Published on Oct 10, 2023 Updated 0 Hours ago

दुनिया की कुपोषण से होने वाली बीमारी का आधे से ज़्यादा बोझ जी20 देशों पर पड़ता है. इसमें कुपोषण से संबंधित अल्पपोषण, मोटापा और गैर-संचारी रोग शामिल हैं. यह नीति संक्षिप्त जी20 देशों को 2030 तक कुपोषण के बोझ को 50 प्रतिशत कम करने के लक्ष्य की प्रतिज्ञा लेने की सिफ़ारिश करता है. इसके अलावा, यह एक स्थायी जी20 पोषण संस्थान की स्थापना का सुझाव देता है जो पोषण से संबंधित सिफ़ारिशों की एक व्यूह रचना तैयार करेगा (जिसमें कुपोषण से निपटने के व्यापक सिद्धांत शामिल हो सकते हैं, जैसे कि सार्वजनिक बनाम नैदानिक पोषण हस्तक्षेपों को अलग-अलग करना, एक समर्पित पोषण संवर्ग का निर्माण, और राष्ट्रीय शासन संरचनाओं के हिस्से के रूप में पोषण मंत्रालय की स्थापना). यह नीति संक्षिप्त जी20 को कुपोषण के प्रभाव पर ध्यान को मौतों और घटनाओं से हटाकर विकलांगता समायोजित जीवन वर्षों की ओर ले जाने की भी सिफ़ारिश करता है.

2030 तक सभी जी20 देशों में कुपोषण को कम कर आधे तक लाना

कार्य बल 6: एसडीजी की गति बढ़ानाः 2030 के एजेंडा के लिए नए रास्तों की तलाश


  1. चुनौती

कुपोषण वैश्विक आबादी के स्वास्थ्य के लिए एक बहुत बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) कुपोषण[1] को ‘किसी व्यक्ति के ऊर्जा और/या पोषक तत्वों के सेवन में कमी, अधिकता या असंतुलन’ के रूप में परिभाषित करता है. यह कुपोषण को मोटे तौर पर तीन तरह की स्थितियों में वर्गीकृत करता है, जो हैं, अल्पपोषण,[ए] सूक्ष्म पोषक तत्वों से संबंधित कुपोषण,[बी] और मोटापा और आहार से संबंधित कुपोषण.[सी]

दुनिया, विशेषकर विकासशील देश, कुपोषण के दोहरे बोझ का सामना कर रहे हैं. एक तरफ, किसी देश की अधिकांश आबादी अल्पपोषण से ग्रस्त है और दूसरी तरफ, आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अतिपोषण से संबंधित बीमारियों से ग्रस्त है. उदाहरण के लिए, भारत के नवीनतम सरकारी आंकड़ों के अनुसार,[2][2] 15-49 वर्ष के आयु वर्ग में 18.7 प्रतिशत महिलाएं और 16.2 प्रतिशत पुरुष अल्पपोषण (बीएमआई 25.0 किग्रा/एम2) से ग्रस्त हैं.

कुपोषण एक जटिल स्थिति है जो कई कारकों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है, जिसमें अपर्याप्त आहार का सेवन, खाने की ख़राब गुणवत्ता, स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच में कमी और अंतर्निहित स्वास्थ्य स्थितियां शामिल हैं. इसका शारीरिक और मानसिक विकास, प्रतिरक्षा प्रणाली के काम करने और समग्र स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.

जीवन चक्र दृष्टिकोण दिखाता है कि बच्चों में कुपोषण के परिणामस्वरूप लंबे समय तक कमज़ोर वृद्धि, विलंबित संज्ञानात्मक विकास और संक्रामक रोगों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ सकती है (चित्र 1 देखें).[3]

[चित्र 1: कुपोषण के लिए जीवन चक्र दृष्टिकोण]

स्रोत: चौथी रिपोर्ट – विश्व में पोषण की स्थिति: पूरे जीवन काल में पोषण[4],[5][5]

