्टैंडर्डडाइजेशन का आगमन विनियमन के काफ़ी देर बाद हुआ था. यदि इसकी स्थापना 2000 के दशक के मध्य में हो जाती तो भारत टेलीकॉम जनरेशन 3G और 4G में भी शामिल हो सकता था. इन उदाहरण के अलावा अन्य उदाहरणों को देखकर यह साफ़ हो जाता है कि उद्योग के हितों को प्रभावी रूप से आगे बढ़ाने के लिए जल्दी से वित्त पोषण मुहैया करवाते हुए विनियमनों का सहारा लिया जाना चाहिए. नवाचार को बढ़ावा दिए बगैर विनियमन किए जाने से नुक़सान ही होता है. ऐसे करने वाले यूरोप से मिलने वाले सबक का अध्ययन किया जा सकता है.

 

आगे की राह 

IN-SPACe को अब सार्वजनिक रूप से यह कह देना चाहिए कि उसके प्रमोशन और ऑथराइजेशन आर्म्स यानी प्रचार तथा प्राधिकारी शाखा में 'सेपरेशन ऑफ फंक्शन' हैं अर्थात दोनों के कार्य अलग अलग हैं. कार्य के अंतर को साफ़ कर देना इसलिए भी ज़रूरी है ताकि सरकार को हितों के मतभेद वाले पुष्ट और अपुष्ट मामलों से बचा कर इससे उपजने वाली जटिलता से दूर रखा जा सके. DoS निश्चित रूप से भू-राजनीतिक रूप से प्रोत्साहित 'लॉफेयर', कानून और युद्ध के मिश्रण से तैयार शब्द, के पचड़े या जाल में बगैर तैयारी के जानबूझकर नहीं जाना चाहेगा. अंतिम बार उसने अपने सार्वजनिक उपक्रम, एंट्रिक्स के ख़िलाफ़ इंटरनेशनल 'लॉफेयर अटैक' देखा था. इस हमले को टाला जा सकता था.


निश्चित रूप से IN-SPACe कमर्शियल स्पेस सेक्टर के लिए विनियमन ढांचे को विस्तारित करने में अहम भूमिका अदा करेगा. यह बात विशेष रूप से कमर्शियल ह्यूमन स्पेसफ्लाइट यानी वाणिज्यिक मानव अंतरिक्ष उड़ान, एक्स्ट्राटेरेस्ट्रियल एक्टिविटीज अर्थात पृथ्वी या उसके वायुमंडल से बाहर की गतिविधियां, रिसोर्स एक्सट्रैक्शन एंड यूटिलाइजेशन यानी संसाधन उत्खनन एवं उपयोग तथा इंटरनेशनली सस्टेनेबल कंप्लायंट ऑर्बिटल ऑपरेशंस अर्थात अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नियमानुसार कक्षीय संचालन जैसे क्षेत्रों पर लागू होती है. इस तरह के विस्तारित विनियमन ढांचे का विकास केवल PMO ही नहीं बल्कि उन सभी मंत्रालयों, विशेष रूप से ऐसे मंत्रालयों जो एक या उससे अधिक कैबिनेट कमेटी से जुड़े हुए हैं, से जानकारी साझा करने से किया जा सकेगा. IN-SPACe अन्य नवाचार क्षेत्रों में तथा सरकारी विज्ञान एवं तकनीकी उद्योगों में फैसिलिटेटर्स यानी सुविधा प्रदान करने वालों के लिए बेंचमार्क यानी मानदंड स्थापित कर सकता है. एक अच्छा मॉडल एक अन्य रणनीतिक क्षेत्र, वाणिज्यिक परमाणु क्षेत्र, के निजीकरण के काम आ सकता है. इस क्षेत्र की देश में शुरुआत हो चुकी है. IN-SPACe एक अनूठा और प्रभावी ऑपरेटिंग सैंडबॉक्स है जिसे एजेंसीज, नीति तथा लॉ फर्म्स काफ़ी बारीकी से देख रहे हैं. ऐसे में बेहतर होगा यदि यह अपने 'सेपरेशन ऑफ फंक्शन' यानी कार्य को अलग अलग करने की स्पष्ट व्याख्या करें. इसके अलावा यह ख़ुले दिल से नवाचार को प्रोत्साहित करने के साथ ही अपने प्राधिकरण का पूरी बारीकी से उपयोग करने का काम करें. इसे यूरोपियन की तरह अत्यधिक विनियमन से बचना चाहिए और लॉफेयर हमलों की राह से बचकर निकल जाना चाहिए.


चैतन्य गिरि, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्योरिटी, स्ट्रेटेजी एंड टेक्नोलॉजी में फैलो हैं.

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