जीवन के पहले तीन वर्ष, जिन्हें ‘पहले 1000 दिन’ भी कहा जाता है, एक बच्चे के संज्ञानात्मक विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं और इसलिए इस अवधि के दौरान कुपोषण और इसके प्रभाव को कम करने के लिए हस्तक्षेप करने पर उसका असर होने की संभावना सबसे अधिक होती है. यह भी दर्शाया गया है कि यदि इन वर्षों में बच्चों को समुचित पोषण और देखभाल प्रदान नहीं की जाती है, तो क्षति अपूरणीय हो सकती है.[6]

वयस्कों में दीर्घकालिक कुपोषण से अपक्षय, मांसपेशियों की हानि और प्रतिरक्षा प्रणाली का कमज़ोर होने के साथ ही मधुमेह, हृदय रोग और कुछ प्रकार के कैंसर जैसी स्थायी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है. अधिक पोषण से मोटापा, मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसे चयापचय (मेटाबॉलिक) संबंधी विकार और हृदय रोग, स्ट्रोक और कुछ प्रकार के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है.[7]

समाज पर कुपोषण के सबसे महत्वपूर्ण प्रभावों में से एक है आर्थिक उत्पादकता पर इसका प्रभाव. कुपोषित व्यक्तियों में शारीरिक और संज्ञानात्मक विकास में कमी रहने की संभावना अधिक होती है, जो श्रमिक संख्या में शामिल होने और आर्थिक विकास में योगदान करने की उनकी क्षमता को सीमित कर सकता है. इसके अलावा, कुपोषण के कारण बीमारी और विकलांगता के कारण स्वास्थ्य सेवा की लागत बढ़ सकती है और उत्पादकता कम हो सकती है, जिसके व्यक्तियों, परिवारों और समुदायों पर महत्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव पड़ सकते हैं.[8]

इस कुपोषण बोझ का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा जी20 देशों को उठाना पड़ रहा है (चित्र 2 देखें). जी20 देशों में भी भारत में बीमारी का बोझ सबसे अधिक है (चित्र 3 देखें), जो इसे इस समस्या से निपटने के लिए वैश्विक एकजुटता की अगुवाई करने के लिए आदर्श उम्मीदवार बनाता है. इसलिए, जी20 की अध्यक्षता के दौरान भारत के लिए कुपोषण से निपटना चिंता का एक प्रमुख विषय होना चाहिए.

[चित्र 2: कुपोषण से होने वाली बीमारियों का वैश्विक वितरण (गणना, विकलांगता समायोजित जीवन वर्षों का उपयोग करके की गई है)]

स्रोत: इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन, यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन[9]

[चित्र 3: कुपोषण से होने वाली बीमारियों का बोझ – भारत बनाम शेष जी20]

स्रोत: इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन, यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन[10]

कुपोषण का सीधा प्रभाव सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) पर पड़ता है,[11] विशेष रूप से एसडीजी-2,[डी] एसडीजी लक्ष्य 2.1,[ई] और एसडीजी लक्ष्य 2.2.[एफ़] पोषण परिणामों में सुधार से एसडीजी लक्ष्य भी सकारात्मक रूप से प्रभावित होंगे, जिसमें एसडीजी-1 (गरीबी को कम करना) और एसडीजी-3 (स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार) शामिल हैं.

हालांकि दुनिया भर में कुपोषण की समस्या की स्थिति में सुधार हुआ है लेकिन लक्ष्य अभी बहुत दूर है. उदाहरण के लिए दुनिया भर में 22 प्रतिशत बच्चे कमज़़ोरी से ग्रस्त हैं और 6.7 प्रतिशत क्षयशील से (बच्चों में कुपोषण के संदर्भ में Wasting या क्षयशील या बर्बादी का अर्थ है बच्चे के शरीर का वज़न, उसकी उम्र और ऊंचाई के हिसाब से बहुत कम होना. यह कुपोषण का सबसे गंभीर रूप है और इससे बच्चे की जान को ख़तरा हो सकता है. क्षयशील होने की स्थिति आमतौर पर तीव्र कुपोषण के कारण आती है, जो तब होता है जब बच्चे को पर्याप्त खाना नहीं मिलता या उसका शरीर खाने से पोषक तत्वों को ठीक से नहीं सोख पाता. इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि बीमारी, भोजन की कमी, या अनुचित आहार). दुनिया के 5.7 प्रतिशत बच्चे अब अधिक वजन का शिकार हैं ओर मोटापे से पीड़ित बच्चों की संख्या में भी वृद्धि हुई है.[12]

दुनिया में कोई ऐसी एकल संस्था नहीं है जो कुपोषण को कम करने पर नज़र रख रही हो. संयुक्त राष्ट्र बाल कोष बच्चों और किशोरों में कुपोषण और मातृ पोषण पर ध्यान केंद्रित करता है.[13] यह अल्प पोषाहार से संबंधित कुपोषण को कम करने के लिए काम करता है. संयुक्त राष्ट्र ने 2016-2025 को पोषण पर कार्रवाई का दशक घोषित किया है.[14] यह सभी रूपों में कुपोषण को समाप्त करने के लिए नीतियों, कार्यक्रमों और बढ़े हुए निवेश के निरंतर और सुसंगत कार्यान्वयन के लिए एक प्रतिबद्धता है. फिर भी, भूख और कुपोषण को पूरी तरह समाप्त करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना बाक़ी है.

  1. जी20 की भूमिका

दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे प्रभावशाली अर्थव्यवस्थाओं के समूह के रूप में जी20 के पास वैश्विक स्तर पर कुपोषण को समाप्त करने के प्रयासों में अग्रणी भूमिका निभाने का एक अनूठा अवसर और ज़िम्मेदारी है. कुपोषण एक प्रमुख वैश्विक स्वास्थ्य मुद्दा है जो लाखों लोगों को प्रभावित करता है, विशेष रूप से विकासशील देशों में और इसके दूरगामी आर्थिक और सामाजिक असर होते हैं. दुनिया भर में कुपोषण से होने वाली बीमारियों के बोझ का बड़ा हिस्सा अफ्रीकी संघ और दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) के साथ जी20 को वहन करना पड़ता है. जी20 की सामूहिक शक्ति और संसाधन इस चुनौती का समाधान करने और कुपोषण को समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हासिल करने में मदद कर सकते हैं.

पूर्वानुमानों के अनुसार, दुनिया के आधे से अधिक देश भूख को पूरी तरह ख़त्म करने और इससे जुड़े अन्य लक्ष्यों जैसे कि अत्यधिक गरीबी में कमी, को 2030 तक की निर्धारित समय सीमा के भीतर प्राप्त नहीं कर पाएंगे.[15] इसका मतलब है कि निरंतर प्रयास और संसाधनों के आवंटन के बिना, दुनिया भूख और कुपोषण के बोझ को कम नहीं कर पाएगी.

  1. जी20 को सिफ़ारिशें

वर्तमान अनुमानों के अनुसार, दुनिया कुपोषण से होने वाली बीमारियों के बोझ में वांछित कमी प्राप्त करने के रास्ते पर नहीं है. कोविड-19 महामारी के कारण, लाखों बच्चे फिर से कमज़ोर और क्षयशील होने के खतरे में हैं. सारे कुपोषण को समाप्त करना एक ऐसा लक्ष्य नहीं है जिसे 2030 तक प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन अगर जी20 ज़ोर लगाए तो 2030 तक कुपोषण के बोझ में 50 प्रतिशत की कमी हासिल की जा सकती है. इस लक्ष्य के लिए साक्ष्य-आधारित प्रयासों की आवश्यकता है जो राजनीतिक इच्छा से प्रेरित हों और उनमें अचानक लगने वाले झटके, जैसे कि महामारी, जैसी आकस्मिक ज़रूरतों को पूरा करने का प्रावधान हो. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जी20 को हमारी सिफ़ारिशें, जो महत्वपूर्ण साबित होने वाली हैं, वह हैं- कुशल अनुसंधान और नीतिगत हस्तक्षेपों को तैयार करने के लिए एक जी20 पोषण संस्थान बनाया जाए और इन सिफ़ारिशों को संचालित करने के लिए एक पोषण संवर्ग बनाया जाए.

एक स्थायी जी20 पोषण संस्थान स्थापित करें

कुल मिलाकर, एक जी20-संचालित नीति संस्थान जो नीतिगत हस्तक्षेपों की एक ऐसी सूची प्रदान करता है जिसमें से चुनने के लिए देश स्वतंत्र हैं, इससे समन्वय में सुधार करने, हस्तक्षेपों के प्रभाव को बढ़ाने और संसाधनों के उपयोग में जवाबदेही सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है. जी20 देश नीतिगत हस्तक्षेपों के लिए एक अधिक सुसंगत और प्रभावी दृष्टिकोण बनाने के लिए अपनी विशेषज्ञता और संसाधनों को एकत्रित कर सकते हैं, जिससे दुनिया भर की आबादी के लिए बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे. जी20 के पास नीति क्षेत्रों की श्रृंखला में महत्वपूर्ण संसाधन और विशेषज्ञता है, और एक नीति संस्थान की स्थापना विभिन्न देशों से सर्वोत्तम प्रथाओं को आकर्षित करने वाले नीतिगत हस्तक्षेप बनाने के लिए उपयोगी हो सकती है.

एक जी20-संचालित नीति संस्थान को तीन तरीकों से चलाए जाने की संभावना है:

स्वतंत्र संगठन: जी20 देश नीति संस्थान चलाने के लिए एक स्वतंत्र संगठन स्थापित कर सकते हैं. इस संगठन की अपनी शासन संरचना और कर्मचारी हो सकते हैं, जिसमें शोधकर्ता, नीति विश्लेषक और प्रशासनिक कर्मचारी शामिल हैं. जी20 का नीति संस्थान की दिशा और प्राथमिकताओं पर पूरा नियंत्रण होगा, क्योंकि वह ही इसकी स्थापना और संचालन करेगा. इसलिए, नीति संस्थान चलाने वाली संस्था जी20 की ज़रूरतों और प्राथमिकताओं के अनुरूप होगी. एक नए संगठन के निर्माण में हालांकि संसाधन खर्च होंगे और इसे स्थापित करने में काफ़ी समय लगेगा.

मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय संगठन: जी20 देश नीति संस्थान स्थापित करने के लिए डब्ल्यूएचओ या संयुक्त राष्ट्र जैसे मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय संगठन के साथ काम कर सकते हैं. यह मौजूदा विशेषज्ञता और संसाधनों, साथ ही स्थापित शासन और प्रशासनिक संरचनाओं तक पहुंच प्रदान कर सकता है. यह विकल्प स्थापित करने के लिए संसाधनों की कम आवश्यकता होगी. हालांकि, एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के मौजूदा नौकरशाही वाले ढांचे के अंदर रहकर काम करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है और निर्णय लेने की गति और कार्यान्वयन को धीमा कर सकता है.

शैक्षणिक संस्थान के साथ साझेदारी: जी20 देश नीति संस्थान स्थापित करने के लिए किसी प्रमुख शैक्षणिक संस्थान, जैसे कि विश्वविद्यालय या अनुसंधान संस्थान के साथ साझेदारी कर सकते हैं. यह अकादमिक विशेषज्ञता और संसाधनों तक पहुंच प्रदान कर सकता है, साथ ही शोधकर्ताओं और नीति विशेषज्ञों का एक नेटवर्क भी प्रदान कर सकता है.

इनमें से किसी भी परिदृश्य में, जी20 देशों को नीति संस्थान की विशिष्ट भूमिकाओं और ज़िम्मेदारियों का निर्धारण करना होगा, जिसमें इसके ध्यान केंद्रित किए जाने वाले क्षेत्र, अनुसंधान प्राथमिकताएं और नीतिगत सिफ़ारिशें शामिल हैं. संस्थान का वित्तपोषण और संसाधन आवश्यकताएं विकल्पों पर निर्भर करेंगी. इस संस्थान को डब्ल्यूएचओ के तहत संचालित करना सबसे आसान होगा, जिसमें इस प्रयास के लिए डब्ल्यूएचओ को जी20 से वित्त का एक हिस्सा आवंटित किया जाएगा. यह जी20 को इस समस्या के आस-पास सभी गतिविधियों को केंद्रित करने की अनुमति देगा, और यह कुपोषण से संबंधित सिफ़ारिशें बनाने और अपनाने के लिए डब्ल्यूएचओ की अंतर्निहित विशेषज्ञता और पहुंच का उपयोग कर सकेगा.

प्रस्तावित नीति संस्थान को निम्नलिखित नीतिगत सिफ़ारिशों पर ध्यान देना चाहिए, जो कुपोषण से निपटने के लिए विश्व स्तर पर लागू सामान्य सिद्धांतों पर आधारित हैं.

  1. सार्वजनिक बनाम नैदानिक ​​पोषण हस्तक्षेपों को अलग करना: पोषण हस्तक्षेपों को मोटे तौर पर दो भागों में विभाजित किया जा सकता है, पहला सार्वजनिक या सामुदायिक पोषण दृष्टिकोण है जहां उस स्तर पर देखी गई कमी के जवाब में सामुदायिक स्तर पर पोषण में सुधार किया जाता है. इस दृष्टिकोण का उपयोग पूरी जनसंख्या के स्तर पर सुधार करने के लिए किया जाता है. भारत में इस दृष्टिकोण का एक सफल उदाहरण घेंघा रोग और बौद्धिक अक्षमताओं को रोकने के लिए नमक में आयोडीन का मिलाया जाना है. यह दृष्टिकोण, जो मुख्य रूप से निवारक प्रकृति का है, इसमें लोगों को आहार परिवर्तन के बारे में शिक्षित करना और उन्हें पोषण के इष्टतम स्तर तक पहुंचने में मदद करना शामिल है. हालांकि, यह दृष्टिकोण तभी अपनाना संभव जब कुपोषण का कारण जनसंख्या के लिए समान हो. 2021 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि 2024 तक हर सरकारी कार्यक्रम के तहत फ़ोर्टिफ़ाइड चावल उपलब्ध होंगे.[16] यह योजना सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के कारण होने वाले एनीमिया से निपटने का प्रयास है. इस दृष्टिकोण के साथ एक बड़ी चिंता यह है कि विभिन्न आबादी वर्गों को प्रभावित करने वाले एनीमिया के कारण अलग-अलग होते हैं और ज़रूरी नहीं कि यह मात्र लोहे (आयरन) की कमी के कारण होते हों. इसलिए, पूरी जनसंख्या के स्तर पर फ़ोर्टिफ़ाइड चावल की आपूर्ति से यह समस्या हल नहीं होगी और इसके बजाय कुछ आबादी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की अधिकता का कारण भी बन सकती है.[17] दूसरा दृष्टिकोण नैदानिक ​​या व्यक्तिगत पोषण का है. इसमें फोकस व्यक्ति पर होता है. यह एक स्वास्थ्य देखभाल सुविधा केंद्र से शुरू होता है और इसमें अस्पताल में बाहर से आने वाले मरीज़़ों और भर्ती मरीज़ों के आहार कारकों में संशोधन शामिल है. दीर्घकालिक बीमारियों से पीड़ित मरीज़ों में भी पोषण संशोधन काफ़ी महत्वपूर्ण है. मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग जैसी आजीवन रहने वाली बीमारियों से पीड़ित मरीज़ों को उन्हें नियंत्रित करने में सक्षम होने के लिए निरंतर सहायता और मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है. नैदानिक ​​पोषण इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इस दृष्टिकोण का मुख्य उद्देश्य बीमारियों की प्रगति और पुनरावृत्ति को रोकना है. हमें यह चुनने में सक्षम होना चाहिए कि किन बीमारियों के लिए सार्वजनिक पोषण हस्तक्षेपों की आवश्यकता है और किनके लिए नैदानिक ​​पोषण की आवश्यकता है. नीति संस्थान देशों को यह मार्गदर्शन करने के लिए रूपरेखा तैयार करने में मदद कर सकता है कि कैसे सार्वजनिक बनाम नैदानिक ​​पोषण की समस्याओं से बेहतर तरीके से निपटें.
  2. एक समर्पित पोषण संवर्ग का निर्माण: इसकी कई वजहें हैं कि देशों को सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (सीएचडब्ल्यू) का एक अलग संवर्ग (काडर) बनाने पर विचार करना चाहिए, जो विशेष रूप से पोषण संबंधी हस्तक्षेपों पर केंद्रित हों. मौजूदा सीएचडब्ल्यू पर, विशेष रूप से विकासशील देशों में, बोझ पहले ही बहुत अधिक है.[18] सीएचडब्ल्यू का एक समर्पित संवर्ग, जो पोषण संबंधी मुद्दों से निपटने के लिए प्रशिक्षित और सुसज्जित हैं, स्वास्थ्य परिणामों में सुधार और कुपोषण के बोझ को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. वे उन व्यक्तियों और समुदायों को लक्षित और प्रभावी सहायता प्रदान कर सकते हैं जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है. ये सीएचडब्ल्यू पोषण संबंधी हस्तक्षेपों में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं और पोषण संबंधी विशिष्ट चुनौतियों, जैसे कुपोषण, एनीमिया या कमज़ोरी से निपटने में विशेषज्ञता विकसित कर सकते हैं. ये सीएचडब्ल्यू पोषण संबंधी विशिष्ट चुनौतियों, जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी या शिशु को दूध पिलाने की खराब प्रथाओं की पहचान और समाधान के लिए स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर काम कर सकते हैं. पोषण संबंधी मुद्दों पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करके, ये सीएचडब्ल्यू, सामान्य सीएचडब्ल्यू जिनके पास बहुत सी ज़िम्मेदारियां हो सकती हैं, की तुलना में अधिक विशिष्ट और प्रभावी सहायता प्रदान कर सकते हैं. सीएचडब्ल्यू कई क्षेत्रों में हस्तक्षेप की सलाह दे सकते हैं. वे चिकित्सा डॉक्टरों के साथ पोषण विशेषज्ञ के रूप में काम कर सकते हैं या पोषण पर ध्यान केंद्रित करने वाले स्कूल पाठ्यक्रम बनाने में मदद कर सकते हैं या स्कूल लंच बॉक्स के लिए किफ़ायती पोषण विकल्प/विकल्पों की सिफ़ारिश कर सकते हैं. उन्हें स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के पहले स्तर पर मौजूदा सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना से जोड़ने में प्राथमिकता दी जा सकती है. संसाधन आवंटन को सुव्यवस्थित करने और दोहराव को रोकने के लिए उन्हें व्यापक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में भी एकीकृत किया जा सकता है. हालांकि, मौजूदा सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को ही पोषण स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की नई भूमिका में तैयार नहीं किया जाना चाहिए. इसके बजाय, मौजूदा कार्यबल में पोषण संवर्ग को अलग से जोड़ा जाना चाहिए.

सीएचडब्ल्यू को टीकाकरण और विद्यालय से पहले की शिक्षा जैसी गैर-पोषण संबंधी योजनाओं की ज़िम्मेदारी दी जानी चाहिए. यह देखते हुए कि उनके प्रशिक्षण में पोषण से संबंधित ज्ञान की कमी है, सीएचडब्ल्यू के प्रशिक्षण में कुपोषण के कारणों, उनके प्रभावों और हस्तक्षेपों को शामिल करना चाहिए, जिन्हें स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार इस्तेमाल और ढाला जा सकता है. फिलीपींस, आसियान का एक हिस्सा है, जो बरंगे न्यूट्रिशन स्कॉलर्स (बीएनएस) नाम का एक संवर्ग चलाता है. ये अपने समुदायों में पोषण शिक्षा और सहायता प्रदान करने के लिए ज़िम्मेदार हैं. बीएनएस को पोषण शिक्षा, विकास निगरानी और खाद्य अनुपूरण (फ़ूड सप्लीमेंट) में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त होता है. 2014 के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि सभी उत्तरदाताओं (पांच साल से कम उम्र के बच्चों वाली माताओं) ने बीएनएस द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम और दी गई जानकारी को फ़ायदेमंद महसूस किया था.[19]

  1. स्थानीय निकायों को अपनी स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप नीतियों को चुनने के लिए अधिक स्वायत्तता: स्थानीय सरकारों को उनकी ज़रूरतों और स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार पोषण हस्तक्षेपों को चुनने और लागू करने के लिए अधिक स्वायत्तता देने से कई लाभ हो सकते हैं. यह अधिक प्रभावी तरीके से कुपोषण को दूर करने के लिए तैयार किए गए हस्तक्षेपों को बढ़ावा दे सकता है, समुदायों को हस्तक्षेपों के विकास और कार्यान्वयन में शामिल कर सकता है, नवाचार और प्रयोग को बढ़ावा दे सकता है और निर्णय लेने और संसाधन आवंटन को विकेंद्रीकृत कर सकता है, इस तरह से समुदायों को अपने स्वयं के स्वास्थ्य और कल्याण का अधिक स्वामित्व लेने के लिए सशक्त बनाया जा सकता है.
  2. सरकार के विभिन्न स्तरों पर पोषण विभाग स्थापित करें: मौजूदा समय में, विभिन्न देशों के पोषण हस्तक्षेप विभिन्न विभागों द्वारा चलाए जाते हैं, जिसमें स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग से लेकर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा विभाग तक सब कुछ शामिल है. सरकार के कई विभागों की भागीदारी के कारण, समन्वय और सहयोग मुश्किल हो जाता है. यह कुपोषण से निपटने के लिए जीवन चक्र दृष्टिकोण (इसी दस्तावेज़ में पहले उल्लिखित) के उपयोग को भी रोकता है. इन दो कारणों से, सरकार के पोषण हस्तक्षेपों को एक ही विभाग में समेकित करने की आवश्यकता है (प्रस्तावित विभाग की संरचना के लिए चित्र 4 देखें).

चित्र 4: प्रस्तावित पोषण विभाग की संरचना

स्रोतः तक्षशिला इंस्टीट्यूशन[20]

बेहतर डाटा संग्रह और विश्लेषण: जब पोषण हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता को मापना हो तो, उसके लिए अंतर्ग्रहण संकेतकों[जी] के बजाय प्रभाव संकेतकों के उपयोग के कई फ़ायदे हो सकते हैं. प्रभाव संकेतक हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप पोषण की स्थिति या स्वास्थ्य परिणामों में होने वाले परिवर्तनों को मापते हैं, जबकि अंतर्ग्रहण संकेतक उस हद को मापते हैं जिस तक हस्तक्षेप को कार्यान्वित या उपयोग किया गया है. कुल मिलाकर, प्रभाव संकेतकों का उपयोग पोषण हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता का अधिक सटीक और व्यापक उपाय प्रदान करता है. वे निर्णय-कर्ताओं को संसाधन आवंटन के बारे में सुविज्ञ निर्णय लेने के लिए आवश्यक जानकारी प्रदान करते हैं, परिणामों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और हस्तक्षेपों के डिज़ाइन और कार्यान्वयन के लिए ज़िम्मेदार लोगों के लिए अधिक जवाबदेही को बढ़ावा देते हैं.

ध्यान के केंद्र को स्थानांतरित कर विकलांगता समायोजित जीवन वर्षों पर कुपोषण के प्रभाव पर लाएं

जी20 के ध्यान के केंद्र को स्थानांतरित कर विकलांगता समायोजित जीवन वर्षों (DALYs) की ओर लाना इसमें जोखिम और चुनौतियों को शामिल कर सकता है और फ़िलहाल सामने मौजूद समस्या के सामाजिक-आर्थिक तनाव को कम करने के अवसर प्रदान कर सकता है. डीएएलवाई समय से पहले होने वाली मौतों या खोए हुए जीवन के वर्षों और विकलांगता के साथ जिए गए वर्षों के संयुक्त प्रभाव का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप स्वस्थ जीवन के खोए हुए वर्षों का माप होता है. मृत्यु दर के विपरीत, जो केवल मृत्यु की दर को ध्यान में रखती है, डीएएलवाई लाभप्रद हैं क्योंकि वे किसी बीमारी के कारण होने वाली मृत्यु दर और रुग्णता दोनों को शामिल करते हैं. डीएएलवाई का आगे उपयोग बीमारियों और मानव जीवन पर उनके प्रभाव की तुलना करने के लिए किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, डीएएलवाई के साथ, आप पेशाब के तीव्र संक्रमण (एक्यूट यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फ़ेक्शन- एक्यूट यूटीआई) के प्रभाव की तुलना मधुमेह जैसी पुरानी बीमारियों से कर सकते हैं. यह नीति हस्तक्षेपों के प्रभावों को मापने के लिए भी काफ़ी प्रभावी उपकरण है.


श्रेयः हर्षित कुकरेजा और शांभवी नाइक, ‘2030 तक सभी जी20 देशों में कुपोषण को कम कर आधे तक लाना’, टी20, नीति पत्र, जून 2023


[1] Malnutrition,” World Health Organization, April 15, 2020, Accessed April 4, 2023.

[2] Home | Ministry of Health and Family Welfare | Goi,” Ministry of Health and Family Welfare, Accessed April 4, 2023.

[3] Vinicius JB Martins et al., “Long-lasting effects of undernutrition,” International Journal of Environmental Research and Public Health 8, no. 6 (2011): 1817-1846.

[4] “4th Report − The World Nutrition Situation: Nutrition throughout the Life Cycle – UNSCN”, United Nations Administrative Committee on Coordination, April 2023.

[5] Ruth Shapu et al., “Knowledge, Attitude, and Practice of Adolescent Girls Towards Reducing Malnutrition in Maiduguri Metropolitan Council, Borno State, Nigeria: Cross-Sectional Study” Nutrients 12 (6), 1681 (2020).

[6] Malnutrition in Children,” UNICEF DATA, Accessed April 4, 2023.

[7] Michael, Belay et al., “Overnutrition and Associated Factors Among High School Adolescents in Mid COVID-19 Pandemic in Ethiopia: Neglected Public Health Concern,” Adolescent Health, Medicine and Therapeutics (2022): 1-14.

[8] Karen Freijer et al., “The economic costs of disease related malnutrition,” Clinical Nutrition 32, no. 1 (2013): 136-141.

[9] GBD Compare,” Institute for Health Metrics and Evaluation, University of Washington, Accessed April 4, 2023.

[10] “GBD Compare”

[11] The 17 Goals | Sustainable Development,” United Nations, Accessed April 4, 2023.

[12]Malnutrition in Children,” UNICEF DATA, Accessed April 4, 2023.

[13] Nutrition,” UNICEF, Accessed April 5, 2023.

[14] “Decade of Action on Nutrition,” United Nations, Accessed April 5, 2023.

[15] Jonathan D. Moyer and Steve Hedden, “Are we on the right path to achieve the sustainable development goals?,” World Development 127 (2020): 104749.

[16] Fortified Rice Available In Ration Shops In 439 Districts & Other Schemes: Govt,” Outlook, May 24, 2023.

[17] Sayantan Bera, “What’s Fortified Rice, Why Is Modi Govt Pushing it & Why Some Experts Aren’t Excited,” The Print, September 2, 2022.

[18] “ASHA Workers: The Underpaid, Overworked, and Often Forgotten Foot Soldiers of India,” Forbes India, June 26, 2021.

[19] El Ma Socorro, “Assessment of Barangay Nutrition Program implementation in selected municipalities in Ifugao, Bulacan and Siquijor: Community partners’ perspectives,” Acta Medica Philippina 48, no. 3(2014): 26-34.

[20] Harshit Kukreja and Shambhavi Naik, “Takshashila Discussion Slidedoc – a New Approach to Nutrition in Karnataka,” The Takshashila Institution, Accessed April 5, 2023.

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Authors

Harshit Kukreja

Harshit Kukreja

Harshit Kukreja Research Analyst Takshashila Institution

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Shambhavi Naik

Shambhavi Naik

Shambhavi Naik is the Head of Research at Takshashila Institution and is the chairperson of the Advanced Biology programme. Shambhavi has a Ph.D in Cancer ...

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